लखनऊ के पर्यावरण को चार चांद लगाने वाले जिम्नोस्पर्म, रखते हैं, औषधीय महत्व

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26-10-2024 09:30 AM
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लखनऊ के पर्यावरण को चार चांद लगाने वाले जिम्नोस्पर्म, रखते हैं, औषधीय महत्व
हमारे खूबसूरत शहर लखनऊ में, हम अपने परिवेश को, विविध प्रकार के पौधों के साथ साझा करते हैं, जो हमारे पर्यावरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पौधों का ऐसा ही एक समूह, जिम्नोस्पर्म (Gymnosperm) है। ये प्राचीन पौधे, अपने अद्वितीय बीजों और उल्लेखनीय अनुकूलन क्षमता के लिए जाने जाते हैं। हमारे शहर के पार्कों में फैले ऊंचे चीड़ से लेकर, पड़ोस में फैली हरियाली तक, जिम्नोस्पर्म, स्थानीय वनस्पति जीवन का समर्थन करते हुए, हमारे शहर की सुंदरता को बढ़ाते हैं। आज, हम जिम्नोस्पर्म के चिकित्सीय महत्व का पता लगाएंगे, तथा स्वास्थ्य और चिकित्सा में, उनके योगदान पर प्रकाश डालेंगे। इसके बाद, हम इनके विभिन्न समूहों की जांच करेंगे, एवं इनके अद्वितीय लक्षणों और भूमिकाओं पर चर्चा करेंगे। अंत में, हम परिभाषित करेंगे कि जिम्नोस्पर्म क्या हैं?
जिम्नोस्पर्म पौधों का औषधीय महत्व, इस प्रकार समझा जा सकता है।
१.साइकस सर्किनेलिस (Cycas circinalis)

इस पौधे की नई पत्तियों का रस, पेट के विकार, उल्टी और त्वचा रोगों को, ठीक कर सकता है। साथ ही, साइकस की छाल, मेगास्पोरोफ़िल (Megasporophylls) और बीजों को कुचलकर, नारियल तेल में मिलाया जाता है, जिसका उपयोग, घावों और चोटों के लिए किया जाता है।
२.इफ़ेड्राइन(Ephedrine) –
इफ़ेड्रा से, एक बहुत ही महत्वपूर्ण औषधि निकाली जाती है, जिसका उपयोग अस्थमा, हे फ़िवर(Hay fever), खांसी और सर्दी के इलाज में किया जाता है। साथ ही, इसका काढ़ा एक हृदय उत्तेजक है।
३.सेड्रस देवदार (Cedrus deodara) की लकड़ी, मूत्रवर्धक और वातनाशक होती है। इसका उपयोग, फुफ्फुसीय विकारों, पाईज़ गठिया(Pies rheumatism) आदि बीमारियों को ठीक करने में, किया जाता है।
४. क्यूप्रेसस सेम्परवीरेंस (Cupressus sempervirens) – इस पौधे के तेल में, वर्मीफ्यूज(Vermifuge) गुण होते हैं।
५.टैक्सस बकाटा(Taxus baccata) – इस पौधे की पत्तियां, अस्थमा, ब्रोंकाइटिस एवं मिर्गी में, दवाई के रुप में कार्य करती है।
६.पैक्लिटैक्सेल (पी टी एक्स – Paclitaxel[PTX]), एक कैंसर रोधी दवा है, जो व्यापारिक नाम, ‘टैक्सोल(Taxol)’ के तहत बेची जाती है। यह टैक्सस बर्विफ़ोलिया (Taxus bervifolia) की छाल से निकाला गया, एक अल्कलॉइड (Alkaloid) घटक है। टैक्सोल, एक स्पिंडल फ़ाइबर (Spindle fibre) अवरोधक है, जो कोशिका विभाजन की प्रगति को रोकता है। इसका उपयोग, डिम्बग्रंथि कैंसर, स्तन कैंसर, फेफड़ों के कैंसर, गर्भाशय ग्रीवा कैंसर और अग्नाशय कैंसर की कीमोथेरेपी (Chemotherapy) में किया जाता है।
७.खून की उल्टी को ठीक करने के लिए, साइकस रेवोलुटा (Cycas revoluta) की नई पत्तियों के रस का उपयोग, किया जाता है।
८. साइकस-गम (Cycas-gum): सांप के काटने पर, यह एक मारक औषधि है, और इसका उपयोग घातक फोड़ों के खिलाफ़ भी किया जाता है।
जिम्नोस्पर्म पौधों के चार समूह निम्नलिखित हैं–
साइकाडोफ़ाइटा (Cycadophyta) -

