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किसी भी देश के आर्थिक विकास में परिवहन क्षेत्र की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। बल्कि किसी भी देश में आज परिवहन सबसे महत्वपूर्ण गतिविधियों में से एक बन गया है। यद्यपि आज के युग में प्रौद्योगिकी में प्रगति के साथ, परिवहन पहले से कहीं अधिक सस्ता और तेज़ हो गया है, 19वीं सदी के अंत तक बड़े पैमाने पर पशुओं द्वारा खींचे जाने वाले परिवहन साधनों का उपयोग किया जाता था। हमारे देश भारत में एक विशाल और विविध परिवहन प्रणाली मौज़ूद है, जिसमें सड़क मार्ग, रेल मार्ग, वायुमार्ग, जलमार्ग और तेल गैस पाइपलाइन शामिल हैं। भारत में मौज़ूद परिवहन प्रणाली देश के ऐतिहासिक विकास, भौगोलिक विशेषताओं, सांस्कृतिक और धार्मिक प्रभावों और आर्थिक स्थितियों पर आधारित है। 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी की शुरुआत में पशु शक्ति का स्थान बड़े पैमाने पर विद्युत ट्रैम (Electric Tram) ने ले लिया। 20वीं सदी के मध्य में बस, मोटर कार जैसे अन्य वाहनों के कारण ट्रैम का चलन कम हो गया। हालांकि, हाल के वर्षों में ट्रैम का पुनरुत्थान देखा गया है।
ट्रैम, शहरी रेल पारगमन का एक प्रकार है, जो मुख्य रूप से एक रेल वाहन होता है। यह एक एकल रेल इकाई हो सकती है या इसमें कई इकाइयों को एक साथ जोड़कर स्व-चालित ट्रेन का रूप दिया जाता है, जो ट्रैम मार्ग ट्रैक पर चलती हैं। सार्वजनिक परिवहन के रूप में संचालित ट्रैमलाइन या नेटवर्क को ‘ट्रैमवे’ (tramways) या केवल ‘ट्रैम’ या ’स्ट्रीटकार’ (streetcars) भी कहा जाता है। आजकल ट्रैमवे को ज्यादातर लाइट रेल (light rail) भी कहते हैं। ट्रैम वाहन आमतौर पर मुख्य रेल लाइन (main line) और रैपिड ट्रांज़िट ट्रेनों (rapid transit trains) की तुलना में हल्के और छोटे होते हैं। कुछ ट्रैम अंतरनगरीय परिवहन प्रणाली के समान मुख्य रेलवे ट्रैक पर भी चलते हैं। इन्हें ट्रैम-ट्रेन के रूप में जाना जाता है। दुनिया की पहली यात्री ट्रैम ब्रिटेन (Britain) के वेल्स (Wales) में स्वानसी (Swansea) और मम्बल्स (Mumbles) के बीच शुरू हुई थी। ब्रिटिश संसद द्वारा 1804 में मम्बल्स रेलवे अधिनियम पारित किए जाने पर 1807 में ट्रैम को चलाने के लिये घुड़सवारी सेवा शुरू हुई। यह सेवा 1827 में बंद हो गई, लेकिन 1860 में घोड़ों का उपयोग करके इसे फिर से शुरू किया गया। 1877 से इसे भाप द्वारा चलाया जाने लगा। उस दौरान परिवहन के अन्य रूपों की तुलना में ट्रैम धातु के पहियों पर चलने के कारण अधिक वज़न उठाने में सक्षम थे, जिसके कारण ये अतिशीघ्र लोकप्रिय हो गए।
हालांकि हमारे देश भारत में ट्रैम की शुरुआत 19वीं सदी के अंत में हुई थी। सबसे पहले 1873 में कोलकाता में घोड़े से खींची जाने वाली ट्रैम की शुरुआत की गई थी, इसके बाद फिर मुंबई में, ट्रैम का संचालन 1874 में शुरू हुआ, फिर 1889 में नासिक में और 1895 में चेन्नई में विद्युत ट्रैम की शुरुआत हुई। इसके अलावा कानपुर और दिल्ली में भी ट्रैम चलाई गई। 1933 और 1964 के बीच कोलकाता को छोड़कर सभी भारतीय शहरों में इन्हें बंद कर दिया गया।
