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लखनऊ के पहले बादशाह ‘पादशाह- ए- अवध’ ग़ाज़ी उद दीन हैदर शाह के शासन काल में लखनऊ में जानवरों की लड़ाई करवाना शुरू हुआ। मान्यता है कि जैसे जानवरों की लड़ाइयों का खेल लखनऊ में खेला जाता था वैसे दिल्ली के शाही दरबार में भी नहीं खेला जाता था। जंगली जानवर जैसे बाघ, चीता, तेंदुआ, हाथी, हिरण, मेंढा, गैंडा यहाँ तक की ऊंट इनकी भी लड़ाई की प्रतियोगिताएं लखनऊ में काफी मशहूर थी। मोती महल के पास मुबारक मंजिल और शाह मंजिल नाम के नए मकान इसी के लिए बनाए गए। इनके सामने नदी के दूसरे तट पर जानवरों के लिए एक बहुत बड़ा आरक्षित क्षेत्र बनाया गया जहाँ वे बिना किसी रुकावट के घूम सकें साथ ही शाह मंजिल के बिलकुल सामने बांस अथवा लोहे के कटघरे बनाए गए थे जिसमें जंगली जानवरों की लड़ाई होती थी। मान्यता है कि ग़ाज़ी उद दीन हैदर शाह अपने दोस्तों के साथ शाह मंजिल की छत पर लगाये बड़े खेमे में बैठकर इस खेल का लुत्फ़ उठाते थे। हाथी की लड़ाई और बाघ की लड़ाई यहाँ के सबसे पसंदीदा मनबहलाव के साधन थे। उपलब्ध स्त्रोतों के अनुसार यूरोपीय यात्रियों ने लिखा है कि यहाँ के रखवालदार पशु को सँभालने में काफी माहिर थे और जानवर कितना ही हिंसक क्यूँ ना हुआ हो वे बड़ी सुलभ रीती से उन्हें काबू में कर लेते थे। इन लड़ाइयों के लिए बड़ी दूर से जानवर मंगवाए जाते थे और उनका बहुत अच्छे से ख्याल रखा जाता था।
बाघ की लड़ाई बहुतायता से दूसरे बाघ, तेंदुआ, हाथी अथवा गैंडे के साथ कराई जाती थी। तेंदुए के साथ की लड़ाई में बाघ बहुत बार हार जाते थे और गैंडे के साथ की लड़ाई में उनकी मौत भी हो जाती थी। ग़ाज़ी हैदर शाह बड़ी संख्या में नेपाल से बाघ मंगाते थे। उनके बेटे नासिर उद दीन हैदर को हाथी की लड़ाई देखने का बड़ा शौक था। उनके पास तक़रीबन 150 हाथी थे जो सिर्फ लड़ाई के लिए इस्तेमाल किये जाते थे। हाथी और गैंडे की लड़ाई ये लखनऊ में बड़े चाव से देखी जाती थी। नासिर उद दीन हैदर ने 15 से 20 गैंडे लड़ाई के लिए चाँद गंज में पाल रखे थे। प्रकृति से शांत जानवरों जैसे मेंढा और हिरण की लड़ाई भी मनोरंजन का रोचक साधन होती थी। इन सभी में सबसे ज्यादा अलग और उत्सुकतापूर्ण लड़ाई होती थी दो ऊँटों में। ऊंट ज्यादातर कामार्त होने पर ही लड़ते हैं और उनके लड़ने का तरीका भी काफी अलग होता है। एक दूसरे की तरफ धावा बोलते हुए वे पहले एक दूसरे पर थूकते हैं और एक दूसरे को गिराने की कोशिश करते हैं। वे एक दूसरे का निचला होंट दांत से खींचने की कोशिश करते हैं क्यूंकि जिसका निचला होंट खीचा जाता है वो ऊंट बहुतायता से निचे गिर जाता है और होंट खींचने वाला विजेता होता है।
भारत सरकार द्वारा सन 1960 में पशुओं के प्रति क्रूरता रोकथाम अधिनियम जारी किया गया जिसके तहत जानवरों की लड़ाई को गैरकानूनी करार दिया गया। इसके अंतर्गत यह लड़ाईयां बंद हो चुकी हैं।
1. द लखनऊ ओमनीबस
2. उत्तर प्रदेश डिस्ट्रिक्ट गज़ेटियर वॉल्यूम XXXVII 1959
3. http://www.envfor.nic.in/legis/awbi/awbi01.pdf
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