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भारत के राष्ट्रीय पक्षी मोर के बारे में हर कोई जानता होगा, जोकि दुनिया भर में सबसे सुंदर पक्षियों में से एक माना जाता है। इसे पक्षियों का राजा भी कहा जाता है। जब मोर बारिश के मौसम में अपने पंख शानदार तरीके से फैलाकर नृत्य करता है तो यह दृश्य बड़ा ही मनोहर दिखाई देता है। परंतु आज देश में राष्ट्रीय पक्षी मोर के भविष्य पर संकट के बादल मंडरा रहे है, अवैध शिकार से इनकी संख्या दिन प्रतिदिन घटती जा रही है, इस कारण भारतीय मोर को भारतीय वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के द्वारा संरक्षण प्रदान किया गया है। यह अधिनियम भारतीय वन्यजीवों और उनके अंगो के व्यापार पर प्रतिबंध लगाता है।
भारतीय वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, 1972 को भारत सरकार ने सन् 1972 में वन्यजीवों के अवैध शिकार तथा उनके खाल के व्यापार पर रोक लगाने के लिये पारित किया था। यह अधिनियम जंगली जानवरों, पक्षियों और पौधों को संरक्षण प्रदान करता है। इसमें कुल 6 अनुसूचियाँ है जिसमें से मोर को हाथी और बाघ के समान अनुसूची-I के तहत रखा गया है। अनुसूची- I के द्वितीय भाग में वन्यजीवन को पूर्ण सुरक्षा प्रदान की जाती है और इसके तहत अपराधों के लिए भी उच्चतम दंड निर्धारित है। यह माना जाता है कि मोर भारत में 3,000 साल से अधिक समय से पाये जाते है, ये दक्षिण-पूर्व एशिया के मूल निवासी हैं। यहां तक कि बाइबिल (Bible) और यूनानी (Greek) तथा रोमन (Roman) पौराणिक कथाओं में भी इनका जिक्र मिलता है। आज मोर की मुख्य रूप से तीन प्रजातियां पाई जाती हैं जिसमे नील मोर भारत, नेपाल और श्रीलंका में और हरी प्रजाति का मोर जावा (Java), तथा म्यांमार (Myanmar) में पाया जाता है तथा इसके अलावा अफ्रीका (Africa) के वर्षा वनों में कोंगो (Congo) प्रजातिके मोर भी पाए जाते हैं परंतु इसके बारे में बहुत कम जानकारी प्राप्त है।
मयूर परिवार में मोर को नर तथा मादा को मोरनी कहा जाता है। इनमें मोर आकार में अधिक बड़े और आकर्षक होते हैं। इनमें से मोर के पास लंबे पंखों वाली शानदार पूंछ होती है, जिस पर नीले-लाल-सुनहरी रंग की आंख की तरह के चंद्राकार निशान होते हैं। इनकी पूंछ के पंख धार्मिक कार्यों और सजावटी सामान में काम आते हैं, यहां तक कि पारंपरिक चिकित्सा में भी इसका उपयोग किया गया है। भारत और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मोर की पूंछ के पंखों का एक बड़ा बाजार मौजूद है। जिस कारण इनका अवैध शिकार बढ़ता ही जा रहा है। यहां तक कि इनके मूल्यवान पंखों के लिये लोगों ने पानी में हानिकारक कीटनाशकों को मिलाकर मोरों को मारना शूरू कर दिया है। 2013-2018 की अवधि में ऑनलाइन मीडिया रिपोर्टों(Online media Report) की एक व्यवस्थित समीक्षा की गई और पाया गया कि अवैध मोर व्यापार के कम से कम 46 मामले दर्ज किए गये थे।
लोगों द्वारा मोर का उसके पंख, वसा और मांस के लिए शिकार किया जाता है। कुछ क्षेत्रों में इनके पंख के लिए उच्च रूप से अवैध शिकार की दर बढ़ रही है, इस दर को नियंत्रित करने के लिए एक परियोजना बनाई गई जिसका उद्देश्य स्थानीय लोगों के समक्ष स्ट्रीट थिएटर (Street Theater) और सेमिनार (Seminar) के माध्यम से जागरूकता प्रदान करना है। साथ ही बैंक सहायकों की मदद से शिकारियों को वैकल्पिक आजीविका विकल्प को चुनने का परामर्श प्रदान करना है। परंतु जहाँ मोर का शिकार करना प्रतिबंधित है, वहीं प्राकृतिक रूप से झड़ने वाले पंखों का व्यापार करने की छूट दी गई है। लेकिन गाँवों में शिकारियों द्वारा पंखों को इकठ्ठा करने के लिए मोर की तस्करी की जाती है। यहां तक कि मोरों की वजह से फसल खराब होने पर कई किसानो द्वारा मोर को जहर दे दिया जाता है। इनके बचाव के लिये किसानों, छात्रों और अधिकारियों के प्रतिनिधित्व के साथ पीकोक प्रोटेक्शन फोर्स (Peacock Protection Force) का गठन किया जाएगा। वन अधिकारियों, पक्षीविज्ञानियों और किसानों के लिए संवेदीकरण कार्यक्रम, वन अधिकारियों और किसानों के बीच बातचीत की बैठक के दौरान आयोजित किए जाएंगे। मोर के लिए पानी की प्रचुर मात्रा में छोटे आवासों को विकसित किया जाएगा। मोर को सुंदरता के साथ-साथ शुभ का प्रतीक भी माना जाता है। हालांकि भारत सरकार ने इनके संरक्षण के लिए कई कदम उठाए हैं परंतु इन्हें बचाने के लिये जनसमाज को जागरूक होने की भी जरूरत है।
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