हालांकि देश में सबसे पहले, 1865 में बॉम्बे में घोड़े से खींची जाने वाली ट्रैम का लाइसेंस दिया गया था। लेकिन यह परियोजना विफल हो गई। भारत में पहली घोड़ा-चालित ट्रैम 24 फरवरी 1873 को कोलकाता के सियालदह और अर्मेनियाई घाट स्ट्रीट के बीच 3.9 किलोमीटर की दूरी तक चली। यह सेवा उसी वर्ष 20 नवंबर को बंद कर दी गई थी। 22 दिसंबर 1880 को लंदन में 'कलकत्ता ट्रैमवे कंपनी' का गठन और पंजीकरण किया गया, इसके बाद कलकत्ता में फिर से ट्रैम की शुरुआत की गई। कंपनी द्वारा मीटर-गेज घोड़ा-चालित ट्रैम ट्रैक सियालदह से बोबाज़ार स्ट्रीट, डलहौज़ी स्क्वायर और स्ट्रैंड रोड के माध्यम से अर्मेनियाई घाट तक बिछाए गए, जिनका उद्घाटन लॉर्ड रिपन (Lord Ripon) ने किया। दो साल बाद, ‘कलकत्ता ट्रैमवे कंपनी’ ने ट्रैम खींचने के लिए भाप इंजनों का प्रयोग करना शुरू किया। 19वीं सदी के अंत तक, कंपनी के पास 166 ट्रैम कारें, 1,000 घोड़े, सात भाप इंजन और 19 मील लंबी ट्रैम पटरियों का स्वामित्व था। 1900 में, ट्रैमवे का विद्युतीकरण और इसकी पटरियों के मानक गेज का पुनर्निर्माण शुरू हुआ। 1902 में, भारत में पहली विद्युत ट्रैमकार 27 मार्च को कोलकाता में, एस्प्लेनेड से किडरपोर तक और 14 जून को एस्प्लेनेड से कालीघाट तक चली। वास्तव में, कोलकाता भारत का एकमात्र शहर है जहां ट्रैम अभी भी उपयोग की जाती हैं।
बंबई में पहली घोड़े द्वारा खींची जाने वाली ट्रैम का संचालन 150 साल पहले 9 मई, 1874 को शुरू हुआ था। दरअसल 'बॉम्बे ट्रैमवे कंपनी' (Bombay Tramway Company) की स्थापना 1873 में की गई थी। इस कंपनी के गठन के तुरंत बाद, 'बॉम्बे ट्रैमवे कंपनी', नगर पालिका और 'स्टर्न्स एंड किटरेज कंपनी' (Stearns and Kitteredge company) के बीच एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किए गए। जिस के बाद, बॉम्बे प्रेसीडेंसी (Bombay Presidency) ने 'बॉम्बे ट्रैमवे अधिनियम, 1874' पारित किया और कंपनी को शहर में घोड़ों द्वारा संचालित ट्रैम सेवा चलाने का लाइसेंस दिया। इन ट्रैम को दो से छह घोड़ों द्वारा खींचा जाता था, जो दो मार्गों पर चलती थीं - कोलाबा से क्रॉफर्ड मार्केट होते हुए पायधोनी तक, और बोरी बंदर से पायधोनी तक। उस समय इसकी एक टिकट की कीमत एक आना होती थी। यहां आपको बता दें कि 1 रूपये में 16 आने होते थे। ये ट्रैम 8 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से यात्रा करती थीं।
