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आज हमें कोई भी लिखित सूचना या त्वरित सूचना भेजनी हो तो इसके लिए हमारे पास अनेक विकल्प उपलब्ध हैं, किंतु संचार प्रौद्योगिकी के विकास से पूर्व हमारे पास पत्र ही एकमात्र विकल्प हुआ करते थे। ऐसे दौर में अविष्कार हुआ एक ऐसे उपकरण का जिसके माध्यम से त्वरित वॉयस मेसेज (Instant voice message) भेजे या प्राप्त किये जा सकते थे तथा चंद समय में ही यह वैश्विक स्तर पर अत्यंत लोकप्रिय हो गया। हम बात कर रहें हैं, एक विशिष्ट दूरसंचार उपकरण पेजर (Pager) या बीपर (beeper) की, जिसकी खोज 1921 में ए एल ग्रॉस द्वारा की गयी थी परन्तु इसका इस्तेमाल 1950 से 1960 के दशक में शुरू हुआ और 1980 के दशक तक इसका व्यापक रूप से उपयोग किया जाने लगा। यह तार रहित उपकरण मुख्यतः दो प्रकार के होते थे: एक पक्षीय पेजर (one-way pager) और दो पक्षीय पेजर (two way pager) । एक पक्षीय पेजर में मात्र संदेश प्राप्त कर सकते थे, दो पक्षीय पेजर में उपस्थित ट्रांसमीटर के कारण उनसे सदेशों को प्राप्त करने के साथ साथ प्रतिक्रिया भी दे सकते थे।
1921 में पहली बार डेट्रॉइट के पुलिस विभाग में पेजर जैसे उपकरण का उपयोग किया। जबकि पहले टेलिफोन पेजर प्रणाली का आविष्कार अल्फ्रेड जे. ग्रॉस ने 1949 में किया। जिसका उपयोग पहली बार न्यूयॉर्क शहर के यहूदी अस्पताल में किया गया था। 1950 में न्यूयार्क शहर के चिकित्सक पेजर्स सुविधा के लिए $12 प्रति माह शुल्क देते थे, जिसके ट्रांसमीटर (transmitter) टावर 40 किमी. के भीतर के संदेश प्राप्त कर सकते थे। 1958 तक संघीय संचार आयोग (Federal Communications Commission - FCC) ने इसके सार्वजनिक उपयोग की अनुमति नहीं दी थी, अब तक मात्र पुलिस अधिकारियों, अग्निशामक, और चिकित्सा पेशेवरों जैसे आपातकालीन उत्तरदाताओं के पास ही इनके उपयोग की अनुमति थी। 1959 मोटोरोला कंपनी द्वारा एक ताश की गड्डी से आधे आकार का व्यक्तिगत संचार उपकरण तैयार किया गया, जिसे पेजर नाम दिया गया। यह रिसिवर रेडियो संदेश प्रदान करता था।
1960 में, जॉन फ्रांसिस माइकेल ने पहला ट्रांजिस्टरकृत पेजर बनाने के लिए मोटोरोला की वॉकी-टॉकी (walkie-talkie) और ऑटोमोबाइल रेडियो (automobile radio) प्रौद्योगिकियों के अवयवों को जोड़ा, इसके पश्चात पेजर तकनीक आगे बढ़ी। 1964 में मोटोरोला का पेजबॉय I पहला सफल उपभोक्ता पेजर बना। इसमें अभी डिस्प्ले (display) नहीं थी और ना ही इसमें संदेशों को प्राप्त या संरक्षित किया जा सकता था, किंतु यह वहनीय था और एक ख़ास ध्वनि के माध्यम से उपभोक्ता को संदेश दे देता था। इसी दौरान मोटोरोला इसका नवीकरण कर रहा था।
1980 के दशक तक पेजर्स के 32 लाख उपयोगकर्ता हो गये थे। किंतु अब तक भी यह सीमित क्षेत्र में उपयोग हो रहा था जैसे चिकित्सालय में चिकित्सक और कर्मचारियों के मध्य संवाद हेतु। एक दशक बाद व्यापक रूप से इसका अविष्कार किया गया तथा लगभग 2.2 करोड़ यंत्र इसके उपयोग होने लगे, जो 1994 तक 6.1 करोड़ हो गये थे तथा यह व्यक्तिगत संचार उपकरण के रूप में अत्यंत लोकप्रिय हो गया। 2001 में मोटोरोला ने पेजर्स के निर्माण की अंतिम घोषणा की, इसके बाद भी लम्बे समय तक इनका निर्माण और उपयोग किया गया क्योंकि अभी तक मोबाइल फोन आम आदमी की पहूंच तक नहीं आये थे।
