लखनऊ में अल-क़ासिम फ़ूड्स और अनन्न सी फ़ूड्स जैसे कई मशहूर झींगा के थोक विक्रेता हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि हाल के वर्षों में हमारे शहर में झींगों की मांग काफ़ी बढ़ गई है। इसी बीच, मथुरा और हाथरस ज़िले उत्तर प्रदेश के प्रमुख झींगा उत्पादक क्षेत्र बन गए हैं।
आज हम उत्तर प्रदेश में झींगा पालन उद्योग की मौजूदा स्थिति के बारे में चर्चा करेंगे। इसके साथ ही, हम इस उद्योग की आर्थिक स्थिति को भी समझने की कोशिश करेंगे। इसके बाद, हम यह जानेंगे कि क्यों उत्तर प्रदेश और हरियाणा आने वाले समय में भारत में झींगा पालन का प्रमुख केंद्र बन सकते हैं।
इसके अलावा, हम भारत के उन राज्यों पर भी नज़र डालेंगे, जो सबसे अधिक झींगा उत्पादन करते हैं। अंत में, हम यह भी जानेंगे कि भारत में झींगा पालन का व्यवसाय शुरू करने में कितना ख़र्च आता है।
उत्तर प्रदेश में झींगा पालन उद्योग की मौजूदा स्थिति
उत्तर प्रदेश के मथुरा और हाथरस ज़िलों के खारे पानी में झींगा पालन को बड़े पैमाने पर बढ़ावा दिया जा रहा है। इन क्षेत्रों में विशेष रूप से वाइटलेग झींगा (Litopenaeus vannamei) का पालन किया जाता है, जो अपनी सहनशीलता और मज़बूत प्रकृति के कारण किसानों के लिए अत्यंत लाभकारी साबित हो रहा है। यह प्रजाति तेज़ी से बढ़ती है और इसका उत्पादन काल टाइगर प्रॉन की तुलना में छोटा होता है, जो बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशील होता है।
झींगा पालन उत्तर भारत के किसानों के लिए एक बहुत बड़ी उपलब्धि बन सकती है। यह न केवल कृषि के लिए अनुपयुक्त खारे क्षेत्रों का उपयोग कर रहा है, बल्कि स्थानीय लोगों के लिए लंबे समय तक रोज़गार के अवसर भी प्रदान कर रहा है। सरकार के प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (PMMSY) के तहत इस उद्योग को बढ़ावा देने के लिए व्यापक कदम उठाए जा रहे हैं। इस योजना का उद्देश्य 2024-25 तक देश की मछली उत्पादन क्षमता को 137.58 लाख मेट्रिक टन से बढ़ाकर 220 लाख मीट्रिक टन करना है।
झींगा पालन की प्रक्रिया और चुनौतियां
मथुरा और हाथरस के खारे क्षेत्रों का उपयोग झींगा पालन के लिए किया जा रहा है। इन क्षेत्रों में मिट्टी और पानी की खारापन 5 से 15 पी पी टी (ppt) के बीच पाया जाता है, जो ब्रैकिश वॉटर (खारे पानी) जलीय कृषि के लिए उपयुक्त है। वाइटलेग झींगे को आमतौर पर अप्रैल से अगस्त के बीच पाला जाता है क्योंकि यह प्रजाति ठंडे तापमान को सहन नहीं कर पाती। दिसंबर से फ़रवरी के दौरान अत्यधिक ठंड के कारण इसकी खेती उत्तर भारत में संभव नहीं हो पाती।
⦁ ➜ उत्पादन और आर्थिक लाभ
झींगा खेती में एक एकड़ के तालाब का औसत उत्पादन लगभग दो टन होता है। इन झींगों को मुख्य रूप से दिल्ली और फ़रीदाबाद की मंडियों में बेचा जाता है, जहां इनका औसत मूल्य ₹250-300 प्रति किलो होता है। एक किसान झींगा पालन से प्रति एकड़ करीब ₹3 लाख का राजस्व अर्जित करता है।
झींगा पालन में तालाब निर्माण, बीज चयन, सही खाद और प्रोबायोटिक्स का उपयोग, तथा जल रसायन विज्ञान की निगरानी जैसे पहलुओं पर किसानों को प्रशासन द्वारा प्रशिक्षित किया जाता है। मिट्टी और पानी के महत्वपूर्ण तत्वों जैसे पी एच, कुल क्षारीयता, कुल कठोरता, कैल्शियम, मैग्नीशियम और पोटाश का परीक्षण तकनीकी सहायता के तहत किया जाता है।
⦁ ➜ संभावनाएं और विस्तार
