तनाव का निस्‍तारण आत्‍महत्‍या नहीं

विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा
01-11-2018 01:38 PM
तनाव का निस्‍तारण आत्‍महत्‍या नहीं

जल को बर्फ में बदलने में वक्‍त लगता है,
सूरज को निकलने में वक्‍त लगता है,
किस्‍मत को तो हम बदल नहीं सकते,
पर अपने हौंसलों से किस्‍मत बदलने,
में वक्‍त लगता है।

बड़ी ही खूबसूरत पंक्तियां कहीं हैं किसी ने, किंतु आज का युवा वर्ग इसके बिल्कुल विपरीत जाता हुआ प्रतीत हो रहा है। आज हर युवा के सामने भविष्‍य बनाने के हज़ारों विकल्‍प उपलब्‍ध हैं, शिक्षा का स्‍तर बढ़ने के साथ-साथ लोगों की सुनहरे भविष्‍य के प्रति आशाएं और बढ़ती जा रही हैं। यह होना भी स्‍वभाविक ही है क्‍योंकि आज श्रेष्‍ठ स्‍थान प्राप्‍त करने के लिए बचपन से ही विद्यार्थियों के मध्‍य होड़ देखने को मिलती है। स्‍कूल में प्रथम श्रेणी प्राप्‍त करने और कॉलेज में अच्‍छे ग्रेड प्राप्‍त करने के लिए बच्‍चों के मध्‍य कड़ी प्रतिस्‍पर्धा देखने को मिलती है। जो इनके स्‍वभाव में त्‍वरित निर्णय लेने की प्रक्रिया को विकसित कर देती है तथा यह उनकी प्रवृत्ति बन जाती है। इसी प्रवृत्ति का अनुसरण वे अपने भविष्‍य का निर्णय लेते हुए भी करते हैं।

आज शैक्षिक स्‍थलों में प्रतिस्‍पर्धा अत्‍यंत तीव्रता से बढ़ती जा रही है। परीक्षा परिणाम में उच्‍च प्रतिशत प्राप्‍त करना सामाजिक प्रतिष्‍ठा का सूचक बनता जा रहा है, जिस कारण माता पिता भी अक्‍सर बच्‍चों पर अच्‍छे अंक लाने के लिए दबाव डालते नजर आते हैं। साथ ही अच्‍छे कॉलेजों में स्‍थान प्राप्‍त करने के लिए अधिक अंक लाना अनिवार्य है। इस प्रकार विद्यार्थियों में कहीं ना कहीं एक दबाव बनने लगता है, इस दबाव में जब तक वे अपना अच्‍छा प्रदर्शन देते हैं अर्थात अच्‍छा परिणाम हासिल करते हैं, तब तक तो स्थिति सामान्‍य रहती है। किंतु किसी कारणवश वे थोड़ा भी पीछे छूट जांऐ तो उनमें तनाव बनना प्रारंभ हो जाता है। य‍ही तनाव उन्‍हें आत्‍महत्‍या जैसा भयानक कदम तक उठाने के लिए विवश कर देता है।

राष्‍ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो की 2015 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में प्रति घंटे एक विद्यार्थी तनाव के कारण आत्‍महत्‍या करता है। जिसमें 15-29 वर्ष तक का युवा वर्ग शामिल होता है। राष्‍ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के 2015 के आंकड़े कुछ इस प्रकार हैं:


इसी वर्ष कठिन परीक्षा (जैसे- रसायन विज्ञान, भौतिक विज्ञान) के भय, परीक्षा परिणाम में कम अंक आने के कारण तथा अनुत्‍तीर्ण होने के कारण लखनऊ के छः विद्यार्थियों ने आत्‍महत्‍या कर ली। जिसमें कक्षा 10 से लेकर ग्रेजुएशन (Graduation) तक के विद्यार्थी शामिल थे। इनके इस भयानक कदम के पीछे तनाव में लिया गया त्‍वरित निर्णय था, जिसने एक क्षण में इनका जीवन समाप्‍त कर दिया। इसके पीछे हम कहीं ना कहीं विद्यार्थियों के मार्गदर्शन और सहयोग की कमी, अपरिपक्‍वता, पारिवारिक और सामाजिक दबाव को भी उत्‍तरदायी ठहरा सकते हैं।

