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भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा निर्धारित रेपो रेट (Repo Rate) वह दर है, जिस पर आर बी आई (RBI) सभी बैंकों को ऋण देता है। जब यह केंद्रीय बैंक रेपो दर में बढ़ोतरी करता है तो सभी बैंक जो अभी तक केंद्रीय बैंक से लिए गए ऋण का भुगतान सामान्य दर पर कर रहे थे, अब वही भुगतान ब्याज की बड़ी हुई दर पर करने को बाध्य हो जाते हैं, अतः इस व्यय की क्षतिपूर्ति के लिए सभी बैंक अपने ग्राहकों को दिए गये ऋण की ब्याज दर भी बड़ा देते हैं, जिसका प्रभाव प्रत्यक्ष रूप से व्यवसायों और व्यक्तियों पर पड़ता है।
पिछले वर्ष से पूर्व तकनीकी सलाहकार समिति के परामर्श पर दर की कटौती के संदर्भ में आर बी आई के गवर्नर द्वारा फैसला किया जाता था जिसके अनुसार गवर्नर अपने फैसले को रोक या बदल सकते थे, क्योंकि तकनीकी समिति की भूमिका केवल एक सलाहकार के रुप में थी। परंतु पिछले साल प्रणाली में बदलाव किये गए, अब आर बी आई ने एक नया मुद्रास्फीति-लक्ष्यीकरण शासन अपना लिया है, जिसके तहत केंद्रीय बैंक ने उपभोक्तों के मुद्रास्फीति को 4% या उससे कम रखने की आवश्यकता जताई है।
वहीं पिछले कुछ महीनों मे मुद्रास्फीति का स्तर कम रहा है। दूसरी ओर जून में वस्तु तथा सेवाओं की कीमतों में सिर्फ 1.5% की वृद्धि हुई, जबकि आरबीआई का पूर्वानुमान था की अप्रैल-सितंबर में मुद्रास्फीति 2%-3.5% रहेगी। मार्च 2016 के अंत में कुल निवेश में केवल 5.18% की वृद्धि हुई। 2016-17 वित्तीय वर्ष में बैंक क्रेडिट (bank credit) वृद्धि पिछले 60 वर्षों की तुलना में 5.1% से अपने निम्नतम स्तर पर पहुंच गई थी।
आर बी आई की मौद्रिक नीति समिति (Monetary Policy Committee) द्वारा प्रत्येक दो महीने में रेपो दर पर निर्णय लेती है। दर को अपरिवर्तित रखना (जैसा पिछले वर्ष किया गया था), उसमे वृद्धि करना तथा उसे घटाने के विकल्पों मे से भी चुनाव करती है। ब्याज दरों में बदलाव करना है या नहीं, यह तय करते हुए समिति अर्थव्यवस्था तथा मुद्रास्फीति के स्तर की स्थिति को भी देखती है। मुद्रास्फीति पर नियंत्रित करने के उद्देश्य से आर बी आई इस मौद्रिक नीति उपकरण का उपयोग, दर में कटौती करता है जिससे अर्थव्यवस्था की तरलता में वृद्धि हो जाती है।
आर बी आई ने रेपो दर में 25 बी पी एस (BPS अथवा Basis Points) या 0.25% से 8.25% की वृद्धि की है, बी पी एस वित्त में ब्याज दर तथा अन्य प्रतिशत को मापने की एक इकाई है , एक बीपीएस 1% के 1/100वें भाग के बराबर होता है। बैंक ग्राहकों को निश्चित ब्याज दर पर गृह ऋण, शिक्षा ऋण तथा व्यक्तिगत ऋण जैसे कई ऋण प्रदान करते हैं, जो रेपो दर के सीधे आनुपातिक हैं। अब रेपो दर में 0.25% की वृद्धि होती है तो यह वृद्धि सीधे एक आम नागरिक को दिए गए ऋण की ब्याज दर को भी प्रभावित करेगी, ऋण की ब्याज दर भी बढ़ेगी साथ ही ऋण के ईएमआई में भी वृद्धि होगी।
संदर्भ:
1.https://scroll.in/article/845634/why-the-business-media-is-obsessing-over-rbi-cutting-rates-and-how-it-affects-you
2.https://www.thehindubusinessline.com/money-and-banking/what-the-rate-hike-means-for-investors/article24097416.ece
3.https://www.quora.com/What-will-be-the-effect-if-the-RBI-increases-the-bank-rate
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