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भारतीय फिल्म जगत की जानी मानी हस्ती सत्यजीत रॉय ने भारतीय सिनेमा के लिए अनेक अमर फिल्मों का निर्देशन किया, जिनमें से कई विश्व प्रसिद्ध हुई। रॉय को 20वीं शताब्दी के सर्वोत्तम फ़िल्म निर्देशकों में गिना जाता है। आज हम बात करेंगे रॉय की पहली हिन्दी फिल्म ‘शतरंज के खिलाड़ी’ के सफर के विषय में। इस फिल्म का मुख्य स्त्रोत प्रेमचंद जी की कहानी ‘शतरंज के खिलाड़ी’ है। यह कहानी 1850 के दशक की है। जिसमें दो प्रमुख पात्र मिरज़ा सज्जाद अली और मीर रौशन अली अपनी शतरंज की दुनिया में लिप्त हैं। उन्हें अपने आस-पास चल रही राजनीतिक और सामजिक गतिविधियों से कोई लेना देना नहीं है। इनकी शतरंज में इस तल्लीनता ने अवध का शासन अंग्रेजों के हाथ करवा दिया। अंततः दोनों ने एक दुसरे को मार दिया। प्रेमचन्द जी की कहानी मिरज़ा सज्जाद अली और मीर रौशन अली तक ही केंद्रित थी, राय ने कुछ अतिरिक्त पात्रों को जोड़कर फिल्म में कहानी का विस्तार किया।
सत्यजीत रॉय ने 1977 में यह फिल्म बनाई। सत्यजीत रॉय अत्यंत खोजी प्रवृत्ति के इंसान थे, इस फिल्म को तैयार करने के लिए इन्होंने तत्कालीन (1850 के दशक) सामाजिक, राजनीतिक और कला का गहनता से अध्ययन किया साथ ही शतरंज के खेल के ऊपर लिखि पुस्तकों का भी अध्ययन किया। नवाबों के विषय में जानने के लिए, फिल्मांकन हेतु एक बेहतर स्थान, उचित पात्र आदि की तलाश में, इन्होंने विभिन्न क्षेत्रों, विशेषर लखनऊ की यात्रा की। लखनऊ की यात्रा करना स्वभाविक भी था क्योंकि फिल्म ही अवध के नवाब वाजिद अली शाह के शासन काल से संबंधित थी। अपनी यात्राओं में इन्होंने वाजिद अली शाह से संबंधित स्थानों का भी दौरा किया तथा विभिन्न तस्वीरों के माध्यम से उस दौरान की वेशभुषा को भी जाना। अब समय था फिल्म के लिए उचित पात्रों का चयन करना जिसके लिए विभिन्न पात्रों को गहनता से जांचा और परखा गया इसके पश्चात सही पात्रों का चयन किया गया।
पात्रों की वेशभूषा के लिए पोशाक का डिजाइन तैयार करने हेतु एंड्रयू मोलो (Andrew Mollo) को नियुक्त किया गया, जो अपने डिजाइनों के लिए दो बार ऑस्कर जीत चूके थे। इस प्रकार इस फिल्म को तैयार करने से पूर्व सम्पूर्ण भूमिका बना ली गयी।
शतरंज के खिलाड़ी सत्यजीत राय द्वारा निर्देशित पहली गैर बंगाली भाषा की फिल्म थी, इस फिल्म से जुड़े कई पहलूओं को सुरेश जिंदल (शतरंज के खिलाड़ी के निर्माता) ने अपनी पुस्तक माई एडवेंचर्स विद सत्यजीत राय: द मेकिंग ऑफ शतरंज के खिलाड़ी (My Adventures With Satyajit Ray: The Making Of Shatranj Ke Khilari) में लिखा है।
सुरेश जिंदल बताते हैं कि सत्यजीत राय द्वारा निर्देशित यह सबसे महंगी (लगभग 45 लाख रुपये) हिंदी फिल्म थी। जो कि सिनेमा की दुनिया में अपनी एक अलग पहचान रखती है। इस फिल्म में सत्यजीत राय ने इतिहास के महत्वपूर्ण अध्यायों को उजागर किया है और लखनऊ की गलियों और महलों को बखूबी फिल्माया है। इस फिल्म के निर्माण के दौरान सत्यजीत राय और जिंदल को बहुत सी चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा। सबसे बड़ी समस्या तो यह थी कि सत्यजीत राय हिंदी और उर्दू दोनों से ही अपरिचित थे, जिसके लिये उन्हें अपने सहायकों पर निर्भर होना पड़ा। साथ ही साथ उस समय की लखनऊ की कलाओं, शास्त्रीय नृत्य और संगीत का फिल्मांकन करना भी एक चुनौती था। फिल्म का निर्माण भारत में आपातकाल के दौरान किया गया था।
फिल्म में कोई नायक और खलनायक नहीं है। नवाब वाजिद अली शाह को एक कुशल कवि, संगीतकार और नृत्यकार के रूप में दिखाया गया है, जिनकी राजनीतिक मामलों में कोई दिलचस्पी नहीं है। उन्होंने अंग्रेजों के साथ सहायक संधि की थी जिस कारण उन्होंने अपनी कोई सेना नहीं रखी थी। शायद यही इनके पतन का कारण भी बन गयी थी।
जापान के प्रसिद्ध निर्देशक अकीरा कुरोसावा जो सत्यजीत राय जी के समकालीन थे इनकी प्रसिद्ध फिल्म ‘रैपसोडी इन औगस्त’ (Rhapsody in August) सत्यजीत राय जी की फिल्म ‘शतरंज के खिलाड़ी’ से ही प्रेरित थी, इसके विषय में पूरा लेख आप इस लिंक पे क्लिक में पढ़ सकते हैं।
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