आइए जानें, निर्मल शहर के लकड़ी के खिलौनों में छिपी कला और कारीगरी की अनोखी पहचान

हथियार व खिलौने
21-10-2024 09:29 AM
Post Viewership from Post Date to 21- Nov-2024 (31st) Day
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
2475 121 2596
आइए जानें, निर्मल शहर के लकड़ी के खिलौनों में छिपी कला और कारीगरी की अनोखी पहचान
बी एन राम एंड कंपनी, पेरिस गिफ़्ट्स कॉर्नर और टॉय रेंटल्स, लखनऊ की कुछ मशहूर खिलौनों की दुकानें हैं। यहाँ आपको नए और पुराने, दोनों तरह के खिलौने मिलते हैं। पुराने समय की बात करें तो, निर्मल खिलौने, भारत के पारंपरिक लकड़ी के खिलौने हैं, जो तेलंगाना राज्य के आदिलाबाद ज़िले के निर्मल शहर में बनाए जाते हैं। यह कला, राजा निम्मनायडू द्वारा 17वीं सदी में शुरू की गई थी, जिन्होंने कारीगरों की मदद की थी। जी आई (GI) टैग से सम्मानित निर्मल कला, 400 साल पुरानी परंपरा पर आधारित है, जिसमें मुलायम लकड़ी के खिलौने और पेंटिंग बनाना शामिल है | ये कला, हस्तशिल्प की दुनिया में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है।
आज हम निर्मल खिलौनों की कला के बारे में विस्तार से जानेंगे। फिर हम देखेंगे कि इन खिलौनों को बनाने के लिए कौन से औज़ारों और सामग्री का इस्तेमाल होता है। इसके बाद, हम इन खिलौनों को बनाने की प्रक्रिया को समझेंगे। अंत में, हम भी जानेंगे कि आखिर क्यों, यह कला खत्म होने की कगार पर है और इसे बचाने के लिए क्या कदम उठाने की ज़रुरत है।
निर्मल खिलौने और शिल्प का परिचय
निर्मल खिलौने और शिल्प, तेलंगाना के आदिलाबाद ज़िले के निर्मल नगर से आने वाले भारतीय लकड़ी के हस्तशिल्प का एक खास उदाहरण हैं। इनका इतिहास, 400 साल से भी पुराना है और ये क्षेत्र की कुशल कारीगरी का प्रतीक हैं। निर्मल खिलौने नरम लकड़ी से बनते हैं और इनकी नाजुक नक्काशी, चमकीले रंग, और बारीक काम के लिए जाने जाते हैं। यह शिल्प, सिर्फ खिलौनों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसमें सुंदर चित्रकारी भी होती है, जो अक्सर पौराणिक और लोककथाओं के दृश्य दिखाती है, जिससे ये सजावटी और सांस्कृतिक महत्व की वस्तुएं बन जाती हैं।
शुरुआत में, निर्मल नगर, खिलौनों के साथ-साथ तोपों जैसी कई वस्तुओं का उत्पादन करने वाला एक प्रमुख केंद्र था, लेकिन इसके खिलौनों और चित्रों की कारीगरी ने इसे विशेष पहचान दिलाई है। आज भी, निर्मल खिलौनों की सुंदरता को बहुत सराहा जाता है। ये खिलौने न केवल बच्चों के लिए खेलने के साधन हैं, बल्कि भारत भर में घरों की शोभा बढ़ाते हैं, खासकर ड्राइंग रूम में। उनके मॉडल डिज़ाइन और रंगों से सजे ये खिलौने, लोगों के बीच सांस्कृतिक संवाद का एक माध्यम बन गए हैं, जिससे इस शिल्प की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत जीवित रहती है।
निर्मल खिलौने बनाने के लिए उपयोग होने वाले औज़ार और कच्चे माल
निर्मल खिलौनों को बनाने के लिए कुछ विशेष औज़ार और अच्छी गुणवत्ता का कच्चा माल चाहिए, जिससे लकड़ी को खूबसूरत खिलौनों में बदला जा सके। यहाँ निर्मल कारीगरों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले मुख्य उपकरण और सामग्री का सरल विवरण है:
