समयसीमा 229
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भूगोल 211
जीव - जन्तु 274
एकं समयेन बुद्धा गिज्झकूटे पब्बते विहरति।
प्रस्तुत पंक्तियाँ पाली भाषा से उद्घृत है तथा यह अंगुलिमाल जातक में लिखित है। यह पंक्तियाँ गिज्झकूट पर्वत की महत्ता को प्रदर्शित करती है। राजगीर बुद्ध, हिन्दू और जैन धर्म के मतानुयायियों के लिए अत्यंत ही महत्वपूर्ण स्थान है। यह बिहार में स्थित है। राजगीर चोटी को गिज्झकूट या वल्चर हिल के नाम से भी जाना जाता है। यह पहाड़ी 5 पहाड़ी श्रृंखलाओं से घिरा हुआ है जैसे की रत्नागिरी, विपल्चल, वैभागिरी, सोनगिरी और उदयगिरी। यह पर्वत श्रंखला 2 चोटियों से मिलकर बना है जो की करीब 65 किलोमीटर के क्षेत्र में फैली हुयी है। इसकी सबसे ऊंची चोटी 388 मीटर की है। इन दोनों चोटियों के मध्य के स्थानों को यदि तिथिक्रम में डाला जाये तो यह करीब महाभारत, गौतम बुद्ध, महावीर, मौर्य और गुप्तों के काल से सम्बंधित है। जैसा की यह क्षेत्र दो चोटियों से सुरक्षित है तो यहाँ पर अजातशत्रु ने 5वीं शताब्दी ईसापूर्व में मगध साम्राज्य की स्थापना की।अजातशत्रु ने अपने पिता बिम्बिसार को जेल में भर कर सत्ता हथियाई थी। बिम्बिसार जो की भगवान् बुद्ध द्वारा ही दीक्षित थे ने अजातशत्रु से कहा की ऐसे जगह पर उन्हें ऐसे जगह पर बंद किया जाए जहाँ से वे रोजाना बुद्ध को आते जाते देख सके। आज के दौर में यात्री रस्सी के मार्ग से चोटी के सबसे ऊपर वाले स्थान पर जा सकते हैं जहाँ पर शांति पगोडा स्थित है। यह वही स्थान है जहाँ पर बुद्ध ने कमल सुत्त अपने अनुयायियों को सुनाया था। यहाँ से गिज्झकूट नजदीक है जहाँ पर बुद्ध दीक्षा देने के बाद रुके हुए थे। इस क्षेत्र में अनेकों जैन और बुद्ध मंदिर उपस्थित हैं।
यदि बुद्ध धर्म की बात की जाए तो बुद्ध द्वारा दिए गए स्थानों में बोधि वृक्ष और हिरन उद्यान (सारनाथ) के बाद यदि कोई स्थान बुद्ध से सम्बंधित और महत्वपूर्ण है तो वह है गिज्झकूट। इस स्थान पर बुद्ध अपने कैवाल्याज्ञान प्राप्ति के 16वें साल में यहाँ पर 5000 बुद्ध मतानुयायियों को प्रन्जा पारमिता (ज्ञान की पूर्णता) का ज्ञान दिया। यह धर्म के द्वितीय चक्र के रूप में जाना जाता है। बुद्ध द्वारा दिए गए उपदेशों को तीपिटकों में और जातकों में प्रस्तुत किया गया है। बुद्ध के जीवन से सम्बंधित राजगीर के क्षेत्र में ऐतिहासिक काल में धर्म से सम्बंधित अनेकों घटनाएँ घटी जिन्होंने सम्पूर्ण भारत में एक नया आयाम प्रस्तुत किया।
राजगीर वह स्थान है जहाँ पर सारिपुत्र और मुदगलयायन ने बुद्ध धर्म को अपनाया था और यह वही स्थान है जहाँ पर अत्यंत गुस्से में विभूति हाथी को बुद्ध ने रोका था।
बुद्ध के जीवन की अंतिम यात्रा जो की कुशीनगर में महापरिनिर्वाण के साथ रुकी थी राजगीर से ही शुरू हुयी थी। यह स्थान धार्मिक के साथ ही साथ प्राकृतिक रूप से भी अत्यंत ही महत्वपूर्ण है। यह अपनी प्राकृतिक छटाओं से किसी का भी मन मोहने के योग्य है। यहाँ पर विभिन्न झरने, गुफाएं आदि उपस्थित है जो की घूमने के शौक़ीन लोगों को एक अलग ही अनुभव प्रदान कर सकने योग्य है। यह लखनऊ से करीब 600 किलोमीटर दूर स्थित है तथा गाडी से जाने में करीब 10 घंटे का सफ़र है।
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