जलीय जीवों के संरक्षण में अहम् भूमिका निभा रहा है, लखनऊ का मछली संग्रहालय

मछलियाँ व उभयचर
12-07-2024 10:16 AM
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जलीय जीवों के संरक्षण में अहम् भूमिका निभा रहा है, लखनऊ का मछली संग्रहालय

                          

  'मछली जल की रानी है, जीवन उसका पानी है।'
अपने बचपन से लेकर आज तक आपने न जाने कितनी बार यह कविता सुनी होगी। लेकिन अधिकांश बुद्धिजीवी आज यह जान चुके हैं, कि ‘समुद्र के पानी की जरूरत, केवल पानी में रहने वाली मछली रानी को ही नहीं है।’ हम इंसानों सहित जमीन पर रहने वाले लाखों जीवों के जीवन को स्थिर रखने के लिए भी समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र बेहद आवश्यक हो गया है। चलिए जानते हैं कैसे?
मछलियाँ जलीय पारिस्थितिकी तंत्र (aquatic ecosystem) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, क्योंकि वे पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करती हैं। एक मछली उत्कृष्ट पुनर्चक्रणकर्ता (recycler) के रूप में कार्य करती हैं। वह शैवाल और अन्य निचली-स्तर की प्रजातियों के अस्तित्व को बनाए रखने के लिए आवश्यक पोषक तत्वों को तोड़ती और फिर उन्हें समुद्र में छोड़ती हैं। समुद्र की पारिस्थितिकी में मछलियों की इस अहम भूमिका से पता चलता है कि अत्यधिक मछली पकड़ने से पूरे पारिस्थितिकी तंत्र के समुचित कामकाज ठप्प हो सकते हैं। मछली और अन्य जीवों के बीच एक जटिल संबंध मौजूद है, जो खाद्य जाल और विभिन्न अन्य तंत्रों के माध्यम से परस्पर जुड़े हुए हैं। नतीजतन, हद और जरूरत से अधिक मछली पकड़ने से न केवल मछली की प्रजातियां नष्ट होती हैं, बल्कि पूरे जैविक समुदाय (biological community) भी प्रभावित होते हैं।



इस तरह के व्यवधानों के परिणाम अक्सर अप्रत्याशित होते हैं। हालाँकि संतुलित औद्योगिक मत्स्य पालन करने से मछलियों का पूरी तरह से उन्मूलन नहीं होगा, लेकिन भारी मात्रा में मछली पकड़ने के कई दुष्परिणाम हमारे सामने आ सकते हैं। समुद्री पारिस्थितिकी में संतुलन बनाए रखने के लिए हमें समुद्र में फल-फूल रहे जीवों की स्थिति का निरंतर आंकलन करते रहना चाहिए। इस संदर्भ में हम समुद्री पुरातत्व (marine archaeology) का सहारा ले सकते हैं। जैसा कि नाम से पता चलता है, ‘समुद्री पुरातत्व महासागरों और समुद्रों की गहराई में पाई जाने वाली वस्तुओं और संरचनाओं की खुदाई और अध्ययन पर केंद्रित है।’ यह क्षेत्र काफी व्यापक है, जिसमें विशाल जलमार्गों से लेकर समुद्र के जटिल पहलुओं से निपटना भी शामिल है। समुद्र तल में पाई जाने वाली वस्तुओं को संरक्षित करना समुद्री पुरातत्वविदों के लिए एक महत्वपूर्ण और चुनौतीपूर्ण जिम्मेदारी है। इनके लिए भूमि-आधारित पुरातत्व की तुलना में पानी के नीचे का वातावरण कई अद्वितीय कठिनाइयाँ पैदा करता है। पिछले कुछ वर्षों में, समुद्री पुरातत्वविदों द्वारा कई बहाली और उत्खनन परियोजनाएँ संचालित की गई हैं।