हाथरस ज़िले के एक किसान, कमल कुमार केशवानी, ने 7.9 एकड़ भूमि पर झींगा पालन शुरू किया है और इसे और विस्तार देने की योजना बना रहे हैं। उनके खेत को अन्य किसानों के लिए संसाधन केंद्र के रूप में देखा जा रहा है, जहां वे बीज, चारा और विपणन सुविधाओं के साथ-साथ परामर्श प्राप्त कर सकते हैं। राज्य सरकार ने इस परियोजना का विस्तार आगरा और अलीगढ़ के खारे क्षेत्रों तक कर दिया है।
हालांकि, इस उद्योग को कुछ चुनौतियों का सामना भी करना पड़ता है, जैसे कि गुणवत्ता वाले बीज, फ़ीड और प्रोबायोटिक्स की उपलब्धता, और झींगा के बाज़ार मूल्य में उतार-चढ़ाव। कोविड-19 महामारी ने भी उत्पादन और आपूर्ति श्रृंखला को बाधित किया है।
⦁ ➜ भविष्य की दिशा
झींगा पालन परियोजना, जो शुरू में एक पायलट योजना थी, अब धीरे-धीरे उत्तर प्रदेश के किसानों के लिए आर्थिक विकल्प बन रही है। मथुरा ज़िले में वर्तमान में 27 किसान इस प्रजाति की खेती कर रहे हैं और साल के अंत तक यह संख्या 50 तक पहुंचने की उम्मीद है। राज्य सरकार के प्रयासों और स्थानीय प्रशासन की सहायता से झींगा पालन उत्तर प्रदेश में आर्थिक विकास और रोज़गार के नए द्वार खोल रहा है।
क्यों उत्तर प्रदेश और हरियाणा भविष्य में भारत में झींगा पालन के केंद्र के रूप में उभर सकते हैं?
भारत सरकार ने उत्तर भारत के चार राज्यों में झींगा पालन को प्रोत्साहित करने के लिए ₹576 करोड़ की व्यापक एक्वाकल्चर योजना शुरू की है। इस योजना का उद्देश्य, झींगा निर्यात और घरेलू खपत को बढ़ावा देने के लिए कृषि के लिए अनुपयुक्त खारे क्षेत्रों का उपयोग करना है। यह पहल उत्तर प्रदेश और हरियाणा को झींगा पालन के प्रमुख केंद्रों में परिवर्तित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
केंद्रीय मत्स्य पालन विभाग और सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ ब्रैकिशवॉटर एक्वाकल्चर (CIBA) के वैज्ञानिकों ने उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान और पंजाब के 25 ज़िलों में हजारों हेक्टेयर खारे और अनुपयोगी भूमि का विस्तृत परीक्षण किया। इन प्रयासों से ऐसे क्लस्टर चिन्हित किए गए हैं, जहां झींगा पालन व्यावसायिक रूप से अत्यधिक लाभकारी साबित हो सकता है।
हरियाणा में झींगा उत्पादन का औसत लगभग 6-7 टन प्रति हेक्टेयर है, जो कि विश्व औसत के बराबर है। यह उत्पादकता, हरियाणा को झींगा पालन का एक प्रमुख केंद्र बनाने की क्षमता प्रदान करती है। यह राज्य अपनी उत्कृष्ट उत्पादन दर और निर्यात अनुकूलता के कारण इस उद्योग के लिए एक आदर्श स्थान बन रहा है।
उत्तर प्रदेश के मथुरा, आगरा और हाथरस जैसे ज़िलों को झींगा पालन के लिए चयनित किया गया है। इन क्षेत्रों में खारे पानी की प्रचुरता और अनुपयुक्त भूमि की उपलब्धता ने इन्हें झींगा पालन के लिए उपयुक्त बना दिया है। प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (PMMSY) के तहत इन क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे को सुदृढ़ बनाने के लिए भारी निवेश किया जा रहा है, जो किसानों को तकनीकी और व्यावसायिक सहायता प्रदान करेगा।
इसके अलावा, झींगा पालन के लिए चयनित अन्य प्रमुख जिलों में हरियाणा के रोहतक, फ़तेहाबाद और गुरुग्राम, पंजाब के फ़ाजिल्का, मुख़्तसर और मानसा, और राजस्थान के गंगानगर और चूरू शामिल हैं। इन क्षेत्रों में जलवायु और भूमि की प्रकृति झींगा पालन के लिए विशेष रूप से अनुकूल है।