बंबई में ट्रैमवे के उद्घाटन के तुरंत बाद जून, 1874 में चेन्नई (तब मद्रास) में भी पहली घोड़ा-चालित ट्रैम सेवा शुरू हुई। इस ट्रैमवे में मीटर गेज (Meter Gauge) ट्रैक का उपयोग किया गया था और इसे कई मार्गों पर संचालित किया गया था। उनमें से सबसे मुख्य मार्ग रोयापुरम और ट्रिप्लिकेन के बीच का मार्ग था। घोड़ा-चालित ट्रैम सेवा यहां कुछ वर्षों तक चालू रही, लेकिन खराब वित्तीय रिटर्न के कारण इसे बंद करना पड़ा। इसके बाद 7 मई 1895 में मद्रास में देश का पहला विद्युत ट्रैमवे के खुलने के साथ शहर में ट्रैमवे का पुनरुद्धार हुआ। यह सेवा समुंदरी जहाज गोदाम और अंतर्देशीय क्षेत्रों को जोड़ती थी। 1921 में इस सेवा में अपने चरम पर, 97 कारें 24 किलोमीटर ट्रैक पर दौड़ती थीं। 1950 के आसपास ट्रैम कंपनी के दिवालिया होने पर यह सेवा 12 अप्रैल 1953 को बंद हो गई।
चेन्नई, कोलकाता और मुंबई के बाद 1889 में नासिक में नैरो गेज (Narrow Gauge) के रूप में ट्रैम सेवा शुरू की गई। इस ट्रैम सेवा में मूल रूप से, चार घोड़ों द्वारा खींची जाने वाली दो गाड़ियों का उपयोग किया जाता था। यह मेन रोड पर वर्तमान पुराने नगर निगम भवन से नासिक रोड रेलवे स्टेशन तक 8 से 10 किलोमीटर की दूरी तक चलती थी। लगातार वर्षों के अकाल और प्लेग के कारण भारी नुकसान के चलते यह ट्रैम सेवा 1933 के आसपास बंद हो गई।1907 में, कोचीन राज्य में वन ट्रैमवे का परिचालन शुरू किया गया, जिसके द्वारा पलक्कड़ के जंगलों से त्रिशूर ज़िले के चलाकुडी शहर तक लगभग 80 किलोमीटर लंबे मार्ग पर सागौन और शीशम की लकड़ी का परिवहन किया जाता था। जबकि दिल्ली में ट्रैम सेवा का संचालन 6 मार्च 1908 को शुरू हुआ। यहां 1921 में अपने चरम पर, 15 किलोमीटर ट्रैक पर 24 खुली गाड़ियों का संचालन किया जाता था। इस सेवा के तहत जामा मस्जिद, चांदनी चौक, चावड़ी बाज़ार, कटरा बदियान, लाल कुआँ, दिल्ली और फ़तेहपुरी को सब्जी मंडी, सदर बाज़ार, पहाड़गंज, अजमेरी गेट, बारा हिंदू राव और तीस हज़ारी से जोड़ा गया था। हालांकि शहर की बढ़ती जनसंख्या के कारण 1963 में इस सेवा को बंद करना पड़ा। 1926 में, कर्नल महाराजा रावल सर श्री कृष्ण कुमारसिंहजी भावसिंहजी के शासनकाल में, भावनगर रियासत में लोकोमोटिव-चालित ट्रैम सेवा शुरू की गई।
क्या आप जानते हैं कि हमारे शहर लखनऊ से सटे कानपुर में भी 1907 में ट्रैमवे शुरू हुआ था। इस ट्रैमवे के माध्यम से सिंगल-ट्रैक लाइन से रेलवे स्टेशन और सिरसिया घाट के बीच 6.4 किलोमीटर का मार्ग जोड़ा गया था। 16 मई 1933 को यह सेवा बंद कर दी गई।
संदर्भ
https://tinyurl.com/4hp456uh
https://tinyurl.com/ypt8nu97
https://tinyurl.com/48ybkaac
चित्र संदर्भ
1. भारत में ट्रैम प्रणाली को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
2. कोलकाता में ट्रैम प्रणाली को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. ट्रैम को चलाने के लिये घुड़सवारी सेवा को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. भारत में घोड़ा-चालित ट्रैम को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. ट्रैम टर्मिनल को संदर्भित करता एक चित्रण (GetArchive)
6. कोलकाता में ईडन गार्डन के पास ट्राम को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
7. ठप्प पड़ी ट्राम को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
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