समयसीमा 229
मानव व उनकी इन्द्रियाँ 963
मानव व उसके आविष्कार 757
भूगोल 211
जीव - जन्तु 274
Post Viewership from Post Date to 05- Aug-2024 (31st Day) | ||||
---|---|---|---|---|
City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Total | ||
2571 | 129 | 2700 |
आज हम सिंधु-गंगा नदियों के मैदानों के बारे में समझेंगे। इन मैदानों का क्षेत्र कभी, नीचे धंसा हुआ या दबा हुआ भूभाग था। इस निचले भूभाग में, हिमालय और प्रायद्वीपीय क्षेत्र से निकलने वाली नदियों द्वारा लाई गई तलछट के जमाव से, ये मैदान बने हैं। वाडिया(Wadia) और एडवर्ड सेस(Edward Suess) जैसे भूवैज्ञानिकों के पास, इस निचले भूभाग के निर्माण के बारे में अलग-अलग सिद्धांत हैं। एक तरफ़, इन मैदानी इलाकों को चार क्षेत्रों में विभाजित किया गया है। गंगा के मैदान में स्थित हमारा शहर लखनऊ, गंगा और उसकी सहायक नदियों द्वारा जमा की गई उपजाऊ जलोढ़ मिट्टी से, इसी तरह लाभान्वित हुआ है।
इस निचले भूभाग की उत्पत्ति और उसमें हुए तलछट जमाव की प्रक्रिया के संबंध में, भिन्न-भिन्न विचार व्यक्त किए गए हैं। वाडिया का मानना है कि, ये मैदान मूल रूप से प्रायद्वीप और पर्वतीय क्षेत्र के बीच स्थित, एक गहरे भूभाग थे।
हालांकि, भूविज्ञानी एडवर्ड सेस ने सुझाव दिया है कि, हिमालय की ऊंची पर्वतमालाओं के सामने एक गहरे क्षेत्र या "फॉरडीप(Foredeep)" का निर्माण हुआ था। क्योंकि, उन पर्वतमालाओं को प्रायद्वीप के ठोस भूभाग द्वारा, दक्षिण की ओर बढ़ने से रोका गया था। और, इस गहराई में, हिमालय और प्रायद्वीपीय नदियों द्वारा लाया गया जलोढ़ जमा हुआ था। कालांतर में यह क्षेत्र जलोढ़ से भर गया और उत्तर भारत के विशाल मैदान का निर्माण हुआ। यह मैदानी क्षेत्र कठोर और क्रिस्टलीय चट्टानों पर टिका हुआ है। इन्हीं चट्टानों के माध्यम से, यह क्षेत्र हिमालय और प्रायद्वीपीय खंडों से जुड़ा हुआ है।
दूसरी ओर, सर सिडनी बर्रार्ड(Sir Sydney Burrard) का मानना है कि, यह जलोढ़ पृथ्वी की उप-परत में मौजूद, कई हजार मीटर गहरी एक बड़ी दरार या फ्रैक्चर(Fracture) को भरता है। समानांतर व खड़े भूभागों के बीच, धंसे हुए ऐसे पथों को 'भ्रंश घाटियां' कहा जाता है। हिमालय और प्रायद्वीप के बीच मौजूद, वह दरार घाटी लगभग 2,400 किमी लंबी और सैकड़ों मीटर गहरी थी। परंतु, बर्रार्ड के विचारों पर मुख्य आपत्ति यह है कि, प्रायद्वीप के उत्तरी किनारे पर दरार घाटी का कोई निशान नहीं है, और इतनी विशाल दरार घाटी संभव नहीं है।
कई भूवैज्ञानिकों और भूगोलवेत्ताओं द्वारा व्यक्त किए गए हालिया विचारों के अनुसार, प्रायद्वीप के उत्तर की ओर बहाव के कारण, टेथिस सागर(Tethys Sea) के तल पर जमा हुई तलछट मुड़कर विकृत हो गई। परिणामस्वरूप, हिमालय और दक्षिण में एक गर्त का निर्माण हुआ।
इस प्रकार निर्मित, सिंधु-गंगा के मैदानों के कुछ क्षेत्रीय प्रभाग हैं।
क्षेत्रीय रूप से, सिंधु-गंगा के मैदानों को 4 प्रमुख प्रभागों में वर्गीकृत किया गया है:
१.राजस्थान का मैदान-
यह क्षेत्र सिंधु-गंगा मैदान के पश्चिमी छोर का निर्माण करता है। इसमें, थार या महान भारतीय रेगिस्तान भी शामिल है, जो पश्चिमी राजस्थान और पाकिस्तान के आसपास के क्षेत्रों को कवर करता है।
