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लखनऊ भारतीय इतिहास में एक ऐसे शहर के रूप में जाना जाता है जो कि अपनी कला और वास्तु का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत करता है। यह शहर अवध के नवाबों द्वारा नाज़ों से सजाया गया था। इस शहर के बारे मे देश ही नहीं बल्कि विदेशों के भी कला प्रेमी स्तब्धता पूर्ण इसकी बढाई करते हैं। लखनऊ में वैसे तो कई धरोहर हैं और उन्हीं धरोहरों में से एक है छत्तर मंज़िल। छत्तर मंज़िल वर्तमान काल में अपनी पुरातात्विक सम्पदा के कारण केंद्र बिंदु बना हुआ है। इस इमारत की रचना सआदत अली खान ने करवाई थी। यदि इतिहास की बात की जाए तो यह नवाब गाज़ी उद्दीन हैदर के निर्देश से बनवाई गयी थी तथा यह नवाब नासिरुद्दीन हैदर के समय में बन कर तैयार हुयी थी। यह गोमती नदी के किनारे बसी हुयी है। इस इमारत का नाम छत्तरमंज़िल इस वजह से पड़ा क्यूंकि इsके ऊपर छतीस छतरियां बनी हुयी हैं। यह इंडो-यूरोपीय-नवाबी कला का एक अनुपम नमूना है। इस इमारत को देखकर कोई भी कह सकता है कि यह राजधानी ऐतिहासिक धरोहरों का शहर है। पिछले कुछ समय से छत्तर मंज़िल के संरक्षण का कार्य उत्तर प्रदेश पुरातत्त्व विभाग करवा रही है। इस संरक्षण कार्य के दौरान ही कई ऐसी वस्तुएं यहाँ से प्राप्त हुयी जिन्होंने छत्तर मंज़िल के इतिहास को एक नया मोड़ दे दिया।
लखनऊ के निवासियों और पुरातत्व इतिहास में रुचि रखने वाले लोगों ने अब तक सुना था कि छत्तर मंज़िल को पार करने के लिए नावों का प्रयोग होता था, लेकिन अब तक इसका कोई प्रामाणिक साक्ष्य नहीं था लेकिन मई में प्राप्त नाव के उत्खनन से इस बात का प्रमाण मिला कि वहां नावों का प्रयोग एक किनारे से दूसरे किनारे तक जाने में होता था। कई प्राचीन चित्रों में लखनऊ में मछली, मगरमच्छ आदि के आकार की नावों को देखा जाता रहा है जो कि गोमती नदी में घूमने आदि में प्रयोग में लायी जाती रही हैं परन्तु अब तक इसके कोई ठोस पुरात्तात्विक प्रमाण प्राप्त नहीं हुए थें। यहाँ से प्राप्त नाव करीब 200 साल पुरानी बताई गई है हांलाकि अभी तक इसका वैज्ञानिक प्रयोग नहीं किया गया है। इसे 19 फिट गहरे ज़मीन से निकाला गया और लगे हुए फट्टे 50 फुट लम्बे और 12 फुट चौड़े हैं, जो इस बात का प्रमाण देते हैं कि अवध के नवाब इसका प्रयोग करके नदी पार करते थे या फिर इतनी बड़ी नाव का इस्तेमाल व्यापार के दृष्टिकोण से किया जाता रहा होगा। वैसे लखनऊ में गोमती एकमात्र ऐसी नदी है जिसमें से बड़ी संख्या में व्यापार और वस्तु विनिमय हुआ करता था। गोमती नदी के ही सहारे बांग्लादेश तक नाव से सामान ले जाया और लाया जाता था जिसके कई लिखित प्रमाण इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं। छत्तर मंज़िल के उत्खनन के दौरान ज़मीन के नीचे भी महल की एक और सतह प्राप्त हुई है जिसमें प्रयोग में लाये गए पच्चीकारी किये हुए खम्बे, रोशनदान, खिड़कियाँ आदि यह प्रमाणित करती हैं कि इसे रहने के लिए प्रयोग में लाया जाता रहा होगा। यह मंज़िल गर्मियों के दौरान प्रयोग में लाई जाती होगि क्यूंकि यहाँ पर नदी से पानी आने की नालियों के भी अवशेष प्राप्त हुए हैं।A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.
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