पेजर्स की आठ मुख्य श्रेणियां थीं :
बीपर्स या टोन-ओनली (tone-only) पेजर्स
यह एक सस्ता पेजर्स था इसमें मूल रूप से ध्वनी तथा प्रकाश के माध्यम से संदेश प्रेषित किये जाता था।
वॉइस/टॉन(Voice/tone)
वॉइस/टॉन पेजर्स यह ध्वनि संदेश प्राप्त करने हेतु उपयोग किया जाता है।
संख्यात्मक
यह एक संख्यात्मक एलसीडी डिस्प्ले (LCD display) है, जो फोन नंबर या अन्य संख्यात्मक सूचनाओं को 10 अंकों तक प्रदर्शित कर सकता है।
अक्षरांकीय
इसमें शब्दों के माध्यम से सूचना प्रेषित की जा सकती है।
प्रतिक्रिया
इन पेजर्स में ट्रांसमीटरों की उपलब्धता के कारण संदेशों को स्वीकार करने तथा उन पर प्रतिक्रिया देने की सुविधा उपलब्ध होती है।
द्वी-पक्षीय
द्वी-पक्षीय पेजर क्वर्टी कुंजीपटल की उपलब्धी के साथ प्रतिक्रिया वाले पेजर्स हैं।
एक-पक्षीय मोडेम(modem)
इसके माध्यम से मात्र सूचनाऐं प्राप्त की जा सकती है।
द्वी -पक्षीय मोडेम(modem)
ये संदेशों की पुष्टि के साथ साथ उनका डेटा संचारित कर सकते हैं।
भारत में भी इसका व्यापक उपयोग देखने को मिला, मोटोरोला (जिसके बाजार में पेजर के 80% शेयर थे) के मुताबिक, जब 1996 में भारत में पेजर के 2 लाख ग्राहक हो गए, तो उस वर्ष के अंत तक उन्होंने इसे 6 लाख ग्रहाकों को पार करने की उम्मीद कर ली थी। वहीं अमेरिका को इन आंकड़ों तक पहुंचने में 15 साल लग गए थे। भारत में पेजर का विकास अनुमानित विकास के तरीकों से असामान्य था। उस समय भारत में प्रति 100 व्यक्तियों में से एक के पास फोन था, तो 27 शहरों में पेजर सेवाओं का आकड़ा काफी अधिक था।
वहीं सेल्युलर फोन के आने से पेजर का अस्तित्व खत्म हो गया और साथ ही 2004 तक सेलुलार फोन की लोकप्रियता इसकी ऊंचाई पर थी । वहीं 1996-97 में पेजर के 7 लाख ग्राहकों की संख्या घटकर 2004 में 2 लाख तक ही रह गयी। साथ ही 2004 तक पेजर का मुल्य इतना गिर गया कि तब इसका सब्सक्रिप्शन (Subscription) व किसी समान के साथ मुफ्त में देने के बावजुद भी इसे कोई लेने को तैयार नहीं था जबकि पहले इसकी कीमत रु 11,000 थी।
2013 तक पेजर का उपयोग करने वाले केवल 1.02 लाख ग्राहक बचे है। वहीं पेजर के अस्तित्व को बनाए रखने के लिए पेजर कंपनी के अधिकारियों द्वारा कई मांग की गयी। साथ ही उनका यह भी कहना था कि उन्हें सेल्युलर फोन के समान लाभ नहीं दिया जा रहा था, जैसे सेल्युलर ऑपरेटर लाइसेंस शुल्क का भुगतान किए बिना एसएमएस की पेशकश कर सकते थे, तो उन्होंने भी लाइसेंस शुल्क में छूट की मांग करी। वहीं 2013 में पेजिंग सेवाएं प्रदान करने वाले 10 ऑपरेटर थे, बीपीएल समेत चार ऑपरेटर पहले ही बंद हो चुके थे। पेज प्वाइंट (Page Point), जो चार शहरों में सेवाएं प्रदान कर रहा था उसके 38,906 उपयोगकर्ता थे। और पेजलिंक (PageLink) जो तीन महानगरों सहित सात शहरों में सेवाएं प्रदान कर रहा था के केवल 32,872 ग्राहक थे।
आज भी जिन क्षेत्रों में मोबाईल फोन प्रतिबंधित हैं या किसी एक निश्चित सीमा के भीतर लोगों को सार्वजनिक सूचना प्रसारित करनी है, तो वहां पेजर्स का उपयोग देखने को मिलता है। अस्पताल इसका प्रत्यक्ष प्रमाण हैं।
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