औज़ार:
- आरा: इसका इस्तेमाल, लकड़ी को सही आकार में काटने के लिए किया जाता है।
- काटने और तराशने के औज़ार: इनसे लकड़ी को बारीकी से तराशा और आकार दिया जाता है, जिससे खिलौने में जटिल और सुंदर डिज़ाइन बनते हैं।
- लोहे की फ़ाइल: लकड़ी को तराशने के बाद उसकी सतह को चिकना और सुंदर बनाने के लिए।
- भरशा (लकड़ी छीलने का औज़ार): यह औज़ार, लकड़ी का अतिरिक्त हिस्सा हटाकर खिलौने की बुनियादी संरचना को सही आकार देता है।
- रेत कागज़: लकड़ी की सतह को चिकना करने के लिए, ताकि खिलौने पर आसानी से रंग और डिज़ाइन बनाए जा सकें।
- आकार देने वाला औज़ार: ये औज़ार, लकड़ी को विशेष डिज़ाइनों और रूपों में ढालने में मदद करते हैं, जिससे खिलौनों का आकार, कारीगरी के मानकों के अनुसार होता है।
कच्चा माल:
लकड़ी : स्थानीय रूप से उपलब्ध लकड़ी, जो गुणवत्ता और काम करने की क्षमता के लिए चुनी जाती है। यह निर्मल खिलौनों का मुख्य कच्चा माल है।
प्राकृतिक रंग : स्थानीय खनिज और वनस्पति रंग, जो खिलौनों को आकर्षक और जीवंत रंग प्रदान करते हैं।
निर्मल खिलौनों का निर्माण कैसे होता है?
निर्मल खिलौने बनाने में मुख्य रूप से तीन चीज़ें इस्तेमाल होती हैं: लकड़ी, रंग और लाइ (चिपकाने का घोल)। नक्काश कारीगर, स्थानीय रूप से मिलने वाली मुलायम लकड़ी पोनिकी (Poniki) या सफ़ेद सैंडर का उपयोग करते हैं। यह लकड़ी अन्य पेड़ों की लकड़ी की तुलना में हल्की और लचीली होती है, जिससे कारीगर आसानी से कई प्रकार के खिलौने बना सकते हैं।
लकड़ी के टुकड़ों को अलग-अलग आकार और डिज़ाइन में काटा जाता है और फिर उन्हें, खास तरह के गोंद से चिपकाया जाता है। इसके बाद उन्हें चिंता लप्पम नाम के लेप से ढका जाता है, जो लकड़ी के बुरादे और इमली के बीज उबालकर तैयार किया जाता है। फिर इस पर सफ़ेद मिट्टी की परत लगाई जाती है, जिससे खिलौने की सतह पूरी तरह से चिकनी हो जाती है। इसके बाद खिलौनों को सुखाया और रंगा जाता है।
इन खिलौनों को हर्बल रंग से पेंट किया जाता है, जिससे उन पर सुनहरी चमक आ जाती है। खिलौनों पर विशेष तरह के तेल आधारित रंग भी लगाए जाते हैं। डूको (तेज़ी से सूखने वाला रंग) से खिलौनों को चमकदार लुक मिलता है, जबकि कुछ खिलौनों को एनामल रंगों से भी रंगा जाता है, जिससे उन्हें एक अलग तरह की रंगत मिलती है। लाइ, इमली के बीज (चिंथा गिंजल्लु) से बनती है, जिन्हें पानी में भिगोकर नरम किया जाता है और फिर पीसकर लेप तैयार किया जाता है।
जानें कैसे निर्मल खिलौने बनाने की कला संकट का सामना कर रही है?
नक्काशी समुदाय कई मुश्किलों का सामना कर रहा है। इनमें से एक बड़ी समस्या है पोनिकी लकड़ी की कमी। इसके साथ ही, युवा पीढ़ी इस कला को सीखने और इसे अपने जीवन का हिस्सा बनाने में ज़्यादा रुचि नहीं दिखा रही है। राज्य सरकार भी इस लकड़ी की पर्याप्त सप्लाई करने में असमर्थ है।
नक्काशी परिवारों ने, 1950 के दशक ,में निर्मल शहर में इस कला की शुरुआत की थी और 1985 में उन्होंने एक सहकारी समाज बनाया ताकि इस कला को बढ़ावा मिल सके।