यदि सिक्किम की बात करें तो पिछले कुछ वर्षों में राष्ट्र के सबसे ज्‍यादा आत्‍महत्‍या के मामले यहीं से सामने आये हैं। जबकि भारत की सर्वाधिक प्रतिव्‍यक्ति आय में दिल्‍ली और चंडीगढ़ के बाद सिक्किम का स्‍थान आता है तथा साक्षरता दर में सातवाँ स्‍थान आता है। परन्तु साथ ही साथ यहाँ की बेरोज़गारी दर देश में दूसरे स्थान पर है। बेरोज़गारी के कारण यहां 21-30 वर्ष के मध्‍य 27% लोग आत्‍महत्‍या करते हैं। यहां पर भी इस प्रकार की स्थितियों के लिए सही मार्गदर्शन का अभाव ही सबसे बड़ा कारण बनता है।

आज युवाओं में मादक पदार्थों के प्रति होड़ बढ़ती जा रही है, यहां तक कि यह इनके जीवन का अभिन्‍न अंग बन गया है। जिस कारण इनके शरीर में अनेक विकार उत्‍पन्‍न हो जाते हैं, जिसका सामना करने में ये असमर्थ होते हैं। राष्‍ट्रीय मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य सर्वेक्षण 2016-17 के अनुसार 12 राज्‍यों के लगभग 22% बच्‍चे (18 वर्ष तक के) तंबाकू और नशीली दवाओं आदि से होने वाली घातक बिमारियों से ग्रस्‍त हैं। परिणामस्वरुप उत्‍तेजना तथा नासमझी में इस प्रकार के युवा आत्‍महत्‍या को ही सबसे सरल मार्ग के रूप में चुनते हैं।

कई बार अधिकांश बच्‍चों द्वारा लिए गये गलत निर्णय के पीछे वे मागदर्शन के अभाव को ही सबसे बड़ा कारण बताते हैं। जिस कारण उनके समय की बर्बादी तो होती है, साथ ही उनके भविष्‍य पर भी विपरित प्रभाव पड़ता है। तीव्रता से बढ़ रही इस समस्‍या के निवारण के लिए माता-पिता और स्‍कूल प्रशासन का जागरूक होना अत्‍यंत आवश्‍यक है। जिससे वे सभी विषयों का अवलोकन कर बच्‍चों की रूचि के अनुसार उसमें उन्‍हें भविष्‍य बनाने के लिए प्रोत्‍साहित कर सकें। उदाहरण के लिए अक्‍सर आज अधिकांश माता-पिता बच्‍चों को विडियो गेम खेलने के लिए मना करते हैं या उनसे दूर रखना चाहते हैं, इसके विपरित यदि वे इसी में उन्‍हें अपना भविष्‍य बनाने के लिए प्रोत्‍साहित करें, तो बच्‍चे इसे एक बेहतर भविष्‍य के विकल्‍प के रूप में चुन सकते हैं। क्‍योंकि आज के समय में यह भी व्‍यवसाय का एक बहुत बड़ा हिस्‍सा है। हालांकि यह सिर्फ एक उदहारण था परन्तु अपनी रूचि को अपना व्यवसाय बनाने से बेहतर और क्या हो सकता है।

तनाव के लक्षण:

1. निराशा
2. अकेलापन
3. उदासी
4. चिड़चिड़ापन
5. नींद में कमी
6. रूचिकर चीजों में मन ना लगना
7. निर्णय लेने में परेशानी होना
8. स्‍वयं को असहाय अनुभव करना
9. मन में अशांती तथा विचलन
10. किसी भी कार्य में मन ना लगना

तनाव से मुक्ति पाने के उपाय:

