आइए जानें, अवध के नवाबों ने कैसे दिया, भारतीय चित्रकला में योगदान

द्रिश्य 3 कला व सौन्दर्य
11-12-2024 09:30 AM
Post Viewership from Post Date to 11- Jan-2025 (31st) Day
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
2459 79 2538
आइए जानें, अवध के नवाबों ने कैसे दिया, भारतीय चित्रकला में योगदान
ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध लखनऊ शहर को कला, संगीत, और साहित्य जगत में अपने अतुल्य योगदान के लिए जाना जाता है। लखनऊ के कला क्षेत्र में अवध की विशेष चित्रकला शैली की छाप आज भी नज़र आती है। यह शैली, नवाबों के दौर में बेहद लोकप्रिय हुई थी। अवधी पेंटिंग्स, अपने बारीक काम और खूबसूरत रंगों के लिए मशहूर हैं। इनमें शाही दरबार के दृश्य, प्रकृति की सुंदरता, और रोज़मर्रा की जिंदगी की झलक दिखाई देती है। इन पेंटिंग्स में मुगल कला और स्थानीय परंपराओं का भी बेहतरीन संगम देखने को मिलता है। आज के इस लेख में सबसे पहले हम यह देखेंगे कि भारतीय चित्रकला समय के साथ कैसे बदली है। हम इसके विकास की कहानी और इसमें आए अहम बदलावों को समझने की कोशिश करेंगे। इसके बाद अवध की खास चित्रकला शैलियों पर ध्यान देंगे। इससे हमें इस क्षेत्र के अमूल्य कलात्मक योगदान की झलक मिलेगी। आखिर में, हम लखनऊ की पेंटिंग गैलरीज़ का सफ़र करेंगे। जिसके तहत हम यह देखेंगे कि लखनऊ शहर कैसे अपनी कलात्मक विरासत को संजोने और प्रदर्शित कर रहा है।
भारत में चित्रकला का इतिहास प्राचीन और समृद्ध रहा है। भारतीय चित्रकला की शुरुआत गुफ़ाओं की कला और भित्ति चित्रों के साथ हुई। इन शुरुआती चित्रों को भारत की कला और संस्कृति का आधार माना जाता है।
आइए, भारतीय चित्रकला के हर दौर को विस्तार से समझें।
प्राचीन युग में भारतीय चित्रकला: प्राचीन समय में भारतीय चित्रकला का मुख्य उद्देश्य "धार्मिक" था। इन चित्रों में देवी-देवताओं और अलग-अलग क्षेत्रों की संस्कृति के दृश्य देखने को मिलते हैं। इन्हें बनाने वाले कलाकार चारकोल, पत्तों का पाउडर, चावल का आटा, हल्दी, और चूना जैसी प्राकृतिक सामग्रियों से रंग बनाते थे। इन रंगों से बने चित्र बहुत जीवंत और आकर्षक लगते थे। गुफ़ा कला और भित्ति चित्रों में रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्यों के दृश्य बनाए गए हैं। ये चित्र केवल कला नहीं थे, बल्कि कहानियों को अगली पीढ़ी तक पहुचाने और संस्कृति को बचाने का एक कारगर तरीका हुआ करते थे।
मध्यकालीन युग में भारतीय चित्रकला: मध्यकालीन समय में चित्रकला में क्षेत्रीय शैलियों का आगमन हुआ। इस दौर में राजपूत और पहाड़ी चित्रकला शैलियाँ प्रचलित हुई। इन शैलियों में राजाओं, दरबार और शाही जीवन को दिखाया जाता था। ऐसे चित्रों को बनाने के लिए कलाकार चमकीले रंगों, बारीकी से किए गए काम और सोने की पत्ती का इस्तेमाल करते थे। इस दौर के अधिकांश चित्रों में हिंदू पौराणिक कथाओं और ऐतिहासिक घटनाओं को उकेरा गया। इसके साथ ही, इसमें मुगल और फ़ारसी कला के प्रभाव भी देखने को मिलते हैं। इस समय ने भारतीय चित्रकला को गहराई और विविधता प्रदान की, जिससे यह और समृद्ध हो गई।
