हम क्यों भूल जाते हैं भगवान कुबेर का असली अर्थ धनतेरस के इस अवसर पर

विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)
07-11-2018 12:11 PM
हम क्यों भूल जाते हैं भगवान कुबेर का असली अर्थ धनतेरस के इस अवसर पर

धनतेरस से दीपावली का एहसास होने लगता है। दो दिन पहले मनाया जाने वाला धनतेरस का सीधा सम्बन्ध कुबेर से है। धनतेरस शब्द बना है धनतेरस से जिसमे धन का मतलब दौलत है और तेरस का मतलब तेरवा दिन जोकि तेरवा दिन भी है हिन्दू कैलेंडर के अनुसार। इस दिन लोग घर के सामान लेना शुभ मानते है।धनतेरस के दिन सोने-चांदी और बरतन खरीदना शुभ माना जाता है कहा जाता है की धनतेरस के दिन घर लायी हुई वस्तु बहुत शुभ होती है।

कुबेर शब्द कु और बेर के जोड़ से बना है जिसमे कु का अर्थ है बुरा/विकृत और बेर का अर्थ है रूप मतलब बुरा रूप। अगर कुबेर के व्यक्तित्व की बात करें तो कुबेर दिखने में छोटे कद के, गोरा शारीर व् मोती तोंद लिए दीखते है। उनके चेहरे का विवरण करें तो उनका दांत टुटा हुआ है और एक आँख फूटी हुई है लेकिन फिर भी उन्होंने सोने व् चंडी के आभूषण पहन रखे है। कुबेर का उल्लेख एवं उपस्तिथि वेद , रामायण से लेकर महाभारत जैसे प्राचीन महाकाव्य में है और वो कही न कही त्रिदेव ब्रह्मा विष्णु व् महेश से जुड़े है। बौद्ध साहित्य में वे वैष्णवणा के रूप में प्रकट होते हैं और पुरातात्विक साक्ष्य में वह गणस और यक्ष के रूप में प्रकट होते हैं। सर्वव्यापी परमेश्वर और भद्दा।

कुबेर को यक्षो का राजा माना गया है। यक्ष एक प्रकार के पौराणिक चरित्र हैं। यक्षों को राक्षसों के निकट माना जाता है, यद्यपि वे मनुष्यों के विरोधी नहीं होते, जैसे राक्षस होते है। माना जाता है कि प्रारम्भ में दो प्रकार के राक्षस होते थे; एक जो रक्षा करते थे वे यक्ष कहलाये तथा दूसरे यज्ञों में बाधा उपस्थित करने वाले राक्षस कहलाये।

कुबेर का सबसे पुराना पुरातात्विक रूप भारतीय इतिहास के कुषाण काल में मिलता है। पहली शताब्दी और तीसरी शताब्दी के बीच मथुरा और अहिक्षत्र के शहरों के तेजी से विकास चरण में कुबेर की कई बड़ी पत्थर की मूर्तियां पाई गई जो अब राष्ट्रीय संग्रहालय दिल्ली और मथुरा संग्रहालय में स्थित हैं। इससे बहुत स्पष्ट रूप पता चलता है की गंगा और यमुना नदियों पर शहरीकरण के कुषाण कल में वह एक लोकप्रिय भगवान थे। ।कुबेर की कई टेराकोटा मुर्तिया भी इन कस्बों के प्राचीन आवासीय स्थलों से पाई जा चुकी है।

धनतेरस के अनुष्ठान आज आधुनिक भारत में जारी हैं लेकिन संबंधित भगवान की प्रतीकात्मकता में लिपटा संदेश लगभग सभी भूल गए है। हाल ही के वर्षों में कुबेर भगवान के लिए कोई नए मंदिरों का निर्माण नहीं हुआ है। कुबेर की प्रतीकात्मकता का सन्देश बहुत स्पष्ट है कि धन बहुत बदसूरत हो सकता है। लेकिन अत्यंत धन को बुरा नहीं माना जा सकता क्यूंकि धनतेरस के दो दिन बाद दिवाली पर पूजने वाली लक्ष्मी धन और प्रकाश दोनों से जुडी हुई है। किसी की भी ज़िन्दगी में प्रकाश या सफलता बुद्धि/ज्ञान से आता है न कि सोने चंडी की चमक से। किसी के भी जीवन का उद्देश्य भौतिक संपदा से बढ़कर ज्ञान होना चाहिए।

जैसा कि दार्शनिक / लेखक अम्बर्टो इको हमें अपने मास्टर ग्रंथ में याद दिलाता है, कुरूपता को केवल सौंदर्य के विपरीत के रूप में परिभाषित नहीं किया जा सकता है। सुंदरता या कुरूपता के गुण अक्सर सौंदर्यशास्त्र के कारण नहीं बल्कि सामाजिक-राजनीतिक मानदंडों के कारण होते हैं। एक मार्ग है जिसमें कार्ल मार्क्स बताते है कि पैसा कैसे कुरूपता के लिए क्षतिपूर्ति कर सकता है। कुबेर बस पैसे का प्रतिनिधित्व करता है। वह अपनी संपत्ति को चमकाता है और अपनी इंद्रियों को करता है। वह गुप्त स्थानों में अपने लाभ जमा करता है। मुद्दा खुद धन नहीं है लेकिन आप कैसे धन खर्च करते हैं, आप इसे कैसे संग्रह करते हैं और इसके साथ समाज के लिए क्या करते हैं।

सन्दर्भ:

1.https://www.thoughtco.com/diwali-festival-of-lights-1770151
2.https://www.facebook.com/search/top/?q=ratnesh%20mathur%20kubera

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