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लखनऊ शहर के प्रवेश द्वार और इमारतें अपने शानदार सजावटी रूप के लिये पूरे देश भर में प्रसिद्ध हैं। शहर में आने वाले आगंतुकों में शायद ही कोई ऐसा हो जो इससे प्रभावित न हुआ हो। शहर के हर द्वार पर मछलियों की एक जोड़ी इसकी सुंदरता को और भी अधिक बढ़ा देती हैं। इसे देखकर ऐसा लगता है मानो जैसे यह लखनऊ आने वाले सभी आगंतुकों का स्वागत कर रही हों। लखनऊ की वास्तुकला और सजावट में सर्वत्र पायी जाने वाली ये मछलियां अवधि संस्कृति का प्रतीक हैं जिनका इतिहास बहुत ही गूढ़ और रहस्यमयी है।
सबसे आश्चर्य की बात यह है कि लखनऊ शहर पूरी तरह से स्थल-रुद्ध है लेकिन फिर भी इस जलीय जीव अर्थात जुड़वां मछलियों को लखनऊ ने अपने राज्य-चिन्ह के रूप में चुना। इस चिह्न की उत्पत्ति माही-मरातिब से सम्बंधित है। तो आइये जानते हैं कि माही-मरातिब आखिर है क्या?
वास्तव में माही-मरातिब मुगलों द्वारा दिया जाने वाला एक विशेष सैन्य पुरस्कार था जिसकी स्थापना मूलतः फारस के ससैनियन राजवंश के राजा खुसरू परवेज़ ने की थी। इसके बाद इस पुरस्कार को दिल्ली के मुग़ल सम्राटों ने अपने अधीन कर लिया। यह पुरस्कार मुग़ल सम्राट अपने विशेष सैन्य कमांडरों (Commanders) और सहयोगियों को सम्मानित करने के लिये देते थे। इस पुरस्कार की आकृति तीन पंखों वाली सुनहरी मछली (लेबियो रोहिता) के भयंकर दिखने वाले सिर जैसी थी जिसमें बारीक लोहे के दांत लगे हुए थे। त्वचा पर लकीरों को उकेरा गया था तथा मुंह से निकलता एक कपड़ा हवा में लपलपाती लाल जीभ की तरह दिखता था। यह सिर एक लंबे पोल (Pole) के ऊपर रखा गया था। इस मछली के सिर के साथ दो गोले भी हुआ करते थे और इन्हें भी पोल के ऊपर रखा जाता था। पीतल से बने करीब 19 सेंटीमीटर चौड़े इस प्रतीक को एक निजी फ्रांसीसी संग्रह से 1970 में अधिग्रहित किया गया। यह आकृति शौर्य, दृढ़ता और शक्ति को प्रदर्शित करती थी।
इस एकल मछली के मछलियों की जोड़ी में तब्दील होने की कहानी भी आपको बहुत रोचक लगेगी। कहा जाता है कि अवध के राज्यपाल नियुक्त किए जाने के बाद जब नवाब सआदत खान बुरहान-उल-मुल्क लखनऊ से फरुखाबाद जाते हुए गंगा नदी पार कर रहे थे तभी दो मछलियाँ उनकी गोद में आ गिरीं। इसे उन्होंने अच्छा शगुन माना और वे दोनों मछलियों को वापस लखनऊ ले आये और इस तरह अवध के इतिहास में इस मछली जोड़े के स्वर्ण युग की शुरूआत हुई। जब 1819 ई. में रॉबर्ट होम ने नवाब गाज़ीउद्दीन हैदर शाह की ताजपोशी के समय इसे शाही चिन्ह के डिज़ाइन (Design) में शामिल किया तब से यह शाही प्रतीक बन गया। लखनऊ में प्रदर्शित होने वाली ये मछलियां मादा और नर रूपों में मौजूद हैं। नवाब वाजिद अली शाह के शाही प्रतीक चिन्ह में मछलियों के शरीर को देवों के शरीर के साथ विलय कर दिया गया जिससे यह जुड़वा मछलियां जल परी के रूप में तब्दील हो गयीं। उनके शासनकाल में इसका उपयोग मुद्राओं में भी किया।
जैसे-जैसे समय बीतता गया यह चिन्ह सर्वव्यापक होता गया। इसका इस्तेमाल लखनऊ की इमारतों में सजावटी रूपांकनों से लेकर हुक्कों, वाइन डिकैंटर (Wine Decanter), पान के डब्बों, पीकदानों, फलों के कटोरों, प्लेटों (Plates) आदि में भी किया जाने लगा। मेटलक्राफ्ट (Metal craft) और चिकनकारी, यहां तक कि हथियारों को भी मछली की आकृति से सजाया गया। दुर्भाग्य से अब इनमें से बहुत कम कलाकृतियाँ बची हैं और उनमें से अधिकांश यूरोप के संग्राहलयों और निजी संग्रहों में मौजूद हैं। उत्तर प्रदेश के राज्य संग्रहालय में भी इनका एक छोटा संग्रह मौजूद है।
मछली सौभाग्य, समृद्धि, उर्वरता और स्त्रीत्व का एक सार्वभौमिक प्रतीक है जिसका इस्तेमाल फारस, चीन और जापान की कलाओं में व्यापक रूप से किया गया है। ये जुड़वा मछलियाँ बुद्धिमत्ता का प्रतीक भी हैं। मछलियों का यह जोड़ा बौद्ध धर्म के प्रतीकों में से एक है जो स्वतंत्रता और पानी के जीवनदायी गुणों को दर्शाता है। ये मछलियां भारत की प्रमुख नदियों जमुना और सिंधु का भी प्रतिनिधित्व करती हैं। इस प्रतीक का सबसे परिष्कृत रूप ‘माहि पुश्त’ नामक पैटर्न (Pattern) में दिखाई देता है जिसे घाघरों, शरारों एवं दुपट्टों में इस्तेमाल किया जाता है। यह पैटर्न बनाने के लिए बढ़िया रंग-बिरंगे साटन के कपड़े का उपयोग किया जाता है। इस पैटर्न में मछली के सूक्ष्म स्वरुप को देखा जा सकता है।
किंतु बदलते समय और जीवन शैली के कारण स्थापत्य शैली, कला और फैशन में काफी बदलाव आ गया है जिससे इस सर्वव्यापी मछली की आकृति तेजी से गायब हो रही है। जिन शिल्पों में इसका अधिकांश इस्तेमाल किया जाता था उनमें भी गिरावट आ गयी है। इनकी आकृति को अब सिलाई और गहनों में भी नहीं उकेरा जा रहा है।
नवाबी काल के समृद्ध इतिहास और संस्कृति की गरिमा को बनाये रखने के लिये इस खूबसूरत चिह्न या प्रतीक को पुनर्जीवित करने और फिर से विकसित करने की आवश्यकता है।
संदर्भ:
1. http://lucknowobserver.com/lucknow-ki-machhliyan/
2. https://nativeplacetravels.wordpress.com/2015/07/07/languid-lucknow-following-the-fish/
3. http://www.worldofcoins.eu/forum/index.php?topic=20457.0
4. http://murshidabad.net/glossary/glossary-do-get-word-mahi-maratib.htm
5. http://alexisrenard.com/art/mahi-maratib-standard/
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