ये, मुख्यतः उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाए जाने वाले, ताड़ जैसे पौधे हैं। ये पौधे पहली बार, लगभग 320 मिलियन वर्षों पहले, कार्बोनिफ़ेरस युग (Carboniferous period) के दौरान प्रकट हुए थे। मेसोज़ोइक युग (Mesozoic period) के दौरान, इनकी संख्या इतनी अधिक थी कि, इसे अक्सर ही, ‘साइकैड्स और डायनासौर’ का युग कहा जाता है। कई पौधों में, एक अलग तना होता है, और शीर्ष पर, कार्यात्मक पत्तियां होती हैं। इनकी प्रजनन संरचनाएं छोटी पत्तियां होती हैं, जिनमें स्पोरैंजिया (Sporangia) शिथिल रूप से, जुड़ी होती हैं, या पौधे के शीर्ष के पास, शंकु जैसी संरचनाओं में गुच्छित होती हैं। साइकाडोफ़ाइटा की प्रजातियां, डायोशियस (Dioecious) (अलग-अलग पौधों पर, नर और मादा स्पोरैंजीया) या मोनोइशियस (Monoecious) (एक ही पौधे पर, नर और मादा स्पोरैंजीया) होती हैं। हालांकि, ये पौधे अक्सर ही, न्यूरोटॉक्सिन (Neurotoxins) और कार्सिनोजेनिक यौगिकों (Carcinogenic compounds) से ज़हरीले होते हैं।
जिन्कोफ़ाइटा (Ginkgophyta): मेडेनहेयर वृक्ष (Maidenhair tree)
इन जिम्नोस्पर्म की एक प्रजाति – जिन्को बाइलोबा (Ginkgo biloba), या मेडेनफ़र्न का पेड़, अब जंगल में नहीं पाया जाता है, और केवल खेती में ही, देखा जा सकता है। इस पेड़ को, चीन और जापान के मंदिर परिसरों में संरक्षित किया गया था। इस जीनस (Genus) को इसके जीवाश्मों से जाना जाता है, जो लगभग 200 मिलियन वर्ष पुराने हैं, और वर्तमान पेड़ों के समान हैं। इस पेड़ को, पंखे के आकार की पत्तियों और शिराओं के डायोशियस पैटर्न द्वारा, आसानी से पहचाना जा सकता है। अधिकांश जिम्नोस्पर्म प्रजातियों के विपरीत, यह एक पर्णपाती वृक्ष है। मादा पेड़, बहुतायत में ऐसे पेड़ पैदा करते हैं, जिनमें विशेष रूप से अप्रिय गंध होती है। यह पेड़ वायु प्रदूषण के प्रति प्रतिरोधी है, इसलिए आमतौर पर, शहरी पार्कों में इसकी खेती की जाती है। इस प्रजाति का व्यापक रूप से, नृवंशविज्ञान व्यापार में भी, उपयोग किया जाता है।
ग्नेटोफ़ाइटा (Gnetophyta): मॉर्मन चाय(Mormon tea), वेल्वित्चिया(Welwitschia), जेनेटम
वाहिका-धारक जिम्नोस्पर्म है। लेकिन, ज़ाहिर तौर पर, इनकी वाहिकाएं,एंजियोस्पर्म (Angiosperms) के साथ संमिलित होती हैं। एक ही वंश के, इसमें तीन परिवार है। परंतु, इनमें से कोई भी, विस्कॉन्सिन (Wisconsin) में नहीं पाया जाता है।
