लखनऊ की होली - हिन्दू मुस्लिम एकता का प्रतीक

विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)
20-03-2019 12:15 PM
लखनऊ की होली - हिन्दू मुस्लिम एकता का प्रतीक

हिन्‍दू धर्म में त्‍योहारों का विशेष महत्‍व है, वैसे तो भारत में वर्ष भर क्षेत्रवार अनेक त्‍योहार मनाए जाते हैं। किंतु कुछ ऐसे त्‍योहार हैं जो लगभग संपूर्ण भारत में मनाए जाते हैं, होली भी इनमें से एक हैं। हिन्‍दू धर्म में होली के त्‍योहार को बुराई पर अच्‍छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है। परन्तु अगर आप यह सोच रहे है कि होली का त्यौहार बस हमारे हिन्दू धर्म में ही प्रसिद्ध है तो आप गलत हैं, हमारा देश एक बहुसांस्कृतिक देश है जहाँ कई जाती और धर्म के लोग रहते हैं। लखनऊ में हिन्दू धर्म के साथ मुस्लिम धर्म के लोगों में भी समान प्रकार का उत्साह दिखाई देता है। लखनऊ शहर में जिस जोश से हमारे मुस्लिम भाई बहन इस त्यौहार को मानते है यह एक उदहारण है यहाँ के हिन्दू-मुस्लिम एकता का। चाहे वह चौक बाज़ार हो, अकबरी गेट हो, या फिर राजा बाज़ार हो होली खेलने वालों की टोली हर जगह से होकर गुज़रती है।

लखनऊ में होली के इस हिन्दू मुस्लिम एकता को कई मुस्लिम कवियों ने अपने कविता में दर्शाया है। जब कवि मीर दिल्ली से लखनऊ आये तो उन्होंने तत्कालीन नवाब, आसफ-उद-दौला को रंगों के त्यौहार को इतने उत्साह के साथ मनाते देखा कि उन्होंने उनके होली उत्सव पर पूरी मसनवी लिखी:

होली खेले आसफुद्दौला वज़ीर
रंग सौबत से अलग हैं खुर्दोपीर
कुमकुमे जो मारते भरकर गुलाल
जिसके लगता आन पर फिर महेंदी लाल

कुछ सालों के बाद मीर लखनऊ की होली से बहुत आसक्त हुए जो की उनकी कविताओं में भी दिखाई देता है:

आओ साथी बहार फिर आई
होली में कितनी शदियां लायी
जिस तरफ देखो मार्का सा है
शहर हा या कोई तमाशा है
थाल भर भर अबीर लाते हैं
गुल की पत्ती मिला उड़ाते हैं

अवध के आखरी नवाब, वाजिद अली शाह, होली के दीवाने थें, उन्हों नें होली पे कई संगीत लिखी है, जिन में से एक है:

मोरे कान्हा जो आये पलट के
अबके होली मई खेलूंगी डट के
उनके पीछे मई चुपके से जाके
ये गुलाल अपने तन से लगाके
रंग दूंगी उन्हें भी लिपट के

इन नवाबों के बाद भी लखनऊ के कई ऐसे कवी है जिन्हों नें लखनऊ के शानदार होली को कागज़ पर उतारा है। स्वतंत्रता सेनानी और कवि, हसरत मोहनी लिखते हैं:

मोहे छेड़ करत नन्दलाल
लिए थारे अबीर गलाल
ढीट भई जिनकी भरजोरी
औरन पर रंग डाल डाल

ये कुछ दोहे के छंद हैं जिन्हें मुस्लिम कवियों ने इस त्यौहार और इसकी लखनवी विरासत के लिए श्रद्धांजलि के रूप में लिखा है। ऐसे सैकड़ों लोग हैं जिन्होंने एक तरह से या किसी अन्य रूप में इस त्योहार के लिए अपने प्यार का इजहार किया और बेमिसाल रहस्योद्घाटन किया जो इसे प्रेरित करता है। इसमें कोई शक नहीं है, कम से कम लखनऊ में, कि होली सिर्फ एक धार्मिक समुदाय के बजाय पूरे शहर के लिए एक त्योहार है।
ऊपर दिए गये चित्र में लखनऊ में होली की बारात को दिखाया गया है जो हिन्दू मुस्लिम एक साथ मनाया करते थे और हर्षौल्लाश के साथ नगर भ्रमण करते थे।

संदर्भ:

1. https://cafedissensus.com/2014/04/15/holi-among-lucknows-muslims/
2. Image Reference- cafedissensus.com

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