बेगम हज़रत महल: स्वतंत्रता के इतिहास की इस नायिका पर लखनऊ को आज भी गर्व है !

उपनिवेश व विश्वयुद्ध 1780 ईस्वी से 1947 ईस्वी तक
28-11-2024 09:32 AM
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बेगम हज़रत महल: स्वतंत्रता के इतिहास की इस नायिका पर लखनऊ को आज भी गर्व है !
बेगम हज़रत महल को ‘अवध की बेगम ’ के रूप में भी जाना जाता है। उनका जन्म, 1820 में फ़ैज़ाबाद, अवध में हुआ था। उनका बचपन का नाम मुहम्मदी ख़ानम था। उस समय, उनका परिवार आर्थिक तंगी से जूझ रहा था। शायद आपको जानकर अजीब लगे, लेकिन उनकी इसी गरीबी से निजात पाने के लिए, छोटी सी उम्र में ही मुहम्मदी ख़ानम को शाही एजेंटों को बेच दिया गया। वह शाही हरम में एक ख़वासिन (नौकरानी) बन गईं। लेकिन अपनी सुंदरता, बुद्धिमत्ता और कला में कुशलता के कारण, वह सबसे अलग नज़र आती थीं।
वक्त गुज़रा और उनकी मुलाकात तत्कालीन लखनऊ और अवध के नवाब रहे नवाब वाजिद अली शाह से हुई। दोनों को प्रेम हुआ और दोनों ने अस्थायी विवाह भी कर लिया। शादी के बाद, उन्हें दरबार में बेगम का दर्जा मिल गया। उनके बेटे बिरजिस कद्र के जन्म के बाद, उन्हें "हज़रत महल" की उपाधि दी गई, जिससे शाही परिवार में उनकी स्थिति और मज़बूत हो गई। हालांकि, शाही परिवार के अन्य सदस्य उनसे ख़ास खुश नहीं थे। शाही दरबार के अन्य प्रमुख लोगों के साथ भी उनके रिश्ते बेहद जटिल थे। हालांकि नवाब वाजिद अली शाह उनसे प्रेम और सम्मान करते थे, लेकिन उनकी अन्य रानियाँ उनसे ईर्ष्या करती थीं। इन चुनौतियों के बावजूद नवाब ने उन्हें एक बुद्धिमान और भरोसेमंद साथी माना, तथा उनकी सुंदरता और निर्णय शक्ति का सम्मान किया। बेग़म हज़रत महल की ताकत और आत्म-सम्मान ने उन्हें इन मुश्किल रिश्तों को संभालने में मदद दी, और उन्होंने शाही दरबार में एक महत्वपूर्ण स्थान अर्जित किया। लेकिन उनके सामने असली परीक्षा की घड़ी आनी अभी बाकी थी!
1857 में, जब भारत की आज़ादी की पहली लड़ाई छिड़ी, तब बेग़म हज़रत महल ने भी ब्रिटिश शासन के अन्याय का विरोध किया। अंग्रेज़ों के आदेश पर सड़कें बनाने के लिए अवध की मस्जिदों और मंदिरों को तोड़ा गया! सैनिकों को गाय तथा सूअर की हड्डियों से बने कारतूस इस्तेमाल करने पर मजबूर किया गया। अंग्रेज़ों के इस क्रूर निर्णय से हिंदू और मुसलमान दोनों का दिल दुखा। बेगम हज़रत महल ने अवध के ग्रामीण इलाकों के लोगों को एकत्र किया और अपनी संपत्ति का उपयोग 100,000 वफ़ादार लोगों की मदद में किया! ये सभी लोग उनके साथ जुड़ गए थे। इस सेना का नेतृत्व उन्होंने स्वयं किया और लखनऊ की सत्ता को अंग्रेज़ों से वापस लेने का प्रयास किया।
बेग़म हज़रत महल ने मैदान-ए-जंग में रानी लक्ष्मी बाई, बख्त खान और मौलवी अब्दुल्ला जैसे वीर सेनानियों के साथ मिलकर ब्रिटिश हुकूमत का बहादुरी से मुकाबला किया। उन्होंने नाना साहब के साथ मिलकर लड़ाई लड़ी और फ़ैज़ाबाद के मौलवी की भी मदद की। 5 जुलाई 1857 को लखनऊ पर विजय ने उन्हें यह अवसर दिया कि वे अवध का शासन वापस स्थापित करें और अपने 14 वर्षीय बेटे को गद्दी सौंप दें।
लेकिन लखनऊ पर उनका नियंत्रण ज्यादा समय तक नहीं रह सका। 16 मार्च 1858 को अंग्रेज़ों ने इस क्षेत्र पर दोबारा कब्ज़ा कर लिया। इसके बाद बेगम अपनी सेना के साथ पीछे हट गईं, लेकिन अन्य इलाकों में प्रतिरोध का आयोजन करती रहीं। 1859 के अंत में उन्हें नेपाल में शरण लेनी पड़ी। नेपाल के प्रधानमंत्री जंग बहादुर राणा ने पहले तो शरण देने से मना कर दिया, लेकिन बाद में अंग्रेज़ों के विरोध के बावजूद बेग़म को शरण के लिए वह मान गए। अंग्रेज़ों ने उन्हें वापस लौटने और पेंशन की पेशकश की, पर उन्होंने इसे भी ठुकरा दिया। 7 अप्रैल 1879 को काठमांडू, नेपाल में ही उनका निधन हो गया, लेकिन उन्होंने अपने विरोध में कभी कमी नहीं आने दी। उनकी साहसी भूमिका ने उन्हें भारत के इतिहास में एक महान नायिका बना दिया।
उनकी याद में 15 अगस्त 1962 के दिन लखनऊ के हज़रतगंज के विक्टोरिया पार्क में एक संगमरमर के स्मारक का उद्घाटन किया गया। इसमें अवध राजघराने का चिह्न अंकित है। उनके सम्मान में भारत सरकार ने 10 मई 1984 को एक डाक टिकट भी जारी किया। भारत की स्वतंत्रता में उनके योगदान को मान्यता देने के लिए उनके नाम पर बेगम हज़रत महल राष्ट्रीय छात्रवृत्ति की भी शुरुआत की गई है। वह साहस, धार्मिक सहिष्णुता और न्याय का प्रतीक हैं, जिन्होंने ब्रिटिश हुकूमत का अकेले ही सामना किया और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक प्रेरणाश्रोत बनीं।
भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई में महिलाओं की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही है। वे भी पुरुषों के समान ही प्रशिक्षण लेकर संघर्ष में शामिल हुईं और वर्दी भी पुरुष सेनानियों जैसी ही पहनी। भीमा बाई होल्कर, झांसी की रानी लक्ष्मी बाई, अरुणा आसफ़ अली, एनी बेसेंट और सरोजिनी नायडू जैसी महिलाएं स्वतंत्रता संग्राम में साहस का प्रतीक मानी जाती थीं। अपने संघर्ष और बलिदान से उन्होंने भारतीय इतिहास पर अमिट छाप छोड़ी, जो आगे की पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी रहीं।

संदर्भ
https://tinyurl.com/2yp5jkrb
https://tinyurl.com/27myl97h
https://tinyurl.com/2734usoc
https://tinyurl.com/2yp5jkrb

चित्र संदर्भ
1. दरबार में बैठी एक महिला को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
2. बेगम हज़रत महल को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. काठमांडू में जामा मस्जिद के पास बेगम हज़रत महल के मकबरे को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. लखनऊ में स्थित बेगम हज़रत महल पार्क को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
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