मनोचिकित्‍सक से मिलें:
यदि आप इस प्रकार का कोई तनाव महसूस कर रहे हैं तो तुरंत मनोचिकित्‍सक से सलाह लें। वे आपकी समस्‍या को समझकर इसके निस्‍तारण में आपकी सहायता करेंगे। इस प्रक्रिया में कुछ समय भी लग सकता है। अतः अपना धैर्य बनाये रखें।

दवा का उपयोग:
कुछ मनोचिकित्‍सक आपकी स्थिति का विश्‍लेषण कर आपको कुछ दवाओं का उपयोग करने की भी सलाह दे सकते हैं। हम यह तो नहीं कह सकते कि यह दवा आपके लिए पूर्णतः कारगर होंगीं, किंतु यह आपकी समस्‍या को काफी हद तक कम कर सकती हैं।

सचेतन रहें:
तनाव से छुटकारा पाने के लिए सचेत रहना एक अच्‍छा विकल्‍प हो सकता है। लेकिन यह बोलने जितना आसान नहीं है। इसके लिए आप मनोचिकित्‍सक की सलाह ले सकते हैं या योग भी इसके लिए एक अच्‍छा विकल्‍प है।

प्रकृति के साथ समय व्‍यतीत करें:
दुनिया का जो दर्द आप कहीं नहीं भुला सकते, वह आप प्रकृति की गोद में जाकर भुला सकते हैं। तनाव से मुक्ति पाने के लिए प्राकृतिक चिकित्‍सा मनोचिकित्‍सकों का सबसे प्रिय विकल्‍प कहा जा सकता है। जापान में तनाव दूर करने, रक्‍तचाप कम करने, प्रतिरक्षा को बढ़ाने के लिए पेड़ों के साथ समय बिताया जाता है।

व्‍यायाम:
इसे हम सौ रोगों की एक दवा कह सकते हैं। व्‍यायाम से तनाव समाप्‍त करने के साथ-साथ अनेक मानसिक रोगों से भी छुटकारा मिलता है। शारीरिक गतिविधियों से संबंधित व्‍यायाम कुछ भी हो सकता है- खेलना, दौड़ना इत्‍यादि।

इस प्रकार सामाजिक संपर्क बढ़ा कर, पोषण में सुधार करके, सोने की आदत बढ़ा के, नशीले पदार्थों को नज़रअंदाज करके आदि की सहायता से आप पूर्णतः तनाव से मुक्ति पा सकते हैं। जो शायद आत्‍महत्‍या करने से तो सरल ही होगा। भारत में आत्‍महत्‍या करना तो अपराध की श्रेणी में रखा गया है, किंतु इस प्रकार की स्थिति को सुधारने के लिए सरकार द्वारा कोई विशेष कदम नहीं उठाये गये हैं। यहां तक कि मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य में हमारी सरकार द्वारा 0.06% ही खर्च किया जाता है, जो बांग्‍लादेश (0.44%) से भी कम है। सरकार को लोगों को मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य के प्रति जागरूक करना अत्‍यंत आवश्‍यक हो गया है। आज देश में मनोचिकित्‍सक तथा मनोवैज्ञानिकों की संख्‍या में वृद्धि की बहुत अधिक ज़रूरत है।

संदर्भ:
1.https://www.theguardian.com/careers/young-people-take-career-decisions-too-early
2.https://www.independent.ie/life/family/learning/why-students-make-wrong-career-choices-26778893.html
3.https://timesofindia.indiatimes.com/city/lucknow/exam-fear-poor-scores-take-toll-6-students-end-life/articleshow/63062976.cms
4.http://archive.indiaspend.com/special-reports/a-student-commits-suicide-every-hour-in-india-3-85917
5.https://www.bestcounselingdegrees.net/10-great-tips-for-dealing-with-depression-in-college/

पिछला / Previous अगला / Next

Definitions of the Post Viewership Metrics

A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.

B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.

C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.

D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.