लखनऊ विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने यूपी में खोजी है तितलियों की रंगीन दुनिया!

तितलियाँ व कीड़े
23-09-2024 09:14 AM
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लखनऊ विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने यूपी में खोजी है तितलियों की रंगीन दुनिया!
अगर आप एक छोटे बच्चे से उसके पसंदीदा कीड़े के बारे में पूंछे तो संभव है कि वह बिना कोई देरी किए "तितली" बोल दे। हालांकि तितलियों को पक्षियों में नहीं गिना जाता लेकिन सुंदरता और आकर्षण के मामले में ये दुनिया के अतिसुंदर पक्षियों को भी पीछे छोड़ सकती हैं। लेकिन तितलियों की विशेषता केवल उनकी दृश्य सुंदरता तक ही सीमित नहीं है। वास्तव में ये नन्हें कीट, हमारे पारिस्थितिकी तंत्र में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। आज के इस लेख में, हम तितलियों की उपयोगिता और उन पर आन पड़े गंभीर संकट के बारे में जानेंगे। लेकिन सबसे पहले हम हिंदी भाषा में हो रहे तितलियों के नामकरण की शानदार पहल के बारे में जानेंगे।
उत्तर प्रदेश में 200 से अधिक प्रजाति की तितलियाँ पाई जाती हैं। लेकिन, इन सभी तितलियों को इनके नाम अंग्रेज़ों ने दिए थे। यह नाम भारत के दूसरे हिस्सों में पाई जाने वाली तितलियों के नाम से मिलते-जुलते हैं। लेकिन राष्ट्रीय तितली नामकरण सभा द्वारा पहली बार इन तितलियों का हिंदी में नामकरण किया जा रहा है। यह बदलाव गहन शोध के बाद किया गया है।
नामकरण प्रक्रिया के तहत, इस टीम ने तितलियों के लिए हिंदी में नाम खोजने में छह महीने बिताए। इसके लिए उन्होंने तितलियों के अंग्रेज़ी और वैज्ञानिक दोनों नामों को तलाशा। साथ ही उन्होंने आम भारतीय तितलियों की शारीरिक विशेषताओं, व्यवहार और वितरण पर भी विचार किया। इस टीम ने तितलियों को ऐसे नाम देने की कोशिश की जो बोलने और याद रखने में आसान हों। इससे लोगों को इन खूबसूरत जीवों से जुड़ने में मदद मिलती है। अंग्रेज़ी नामों के अनुवाद से बचने की कोशिश की गई।
तितलियों को नाम देने के लिए विशेषज्ञों ने प्रत्येक प्रजाति की शारीरिक विशेषताओं पर ध्यान केंद्रित किया। इसके तहत उन्होंने यह भी देखा कि तितलियाँ कैसे उड़ती हैं और उनका व्यवहार कैसा है। इसके अलावा, कैटरपिलर (Caterpillar) के रूप में ये कीट जिन पौधों को खाते हैं, उन पर भी विचार किया गया। इतना ही नहीं भारत की समृद्ध साहित्यिक विरासत से जुड़े सांस्कृतिक और पौराणिक संदर्भ भी तलाशे गए।
उदाहरण के तौर पर बर्डविंग (Birdwings) को हिंदी में ‘जटायु’ कहा जाता है। यह नाम इन्हें इनके बड़े आकार के कारण मिला है, जो रामायण के गिद्धराज जटायु के समान है। बर्डविंग भारत में देखी जाने वाली सबसे भारी तितलियाँ होती हैं। एक अन्य उदाहरण के रूप में कोलाडेनिया पाइड फ़्लैट्स (Coladenia Pied Flats) का हिंदी नाम, परभासी प्रताल होता है। यहाँ, "परभासी" (Translucent) का अर्थ अर्ध-पारदर्शी होता है। यह नाम उनके पंखों पर बड़े अर्ध-पारदर्शी धब्बों का वर्णन करता है। इसके अलावा, ब्लूबॉटल (Bluebottle) और जे (Jay) को ‘तिकोनी’ (Tikoni) नाम दिया गया है। यह नाम, उनके त्रिकोणीय पंख के आकार को दर्शाता है। वहीँ पर स्पॉट स्वॉर्डटेल (Spot Swordtail) को हिंदी में चित्तीदार शमशीर कहा जाता है। कॉमन जे (Common Jay) को चित्तीदार तिकोनी भी कहा जा सकता है, जबकि ब्राउन आउल (Brown Owl) को भूरी सुवा कहा जाता है। इस तरह के दिलचस्प नाम, इन तितलियों की सुंदरता के साथ-साथ हमारी पारिस्थितिकी में इनके महत्व को भी उजागर करते हैं।
इसीलिए लेख में आगे बढ़ते हुए हम हमारी पृथ्वी में तितलियों की भूमिका और इनके महत्व को बिंदुवार रूप से समझने का प्रयास करेंगे:
तितलियाँ बहुमूल्य परागणकर्ता होती हैं।:
