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भाषा एक ऐसा माध्यम है जो हमारे विचारों को दूसरों तक पहुंचाने का काम करती है। यह हमारे मन के भावों को प्रकट करती है और हमारे शब्दों और वाक्यों को सुन्दर बनाती है। हम जानते ही हैं कि भारत विविध भाषाओं का केंद्र रहा है जहां विभिन्न प्रकार की भाषाएँ पढ़ी और बोली जाती है। विभिन्न कवि या लेखक अपने लेखन को सुन्दर रूप देने के लिए इन विभिन्न भाषाओं का ही प्रयोग करते हैं तथा दूसरों से भिन्न बनने के लिए वे इन भाषाओँ को भिन्न लेखन शैलियों में भी लिखते हैं, जिसे अंग्रेज़ी में केलिग्रफ़ी (Calligraphy) कहा जाता है। शिकस्त भी एक प्रकार की लेखन शैली है जिसका उपयोग विभिन्न कवियों और लेखकों ने अपने लेखन में किया। यह फारसी की लेखन शैली का एक प्रकार है।
वास्तव में ‘शिकस्त’ एक फारसी शब्द है जिसका अर्थ है ‘खंडित’ अर्थात टूटा हुआ। शुरूआत में इसका इस्तेमाल मुख्य रूप से आधिकारिक कार्यों में किया जाता था। इस शैली को हेरात के शफिका द्वारा और भी अधिक सुरुचिपूर्ण रूप में ढाला गया था जिनका लेखन बहुत ही सुन्दर था। इसके बाद तालिकान के अब्दुल मज़ीद द्वारा इसे पूर्णता में लाया गया। यह शैली ठीक उस समय विकसित हुई जब शिकस्त शब्द भारत में फारसी कविता के प्रमुख शब्दों में से एक बना। अपनी उदास भावनाओं और टूटे दिलों को व्यक्त करने के लिए कवियों ने अपने पत्रों को शिकस्त में लिखा। इस शैली के ज्ञान को यूरोपीय लोगों द्वारा बहुत ही कम अर्जित किया गया क्योंकि इसे सीखने के लिए बहुत अभ्यास की आवश्यकता थी। वर्तमान में लखनऊ में अमेरिकन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडियन स्टडीज़ (American Institute of Indian Studies), मुगल-फारसी जैसे पाठ्यक्रमों के साथ चलाया जा रहा है। यहां शिकस्त के अध्ययन को भी पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया गया है। 18वीं शताब्दी तक शिकस्त फारस (ईरान) की दुनिया में अच्छी तरह से स्थापित हो चुकी थी। अन्य फ़ारसी लिपियों के आदी लोगों के लिए भी शिकस्त को समझना बहुत कठिन है क्योंकि इसकी लेखन शैली बहुत ही अधिक स्वतंत्र है। यहां तक कि फारसी भाषा की व्यापक समझ भी इसे सीखने के लिए पर्याप्त नहीं है।
शिकस्त ने साहित्यिक संस्कृति को परिभाषित किया। इसके स्वतंत्र और अविवेकी भाव मौखिक प्रभाव से अधिक दृश्य प्रभाव को उजागर करते हैं। वर्तमान में इस भाषा का चलन बहुत ही कम देखने को मिलता है जिसका मुख्य कारण इसका कम प्रसार है। इसके अतिरिक्त लोगों को इसके बारे में अधिक जानकारी भी प्राप्त नहीं है जिससे इस लेखन शैली में रुचि कम ही देखने को मिलती है। यदि इसका व्यापक रूप से उपयोग किया जाए तो इस लेखन शैली को और भी अधिक विकसित किया जा सकता है। इसकी मदद से लेखन को और भी अधिक प्रभावशाली बनाया जा सकता है।
संदर्भ:
1. https://www.academia.edu/19748000/Shikasta_in_Lucknow
2. http://islamic-arts.org/2011/styles-of-calligraphy/
चित्र संदर्भ:-
1. https://www.academia.edu/19748000/Shikasta_in_Lucknow
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