इनकी मेहनत के फलस्वरूप महासागरों और समुद्रों के नीचे दबी हुई कई अद्भुत ऐतिहासिक प्रदर्शनियाँ हमारे सामने आई हैं। समुद्र की गहराइयों में की गई इन खोजों के माध्यम से पिछली सभ्यताओं और संस्कृतियों के बारे में हमारी समझ का विस्तार करने में मदद मिली है। जहाजों के मलबे और अन्य जलमग्न वस्तुओं की खुदाई के अलावा, समुद्री पुरातत्व के अंतर्गत सदियों से पानी के नीचे डूबे मानव बस्तियों और मलबे की खोज और अध्ययन भी शामिल है। संभावनाओं की यह विविधता ही समुद्री पुरातत्व को अध्ययन का एक अनूठा और आकर्षक क्षेत्र बनाती है। समुद्री पुरातत्व के क्षेत्र में एक प्रमुख शख्सियत जैक्स कॉस्ट्यू (Jacques Cousteau) नामक व्यक्ति हैं, जिन्होंने अपने शोध और नवाचारों के माध्यम से समुद्र के संबंध में हमारे ज्ञान को उन्नत किया। 1950 में, कॉस्ट्यू ने फ़्रेंच ओशनोग्राफ़िक अभियान (FOC) की स्थापना की। उनके द्वारा पानी के नीचे के किये गए उल्लेखनीय पुरातात्विक कार्यों में भूमध्य सागर विशेष रूप से 1952 में ग्रैंड-कॉन्ग्लौए (Grand Congloué) में की गई खुदाई शामिल है। 1953 में कॉस्ट्यू की पहली पुस्तक, द साइलेंट वर्ल्ड (The Silent World) प्रकाशित हुई, जिसमें डॉल्फ़िन से संबंधित छोटे समुद्री स्तनधारी पोरपोइज़ (porpoise) की इकोलोकेशन (echolocation) क्षमताओं से जुड़ी अनोखी भविष्यवाणी की गई थी। उन्होंने अपने अनुसंधान पोत का अनुसरण करते हुए पोरपोइस का अवलोकन किया और निष्कर्ष निकाला कि उनमें नई पनडुब्बी प्रौद्योगिकी (submarine technology) के समान सोनार (sonar) जैसी क्षमताएं होती हैं। हालांकि कॉस्ट्यू जैसे जिज्ञासु लोगों की आवश्यकता हमारे लखनऊ से होकर बहने वाली गोमती नदी के पारिस्थितिकी तंत्र को भी है। हालिया शोधों के आधार पर हम इतना जानते हैं कि गोमती नदी में मछलियों की विविधतापूर्ण आबादी पाई जाती है।


हालिया शोध में गोमती नदी में छह स्थलों से नमूने एकत्र किये गए जहाँ पर 47 पीढ़ी, 21 परिवारों और सात श्रेणियों से संबंधित कुल 62 मछली प्रजातियाँ पाई गईं।
इनमें सबसे आम श्रेणियाँ थी:

  • साइप्रिफ़ॉर्मेस (Cypriniformes): मछली प्रजातियों का 42%
  • सिलुरिफ़ॉर्मेस (Siluriformes): 31%
  • पर्सिफ़ोर्मेस (Perciformes): 18% इन सभी में सबसे बड़ा परिवार साइप्रिनिडे (Cyprinidae) था, जो मछली जीवों का3% (24 प्रजातियाँ) बनाता था। अन्य उल्लेखनीय परिवारों में बैग्रिडे (Bagridae) (6 प्रजातियाँ) और सिसोरिडे (Sisoridae) शामिल थे।

सबसे प्रचुर प्रजातियाँ ये थीं:

  • सालमोस्टोमा बैकेला (Salmostoma bacaila): 16.56%
  • क्लूपिसोमा गरुआ (Clupisoma garua): 11%
  • मिस्टस विटाटस (Mystus vittatus): 5.36%
  • पुंटियस टिक्टो (Puntius ticto): 5.34%


