1857 के विद्रोह के प्रति ब्रिटिश उपन्‍यासकारों का दृष्टिकोण

उपनिवेश व विश्वयुद्ध 1780 ईस्वी से 1947 ईस्वी तक
27-02-2019 11:59 AM
1857 के विद्रोह के प्रति ब्रिटिश उपन्‍यासकारों का दृष्टिकोण

1857 की क्रांति ने भारतीय इतिहास में अहम भूमिका निभाई है, इसने ब्र‍िटिश साम्राज्‍य की नींव को हिला कर रख दिया। ब्र‍िटिश सरकार को भारत में पुनः अपनी नींव जमाने के लिए अपार जन धन की हानि का सामना करना पड़ा। इस क्रांति के बीज 1856 से ही पनपने लगे थे, 1857 में प्रत्‍यक्ष इसने अपना प्रचण्‍ड रूप धारण किया जब कारतूसों के माध्‍यम हिन्‍दू और मुस्लिमों की धार्मिक भावना को आहत पहुंचायी गयी। इस महासंग्राम में हजारों भारतीय और यूरोपीय सैनिक मारे गये। इस क्रांति के दौरान लखनऊ में घेराबंदी की गयी जहां हजारों की संख्‍या में सैनिक मारे गये। विद्रोहियों ने बड़े साहस के साथ ब्रिटिश सैनिकों का सामना किया किंतु अंतः इन्‍हें पराजय का सामना करना पड़ा।

लखनऊ में घेराबंदी के दौरान ब्रिटिश सेना को पहुंचाई जाने वाली राहत की वर्षगांठ पर 17 नवंबर 1971 को ब्रिटिश फोर्सेज पोस्टल सर्विस द्वारा टिकट जारी किया गया।

1857 की क्रांति का प्रभाव ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रणाली पर ही नहीं वरन् इनके साहित्‍य जगत पर भी देखने को मिला। इस विद्रोह पर ब्रिटिश उपन्‍यासकारों ने बढ़चढ़ कर उपन्‍यास लिखे किंतु यह उपन्‍यास वास्‍तविकता से काफी भिन्‍न थे जिसमें वास्‍तविकता से ज्‍यादा कल्‍पना का सहारा लिया गया था। इन उपन्‍यासों में विद्रोहियों से ब्रिटिशों की विजय का कारण इतिहासकारों द्वारा श्रेष्‍ठ तकनीकी को ना बताकर इनके साहस को बताया जा रहा था।

1857 के विद्रोह से संबंधित उपन्‍यासों को मुख्‍यतः ब्रिटिश युवाओं को ध्‍यान में रखकर लिखा जा रहा था। ब्रिटिश युवाओं के मन में ब्रिटिश अधिकारियों के प्रति सम्‍मान उत्‍पन्‍न करने के लिए, 1857 की क्रांति में ब्रिटिशों की भूमिका को एक साहसिक कृत्‍य के रूप में प्रस्‍तुत किया जा रहा था। साथ ही इन उपन्‍यासों के माध्‍यम से वे ऐसे नौजवानों को तैयार करना चाहते थे जो भारत में ब्रिटिश साम्राज्‍य को आगे बढ़ाएं। ऐसा ही एक उपन्‍यास था ‘अ हीरो ऑफ लखनऊ’ (A Hero of Lucknow) (1905)। बगावत पर लिखे गये उपन्‍यास में भारत को एक विचित्र भूमि के रूप में प्रस्‍तुत करते थे साथ ही इनमें औपनिवेशिक अधिकारियों को साहसी नायक के रूप में वर्णित किया जाता था। जबकि भारतीय राजाओं को एक तानाशाह शासक के रूप में दर्शाया गया। इसी दौरान उद्भव हुआ यौद्धा जाति या मार्शल रेस के सिद्धान्‍त का, जिसमें हिन्‍दुओं को स्‍त्री के रूप में वर्णित किया गया। ईसाइयों के इन उपन्‍यास में लम्‍बे समय तक हिन्‍दुओं को स्‍त्री के रूप में वर्णित किया गया।

ब्रिटिश विद्रोह के ऊपर लिखे गये उपन्‍यासों और काल्‍पनिक कथाओं के मध्‍य संबंध स्‍थापित करने का श्रेय चक्रवर्ती जी को जाता है, इनका मानना था कि ब्रिटिश उपन्‍यासकार इस प्रकार के उपन्‍यास लिखकर नवयुवकों को साहसी नायक के रूप में उभारना चाहते थे।

संदर्भ:
1. https://www.telegraphindia.com/opinion/fact-and-fiction/cid/1024189
2. https://ebay.to/2U6JAqD
3. https://bit.ly/2GFOKqg

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