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लखनऊ का और चिकन का रिश्ता अत्यंत गहरा है। यहाँ चिकन खाया भी जाता है और चिकन पहना भी जाता है। अभी जिस चिकन की बात यहाँ की जा रही है वह है खाने का चिकन। लखनऊ को नवाबों की नगरी के रूप में जाना जाता है। यहाँ पर खाने की एक अलग ही महत्ता है। कबाब से लेकर बिरयानी तक यहाँ पर प्रमुखता से खायी जाती है। हाल में खाद्य जगत में कई बदलाव दर्ज किये गए हैं जिनमें से एक बड़ी क्रांति है मुर्गों के व्यापार में। कुछ ही दशकों पहले मुर्गे अत्यंत महंगे होते थे जिसका कारण था कि मात्र देसी मुर्गे ही बाजारों में पाए जाते थे। देसी मुर्गे बढ़ने में अत्यंत समय लेते हैं जिस कारण इन पर ज्यादा खर्च करना पड़ता है। औद्योगिक क्रांति ने एक नए प्रकार के मुर्गे को जन्म दिया जिसको हम ब्रायलर मुर्गे के नाम से जानते हैं। इस नए प्रकार के मुर्गे के आजाने के कारण मुर्गे के उद्योग में अभूतपूर्व बढ़ोतरी देखने को मिली और मुर्गों के दाम में भी बड़ी भारी गिरावट देखी गयी।
आज भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा अंडा उत्पादन करने वाला देश बन गया है और ब्रायलर मुर्गे के उत्पादन में भारत का तीसरा स्थान है। भारत प्रत्येक वर्ष 65,000 मिलियन अंडे और 3.8 मिलियन टन पोल्ट्री मांस का उत्पादन करता है। भारत में प्रति व्यक्ति चिकन की खपत अत्यंत तेजी से बढ़ी है खासतौर पर शहरों में चिकन खाने की आदत में अभूतपूर्व बढ़ोतरी देखने को मिली है। भारत में चिकन का बाजार 90,000 करोड़ का है जो कि अपने में एक कीर्तिमान है। भारत का प्रोसेस्ड चिकन का बाजार करीब 5000 करोड़ का है। यदि चिकन व्यापार में बदलाव को देखेंगे तो 1920 के दशक में बाजार में मिलने वाले चिकन का वजन करीब 2.5 पाउंड हुआ करता था जो कि ब्रायलर के आजाने के बाद करीब 6 पाउंड हो गया।
जैसा कि चिकन का उद्योग मांस और खाद्य से जुड़ा हुआ है तो यह जानना अत्यंत महत्वपूर्ण है कि देसी चिकन खाने में उत्तम होता है या ब्रायलर। देशी चिकन करीब 6 महीने में तैयार होता है तथा इसका प्रमुख भोजन कीड़े मकोड़े आदि होते हैं। वहीँ ब्रायलर जल्द तैयार हो जाते हैं तथा उनको ज्वार, सोयाबीन आदि खिलाया जाता है। ब्रायलर चिकन को स्टेरॉयड की सूईं दी जाती है जिससे वे जल्द बड़े और मोटे हों जिससे ज्यादा मुनाफा प्राप्त किया जा सके। इस दवाई के कारण ये मुर्गे खाने में स्वाद भी कम देते हैं और मानव के स्वास्थ्य पर गलत असर भी डालते हैं। हाल ही में मुर्गा सम्बंधित बीमारी बर्ड फ्लू का भी खतरा बढ़ा था तथा इसका सीधा सम्बन्ध ब्रायलर मुर्गों से ही था। ऑर्गेनिक चिकन भी बाजार में उपलब्ध है जो कि बिना किसी दवाई के तैयार किया जाता है। खाने की प्लेट में कौन सा चिकन आ रहा है इसका ख़ास ध्यान रखना जरूरी है क्यूंकि दवाई के सहारे पाले गए मुर्गे शरीर में कई प्रकार की बीमारियों को जन्म देते हैं।
1.https://www.chickencheck.in/faq/supersized-chicken/
2.https://www.chickencheck.in/infographics/chicken-growth/
3.https://www.quora.com/Why-is-Country-Chicken-Desi-Murga-tastier-than-Broiler-Chicken
4.https://economictimes.indiatimes.com/industry/cons-products/food/poultry-market-likely-to-see-double-digit-growth-in-2015/articleshow/45635751.cms
5.https://economictimes.indiatimes.com/industry/cons-products/food/spate-in-quick-service-eateries-help-processed-chicken-rule-the-roost/articleshow/57406721.cms
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