नोटोप्टेरस नोटोप्टेरस (Notopterus notopterus): 4.21% दो प्रमुख भारतीय कार्प प्रजातियाँ, कैटला कैटला (Catla catla) और लेबियो रोहिता (Labeo rohita), की सापेक्ष बहुतायत कम (क्रमशः 0.41% और 0.94%) थी। शोध में कई महत्वपूर्ण संरक्षण प्रजातियों का दस्तावेजीकरण किया गया, जिनमें ओमपोक बिमाकुलैटस (Ompok bimaculatus), नोटोप्टेरस नोटोप्टेरस (Notopterus notopterus), क्लूपिसोमा गरुआ (Clupisoma garua), सिरहिनस रेबा (Cirrhinus reba), स्पेरेटा एओर (Sperata aor), एस. सींघला (S. singhala) और आर. रीटा (Rita rita) शामिल हैं।

 चार विदेशी/आक्रमण मछली प्रजातियाँ भी दर्ज की गईं:

  1. साइप्रिनस कार्पियो, “कॉमन कार्प” (Cyprinus carpio)
  2. सेटेनोफेरिंगोडोन इडेलस, “ग्रास कार्प” (Ctenopharyngodon idella)
  3. हाइपोफ्थाल्मिचथिस मोलिट्रिक्स, “सिल्वर कार्प” (Hypophthalmichthys molitrix)
  4. क्लेरियस गैरीपिनस, “थाई मैगुर” (Clarias gariepinus)

यदि आप भी मछलियों के संरक्षण में रूचि रखते हैं, तो आपको जानकर प्रसन्नता होगी कि पिछले साल हमारे लखनऊ में आईसीएआर-नेशनल ब्यूरो ऑफ फिश जेनेटिक रिसोर्सेज (ICAR-National Bureau of Fish Genetic Resources) द्वारा एक राष्ट्रीय मछली संग्रहालय और रिपोजिटरी (National Fish Museum and Repository) का उद्घाटन किया जा चुका है। यह संग्रहालय लखनऊ के तेलीबाग में आईसीएआर-एनबीएफजीआर के 52 एकड़ के परिसर में स्थित है। इस संग्रहालय में मीठे पानी, समुद्री और खारे पानी के वातावरण से संरक्षित नमूनों का एक विशाल संग्रह प्रदर्शित किया जाएगा, जिसमें भारत में पाई जाने वाली 1,200 फिनफिश प्रजातियां (finfish species) और 250 मोलस्क प्रजातियां (mollusc species) शामिल हैं।



रिपोजिटरी में व्यावसायिक रूप से महत्वपूर्ण मछली प्रजातियों से संबंधित 19,000 ऊतक परिग्रहण भी हैं, जिनका उपयोग आनुवंशिक अनुसंधान के लिए किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त, यहाँ पर 31 मछली प्रजातियों के क्रायोप्रिजर्व्ड शुक्राणु हैं, जो लुप्तप्राय प्रजातियों या कृत्रिम प्रजनन के संरक्षण में सहायता कर सकते हैं। इस संग्रहालय का उद्देश्य शोधकर्ताओं, छात्रों, शिक्षकों, वैज्ञानिकों और आम जनता को मूल्यवान पहुँच प्रदान करना है, जिससे ज्ञान का व्यापक प्रसार सुनिश्चित हो सके। यह उत्तर प्रदेश राज्य में पहला ऐसा संग्रहालय और रिपोजिटरी है और इसमें भारत में संरक्षित मछलियों का सबसे बड़ा संग्रह है। संस्थान में 'गंगा एक्वेरियम (Ganga Aquarium)' नामक एक जीवित मछली मछलीघर भी है और 81 परिग्रहणों के साथ मछली कोशिका रेखाओं का दुनिया का सबसे बड़ा संग्रह है।

चित्र संदर्भ

1. एक मछली संग्रहालय को दर्शाता चित्रण (GetArchive)

2. समुद्र की मछलियों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)

3. समुद्र के तल में गोताखोर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)

4. जैक्स कॉस्ट्यू को संदर्भित करता एक चित्रण (PICRYL)

5. सिटेसियन द्वारा बायोसोनार के प्रयोग को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)

6. 'नोटोप्टेरस' को दर्शाता चित्रण (wikimedia)

7. नेशनल ब्यूरो ऑफ फिश जेनेटिक रिसोर्सेज भवन को दर्शाता चित्रण (youtube)

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