शाहनामा-ए-फ़िरदौसी के यादगार किस्से जो आज भी लखनऊ में लोकप्रिय हैं

ध्वनि 2- भाषायें
11-05-2019 10:30 PM
शाहनामा-ए-फ़िरदौसी के यादगार किस्से जो आज भी लखनऊ में लोकप्रिय हैं

‘शाहनामा’ एक ‘फिरदौसी’ नामक फ़ारसी कवि की कृति है। फिरदौसी ने ये किताब 977 ईस्वी में लिखनी शुरू की थी और 8 मार्च 1010 को उन्होंने ये महाकाव्य खत्म किया। यह दुनिया का सबसे लंबा कविता का महाकाव्य है (एक ही कवि द्वारा लिखा गया) और इसे ईरान का राष्ट्रीय काव्य भी माना जाता है। इसके अलावा अज़रबैजान, अफगानिस्तान और फारसी संस्कृति (जैसे जॉर्जिया, आर्मेनिया, तुर्की आदि) से प्रभावित अधिक क्षेत्र भी इसे अपना राष्ट्रीय महाकाव्य मानते हैं। इस कविता में 50,000 से ज्यादा दोहे हैं। ये कविताएं ईरान और फ़ारसी संस्कृति के इतिहास के बारे में बताती हैं। ये मुख्य रूप से पौराणिक और कुछ हद तक 7 वीं शताब्दी में ईरान पर अरब विजय तक के समय और फारसी साम्राज्य के ऐतिहासिक अतीत को बताती हैं।

फारस के इतिहास में फिरदौसी सबसे प्रभावशाली कवि माने जाते हैं और दुनिया में भी फिरदौसी को बड़ा उच्च दर्जा दिया जाता है। शाहनामा में सम्राटों का इतिहास है तथा इसमें मिथक और इतिहास का सम्मिश्रण देखने को मिलता है। ईरानी साहित्य में 'शाहनामा' जितनी तरह से जितनी बार छपा है उतना और कोई पुस्तक नहीं छपी है। शाहनामा का कई भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। इसका एकमात्र ज्ञात अरबी अनुवाद 1220 ईस्वी में अलफत बिन अली अल-बोंदारी द्वारा किया गया था। परंतु यह अनुवाद अप्रमाणिक माना जाता है और इसे काफी हद तक भुलाया जा चुका है, इसे 1932 में मिस्र के इतिहासकार अब्देलवाहब आज़म द्वारा पूरी तरह से पुनः प्रकाशित किया गया था।

ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1811 में शाहनामा का अनुवाद फोर्ट विलियम कॉलेज कलकत्ता में कराया। मैकन द्वारा भारत में 1829 में एक प्रारंभिक संस्करण भी तैयार किया गया था। यह 17 पांडुलिपि प्रतियों की तुलना पर आधारित था। ईस्ट इंडिया कंपनी के जेम्स एटकिंसन ने 1832 में ग्रेट ब्रिटेन और आयरलैंड के ओरिएंटल ट्रांसलेशन फंड (Oriental Translation Fund) के लिए अपने प्रकाशन में अंग्रेजी में अनुवाद किया, जो अब रॉयल एशियाटिक सोसाइटी (Royal Asiatic Society) का हिस्सा है। इसके अनुवादों की सूची ख़ासी लंबी है।

पारसी, जिनके पूर्वज 8वीं या 10वीं शताब्दी में भारत आ गए थे, ताकि वे शांति से अपने धर्म का अभ्यास जारी रख सकें, उन्होंने भी शाहनामा परंपराओं को जीवित रखा है। शायद यही कारण है कि ‘शाहनामा-ए-फ़िरदौसी’ हमें ईरान और भारत की साझा पृष्ठभूमि पर लिखे गए कई किस्से-कहानियों से रुबरु कराती है। यह महाकाव्य भारत में भी काफी लोकप्रिय रहा, खासकर लखनऊ में जहां इसकी लोकप्रियता आज भी कायम है, जिसका पता लखनऊ में प्रकाशित कई पुस्तकों से चलता है। इन्हीं में से एक है 1870 में लखनऊ के मुंशी नवल किशोर द्वारा प्रकाशित ‘शाहनामा-ए’ जो कि फ़ारसी भाषा में है और ‘फिरदौसी’ द्वारा लिखी गई है।

संदर्भ:
1. https://bit.ly/2VNC9J1
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Shahnameh
3. https://www.youtube.com/watch?v=eyJq5a9nIrU
4. https://bit.ly/2Vb4tR3
चित्र सन्दर्भ:
1. https://www.flickr.com/photos/prof_richard/35600885623
2. https://bit.ly/2Hbcce5
3. https://bit.ly/2HjbASK

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