जेनेटम: यह पेड़ों और चढ़ाई करने वाली लताओं की 30 प्रजातियां है। इनमें मोटी पत्तियां होती हैं, जो द्विबीजपत्री या डाईकोट (Dicot) पौधों से मिलती जुलती होती हैं। इफ़ेड्रा या मॉर्मन चाय, लगभग 35 प्रजातियों के साथ, छोटे पैमाने जैसे पत्तों वाली, प्रचुर शाखाओं वाली झाड़ियां है। वेल्वित्चिया सबसे विचित्र जीवों में से एक है, क्योंकि, ऐसे अधिकांश पौधे दक्षिण-पश्चिमी अफ़्रीका के तटीय रेगिस्तान की रेतीली मिट्टी में, दबे हुए हैं। इसके खुले हिस्से में, एक विशाल लकड़ी की अवतल डिस्क होती है, जो शंकु वाली शाखाओं के साथ, दो पट्टों के आकार की पत्तियां पैदा करती है।
कोनिफ़ेरोफ़ाइटा(Coniferophyta) (कोनिफ़र): पाइंस (Pines), स्प्रूस (Spruces) और फ़रा (Firs)
को लगभग 290 मिलियन वर्ष पूर्व, कार्बोनिफेरस युग के अंतिम चरण से जाना जाता है। अब केवल, बोरियल जंगलों (Boreal forests) में ही प्रमुख हैं, और अक्सर ही, अधिक ऊंचाई पर पाए जाते हैं। लेकिन, एक समूह के रूप में, वे शुष्क वातावरण में भी पाए जा सकते हैं। पाइंस, स्प्रूस और फ़रा का व्यावसायिक महत्व बहुत अधिक है। सबसे ऊंचा (तटीय रेडवुड – Redwood), सबसे विशाल (विशाल सिकोइया – Giant sequoia) और सबसे पुराना (ब्रिसलकोन पाइन – Bristle cone pine) आदि, पौधे इस समूह के सदस्य हैं।
दरअसल, जिम्नोस्पर्म, फूल रहित पौधे होते हैं, जो शंकु और बीज पैदा करते हैं। जिम्नोस्पर्म शब्द का शाब्दिक अर्थ, “नग्न बीज” है। क्योंकि, जिम्नोस्पर्म बीज, अंडाशय के भीतर घिरे नहीं होते हैं। बल्कि, वे पत्ती जैसी संरचनाओं की सतह पर, उजागर रहते हैं, जिन्हें ब्रैक्ट्स (Bracts) कहा जाता है। जिम्नोस्पर्म, उपवर्ग – एम्बियोफ़ाइटा (Embyophyta) के संवहनी पौधे हैं।
एंजियोस्पर्म के विपरीत, जिम्नोस्पर्म, फूल या फल पैदा नहीं करते हैं। माना जाता है कि वे लगभग 245-208 मिलियन वर्ष पहले, ट्राइएसिक काल (Triassic Period) में पहले संवहनी पौधे थे। पूरे पौधे में, पानी पहुंचाने में सक्षम, संवहनी तंत्र के विकास ने, जिम्नोस्पर्म के विकास को सक्षम बनाया। आज, चार मुख्य प्रभागों से संबंधित, जिम्नोस्पर्म की एक हजार से अधिक प्रजातियां हैं।

संदर्भ
https://tinyurl.com/yc7w43xf
https://tinyurl.com/b4hx5msk
https://tinyurl.com/38wr8k2c
https://tinyurl.com/bd24dcp7

चित्र संदर्भ
1. नर शंकु और जिम्नोस्पर्म पत्तियां के माइक्रोस्कोपिक चित्र को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia, flickr)
2. साइकस सर्किनेलिस को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. सेड्रस देवदार को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. साइकाडोफ़ाइटा को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. शरद ऋतु में जिन्को बाइलोबा पेड़ को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. एक कोनिफ़र पौधे को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
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