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घातीय वृद्धि गणित की एक बेहद शक्तिशाली अवधारणा है। इस अवधारणा से संबंधित एक गणितीय समस्या है, जिसे पाठ रूप में व्यक्त किया जाता है, वह है ‘गेहूं और शतरंज की समस्या’। इस समस्या का उल्लेख शतरंज के आविष्कार से संबंधित विभिन्न कहानियों में दिखाई देता है। जिनमें ज्यामितीय अनुक्रम समस्या शामिल होती है। इस समस्या का ज़िक्र सर्वप्रथम 1256 की ‘शतरंज पर गेहूं’ नामक इस्लामी कहानी में मिलता है। यह शतरंज की उत्पत्ति की एक भूली गई तथा कम ज्ञात कहानी है, जो केवल कुछ गणितज्ञों को ही आज पता है। यह कहानी भारत को शतरंज की उत्पत्ति के स्थान के रूप में उजागर करती है। आईए इस पर नज़र डालते हैं: लगभग 1256 ईस्वी, अब्बासिद साम्राज्य (आधुनिक इराक) में रहने वाले एक कुर्द इतिहासकार इब्न खल्लीकान ने एक जीवनी में शतरंज और ‘घातीय वृद्धि’ का ज़िक्र किया है। यह कहानी भारत में आधारित है, क्योंकि इब्न खल्लीकान को पता था कि शतरंज एक ऐसा खेल था, जो भारत से आया था।
इस कहानी के अनुसार, राजा शिहरम एक निरंकुश शासक था, जो अपनी प्रजा पर ज़ुल्म करता था। उसकी प्रजा में से एक बुद्धिमान व्यक्ति सिस्सा इब्न दाहिर ने शतरंज के खेल का आविष्कार किया और राजा को दिखाया। सिस्सा का यह खेल बनाने के पीछे उद्देश्य था राजा को दर्शाना कि एक राजा को उसकी प्रजा ही राजा बनती है तथा उसे सदैव उनके हित के बारे में सोचना चाहिए। राजा को शतरंज की अनेकोनेक चालों को देखकर यह खेल बेहद पसंद आया। फिर उन्होंने सिस्सा इब्न दाहिर को बुलाया और कहा, “तुम्हारी इस अद्भुत खोज के लिये, मैं तुम्हें इनाम देना चाहता हूं। माँगो, जो चाहिए माँगो”।
सिस्सा बहुत चतुर था। उसने राजा से अपना इनाम माँगा – “इस पटल में 64 घर हैं। पहले घर के लिये आप मुझे गेहूं का केवल एक दाना दें, दूसरे घर के लिये दो दाने, तीसरे घर के लिये 4 दाने, चौथे घर के लिये 8 दाने (वृद्धि की घातीय दर)। इस प्रकार 64 घरों के साथ मेरा इनाम पूरा हो जाएगा।”
राजा ने सोचा “बस इतना ही? ये कितना मूर्ख है” और अपने दासों को गेहूं डालने के लिये कहा। परंतु कुछ समय बाद राजा यह देखकर आश्चर्यचकित हुआ कि शतरंज के आधे भाग यानी 32वें वर्ग में गेहूं के दानों की संख्या चार अरब से अधिक हो गई थी, मतलब उसे लगभग 1,00,000 किलो गेहूं की आवश्यकता थी।
राजा ने अपने दरबार के एक गणित-पंडित को हिसाब करके गणना करने का हुक्म दिया। पंडित ने हिसाब लगाया ...1+2+4+8+.....(64 घरों तक) अर्थात 18,446,744,073,709,551,615 गेहूं के दाने। गेहूं के इतने दाने राजा के राज्य में तो क्या संपूर्ण पृथ्वी पर भी नहीं थे, अतः इनका वज़न पृथ्वी पर मौजूद सभी जीवित प्राणियों के वज़न से 6 गुना था। उसने महसूस किया कि वह उस गेहूं का भुगतान नहीं कर सकता है।
परंतु इस प्रकार का एक अन्य संस्करण भारत में भी देखने को मिलता है, जिसमें शतरंज पर गेहूं की जगह चावल के दानों का उल्लेख किया गया है।
अम्बालप्पुज़्हा (केरल) का राजा एक बड़ा शतरंज प्रेमी था। एक दिन एक ऋषि ने राजा को शतरंज खेलने के लिए चुनौती दी। खेल से पहले ऋषि ने विनम्रतापूर्वक एक शर्त रखी कि यदि राजा हार जाते हैं, तो उन्हें ऋषि को इनाम के तौर पर शतरंज के 64वें वर्ग तक चावल के दानें देने होंगे।
और प्रत्येक वर्ग में चावलों की संख्या दुगुनी हो जानी चाहिए, यदि प्रथम वर्ग में एक चावल का दाना है, तो दूसरे वर्ग में दो, तीसरे वर्ग में चार तथा चौथे वर्ग में आठ, इस प्रक्रिया को 64वें वर्ग तक दोहराया जाए। राजा ने इसे स्वीकार किया और खेल प्रांरभ किया। जिसमें राजा हार गये और वचनबद्ध होने के कारण राजा ने अपने दासों को चावल के दाने शतरंज पर डालने को कहा।
परंतु चावल के भुगतान की घातीय वृद्धि के बाद राजा को जल्दी ही एहसास हुआ कि वह अपना वादा पूरा करने में असमर्थ था, क्योंकि 20वें वर्ग में राजा को 1,000,000 चावल के दाने डालने पड़े और 64वें वर्ग में राजा को चावल के 18,446,744,073,709,551,615 दाने डालने पड़ते, जो लगभग 210 बिलियन टन के बराबर होता है। इतने चावलों की एक मीटर मोटी परत के साथ भारत के पूरे क्षेत्र को ढका जा सकता है।
राजा की दुविधा को देखने पर ऋषि ने कृष्ण के अपने सच्चे रूप में राजा को दर्शन दिये। उन्होंने राजा से कहा कि उन्हें तुरंत कर्ज़ का भुगतान करने की आवश्यकता नहीं है, लेकिन वे समय के साथ भुगतान कर सकते हैं। यही कारण है कि अम्बालप्पुज़्हा के कृष्ण मंदिर में आज भी तीर्थयात्रियों को पाल पयस्सम/चावल की खीर प्रसाद के रूप में दी जाती है, और यहां के राजा का कर्ज़ आज भी कृष्ण को चुकाया जा रहा है।”
संदर्भ:
1.https://quatr.us/islam/islamic-story-wheat-chessboard.htm
2.https://en.wikipedia.org/wiki/Wheat_and_chessboard_problem
3.http://www.singularitysymposium.com/exponential-growth.html
4.https://hinduism.stackexchange.com/questions/16712/the-legend-of-chessboard-pala-payasam-story-of-ambalappuzha-sri-krishna-temple
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