परंपरा और आधुनिकता का मिश्रण देखने को मिलता है, अक्षरधाम मंदिर की वास्तुकला शैली में

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परंपरा और आधुनिकता का मिश्रण देखने को मिलता है, अक्षरधाम मंदिर की वास्तुकला शैली में
भारत, विविध संस्कृतियों और धर्मों की भूमि है, और इसके सबसे महत्वपूर्ण सांस्कृतिक पहलुओं में से एक इसकी मंदिर वास्तुकला है। यहां के मंदिरों की भव्य संरचनाओं ने, देश के इतिहास और संस्कृति को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारत के दक्षिणी राज्यों में बने मंदिरों के विशाल गोपुरम से लेकर उत्तर भारत के मंदिरों की जटिल नक्काशी तक, भारत में मंदिर वास्तुकला की सुंदरता वास्तव में विस्मयकारी है। इन मंदिरों के डिज़ाइन, विभिन्न स्थापत्य शैलियों के मिश्रण का प्रतिनिधित्व करती हैं। मंदिरों की संरचना में उपयोग की जाने वाली स्थानीय सामग्रियों का उपयोग, जैसे कहीं पत्थर तो कहीं लकड़ी, क्षेत्र के प्राकृतिक वातावरण के साथ, प्रामाणिकता और संबंध जोड़ते हैं । भारतीय मंदिर वास्तुकला शैलियाँ, दुनिया भर के भक्तों और पर्यटकों को आकर्षित करती हैं और भारत की समृद्ध ऐतिहासिक, स्थापत्य और धार्मिक परंपराओं की झलक पेश करती हैं। तो आइए, आज इस लेख में हम मंदिर वास्तुकला के महत्व के बारे में विस्तार से चर्चा करते हैं और इसके साथ ही यह भी जानते हैं कि अधिकांश हिंदू मंदिर, वर्गाकार क्यों होते हैं। इसके साथ ही, हम नई दिल्ली के अक्षरधाम मंदिर के उदाहरण के माध्यम से भारत में मंदिर वास्तुकला में परंपरा और आधुनिकता के मिश्रण को समझने की कोशिश करेंगे | इसके बाद हम, राजस्थान के बाड़मेर में स्थित एक आधुनिक मंदिर, जिसे 'पत्थर और प्रकाश में मंदिर' (Temple in Stone and Light) कहा जाता है, के बारे में जानेंगे। अंत में हम, भारत के कुछ बेहतरीन आधुनिक मंदिरों के दर्शन करेंगे।
मंदिर वास्तुकला का महत्व: ऐतिहासिक रूप से, भारत में मंदिर, पूजा, आध्यात्मिक अभ्यास और सामुदायिक समारोहों के केंद्र के रूप में कार्य करते थे। प्रारंभ में, उन्हें सरल संरचनाओं के रूप में बनाया जाता था और बाद में उन्हें अधिक विस्तृत और जटिल वास्तुशिल्प चमत्कारों के रूप में विकसित किया जाने लगा। इन मंदिरों को उनका निर्माण कराने वाले राजाओं, शासकों और धनी व्यक्तियों द्वारा संरक्षण दिया जाता था। इसी कारण से, प्राचीन भारत के मंदिरों के डिज़ाइन पर क्षेत्रीय और राजवंशीय शैलियों का प्रभाव देखा जा सकता है। भारत में हिंदू मंदिर, वास्तुकला अपने गहन प्रतीकवाद, जटिल विवरण और आध्यात्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध हैं ।
भारतीय मंदिरों में पाए जाने वाले सामान्य घटकों में शामिल हैं:
•● गर्भगृह: गर्भगृह उस पवित्र स्थान का प्रतिनिधित्व करता है जहां मंदिर के पूजनीय देवता अथवा देवी का निवास होता है।
•● विमान: ऊंचा विमान या शिखर, जो भगवान के दिव्य निवास का प्रतीक है।
•● मंडप: मंडप, अनुष्ठानों और समारोहों के लिए एक सभा कक्ष के रूप में कार्य करता है।
•● गोपुरम: गोपुरम, विस्तृत मूर्तियों के साथ प्रवेश द्वार को चिह्नित करते हैं।
प्राचीन मंदिरों में देवताओं की मूर्तियों और चित्रों को खूबसूरती से तैयार किया जाता है जिनकी पूजा अत्यंत भव्य तरीके से की जाती है। कुछ मंदिरों में विवाह समारोहों के लिए एक अलग कल्याण मंडप भी होता है। साथ में, ये तत्व आध्यात्मिक रूप से महत्वपूर्ण और विस्मयकारी माहौल बनाते हैं, जो भारतीय मंदिर वास्तुकला के सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व को दर्शाते हैं। मंदिर वास्तुकला का महत्व निम्न प्रकार समझा जा सकता है:
देवताओं का प्रतिनिधित्व: भारत में विभिन्न मंदिर, विभिन्न देवताओं के सम्मान और पूजा के लिए बनाए जाते हैं और उन्हें मूर्तियों, चित्रों और अन्य कला रूपों के माध्यम से दर्शाया जाता है।
पवित्र स्थान: मंदिर, वे पवित्र स्थान हैं जहां भक्त प्रार्थना, ध्यान और पूजा के अन्य रूपों के माध्यम से परमात्मा से जुड़ सकते हैं। इन्हें ऐसे स्थानों के रूप में डिज़ाइन किया गया है जहां आध्यात्मिक और भौतिक दुनियाएं मिलती हैं, और जहां एक व्यक्ति शांति और उत्कृष्टता का अनुभव कर सकता है। मंदिरों का स्थान, मानव, प्रकृति और परमात्मा के बीच सामंजस्यपूर्ण संबंध को दर्शाता है।
वास्तुकला और डिज़ाइन: भारत में मंदिरों को प्राचीन वैदिक आदर्शों के अनुसार डिज़ाइन और निर्मित किया गया है जो सद्भाव, समरूपता और संतुलन पर ज़ोर देते हैं। मंदिर अक्सर सटीक मानकों द्वारा बनाए जाते हैं, जैसे कि वास्तु शास्त्र, जो मंदिर निर्माण के सिद्धांतों, जैसे मंदिर अभिविन्यास, देवता स्थान और पवित्र ज्यामिति के उपयोग का वर्णन करता है।
प्रतीकवाद और अनुष्ठान: मंदिरों का डिज़ाइन, अक्सर प्रतीकवाद, ब्रह्मांडीय व्यवस्था, दिव्य पदानुक्रम और आत्मा की यात्रा का प्रतिनिधित्व करता है। विभिन्न वास्तुशिल्प तत्व, जैसे कि गर्भगृह, मंडप, गोपुरम, और विमान आदि प्रतीकात्मक अर्थ रखते हैं और धार्मिक अनुष्ठानों और समारोहों के लिए आवश्यक होते हैं।
सामुदायिक सभा स्थल: मंदिर, सामुदायिक सभा स्थल के रूप में भी काम करते हैं, जहां लोग त्यौहार मनाने, धर्मार्थ कार्य करने और अन्य सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों में शामिल होने के लिए एक साथ आते हैं। ये ज़रूरतमंदों को भोजन कराना, शिक्षा प्रदान करना, विकलांग और बीमारी से पीड़ित लोगों का समर्थन करने जैसी सामाजिक कल्याण गतिविधियों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
अधिकांश हिंदू मंदिर आमतौर पर वर्गाकार क्यों होते हैं?
मंदिरों की योजना वास्तु-पुरुष-मंडल के अनुसार बनाई जाती है, जो मंदिर को संचालित करने वाली अंतर्निहित दार्शनिक प्रेरणाओं को इंगित करती है। वास्तु का शाब्दिक अर्थ है 'अस्तित्व'; और इसका आकार ब्रह्माण्ड विज्ञान की दृष्टि से वर्गाकार माना जाता है। यही कारण है कि मंदिरों में आम तौर पर एक वर्ग-योजना अर्थात मंडल योजना होती है। जैसा कि ब्रह्मांड को एक मंदिर की संरचना में फिर से कल्पना करने की कोशिश की जाती है, और चूंकि मायामतम और विष्णुधर्मोत्तर पुराण जैसे ग्रंथों में बताया गया है कि ब्रह्मांडीय पुरुष की छवि नियोजित स्थल के समान होनी चाहिए। पुरुष अभिव्यक्ति की समग्रता के बराबर है, और वास्तु पुरुष मंडल को इस प्रकार मंदिर की एक आध्यात्मिक योजना के रूप में देखा जा सकता है।
अक्षरधाम मंदिर: परंपरा और आधुनिकता का मिश्रण: हमारे देश में कई प्राचीन और मध्यकालीन मंदिर हैं जहां सदियों से पूजा की जाती है। हम्पी में विरुपाक्ष मंदिर और तिरुवनंतपुरम में पद्मनाभस्वामी मंदिर में कम से कम तीन सौ वर्षों से पूजा की जा रही है। इसके साथ ही, भारत में कुछ मंदिर ऐसे भी हैं जिनका निर्माण, स्वतंत्रता के बाद अथवा केवल कुछ वर्ष पूर्व ही हुआ है, फिर भी ये मंदिर अपनी भव्यता और वास्तुकला के लिए संपूर्ण विश्व में जाने जाते हैं। आधुनिक भारत में, नई दिल्ली के स्वामीनारायण अक्षरधाम मंदिर को देश की सबसे महत्वाकांक्षी मंदिर-निर्माण परियोजना कहा जा सकता है। यह विशाल