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हमारा शहर लखनऊ, अपने प्रतिष्ठित शीरमाल व्यंजन के लिए प्रसिद्ध है। इस स्वादिष्ट मीठे ब्रेड का आनंद, आम तौर पर निहारी या सालन जैसे व्यंजनों के साथ लिया जाता है। लेकिन, अगर इस ब्रेड को रात भर नम वातावरण में छोड़ दिया जाए, तो उस पर सफ़ेद धब्बे बन जाते हैं। दरअसल, इन धब्बों को ब्रेड मोल्ड(Bread mold) कहा जाता है, और ये राइज़ोपस स्टोलोनिफ़र(Rhizopus stolonifer) नामक कवक द्वारा निर्मित होते हैं। तो, आज हम ब्रेड मोल्ड्स के बारे में विस्तार से जानेंगे। इसके अलावा, हम देखेंगे कि, ब्रेड मोल्ड अन्य पौधों के साथ किस प्रकार सहजीवी संबंध बनाते हैं। अंत में, हम उन समस्याओं के बारे में विचार करेंगे, जो ऐसी फफूंद लगी ब्रेड खाने से उत्पन्न हो सकती हैं।
ब्रेड मोल्ड (राइज़ोपस स्टोलोनिफ़र) एक प्रकार का कवक है, जो ज़िगोमाइकोटा परिवार(Zygomycota family) से संबंधित है। कवक का यह प्रकार, जीवंत होता है, और बीजाणु(Spores) पैदा करता है। ब्रेड मोल्ड सड़ते भोजन जैसे कार्बनिक पदार्थों पर निर्वाह करते हैं । कई अलग-अलग प्रकार के ब्रेड मोल्ड हैं, जो अलग-अलग स्थानों पर उगते हैं। कुछ फफूंद केवल लकड़ी पर उगते हैं। हालांकि, अन्य फफूंद सड़ते हुए पौधे या पशु पदार्थ पर पाए जाते हैं, और कुछ आमतौर पर भोजन पर पाए जाते हैं। चूंकि, ब्रेड पर कई प्रकार के फफूंद दिखाई देते हैं, इसलिए उन्हें ब्रेड मोल्ड कहा जाता है।
किसी भी सामान्य फफूंद की तरह, ब्रेड मोल्ड भी बीजाणु बनाकर प्रजनन करते हैं। ये बीजाणु छोटे व अक्सर ही सूक्ष्म कण होते हैं, जिनसे अंततः, पूरी तरह से विकसित फफूंद बनते हैं। फफूंदी के बीजाणु, उन स्थानों पर मौजूद होते हैं, जहां आपको नमी और कार्बनिक पदार्थ मिलते हैं। वे हवा में उड़ सकते हैं, या पानी और भोजन में भी मिल सकते हैं।
ब्रेड में पाए जाने वाले, समृद्ध कार्बनिक पदार्थों के कारण ब्रेड फफूंद ब्रेड पर पनपते हैं। ब्रेड में मौजूद, शर्करा (sucrose) और कार्बोहाइड्रेट (carbohydrate), फफूंद बीजाणुओं की वृद्धि को बढ़ावा देते हैं। यही कारण है कि, खुले में छोड़ी गई रोटी या ब्रेड में केवल पांच से सात दिनों में ही फफूंद दिखाई देने लगती है।
इन ब्रेड मोल्ड की विशिष्ट प्रजाति, उस पर्यावरण में मौजूद बीजाणुओं के प्रकार पर निर्भर करती है। इस प्रकार, ब्रेड मोल्ड के विभिन्न प्रकार, निम्नलिखित हैं:
1.) ब्लैक ब्रेड मोल्ड(Black Bread Mold): ब्लैक ब्रेड मोल्ड सबसे आम ब्रेड फफूंद में से एक है। यह पूरी दुनिया में मौजूद है। ब्रेड के अलावा, काली ब्रेड फफूंदी, जंगली फलों और सब्ज़ियों पर भी दिखाई देती है। इसकी उपस्थिति से पदार्थ में सड़न पैदा होती है। अर्थात, काली ब्रेड फफूंदी पौधों को मार भी सकती है।
2.) पेनिसिलियम ब्रेड मोल्ड(Penicillium Bread Mold): पेनिसिलियम ब्रेड मोल्ड, फफूंद की एक प्रजाति है, जो आमतौर पर दुनिया भर में ब्रेड और अन्य खाद्य पदार्थों पर पाई जाती है । पेनिसिलियम फफूंद, ब्रेड पर धुंधले सफेद, भूरे या हल्के नीले रंग के धब्बों में दिखाई देते हैं। पेनिसिलियम ब्रेड मोल्ड की अधिकांश प्रजातियां इतनी समान हैं कि, गहन विश्लेषण के बिना उन्हें अलग पहचानना व्यावहारिक रूप से असंभव है। कुछ पेनिसिलियम फफूंद, जैसे कि ब्लू चीज़(Blue cheese) का उपयोग, लोग खाद्य पदार्थों को जानबूझकर स्वादिष्ट बनाने के लिए करते हैं। पेनिसिलियम फफूंद की कुछ अन्य प्रजातियां, पेनिसिलिन(Penicillin) नामक एक अणु का उत्पादन करती हैं, जिसका उपयोग एंटीबायोटिक(Antibiotic) के रूप में किया जाता है।