ये सुंदर कीट, पौधों की वृद्धि एवं उनके बीजों को फ़ैलाने में बहुत बड़ा योगदान देती हैं। तितलियाँ फूलों के अंदर पाए जाने वाले रस को खाती हैं। ऐसा करते समय इन फूलों का पराग भी इन तितलियों से चिपक जाता है। उनकी उड़ान के साथ ही पराग एक फूल से दूसरे फूल में फैल जाता है।
तितलियाँ पारिस्थितिकी तंत्र की सेहत को दर्शाती हैं।: पारिस्थितिकी तंत्र को संतुलित और स्वस्थ रखने के लिए, हर जानवर, कीट और पौधे की आवश्यकता होती है। तितलियों की आबादी का अध्ययन करके, वैज्ञानिक यह आंकलन कर सकते हैं कि पारिस्थितिकी तंत्र स्थिर है या नहीं। तितलियाँ, अपने विभिन्न जीवन चरणों में, कई जानवरों का चारा भी बनती हैं। कई पक्षी, छोटे स्तनधारी और अन्य कीट, अपने भरण-पोषण के लिए इन्हीं पर निर्भर होते हैं।
तितलियां वैज्ञानिक शोध के लिए महत्वपूर्ण होती हैं।: अपने जटिल जीवन चक्र और प्रकृति पर इनके प्रभावों के कारण तितलियों को विशेष कीट का दर्जा हासिल है। यही विशेषता, उन्हें वैज्ञानिक अध्ययनों के लिए एक आदर्श जीव बना देती है। उदाहरण के लिए, मोनार्क तितलियाँ (Monarch Butterflies) अपने लार्वा के खाने के लिए, मिल्कवीड (Milkweed) जैसे विशिष्ट पौधों को चुनती हैं। वे इन पौंधों की विषैली पत्तियों पर अपने अंडे देती हैं, ताकि नन्हें कैटरपिलर इनसे बाहर निकलकर इन्हें खा सकें। उनका यह व्यवहार दिखाता है कि कुछ पौधे दवा के रूप में काम कर सकते हैं। वैज्ञानिक यह अध्ययन भी कर रहे हैं कि मिल्कवीड जैसे एंटी-पैरासिटिक (Anti-parasitic) गुणों वाले पौधे मनुष्यों को कैसे लाभ पहुँचा सकते हैं।
तितलियाँ शैक्षिक लाभ प्रदान करती हैं।: अक्सर स्कूलों में मधुमक्खियों के साथ-साथ, तितलियों के बारे में भी पढ़ाया जाता है। छोटे से लार्वा से एक सुंदर तितली में परिवर्तित हो जाना, छोटे बच्चों के लिए प्रकृति के किसी जादू से कम नहीं है। यह प्रक्रिया, बच्चों में जीव विज्ञान के प्रति रूचि पैदा कर सकती है।
तितलियाँ पर्यटन को बढ़ावा देती हैं।: सैकड़ों वर्षों से, लोग लिखित रूपों में या संगीत आदि के माध्यम से तितलियों की प्रशंसा करते आ रहे हैं। बड़े-बड़े संग्रहालयों में उनके उदाहरण प्रदर्शित किए जाते हैं। हाल के वर्षों में, तितली से जुड़े पर्यटन उद्योग में भारी वृद्धि देखी गई है। हमारे लखनऊ सहित पूरे उत्तर प्रदेश में तितली पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं।
लेकिन दुखद रूप से तितलियाँ, धीरे-धीरे हमारे पर्यावरण से गायब हो रही हैं। जल्द ही, वे केवल हमारी बचपन की यादों में ही रह जाएँगी। हालाँकि, इस संदर्भ में अच्छी खबर आई है।
दरअसल एक अध्ययन के बाद उत्तर प्रदेश में 85 प्रकार की तितलियाँ दर्ज की गई हैं। "यूपी की तितलियों" पर, इस सहयोगात्मक अध्ययन को लखनऊ विश्वविद्यालय द्वारा किया गया था। यह खोज तितलियों के सुरक्षित भविष्य के प्रति हमारी उम्मीद को मज़बूत करती है।
शोध के दौरान, कुछ दुर्लभ तितलियाँ भी पाई गईं। इनमें जोकर (Joker) (बिब्लिया इलिथिया (Biblia ilithia)), रस्टिक (Rustic) ( कूफ़ा एरिमैनथिस (Kupha erimanthis), इंडियन ट्रॉपिकल फ्रिटिलरी (Indian Tropical Fritillary)), (अर्गिनमिस हाइपरबियस (Argynnis hyperbius) स्मॉल सैल्मन अरब (Small Salmon Arab) और (कैलोटिस अमाटा (Calotes amata) शामिल हैं। उत्तर प्रदेश में इन तितलियों की मौजूदगी से उम्मीद जगी है कि राज्य में अभी भी तितलियों की सभी प्रजातियाँ खत्म नहीं हुई हैं।
इस शोध को यूपी जैव विविधता बोर्ड (UP Biodiversity Board) द्वारा भी समर्थन प्राप्त था। इसमें दुर्लभ, कभी-कभार, प्रचुर मात्रा में और आम तितलियों को ठीक से सूचीबद्ध किया गया था। इस अध्ययन ने इन सुंदर पंखों वाले कीटों से जुड़ा महत्वपूर्ण आधारभूत डेटा हमें प्रदान किया है।
