रैगिंग की बढ़ती समस्या से निपटने के लिये कानून

नगरीकरण- शहर व शक्ति
20-10-2018 01:48 PM
रैगिंग की बढ़ती समस्या से निपटने के लिये कानून

‘रैगिंग’ (Ragging), सुनने में तो सामान्य शब्द लगता है परंतु इसके पीछे छिपी भयावहता को वे ही समझ सकते हैं जिन्होंने इसे झेला हो। पहले रैगिंग सीनियर और जूनियर के बीच जान पहचान बढ़ाने, परिचय लेने और हंसी मज़ाक करने का एक ज़रिया हुआ करती थी। परंतु आधुनिकता के साथ रैगिंग के तरीके भी बदलते जा रहे हैं। आज समय-समय पर रैगिंग के कई मामले सामने आ रहे है। गलत व्यवहार, अपमानजनक छेड़छाड़, मारपीट, अपशब्द बोलना, यौन उत्पीड़न जैसी कितनी ही अमानवीय घटनाएं हुई हैं जो रैगिंग के रूप में सामने आयी हैं।

हाल ही में लखनऊ के एक मेडिकल कॉलेज के छह छात्रों को निलंबित कर दिया गया। यहां तक कि उन्हें हॉस्टल से भी निष्कासित कर दिया गया है। इस मामले की जांच के लिए चीफ प्रॉक्टर (Chief Proctor) के नेतृत्व में कमेटी गठित की गई है। एम.बी.बी.एस.-बी.डी.एस. प्रथम वर्ष के पीड़ित छात्रों ने एंटी-रैगिंग सेल (Anti-ragging Cell) में शिकायत की थी। साथ ही छात्रों ने यू.जी.सी. (UGC) की एंटी रैगिंग हेल्पलाइन पर शिकायत कर बताया कि सीनियर छात्र रैगिंग कर रहे हैं। इसके बाद एंटी रैगिंग सेल ने कॉलेज प्रशासन को सूचना दी। इस सूचना से कॉलेज प्रशासन की एंटी रैगिंग सेल ने हॉस्टल पहुंच कर जांच पड़ताल की।

2007 की एक रिपोर्ट के अनुसार रैगिंग के कारण शारीरिक रूप से घायल छात्रों के मामलों की संख्या 42 थी और इसी वर्ष 7 छात्रों ने रैगिंग से अपनी जान तक गंवा दी और प्रतिवर्ष ये आंकड़े बढ़ते ही जा रहे हैं।

ऐसा नहीं है कि रैगिंग के विरुद्ध न्याय प्रणाली सब हाथ पर हाथ रख कर बैठी हुई है और कोई कार्य नहीं कर रही है। 1997 में तमिलनाडु में विधानसभा में पहला एंटी रैगिंग कानून पास किया गया। इसके बाद, विश्व जागृति मिशन द्वारा दायर सार्वजनिक मुकदमे के जवाब में मई 2001 में भारत के सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले से एंटी रैगिंग प्रयासों में एक बड़ा कदम उठाया गया। 2001 में सुप्रीम कोर्ट ने रैगिंग पर संज्ञान लेते हुए इसकी रोकथाम के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एम.एच.आर.डी.) ने सी.बी.आई. के पूर्व निदेशक ए. राघवन की अध्यक्षता में एक सात सदस्यीय कमेटी बनाई। ताकि विरोधी कदम उठाने के उपायों की सिफारिश की जा सके।

मई 2007 में अदालत में प्रस्तुत राघवन समिति की रिपोर्ट में भारतीय दंड संहिता के तहत एक विशेष खंड के रूप में रैगिंग को शामिल करने का प्रस्ताव रखा। उसके बाद 16 मई 2007 में सर्वोच्च न्यायालय अंतरिम आदेश के अनुसार अकादमिक संस्थानों के लिए रैगिंग के किसी भी मामले की शिकायत पुलिस के साथ आधिकारिक ऍफ़.आई.आर. (First Information Report) के रूप में दर्ज करना अनिवार्य है। इससे यह सुनिश्चित होगा कि सभी मामलों की औपचारिक रूप से आपराधिक न्याय प्रणाली के तहत जांच की जाएगी, न कि अकादमिक संस्थानों द्वारा।

सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बाद, भारत सरकार द्वारा एक राष्ट्रीय एंटी-रैगिंग हेल्पलाइन लॉन्च की गई, जो संस्थान के प्रमुख और स्थानीय पुलिस अधिकारियों को कॉलेज से रैगिंग शिकायत के बारे में सूचित करके पीड़ितों की मदद करती है। इस हेल्पलाइन की सहायता से ईमेल (helpline@antiragging.in) के माध्यम से या फोन (1800-180-5522) के माध्यम से पीड़ित के नाम का खुलासा किए बिना शिकायतें भी पंजीकृत की जा सकती हैं।

साथ ही आपको बता दें कि वर्ष 2009 में एक मेडिकल संस्‍थान के एक छात्र की रैगिंग से हुई मौत के बाद सुप्रीम कोर्ट ने देश के सभी शिक्षण संस्‍थानों को रैगिंग विरोधी कानून का सख्‍ती से पालन करने के निर्देश दिए हैं। यू.जी.सी. (विश्वविद्यालय अनुदान आयोग) ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद कॉलेजों में रैगिंग को देखते हुए छात्रों के व्‍यवहार को लेकर कड़े नियम बनाए हैं। इसके तहत निम्‍न प्रकार के व्‍यवहार को रैगिंग माना जाएगा:

1. छात्र के रंगरूप, लिंग, जाति या उसके पहनावे पर टिप्‍पणी किया जाना या उसके स्‍वाभिमान को ठेस पहुंचाना।
2. किसी छात्र का उसकी श्रेत्रीयता, भाषा या फिर जाति के आधार पर अपमान किया जाना।
3. छात्र की नस्‍ल या फिर उसके परिवार पर अभद्र टिप्‍पणी किया जाना।
4. छात्रों से उनकी मर्जी के बिना जबरन किसी प्रकार का अनावश्‍यक कार्य कराया जाना या उससे शारीरिक या मानसिक दुर्व्यवहार किया जाना।

यूजीसी के द्वारा पारित किये गये नियमों के अनुसार कॉलेज में आवेदन पत्र/नामांकन फॉर्म के साथ कॉलेज के दिशानिर्देशों के प्रॉस्पेक्टस (Prospectus) में सुप्रीम कोर्ट/केंद्रीय और राज्य सरकार के सभी निर्देश शामिल होंगे। प्रवेश आवेदन/नामांकन फॉर्म अंग्रेजी और हिंदी दोनों भाषाओं में होगा और प्राथमिक रूप से क्षेत्रीय भाषा में अभिभावक द्वारा हस्ताक्षरित किया जाएगा। कॉलेज में दाखिले के दौरान छात्र व अभिभावकों को शपथ-पत्र देना होगा। प्रत्येक कॉलेज एक समिति का गठन करेगा जिसे एंटी-रैगिंग कमेटी के रूप में जाना जाएगा और एंटी रैगिंग कमेटी द्वारा एंटी-रैगिंग स्क्वाड (Anti-ragging Squad) का निर्माण किया जाएगा जो हॉस्टलों की निगरानी करेगी।

संदर्भ:
1.https://en.wikipedia.org/wiki/Ragging
2.http://indianlawwatch.com/practice/anti-ragging-laws-in-india/#_ftn3
3.https://www.amarujala.com/lucknow/raging-in-kgmu-six-students-suspended

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