परिसर, वास्तव में देश की विरासत में एक अद्वितीय तत्व जोड़ता है। अक्षरधाम मंदिर का निर्माण, पहले 1992 में गांधीनगर में बीएपीएस नामक एक संगठन द्वारा किया गया था, और इसकी लोकप्रियता ने इस समूह को 2001 में राष्ट्रीय राजधानी में अपनी दूसरी बड़ी परियोजना को और अधिक महत्वाकांक्षी पैमाने पर शुरू करने के लिए प्रेरित किया। इस मंदिर की निर्माण प्रक्रिया को वैदिक अनुष्ठानों के साथ शुरू किया गया। मंदिर को पवित्र करने के लिए पंचरात्र शास्त्र के आठ विद्वानों को बुलाया गया था। श्रमिकों को भी समाज के विभिन्न वर्गों से लिया गया था, और उनमें प्रमुख रूप से स्थानीय किसान और आदिवासी महिलाएँ शामिल थीं। इस प्रकार, इस मंदिर का निर्माण करते समय विहित निषेधाज्ञा का पालन किया गया और इससे सामाजिक एकीकरण में भी मदद मिली। यह मंदिर 100 एकड़ भूमि में फैला हुआ है। इसका केंद्रीय स्मारक पानी के एक तालाब में स्थापित है, जो नक्काशीदार पत्थर के स्तंभों से घिरा हुआ है। यह स्मारक, पश्चिमी भारत के मध्यकालीन मंदिरों की तर्ज़ पर बनाया गया प्रतीत होता है, जिसका निर्माण पूरी तरह से गुलाबी बलुआ पत्थर का उपयोग करके किया गया है। वास्तव में, यह परिसर केवल एक मंदिर नहीं है; यह एक संग्रहालय भी है और इसमें एक थीम पार्क भी है। ऑडियो शो और कंप्यूटर-नियंत्रित फव्वारे बताते हैं कि भक्ति कैसे प्रौद्योगिकी के साथ जटिल रूप से जुड़ी हुई है। इसमें भारत उपवन नामक एक पार्क है जिसमें योद्धाओं, स्वतंत्रता सेनानियों और भारत की सांस्कृतिक विरासत से जुड़ी कई अन्य पौराणिक हस्तियों की कांस्य छवियां शामिल हैं।
इसके गुंबद शोर मंदिर, महाबलीपुरम में गुंबदों से मिलते जुलते हैं। चबूतरे के सबसे निचले स्तर पर, हाथियों की कतार, कैलाशनाथ मंदिर में हाथियों की कतार के समान है। दरअसल, इस परिसर में जैन मंदिर वास्तुकला का प्रभाव भी देखा जा सकता है। केंद्रीय स्मारक के अंदर पत्थर की नक्काशी दिलवाड़ा और रणकपुर के जैन मंदिरों के समान है। इसके निर्माण कार्य के लिए, पत्थर का उपयोग किया गया है, जिसमें सीमेंट या स्टील का कोई अंश नहीं है, जो एक बार फिर अतीत की मंदिर निर्माण परंपराओं की याद दिलाता है। केंद्रीय परिसर में, भगवान स्वामीनारायण के जीवन के साथ-साथ अन्य प्रमुख हिंदू संतों के जीवन से जुड़ी एक प्रदर्शनी भी है। परिसर में शिव-पार्वती, राधा-कृष्ण, सीता-राम और लक्ष्मी-नारायण सहित हिंदू देवी देवताओं की एक आश्चर्यजनक श्रृंखला शामिल है। इस भव्य परिसर में प्राचीनता और आधुनिकता का मिश्रण स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
पत्थर और रोशनी वाला मंदिर: आधुनिक मंदिर का एक प्रमुख उदाहरण:
राजस्थान में, पीले बलुआ पत्थर से निर्मित, इस मंदिर को दिन के दौरान प्रकाश को अंदर और रात में बाहर जाने के लिए डिज़ाइन किया गया है। इसका मुख्य आकर्षण, इसका शिखर है, जो ठोस पत्थर की चिनाई वाली दीवारों द्वारा समर्थित है। शिखर का निर्माण, अलग-अलग पत्थर की पट्टियों से किया गया है, जैसे-जैसे वे ऊंचे उठते जाते हैं, एक-दूसरे से दूर हटते जाते हैं। समकालीन संदर्भ में, पारंपरिक मंदिर वास्तुकला की पुनर्व्याख्या करने वाले एक रूप में, पत्थर और प्रकाश में मंदिर, एक मील का पत्थर और एक प्रकाशस्तंभ बन गया है।
भारत के सांस्कृतिक वास्तुकला को परिभाषित करने वाले आधुनिक मंदिर:
