क्या है पारिस्थितिकी और कैसे जुड़ी है ये जलवायु परिवर्तन से?

जलवायु व ऋतु
10-08-2019 10:59 AM
क्या है पारिस्थितिकी और कैसे जुड़ी है ये जलवायु परिवर्तन से?

पृथ्वी इस संसार का एक अद्भुत ग्रह है, इसकी अद्भुतता का सबसे बड़ा उदाहरण है इसपर पाए जाने वाले जीव-जंतु और वनस्पतियाँ । इस ग्रह के विषय में और कौतूहल बढ़ाते हैं इसपर उपलब्ध जल, बर्फ और ओज़ोन (Ozone) परत। पृथ्वी अपने निर्माण के काल के बाद से अब ऐसी स्थिति में पहुंची है जहाँ पर इसकी स्थिति को लेकर एक चिंता व्याप्त हो गयी है। जिस प्रकार से मानव ने ताम्र पाषाण काल से बसाव करना शुरू किया और शहरों की स्थापना करते हुए औद्योगिक क्रान्ति में प्रवेश किया, इससे पृथ्वी के वायुमंडल का क्षरण वृहद गति से हुआ। मानव के यायावरी जीवन के बाद सामाजिक जीवन में आने का सबसे बड़ा कारण कृषि है। कृषि ने मनुष्य को एक स्थान पर रोक दिया जिससे वह विभिन्न नए प्रयोग करने लगा जिसका प्रतिउत्तर यह आया कि मानव नई-नई सभ्यताओं को जन्म देने लगा। सभ्यताओं के आने के बाद बड़े शहरों का निर्माण शुरू हुआ और करीब 18वीं शताब्दी में औद्योगिक क्रान्ति हुयी। औद्योगिक क्रांति के आ जाने के कारण कई ऐसे पदार्थों का सृजन कार्य शुरू हुआ जिन्होंने मानव जीवन को आसान तो बनाया परन्तु पृथ्वी के ऊपर एक गहरे घाव का निर्माण कर दिया। यह घाव था प्रदूषण का। प्रदूषण ने पृथ्वी पर कई समस्याएं पैदा कीं। पारिस्थितिकी, जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming), ये तीन बिंदु हैं जिनका अध्ययन पृथ्वी पर होने वाली समस्याओं के परिपेक्ष्य में किया जा सकता है।

ग्लोबल वार्मिंग को पृथ्वी के बढ़ते हुए तापमान के साथ जोड़ा जा सकता है और वहीं यदि जलवायु परिवर्तन की बात की जाए तो यह ग्लोबल वार्मिंग और वातावरण पर इसके प्रभाव, दोनों को अपने में लेकर चलता है। जलवायु परिवर्तन हिमखंडों के पिघलने, अनियमित वर्षा, सूखा आदि को परिभाषित करता है। दूसरे शब्दों में कहें तो ग्लोबल वार्मिंग एक संकेत है मानव द्वारा किये गए जलवायु परिवर्तन का। यदि ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन में दूसरी विभिन्नता की बात की जाए, तो ग्लोबल वार्मिंग मानव द्वारा किये गए कृत्य से देखा जा सकता है जैसे- ग्रीनहाउस गैस (Greenhouse Gas), कार्बन डाइऑक्साइड (Carbon Dioxide) गैस का उत्सर्जन आदि जो कि कोयला, तेल और गैस के जलने आदि पर होता है। जलवायु परिवर्तन में ग्लोबल वार्मिंग से तो प्रभाव पड़ता ही है, इसके अलावा इसमें प्राकृतिक फेर बदल भी हैं जैसे कि- शीत युग। ऐतिहासिक रूप से देखा जाए तो पृथ्वी की जलवायु में कई बार परिवर्तन हुए हैं परन्तु वर्तमान काल में मानव द्वारा फैलाया जाने वाला प्रदूषण, वृक्षों की कटाई आदि जलवायु को और तेज़ी से परिवर्तित करने की ओर अग्रसर हैं।

पारिस्थितिकी पर जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव अत्यंत ही तेज़ी से पड़ता है जिसका परिणाम यह आता है कि पृथ्वी का वायुमंडल जीवन के लिए असाध्य हो जाता है।
इन समस्याओं के सुधार के लिए पृथ्वी पर मानवों द्वारा किये जा रहे प्रदूषण पर रोकथाम करने की आवश्यकता है। इन प्रयासों में वृक्षारोपण, वायुमंडल में कम कार्बन का उत्सर्जन, प्राकृतिक रूप से प्रदूषण रहित ऊर्जा का निर्माण, विभिन्न उद्योगों से निकलने वाले कचरे का समुचित प्रयोग आदि हैं। समस्याओं का निवारण यदि न किया गया तो पृथ्वी पर तमाम समस्याएं आएँगी जैसे कि हिमखंडों के पिघलना। यदि सभी हिमखंड पिघलना शुरू करेंगे तो समुद्र के जल स्तर में अत्यंत बढ़ोतरी होगी और समुद्र किनारे बसे शहर जल जमाव से ख़त्म होने की ओर अग्रसर हो जाएंगे। इसके अलावा पर्यावरण में व्याप्त प्रदूषण पूरी पृथ्वी को एक गैस चेम्बर (Gas Chamber) बना देगा जिससे यहाँ रहना दूभर हो जायेगा।

संदर्भ:
1. https://www.nrdc.org/stories/how-you-can-stop-global-warming
2. https://www.climate.gov/news-features/climate-qa/whats-difference-between-global-warming-and-climate-change
3. https://www.sciencedirect.com/science/article/pii/B9780444516732500017
4. https://19january2017snapshot.epa.gov/climate-impacts/climate-impacts-ecosystems_.html
5. https://climate.nasa.gov/evidence/

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