इस परियोजना का उद्देश्य उत्तर भारत के खारे और कृषि के लिए अनुपयुक्त क्षेत्रों का अधिकतम उपयोग करना है। इसके माध्यम से न केवल झींगा उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि होगी, बल्कि यह स्थानीय स्तर पर दीर्घकालिक रोज़गार के अवसर भी प्रदान करेगा। उत्तर प्रदेश और हरियाणा, अपनी बेहतर उत्पादकता और अनुकूल भौगोलिक स्थितियों के कारण, झींगा पालन के राष्ट्रीय केंद्र के रूप में उभरने की प्रबल संभावना रखते हैं।
भारत के वे राज्य, जो सबसे ज़्यादा झींगों का उत्पादन करते हैं
भारत दुनिया के सबसे बड़े झींगा निर्यातक देशों में से एक है। 2022-23 में, भारत के समुद्री खाद्य पदार्थों का निर्यात 8.09 बिलियन अमेरिकी डॉलर (लगभग ₹64,000 करोड़) था, जिसमें झींगे का हिस्सा 5.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।
2022-23 में, अमेरिका के समुद्री खाद्य पदार्थों के बाज़ार में भारत की हिस्सेदारी 40% थी, जो थाईलैंड, चीन, वियतनाम और इक्वाडोर जैसे प्रतिद्वंद्वियों से कहीं अधिक थी।
झींगे उत्पादन करने वाले राज्य: आंध्र प्रदेश भारत का सबसे बड़ा झींगा उत्पादक राज्य है, जो भारत के कुल झींगा उत्पादन का 70% प्रदान करता है।
पश्चिम बंगाल और गुजरात भी झींगा पालन के प्रमुख राज्य हैं, जिनमें पश्चिम बंगाल का सुंदरबन और गुजरात का कच्छ क्षेत्र प्रमुख उत्पादक हैं।
एक हेक्टेयर में, झींगा पालन शुरू करने की लागत कितनी होती है?
झींगा पालन में मुख्य निवेश खर्च भोजन, खोदाई और उपकरणों पर होते हैं। पूंजी निवेश की राशि इस पर निर्भर करती है कि आप कितने बीज (seed) का पालन करने जा रहे हैं। औसतन, निवेश राशि 7 से 12 लाख रुपये के बीच हो सकती है, जिसमें बीज, भोजन, उपकरण और दवाइयां शामिल हैं। किसान के पास, पानी के एरेटर सेट, पंप और जनरेटर जैसे उपकरण होने चाहिए, जो इस खेती के लिए जरूरी होते हैं। पूंजी निवेश को कम करने के लिए कुछ किसान, इन उपकरणों को पट्टे पर ले लेते हैं।
एक हेक्टेयर तालाब को खोदने और तैयार करने में लगभग 4 से 5 लाख रुपये खर्च होते हैं। पहले से बने झींगा तालाब से पूंजी निवेश में मदद मिल सकती है। झींगा पालन का मुख्य जोखिम, वायरस और डब्ल्यू एस डी (WSD (White Spot Disease)) है, इसलिए तालाब का सही तरीके से रख-रखाव और दवाइयों की उपलब्धता बहुत महत्वपूर्ण है। एक सफल फ़सल में, कटाई के समय, किसान अपने निवेश पर दो या तीन गुना लाभ कमा सकता है। फ़सल की बिक्री की कीमत उस पर निर्भर करती है कि प्रति किलोग्राम झींगों की संख्या कितनी है, जितनी कम संख्या होगी, बिक्री मूल्य उतना ही अधिक होगा। मौजूदा बाज़ार दर के आधार पर, औसतन 40 झींगे प्रति किलोग्राम की संख्या पर, एक किसान, प्रति फ़सल, लगभग 13 से 15 लाख रुपये कमा सकता है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/5253thtd
https://tinyurl.com/35afhc5t
https://tinyurl.com/45nnrny9
https://tinyurl.com/2peexmrn
चित्र संदर्भ
1. झींगा पालन उद्योग को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. एक व्यक्ति के हाथ में झींगे को संदर्भित करता एक चित्रण (Pexels)
3. झींगे और मछलियों के संग्रह को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. मछली पालन के लिए एक विशाल फ़ार्म को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)