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पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता की स्थापना एक व्यापार चौकी के रूप में जॉब चार्नक ने अगस्त 1690 में की थी जो आज दुनिया के सबसे बड़े शहरों में से एक है। उस समय बांग्ला में इसे कोलकाता या कोलिकाता के नाम से पुकारा जाता था जबकि हिन्दी भाषा में इसको कलकत्ता या कलकत्ते के नाम से पुकारते थे। यहां के नागरिक शहर में आने वाले पर्यटक के साथ काफी अच्छा व्यवहार करते थे, विशेष रूप से अवध और लखनऊ से संबंधित लोगों से। यहां तक की कलकत्ता के विक्टोरिया मेमोरियल और मटियाबुर्ज से लखनऊवासी भावनात्मक रूप से जुड़े हुए हैं।
विक्टोरिया मेमोरियल शिल्पकला का सुंदर मिश्रण है। इसके मुगल शैली के गुंबदों में सारसेनिक और पुनर्जागरण काल की शैलियां दिखाई पड़ती हैं। मेमोरियल में एक शानदार संग्रहालय है, जहां बड़ी संख्या में ऐतिहासिक महत्व के लेख हैं। यहां पर एक तसवीर-संबंधी गैलरी भी है। इस गैलरी के दीवारों पर लटके हुए कई चित्रों में से सबसे महत्वपूर्ण दो चित्र है जिनमें से एक नवाब सआदत अली खान का है। यामीन उद् दौला नवाब सआदत अली खान (शासनकाल 1798-1814)अवध के शासक और नवाब आसफ़ुद्दौला (1775-1797) के सौतेले भाई थे। सआदत अली खान अपने सौतेले भाई के बाद अवध के तख्त पर बैठे थे। दूसरा महत्वपूर्ण चित्र नवाब ग़ाज़ीउद्दीन हैदर का है जो की नवाब सआदत अली खान का पुत्र था, जिसे अंग्रेजों ने अवध का पहला राजा घोषित किया था।
विक्टोरिया मेमोरियल में हेस्टिंग्स के कमरे में एक और महत्वपूर्ण पेंटिंग है जिसका शीर्षक है 'क्लाउड मार्टिन अपने दोस्तों के साथ'। यह पेंटिंग जोहान ज़ोफ़नी (एक प्रसिद्ध चित्रकार और रॉयल एकेडमी ऑफ़ आर्ट्स (Royal Academy of Arts), लंदन के सदस्य) ने बनाई थी, जो 1783 में भारत आए थे और लगभग 6-7 वर्षों तक यहाँ रहे थे। फ्रांसीसी मेजर जनरल, क्लाउड मार्टिन ही वे व्यक्ति है जिन्होंने लखनऊ के सबसे पुराने शैक्षणिक संस्थानों यानी की ला मार्टिनियर कॉलेजों का निर्माण कराया था। 1800 में उनके मरने के बाद क्लाउड मार्टिन यहीं मेहराबदार कक्ष में दफना दिए गए। उनका मकबरा यहां आज भी मौजूद है। क्लॉड मार्टिन ने अपना काफी समय कलकत्ता में भी बिताया था इसलिये उनकी इच्छा थी कि कलकत्ता में भी ला मार्टिनियर शैक्षणिक संस्थानों का निर्माण किया जाये और उनकी इच्छा के अनुसार 1836 में ला मार्टिनियर संस्थानों की स्थापना कलकत्ता में भी की गई।
इतना ही नहीं लखनऊ की रेजीडेंसी (residency) 1857 के स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी हुई है। यह शहर के आम लोगों द्वारा किए गए बलिदानों और वीरता के प्रयासों की गवाही देती है, जिन्होंने वहां तैनात ब्रिटिश सैनिकों के खिलाफ विद्रोह करने का प्रयास किया परंतु वे अपने प्रयास में असफल रहे। विक्टोरिया मेमोरियल में पहली मंजिल पर एक लिथोग्राफ मौजूद है जो केवल 1857 के लखनऊ को समर्पित है। यहां पर लेफ्टिनेंट सी. एच. मेखम द्वारा "लखनऊ की घेराबंदी" नामक रेखाचित्रों का एक सेट जो कि 1858 में प्रकाशित किया गया था तथा कैप्टन डी. सी. ग्रीने द्वारा निर्मित "इंसीडेंट्स इन द म्यूटिनी" (Incidents in the Mutiny) जो 1859 में प्रकाशित हुआ था, मौजूद है। ऐतिहासिक घटनाओं ये सचित्र रिकॉर्ड उस अवधि के भवनों और परिवेशों और युद्ध की गतिविधियों के विवरण के लिए एक अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं।
इसके आलावा विक्टोरिया मेमोरियल में अवध के नवाबों और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच कि गई विभिन्न संधियों के कई साक्ष्य दस्तावेज गैलरी में मौजूद हैं। यहां तक की यहां आप वाजिद अली शाह के खजाने का लेखा जोखा भी देख सकते हैं। यहां के पुस्तकालय में एक ग्रंथ मुसम्मी बा बन्नी की पांडुलिपि है जो राजा वाजिद अली शाह के मार्गदर्शन के तहत तैयार किए गए संगीत और नृत्य कला से संबंधित है। इसमें 199 फोलियो और 16 पूर्ण दृष्टांत हैं और इन्हें मटियाबुर्ज, कलकत्ता में लिथोग्राफ किया गया। ये 1912 में संग्रहालय को प्राप्त हुआ था। वर्ष 1856 में अंग्रेजों ने वाजिद अली शाह के राज्य पर कब्जा कर लिया था। नवाब वाजिद अली शाह को कलकत्ता भेज दिया गया था, जहाँ उन्होंने अपने पूरा जीवन काफी अच्छे से बिताया।
कलकत्ता जाने के बाद, नवाब वाजिद अली शाह को अपनी जन्म भूमि लखनऊ की भव्यता को देखने की अभिलाषा हुई और मटियाबुर्ज से निर्वासित किए गए वाजिद अली शाह ने एक बार फिर से अपनी पहली आकर्षक जीवन शैली को पुनः प्राप्त करने के लिए प्रयास किया। आज भी मटियाबुर्ज के दरबार की खूबसूरत दीवारें उस अवधी के संगीत सम्मेलनों की साक्षी हैं, यहां अक्सर संगीत प्रेमी भ्रमण करने के लिए आते हैं। ऐसे ही कई उदाहरण है जोकि लखनऊ वासियों को कलकत्ता से जोड़ते है। आज भी आपको कलकत्ता की आवो हवा में लखनवी तहजीब की खुशबू मिलेगी।
संदर्भ:
1. पुस्तक का संदर्भ: अब्बास, सयिअद अनवर इन्क्रेड़ेबल लखनऊ (Incredible Lucknow(2010)) सयिअद अनवर अब्बास गोमतीनगर, लखनऊ
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