हालांकि निर्मल खिलौनों और पेंटिंग्स की मांग बहुत ज्यादा है, लेकिन अब केवल 30 कारीगर ही इस कला में काम कर रहे हैं, जिससे यह मांग पूरी नहीं हो पा रही है।
कारीगरों को पैकेजिंग का अनुभव नहीं है, इसलिए वे अपने खिलौने, अमेज़न (Amazon) जैसी ऑनलाइन साइटों पर बेचने में कठिनाई महसूस करते हैं। सामान को पैक करने में परेशानी होती है और इससे सामान खराब होने का खतरा रहता है। इसके अलावा, पैकेजिंग और मार्केटिंग की लागत बढ़ने से सामान की कीमत भी ज़्यादा हो जाती है।
कुछ कोशिशें ऑनलाइन बेचने की की गई हैं, लेकिन वो ज्यादा सफल नहीं हो पाईं। युवा पीढ़ी इस कला की ओर ध्यान नहीं दे रही, खासकर जब उन्हें सॉफ्टवेयर इंजीनियर बनकर 50,000 रुपये तक कमाने का मौका मिल रहा है।
निर्मल कला को बचाने के लिए क्या कदम उठाए जाने की आवश्यकता है?
निर्मल खिलौने बनाने की कला को बचाने के लिए, कई कदम उठाने की ज़रुरत है। सबसे पहले, राज्य सरकार को निर्मल खिलौनों को 100 प्रतिशत सब्सिडी देनी चाहिए और इन्हें सीधे कारीगरों से खरीदना चाहिए। इसके साथ ही, तेलंगाना राज्य हस्तशिल्प विकास निगम को, नक्काशी कला को बचाने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए।
युवाओं को इस कला में दिलचस्पी बढ़ाने के लिए कार्यशालाएं और ट्रेनिंग प्रोग्राम आयोजित करने चाहिए। कारीगरों को पैकेजिंग और मार्केटिंग में मदद करनी चाहिए, ताकि वे अपने खिलौनों को ऑनलाइन और ऑफ़लाइन, बेहतर तरीके से बेचने का अवसर दिया जाना चाहिए। निर्मल खिलौनों और नक्काशी कला के उत्पादों का प्रदर्शन करने के लिए, मेले और प्रदर्शनी आयोजित करना भी महत्वपूर्ण है।
इसके साथ ही, स्थानीय लोगों को इन खिलौनों के बारे में बताना और अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में इन्हें प्रमोट करना भी ज़रूरी है। इन सभी कोशिशों से, खिलौनों की इस कला को संकट से उभारा जा सकता है और इसे फिर से नया जीवन प्रदान किया जा सकता है।

संदर्भ
https://tinyurl.com/rpnkhttk
https://tinyurl.com/328nbbhw
https://tinyurl.com/4m4bnpm4
https://tinyurl.com/45bjtuw5

चित्र संदर्भ
1. तेलंगाना के निर्मल शहर में लकड़ी के खिलौनों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. निर्मल शहर में निर्मित, गणेश जी की लकड़ी की प्रतिमाओं को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. अधूरे बने निर्मल शहर के खिलौनों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. एक दुकान में रखे निर्मल खिलौनों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. निर्मल शहर में निर्मित, लड़की से बने मोर के जोड़े को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
पिछला / Previous अगला / Next

Definitions of the Post Viewership Metrics

A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.

B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.

C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.

D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.