आइए जानें, सौहार्द की मिसाल कायम करते, लखनऊ के ऐतिहासिक धार्मिक स्थलों को

विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)
24-12-2024 09:30 AM
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आइए जानें, सौहार्द की मिसाल कायम करते, लखनऊ के ऐतिहासिक धार्मिक स्थलों को
अपने समृद्ध इतिहास और जीवंत संस्कृति के अलावा, लखनऊ शहर को धार्मिक सौहार्द की मिसाल के तौर पर भी देखा जाता है! हमारे राज्य के इस सबसे बड़े शहर में सभी धर्मो के लोग शांतिपूर्ण तरीके से मिल जुलकर रहते हैं। आपको यहाँ पर मस्जिदें, मंदिर, चर्च और गुरुद्वारे सहित सभी धर्मों के धार्मिक स्थलों के दर्शन हो जाएंगे। आज के इस लेख में, हम लखनऊ के पवित्र धार्मिक स्थलों और उनके ऐतिहासिक तथा आध्यात्मिक महत्व को समझेंगे। इसके साथ ही, हम यहां आयोजित होने वाले सांस्कृतिक उत्सवों के भ्रमण पर भी चेलेंगे। अंत में, हम सूफ़ी दरगाहों, खासकर देवा शरीफ़ की भूमिका और उनकी आध्यात्मिक अहमियत पर चर्चा करेंगे।
आइए, शुरुआत लखनऊ के कुछ प्रमुख धार्मिक स्थलों के साथ करते हैं!
1. बड़ा इमामबाड़ा: बड़ा इमामबाड़ा, लखनऊ का प्रमुख धार्मिक और ऐतिहासिक स्थल है। इसका निर्माण, 1784 में आसफ़-उद-दौला द्वारा करवाया गया था। यह स्थान अध्यात्मिक स्थल और ऐतिहासिक स्मारक दोनों के रूप में प्रसिद्ध है। इसका सेंट्रल हॉल दुनिया के सबसे बड़े मेहराबदार हॉल में से एक है। यहाँ भुलभुलैया भी है, जो इस स्थान को और भी रोमांचक बनाती है।
2. छोटा इमामबाड़ा: छोटा इमामबाड़ा को रोशनी के महल के नाम से भी जाना जाता है! यह लखनऊ का एक और प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। इसे 1838 में नवाब मुहम्मद अली शाह ने बनवाया था। इसे अपने शानदार झूमरों और सुंदर वास्तुकला के लिए जाना जाता है। यहाँ नवाब और उनके परिवार की कब्रें भी हैं, जो इसे ऐतिहासिक और आध्यात्मिक रूप से खास बनाती हैं।
3. हनुमान सेतु मंदिर: हनुमान सेतु मंदिर, भगवान हनुमान को समर्पित है। यह मंदिर गोमती नदी के किनारे पर स्थित है और लखनऊ के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। मंगलवार और शनिवार को यहाँ भक्तों की भारी भीड़ रहती है। यहाँ का शांत माहौल और प्राकृतिक सुंदरता, इसे ध्यान और प्रार्थना के लिए एक आदर्श स्थान बनाते हैं।
4. चंद्रिका देवी मंदिर: चंद्रिका देवी मंदिर, देवी चंडी को समर्पित है। यह लखनऊ के बाहरी इलाके में स्थित है। माना जाता है कि यह मंदिर, 300 साल से भी पुराना है और यहाँ भक्तों की सभी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं। प्रकृति के बीच स्थित यह मंदिर यहाँ आने वाले भक्तों को शहर के शोरगुल से दूर शांति का अनुभव प्रदान करता है।
5. टाइल वाली मस्जिद: टाइल वाली मस्जिद, लखनऊ की सबसे पुरानी मस्जिदों में से एक है। इसे अपनी टाइलों से सजी बाहरी दीवारों और ऐतिहासिक महत्व के लिए जाना जाता है। इसे मुगल बादशाह औरंगज़ेब के शासनकाल में बनवाया गया था। यह मस्जिद शांतिपूर्ण प्रार्थना और चिंतन के लिए एक आदर्श स्थान है।
6. लखनऊ में सूफ़ी दरगाह: देवा शरीफ़ दरगाह लखनऊ से 42 किमी दूर स्थित है। यह दरगाह सूफ़ी संत हाजी वारिस अली शाह को समर्पित है। उन्हें अपने सार्वभौमिक भाईचारे और शांति के संदेश के लिए जाना जाता था। यह दरगाह हर धर्म, जाति और पंथ के भक्तों को आकर्षित करती है। यहाँ लोग सुकून और दुआ के लिए आते हैं।
इस दरगाह का गुंबद इसकी सबसे खास विशेषताओं में से एक है। कहा जाता है कि इस गुंबद की कोई छाया नहीं पड़ती।
हाजी वारिस अली शाह का जन्म रमजान के पहले दिन हुआ था। एक किंवदंती के अनुसार, बचपन में उन्होंने रमज़ान के पूरे पवित्र महीने को बिना भोजन या पानी के बिताया था। वे रूस, इंग्लैंड और जर्मनी जैसे देशों की यात्राओं पर भी गए थे। इन यात्राओं में उन्होंने राजाओं और रानियों से मुलाकात की।
लोगों का मानना है कि उनके पास चमत्कारी शक्तियाँ थीं। आज भी भक्त, उनकी दरगाह पर अपनी मनोकामनाएँ पूरी होने की उम्मीद लिए आते हैं। देवा शरीफ़ दरगाह, आध्यात्मिक शांति और विश्वास का प्रतीक है। यह हर वर्ग के लोगों को जोड़ती है और उन्हें आस्था और सुकून का अनुभव कराती है। देवा शरीफ़ दरगाह में कई सालों से दिवाली और होली जैसे त्योहारों को बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जा रहा है। यह जगह नकारात्मकता और विभाजन से अप्रभावित रहती है।