आधुनिक युग में भारतीय चित्रकला: आधुनिक समय की भारतीय चित्रकला में पारंपरिक और आधुनिक शैलियों का मिश्रण नज़र आता है। आज के कलाकार नए विचारों और तरीकों के साथ प्रयोग कर रहे हैं। अब चित्रों में अमूर्त और यथार्थवादी शैलियों को देखा जा सकता है। चित्र बनाने के लिए कलाकार चावल के पेस्ट, गाय के गोबर, और पौधों के रस जैसी अनोखी सामग्रियों का इस्तेमाल करते हैं। इन चित्रों में अक्सर उज्ज्वल रंग और जटिल विवरण दिखते हैं। आधुनिक युग की भारतीय चित्रकला नए विचारों, रचनात्मकता, और सांस्कृतिक बदलाव को दर्शाती है। इस तरह भारतीय चित्रकला ने हर युग में नए रंग और नई ऊर्जा को अपनाया है।
आइए, अब अवध में चित्रकला के विकास पर एक नज़र डालते हैं।
मुगल चित्रकला मुस्लिम और हिंदू कलाकारों के सहयोग से विकसित हुई। ये कलाकार अक्सर एक साथ मिलकर काम करते थे। वे कभी-कभी एक ही पेंटिंग को भी मिलकर बनाते थे। हुसैनाबाद पिक्चर गैलरी में अवध के नवाबों के बड़े आकार के चित्र रखे गए हैं। ये चित्र अब बहुत पुराने हो चुके हैं, और इन्हें फिर से सुधारने की ज़रूरत है। 19वीं शताब्दी की ये कलाकृतियाँ एक समय में पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र हुआ करती थीं।
अवध की चित्रकला को विषय, शैली, और तकनीक के आधार पर दो भागों में बांटा जा सकता है। पहली शैली में मुगल परंपरा की झलक दिखाई देती है, जिसमें कुछ राजपूत प्रभाव भी शामिल हैं। यह शैली 1750 से 1800 के बीच लोकप्रिय रही। दूसरी शैली यूरोपीय चित्रकला से प्रभावित नज़र आती है।
इस प्रभाव की शुरुआत नवाब शुजा-उद-दौला के समय में हुई। वह अपनी पेंटिंग्स के लिए यूरोपीय कलाकारों को प्राथमिकता देते थे। हालांकि दोनों शैलियाँ साथ-साथ विकसित हुईं, लेकिन समय के साथ यूरोपीय शैली अधिक प्रचलित हो गई। 18वीं शताब्दी के अंत तक, लखनऊ में इंडो-ब्रिटिश शैली का दबदबा बढ़ने लगा था, क्योंकि यहाँ पर कई यूरोपीय लोग रहते थे। नवाब आसफ़ -उद-दौला को चित्रकला में गहरी रुचि थी। वे कलाकारों को इनाम स्वरूप अच्छी राशि देते थे। उनके पास मुगल चित्रकला का दुर्लभ संग्रह भी था।
अवध के कलाकारों ने अपनी पेंटिंग में रचनात्मकता और कुशलता दिखाई। अपनी कला के माध्यम से उन्होंने ऐतिहासिक घटनाओं, हिंदू पौराणिक कथाओं, राग-रागिनियों, कृष्ण लीला, सामाजिक गतिविधियों, और शाही जीवन को चित्रित किया। कुछ चित्रों में कामुकता भी थी। ये कलाकृतियाँ नवाबी शासन के दौरान बनीं। तब के नवाब धर्म के प्रति खुले विचार रखते थे। हिंदू धर्म से जुड़े विषय, मुगल चित्रकला में भी प्रचलित थे। लेकिन अवध के चित्रकारों में ये अधिक आम हो गए, क्योंकि कई कलाकार हिंदू थे।
अधिकांश पेंटिंग कागज़ पर बनाई जाती थीं। यूरोपीय प्रभाव के कारण, कुछ चित्र हाथी दांत की चिकनी चादरों पर भी बनाए गए। हाथी दांत के ये टुकड़े छोटे आकार के होते थे, जिन्हें गोल, अंडाकार या आयताकार रूप में काटा जाता था। इन पर तेल चित्रकला की जाती थी। हाथी दांत पर पेंटिंग की यह परंपरा दिल्ली से शुरू हुई और अवध तक फैली। हालांकि अवध में यह शैली आम थी, लेकिन उतनी परिष्कृत नहीं थी।
अवध के नवाब कला और संस्कृति के बड़े संरक्षक माने जाते थे। उन्होंने मुगल परंपराओं को अपनाया और उन्हें विविधता के साथ आगे बढ़ाया। नवाबों ने कला, धर्म, दर्शन, शिक्षा और शाही प्रतीकों को एकजुट किया। इससे एक समृद्ध और सजीव सांस्कृतिक वातावरण का निर्माण हुआ।