२.पंजाब-हरियाणा का मैदान-
यह क्षेत्र राजस्थान के मैदान के पूर्व और उत्तर-पूर्व की ओर स्थित है। यह संपूर्ण मैदान पंजाब और हरियाणा राज्यों में उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व दिशा में 640 किमी की लंबाई तक फैला हुआ है। तथा, इसकी औसत चौड़ाई 300 किमी है।
3.गंगा का मैदान-
यह 3.75 लाख वर्ग किमी क्षेत्रफल के साथ सिंधु-गंगा मैदान का सबसे बड़ा भूभाग है। यह मैदान गंगा के साथ-साथ उसकी हिमालयी और प्रायद्वीपीय सहायक नदियों के जलोढ़ निक्षेपण से बना है।
यह मैदान हमारे राज्य उत्तर प्रदेश तथा बिहार और पश्चिम बंगाल राज्यों में दिल्ली से कोलकाता तक फैला हुआ है।
४.ब्रह्मपुत्र का मैदान-
यह मैदान देश के उत्तरपूर्वी भाग में स्थित है। इसे ब्रह्मपुत्र घाटी, असम घाटी या असम मैदान के नाम से भी जाना जाता है। हालांकि, अक्सर ही इसे, गंगा के मैदान की पूर्व निरंतरता के रूप में माना जाता है। परंतु वास्तव में, यह एक अच्छी तरह से सीमांकित अलग भौतिक क्षेत्र है।
आप जानते ही होंगे कि, हमारा शहर लखनऊ भी गंगा के मैदानों में स्थित है। गंगा के निचले मैदानी क्षेत्र के नम पर्णपाती वन, एक समय जैविक रूप से काफी समृद्ध थे। यह अत्यधिक उपजाऊ बाढ़ का मैदान, एशियाई हाथियों, बाघों, एक सींग वाले बड़े गैंडों, भारतीय बाइसन या गौर, जंगली जल भैंसों, दलदली हिरण और भालूओं का घर था। बंगाल फ्लोरिकन जैसे विश्व स्तर पर संकटग्रस्त पक्षी भी यहां पाए जाते थे।
लेकिन आज, इस पारिस्थितिक क्षेत्र का वर्णन पृथ्वी पर सबसे घनी मानव आबादी में से एक के तौर पर किया जाता है। जिस प्राकृतिक उत्पादकता ने इस क्षेत्र को एक उत्कृष्ट वन्यजीव निवास स्थान बनाया था, उसी उत्पादकता के कारण बड़े पैमाने पर प्राकृतिक वनस्पति की सफ़ाई और गहन कृषि गतिविधियां भी यहां हुईं।
हालांकि, सैकड़ों वर्षों के मानव आधिपत्य के बावजूद, इन मैदानों के कुछ वन क्षेत्र, संरक्षित क्षेत्र प्रणाली के बाहर भी जीवित रहने में कामयाब रहे हैं। वर्तमान प्राकृतिक क्षेत्र, आज इन कुल मैदानी क्षेत्र का लगभग 2% ही हैं।
दूसरी ओर, अगर हम इन मैदानों की जलवायु के बारे में बात करें, तो इनके पूर्वी हिस्से में सर्दियों में हल्की बारिश होती है या सूखा पड़ता है। लेकिन, गर्मियों में बारिश इतनी भारी होती है कि, विशाल क्षेत्र दलदल या उथली झीलें बन जाते हैं। जबकि, ये मैदान पश्चिम की ओर उत्तरोत्तर शुष्क होता जाता है, जहां यह थार या महान भारतीय रेगिस्तान को सम्मिलित करता है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/yckdsw6p
https://tinyurl.com/3xy3mt84
https://tinyurl.com/4re8wm74
https://tinyurl.com/42d3njhx
चित्र संदर्भ
1. अपने खेतों की जुताई करते एक किसान को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
2. हिमालयन फोरलैंड बेसिन को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. भ्रंश घाटी को दर्शाता चित्रण (
wikimedia)
4. लखनऊ के रूमी दरवाजे को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.
B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.