दरगाह का संदेश सरल लेकिन गहरा है: “धर्म के नाम पर लड़ने वाले लोग उसका असली अर्थ नहीं समझते।” यहाँ कहा जाता है, "जो रब है वही राम है।"
होली के दौरान, यह संदेश अबीर और गुलाल के रंगों के साथ हवा में घुल जाता है। लोग यहाँ अपनी पहचान को भुलाकर केवल इंसानियत के रंग में रंग जाते हैं। हिंदू, मुस्लिम और सिख, सभी मिलकर इस त्योहार को मनाते हैं। दूर-दूर से आने वाले तीर्थयात्री, चाहे वे किसी भी धर्म या भाषा के हों, यहां से हमेशा शांति, सद्भाव और विविधता में एकता का संदेश लेकर लौटते हैं।
कई लोग, इन परंपराओं को अवध के नवाबों, खासकर नवाब वाजिद अली शाह और उनकी रानी हज़रत महल से जोड़ते हैं। वे हिंदू और मुस्लिम के बीच भेदभाव नहीं होने देते थे। ऐसा माना जाता है कि गंगा-यमुनी तहज़ीब की नींव सूफ़ी संतों ने रखी थी। इस संस्कृति के विकास में कई लोगों ने योगदान दिया, लेकिन इसकी बुनियाद सद्भाव और समानता पर आधारित थी।
लखनऊ के ये सभी पवित्र धार्मिक स्थल, न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक रूप से भी बहुत महत्वपूर्ण हैं। इन स्थलों की यात्रा आत्मा को सुकून और मन को शांति देती है। हालांकि अपने भव्य धार्मिक स्थलों के साथ-साथ लखनऊ को अपनी समृद्ध संस्कृति और शिष्टाचार के लिए भी जाना जाता है। यहाँ पर इतिहास और आधुनिकता का सुंदर मेल देखने को मिलता है। संगीत, नृत्य, साहित्य और स्वादिष्ट व्यंजन लखनऊ की कला और आतिथ्य को दर्शाते हैं।
आइए, अब एक नज़र लखनऊ में आयोजित होने वाले कुछ प्रसिद्ध सांस्कृतिक कार्यक्रमों पर डालते हैं:
लखनऊ महोत्सव
: लखनऊ महोत्सव, इस शहर का सबसे बड़ा सांस्कृतिक आयोजन है। यह हर साल नवंबर या दिसंबर में दस दिनों तक चलता है। इस महोत्सव में, अवधी संस्कृति की झलक देखने को मिलती है।
मेले का माहौल हर ओर चमकीले रंगों और संगीत से सराबोर होता है। यहाँ आप पारंपरिक शास्त्रीय संगीत सुनते हुए, अवधी व्यंजनों का स्वाद ले सकते हैं। यहाँ लाइव प्रदर्शन और रंग-बिरंगे जुलूस मेले को और खास बनाते हैं। महोत्सव का मुख्य आकर्षण लखनऊ घराने के कथक नर्तकों का अद्भुत प्रदर्शन है।
लखनऊ साहित्य महोत्सव: पुस्तक प्रेमियों के लिए लखनऊ का साहित्य महोत्सव बेहद खास होता है। यह हर साल फ़रवरी या मार्च में आयोजित होता है। इस कार्यक्रम में लेखक, कवि, और विचारक शामिल होते हैं। वे अपनी रचनाएँ और साहित्यिक विचार प्रस्तुत करते हैं।
महोत्सव में प्रवेश करते ही एक रोमांचक माहौल की अनुभूति होती है। यहाँ पुस्तक स्टॉल पर नए और प्रसिद्ध लेखकों की किताबें उपलब्ध होती हैं। मुख्य मंच पर साहित्यिक विषयों पर चर्चाएँ होती हैं। यहाँ आने वाले आगंतुक अपने पसंदीदा लेखकों को उनके अनुभव और रचनात्मकता के बारे में सुन सकते हैं।
सनतकदा महोत्सव: सनतकदा महोत्सव जनवरी या फ़रवरी में आयोजित होता है। यह पारंपरिक शिल्प और कला को बढ़ावा देने के लिए समर्पित है। यह कार्यक्रम खासतौर पर उन लोगों को आकर्षित करता है, जो हस्तनिर्मित कला और टिकाऊ फ़ैशन पसंद करते हैं।सफ़ेद बारादरी में लगे स्टॉल पर रंग-बिरंगे शिल्प देखने को मिलते हैं। यहाँ चिकनकारी, ज़रदोजी और नाज़ुक ज्वैलरी का प्रदर्शन किया जाता है। बुनकर अपनी कला को प्रदर्शित करते हैं, और आगंतुक उनके काम को अपनी आँखों के सामने तैयार होते देख सकते हैं। यहाँ आनेवाले आगंतुकों को ब्लॉक प्रिंटिंग और मिट्टी के बर्तन बनाने जैसी तकनीकें सीखने का भी अवसर मिलता है।
लखनऊ के ये उत्सव और कार्यक्रम, इस शहर की सांस्कृतिक धरोहर और जीवंतता को दर्शाते हैं।

संदर्भ
https://tinyurl.com/255u726l
https://tinyurl.com/2xkz559j
https://tinyurl.com/25dhamy8
https://tinyurl.com/2copn3to

चित्र संदर्भ
1. लखनऊ के रूमी दरवाज़े को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
2. बड़ा इमामबाड़ा को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
3. छोटा इमामबाड़ा को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. टाइल वाली मस्जिद को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. लखनऊ में सूफ़ी दरगाह को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. लखनऊ के सब्ज़ी बाज़ार को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
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