लखनऊ को अपनी समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक स्थलों और जीवंत कला परिदृश्य के लिए जाना जाता है। कला प्रेमियों के लिए यहां पर पिक्चर गैलरी और कला स्थल जैसे कई ख़ास आकर्षण हैं। ये स्थल शहर के पुराने कलात्मक इतिहास और नई रचनात्मकता को दर्शाते हैं।
लखनऊ में कला प्रेमियों के लिए प्रमुख आकर्षणों में शामिल हैं:
1. हुसैनाबाद पिक्चर गैलरी
: हुसैनाबाद पिक्चर गैलरी लखनऊ के केंद्र में स्थित है। यह जगह उन लोगों के लिए खास है, जिन्हें इतिहास और कला में रुचि है। यह गैलरी 19वीं सदी की एक खूबसूरत इमारत में बनी है। यह वास्तुकला का अद्भुत नमूना है। इसमें मुगल और अवधी कला की झलक मिलती है।
इस गैलरी में अवध के नवाबों के बड़े आकार के चित्र प्रदर्शित हैं। इन चित्रों को यूरोपीय कलाकारों द्वारा बनाया गया था। इन चित्रों में शाही कपड़ों, दरबारी जीवन और शासकों के व्यक्तित्व को करीब से दिखाया गया है। इसके अलावा, गैलरी में लघु चित्र, ऐतिहासिक दस्तावेज़ और अन्य चीज़ें भी हैं। ये सभी अवधी साम्राज्य की समृद्धि और विविध संस्कृति को दर्शाते हैं।
2. राज्य संग्रहालय लखनऊ: राज्य संग्रहालय, लखनऊ चिड़ियाघर के भीतर स्थित है। यह लखनऊ के सबसे पुराने सांस्कृतिक संस्थानों में से एक है। इस संग्रहालय में पेंटिंग, मूर्तियां और पुरातात्विक खोज जैसी कई प्रकार की कलाकृतियां हैं।
संग्रहालय की आर्ट गैलरी में भारतीय लघु चित्रों का बड़ा संग्रह भी है। इन चित्रों में पहाड़ी, राजस्थानी और मुगल परंपराओं की झलक मिलती है। इन पेंटिंग को अपने बारीक डिज़ाइनों और चमकीले रंगों के प्रयोग लिए जाना जाता है। इनमें पौराणिक और ऐतिहासिक कहानियों का चित्रण किया गया है। संग्रहालय में आधुनिक भारतीय कलाकारों की समकालीन कला भी प्रदर्शित है।
कुल मिलाकर लखनऊ की पिक्चर गैलरी और कला स्थल शहर की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर को सहेजने का अद्भुत प्रयास हैं।

संदर्भ
https://tinyurl.com/2y8w9hmj
https://tinyurl.com/2cmjdurh
https://tinyurl.com/2ykpauou

चित्र संदर्भ
1. लखनऊ के बड़ा इमामबाड़ा को दर्शाती पेंटिग को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
2. प्रागैतिहासिक भीमबेटका गुफा चित्र को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. लखनऊ के विद्रोह को संदर्भित करती पेंटिंग का चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
4. लखनऊ के विहंगम दृश्य को संदर्भित करती पेंटिंग का चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
5. लखनऊ के एक संग्रहालय में रखी गई वस्तुओं को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
पिछला / Previous अगला / Next

Definitions of the Post Viewership Metrics

A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.

B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.

C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.

D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.