समयसीमा 229
मानव व उनकी इन्द्रियाँ 963
मानव व उसके आविष्कार 757
भूगोल 211
जीव - जन्तु 274
भारत की आबादी का एक बड़ा हिस्सा आज भी गरीबी से ग्रस्त है और इन लोगों के लिये तो बुनियादी सुविधायें जैसे कि स्वास्थ्य की देखभाल के लिए साधन जुटा पाना भी असान नहीं होता है। भारत में सबसे बड़ी समस्या यह है कि ब्रांडेड दवाइयों का दाम जेनेरिक (ब्रांड रहित) दवाइयों से काफी अधिक होता है, जबकि दोनों दवाइयों की चिकित्सात्मक गुणवत्ता एक जैसी ही होती है। इसी समस्या के निवारण के लिये यूपीए (संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन) सरकार ने एक दशक पहले 2008 में जन औषधि योजना लागू की, इस योजना के तहत ब्रांडेड दवाओं की उच्च कीमतों का मुकाबला करने के लिए लोगों को इनके स्टोरों पर सस्ती जेनेरिक दवाईयां लोगों को उपलब्ध कराई जाती थी।
बाद में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा इससे गठबंधन करके इसका नाम प्रधानमंत्री जन औषधि योजना रख दिया गया। इस योजना के तहत सरकार द्वारा उच्च गुणवत्ता वाली जैनरिक(Generic) दवाईयों के दाम बाजार मूल्य से कम किए जाते हैं। सरकार द्वारा अभी तक देश भर में 3013 (उत्तर प्रदेश में इनकी संख्या 472 है) 'जन औषधि स्टोर' बनाए गए हैं। प्रधानमंत्री जन औषधि योजना का उद्देश्य जनता को जागरूक करना है ताकि जनता समझ सके कि ब्रांडेड दवाईयों की तुलना में जेनेरिक दवाईयां कम मूल्य पर उपलब्ध हैं साथ ही इनकी गुणवत्ता में किसी तरह की कमी नहीं हैं और ये उतनी ही असरकारक हैं, तथा आम नागरिकों को बाजार से 50 से 80 फीसदी कम कीमत पर दवाइयां मुहैया कराना भी इसका उद्देश्य है।
दरअसल जेनेरिक दवाएं अनिवार्य रूप से अपने ब्रांडेड समरूप की रासायनिक प्रतिकृति (Duplicate) होती हैं और वे ब्रांडेड दवा के समान ही शरीर के भीतर कार्य करती हैं। यहाँ तक कि इनकी मात्रा, साइड-इफेक्ट, सक्रिय तत्व, कार्य, शक्ति आदि सभी ब्रांडेड दवाओं के जैसे ही होते हैं। मूल दवा के पेटेंट(Patent) की समाप्ति के बाद दवाओं के जेनेरिक संस्करण उपलब्ध हो जाते हैं। वास्तव में, जेनेरिक दवाएं वह दवाएं हैं जो बिना किसी पेटेंट के बनायी जाती है। अब प्रश्न ये उठता है की जब ये ब्रांडेड दवाईयों के समरूप है तो सस्ती कैसे हैं?
एक ही कंपनी की ब्रांडेड और जेनेरिक दवाओं के मूल्य में काफी अंतर होता है। चूंकि जेनेरिक दवाओं के मूल्य निर्धारण पर सरकारी नियंत्रण होता है इसलिये ये सस्ती होती हैं, जबकि ब्रांडेड दवाओं की कीमत कंपनियां खुद तय करती हैं, इसलिए वे महंगी होती हैं और जब कोई कंपनी नई दवा विकसित करती है, तो उसे इसके विशेष उपयोग के लिए पेटेंट दिया जाता है, और मूल कंपनी को इसकी खोज करने और विकास के लिए धनराशि का निवेश भी करना पड़ता है। लेकिन पेटेंट की समाप्ति के बाद अन्य दवा निर्माता कम कीमत पर समान दवा का उत्पादन कर सकते हैं। क्योंकि इनको दवा की खोज करने और विकास के लिए धनराशि का निवेश नही करना पड़ता है इसलिये भी ये जेनेरिक दवाएं सस्ती होती हैं।
1.http://commoncause.in/publication_details.php?id=517
2.https://indianexpress.com/article/explained/cheap-generic-vs-costly-branded-issues-in-picking-right-drug-in-india-4620165/
3.https://timesofindia.indiatimes.com/business/india-business/how-india-can-make-cheap-and-quality-medicines-available-to-all/articleshow/61828047.cms
4.http://pib.nic.in/newsite/PrintRelease.aspx?relid=174500
A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.
B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.