3.) क्लैडोस्पोरियम ब्रेड मोल्ड(Cladosporium Bread Mold): क्लैडोस्पोरियम ब्रेड मोल्ड, एलर्जी वाले लोगों के लिए सबसे अधिक घातक है। लंबे समय तक इनके संपर्क में रहने पर, ये फफूंद छींकने, खांसने और घरघराहट का कारण बनते हैं। क्लैडोस्पोरियम फफूंद आमतौर पर ब्रेड की सतह पर काले धब्बों के रूप में दिखाई देते हैं, जिनका रंग गहरे हरे से काले तक होता है। क्लैडोस्पोरियम ब्रेड मोल्ड्स अन्य ब्रेड मोल्ड्स की तुलना में अनूठी गंध पैदा करते हैं, जिस कारण, इस फफूंद की उपस्थिति का पता चल सकता है।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि, सहजीवी संबंध स्थापित करने के लिए, अन्य पौधों के साथ ब्रेड मोल्ड्स परस्पर क्रिया करते हैं। राइज़ोपस जैसे ब्रेड मोल्ड, महत्वपूर्ण परपोषी हैं, जो सामूहिक रूप से कार्बनिक पदार्थों पर निर्वाह करते हैं। इससे जो पोषक तत्व निकलते हैं, उनका उपयोग अन्य पेड़–पौधे कर सकते हैं। कभी-कभी राइज़ोपस जैसे कुछ ब्रेड मोल्ड, पौधों और जानवरों, दोनों में बीमारियों का कारण बनते हैं।
फिर भी, चूंकि, राइजोपस को संवर्धित करना अपेक्षाकृत आसान है, इसका उपयोग औद्योगिक रूप से कुछ महत्वपूर्ण रासायनिक रूपांतरण करने के लिए किया जाता है। उदाहरण के लिए, पादप स्टेरॉयड(Plant steroid) का कॉर्टिसोन(Cortisone) जैसे विशिष्ट रसायनों में रूपांतरण, और चीनी से फ्यूमरिक एसिड(Fumaric acid) का उत्पादन करने हेतू इन फफूंद का इस्तेमाल किया जाता है। राइज़ोपस का उपयोग टेम्पेह(Tempeh) के उत्पादन के लिए भी किया जाता है, जिसमें, कुचले हुए सोयाबीन होते हैं। ये सोयाबीन राइज़ोपस द्वारा आंशिक रूप से विघटित होते हैं, और कवक हाइपे(Hyphae) द्वारा एक साथ बंधे रहते हैं।
फफूंदी के इन उपयोगों के अलावा, हमें फफूंदयुक्त ब्रेड का सेवन करने से बचना चाहिए। इसके कारण, निम्नलिखित है:
1.) उल्टी और जी मिचलाना: ब्रेड पर फफूंद होने का मतलब है कि, वह ब्रेड बैक्टीरिया से भरी हुई है। अगर आप ऐसी ब्रेड खा लेते हैं, और यदि आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली स्वस्थ है, तो आप इसे आसानी से पचा भी सकते हैं। परंतु, फिर भी यह मतली और उल्टी का कारण बन सकता है।
2.) एलर्जी प्रतिक्रिया: बहुत से लोगों को कवक से एलर्जी होती है। यह आम नहीं है, लेकिन, इससे घातक एलर्जी प्रतिक्रियाएं हो सकती हैं। कमज़ोर प्रतिरक्षा वाले लोगों को फफूंद सूंघने से भी संक्रमण होने का खतरा होता है।
3.) मायकोटॉक्सिन(Mycotoxins): कुछ फफूंद मायकोटॉक्सिन नामक विषाक्त पदार्थ उत्पन्न करते हैं। ये मायकोटॉक्सिन कैंसर का भी कारण बन सकते हैं।
4.) सांस संबंधी समस्याएं: फफूंद लगी ब्रेड खाने से सांस संबंधी समस्याएं भी हो जाती हैं। किसी व्यक्ति को नाक, मुंह और गले में जलन भी हो सकती है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/y427ykvv
https://tinyurl.com/yde8t4pb
https://tinyurl.com/4254b5ba
चित्र संदर्भ
1. लखनऊ के शीरमाल व्यंजन और ब्रेड मोल्ड कवक को दर्शाता चित्रण (wikimedia, Needpix)
2. ब्रेड मोल्ड कवक को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
3. ब्लैक ब्रेड मोल्ड को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. पेनिसिलियम ब्रेड मोल्ड को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. क्लैडोस्पोरियम ब्रेड मोल्ड को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. राइज़ोपस को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
7. फ़फ़ूंदयुक्त ब्रेड को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
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