सीढ़ियों का मंदिर (बालाजी मंदिर), नंद्याल: आंध्र प्रदेश में नंद्याल के शुष्क क्षेत्र के बीच स्थित, सीढ़ियों का मंदिर या बालाजी मंदिर उतना ही पानी की पवित्रता के बारे में है जितना कि पूजा के कार्य के बारे में। जे एस डब्ल्यू सीमेंट की अनुश्री जिंदल द्वारा निर्मित यह मंदिर, 2.5 एकड़ भूमि में स्थापित है। कपास और मिर्च के खेतों से घिरे, इस मंदिर को कुंड (जल निकाय) के आसपास डिज़ाइन किया गया है, जिसके किनारों को आध्यात्मिक-साधकों के लिए एक सभा स्थल के रूप में और एक भूजल के स्रोत के रूप में बनाया गया है, जो आसपास की कृषि भूमि का भरण-पोषण करता है।
तेजोरलिंग रेडियंस मंदिर, पुणे: चीकू के बाग में स्थित, तेजोरलिंग रेडियंस टेम्पल, एक असामान्य इमारत है जो अपनी साधारण वास्तुकला के माध्यम से अपने क्षेत्र की सामाजिक-ऐतिहासिक विरासत में समकालीन तत्वों को शामिल करने के तरीके खोजती है। इस मंदिर का डिज़ाइन इसके ईष्ट देव भगवान शिव और शुद्ध चेतना के अवतार के रूप में भारतीय देवालय में उनकी प्रतिष्ठा का प्रतीक है। जैसे ही आप मंदिर के चारों ओर घूमते हैं, इसका वर्गाकार आधार तेज़ी से एक उभरते हुए त्रिकोण में बदल जाता है, जिसका पिरामिड आकार, वास्तुकला को एक गीतात्मक गति प्रदान करता है। भारत के कई मंदिरों की तरह, तेजोरलिंग रेडियंस मंदिर में भी एक गर्भगृह और पेड़ की छतरियों से बना एक प्राकृतिक मंडप है। हालाँकि, जो बात चौंकाने वाली है, वह यह है कि गोपुरा या शिखर का आकार, पिरामिडनुमा है और यहाँ उन्हें और भी सरल बनाया गया है।
शिव मंदिर, वडेश्वर: इस अद्वितीय शिव मंदिर को बनाने के लिए, बसौल्ट पत्थर का प्रयोग किया गया है, जो मंदिर के आसपास ही आसानी से उपलब्ध है। पारंपरिक मंदिर वास्तुकला के सिद्धांतों का पालन करते हुए, इस मंदिर की डिज़ाइन शिखर मंदिर के छायाचित्र की याद दिलाता है। यह स्थल, घने पेड़ों से घिरा हुआ है और इसमें एक बाहरी पारंपरिक मंडप (स्तंभित हॉल) भी है। इस मंदिर का शीर्ष, जिसे 'कलश' कहा जाता है, आठ विशेष धातु मिश्रणों से बना है और एक विशेष फ्रेम पर स्थित है, जो मंदिर के सबसे पवित्र भाग, गर्भगृह में सूर्य की रोशनी प्रवाहित करता है। परिसर के द्वार पर भगवान शिव की पवित्र सवारी नंदी की मूर्ति विराजमान है।
बहाई उपासना गृह (लोटस टेम्पल), नई दिल्ली: आधुनिकतावादी बहाई उपासना गृह को आधे खुले कमल के आकार में डिज़ाइन किया गया है - एक फूल जो भारतीय संस्कृति में पवित्रता और आध्यात्मिकता का प्रतीक है। इटली में तराशी गई 10,000 वर्ग मीटर की ग्रीक संगमरमर की ये आश्चर्यजनक रचना, आंतरिक और बाहरी आवरणों को सुशोभित करती है। इस अधिरचना के आसपास, नौ कुंडों और नलिकाओं के कारण, इसका आंतरिक स्थान, दिल्ली की गर्मी में भी भक्तों को राहत प्रदान करता है।

संदर्भ
https://tinyurl.com/zsdhcajs
https://tinyurl.com/yc65jd7v
https://tinyurl.com/47mm59r2
https://tinyurl.com/4bzwb63a

चित्र संदर्भ
1. अक्षरधाम मंदिर रॉबिन्सविले, न्यू जर्सी, यू एस ए के परिसर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. महाराष्ट्र में सिन्नर शहर के गोंडेश्वर मंदिर की प्रारूप योजना को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. कर्नाटक में स्थित चेन्नाकेशव मंदिर की प्रारूप योजना को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. नई दिल्ली के अक्षरधाम मंदिर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. अक्षरधाम मंदिर के केंद्रीय गुंबद को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. बहाई उपासना गृह (लोटस टेम्पल) को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
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