शोध के बाद यह बात सामने आई कि तितलियों की वापसी में मदद करने के लिए, पौधे लगाए जा सकते हैं। ये पौधे तितलियों के अंडों और उनके भोजन के लिए आदर्श होते हैं। इस तरह के कुछ पौधों में कॉमन मिल्कवीड (Common Milkweed) (एस्क्लेपियस सिरियाका (Asclepias syriaca), बटरफ़्लाई मिल्कवीड (Butterfly Milkweed) (एस्क्लेपियस ट्यूबरोसा (Asclepias tuberosa), राममुनिया वीड (Rammunia Weed) (लैंटाना कैमरा (Lantana camara), गुरहल (Gurhal) (हिबिस्कस साइनेंसिस (Hibiscus rosa-sinensis), मैरीगोल्ड (Marigold) (टैगेट्स (Tagetes), मदार (Madara) (कैलोट्रोपिस निलोलिका (Calotropis nilotica), जंगली बबूल (Wild Acacia) (अकेसिया गिगेंटियन (Acacia gigantia), एस्टर (Aster) और (एस्टर एस पी पी (Aster spp.) शामिल हैं।
आइए अब आपको भारत की कुछ सबसे खूबसूरत तितलियों के दर्शन कराते हैं:
- अंडमान कौवा (यूप्लोया एंडमैनेंसिस (Yphloya andamanensis):
यह तितली केवल भारत के अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में पाई जाती है। इसका आकार और रंग अंडमान द्वीप समूह के भीतर ही, स्थान के आधार पर बदलता रहता है।
- ट्री निम्फ़ बटरफ्लाई (Tree Nymph Butterfly) (आइडिया मालाबारिका (Idea malabarica): यह तितली दक्षिणी भारत में, विशेष रूप से पश्चिमी घाट में पाई जाती है। यह भारत में पाई जाने वाली तितलियों की सबसे बड़ी प्रजातियों में से एक है। इनके पंखों का फैलाव 160 सेमी तक हो सकता है। इसे इसके शरीर पर काले धब्बों से आसानी से पहचाना जा सकता है।
- तमिल लेसविंग (Tamil Lacewing) (सेथोसिया नीटनेरी (Sethosia nietneri): इस तितली को भारत में केवल पश्चिमी घाट पर्वत श्रृंखला के कुछ हिस्सों में देखा जा सकता है। पश्चिमी घाट में 332 तितली प्रजातियों में से 36 प्रजातियाँ, इस क्षेत्र के अलावा दुनिया में कहीं और नहीं पाई जाती हैं।
- भारत की सम्राट तितली (कैसर-ए-हिंद) (Emperor Butterfly) (टीनोपालपस इम्पीरियलिस (Tinopeplus imperialis):
यह सुंदर तितली, पश्चिम बंगाल, मेघालय, असम, सिक्किम और मणिपुर सहित पूर्वी हिमालय में पाई जाती है। इसकी उड़ान बहुत तेज़ होती है। यह आमतौर पर पेड़ की चोटी पर उड़ती है। लेकिन सुबह की तेज़ धूप होने पर यह कम ऊंचाई वाली वनस्पति पर उतर आती है।
- ग्रेट विंडमिल स्वॉलोटेल तितली (Great Windmill Swallowtail Butterfly) (ब्यासा दसरदा (Byasa dasarada): यह तितली, उत्तरी और पूर्वोत्तर भारत में पाई जाती है। इसकी लहरदार पूंछ के पंखों पर चटकीले लाल और सफ़ेद धब्बे होते हैं। इसका प्यूपा (Pupa), या क्रिसलिस (Chrysalis), नीले रंग की पट्टियों के साथ पीले-हरे रंग का होता है। दिलचस्प बात यह है कि छूने पर प्यूपा चीख़ने जैसी आवाज़ करता है। कुल मिलाकर, इन तितलियों की सुरक्षा और संरक्षण न केवल हमारे पारिस्थितिकी तंत्र के लिए आवश्यक है, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक धरोहर और प्राकृतिक सौंदर्य को भी बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

संदर्भ
https://tinyurl.com/26k8pfqg
https://tinyurl.com/22q4xl4r
https://tinyurl.com/yv2er2z3
https://tinyurl.com/2dgve4fb

चित्र संदर्भ
1. सुंदर गुलाबी फूलों पर बैठी तितली को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
2. लाल फूलों के आसपास मंडराती हुई तितली को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
3. झाड़ियों में बैठी सुंदर नीली-काली तितली को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
4. छोटे-छोटे फूलों पर बैठी सुंदर किंतु कटे हुए पंखों वाली तितली को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
5. पत्ते पर बैठी भूरी तितली को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
6. भारत की सम्राट तितली (Indian Purple Emperor Butterfly) को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
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