अलग-अलग समय अवधि और विभिन्न देशों में रेलवे पटरियों के बीच की चौड़ाई अलग-अलग क्यों रही?

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अलग-अलग समय अवधि और विभिन्न देशों में रेलवे पटरियों के बीच की चौड़ाई अलग-अलग क्यों रही?

लखनऊ का चारबाग स्टेशन, शहर का सबसे बड़ा और व्यस्ततम रेलवे स्टेशन है। यह सर्वविदित है कि 19वीं शताब्दी के दौरान दिल्ली के बाद, लखनऊ ही उत्तरी क्षेत्र का अगला सबसे महत्वपूर्ण स्टेशन था। बंगाल नागपुर रेलवे को उन अग्रणी कंपनियों में से एक माना जाता है, जिन्होंने पूर्वी और मध्य भारत में रेलवे के विकास को आगे बढ़ाया। बाद में इसका स्थान पूर्व रेलवे और फिर दक्षिण पूर्व रेलवे ने ले लिया। आज हम बंगाल-नागपुर रेलवे के इतिहास, विकास और योगदान को समझने की कोशिश करेंगे। इसके अतिरिक्त, हम भारत में उपयोग किए जाने वाले विभिन्न प्रकार के रेलवे ट्रैक, जैसे ब्रॉड गेज (Broad Gauge), मीटर गेज (Meter Gauge) और नैरो गेज लाइनों (Narrow Gauge Line) तथा इनके बीच के अंतर को भी समझने का प्रयास करेंगे।
भारत में रेलवे का इतिहास 1853 में मुंबई-ठाणे रेल लाइन के खुलने के साथ शुरू हुआ। इसके बाद रेलवे का विस्तार पूरे देश में फैल गया। मुंबई के उत्तरपूर्वी हिस्से में, ग्रेट इंडियन पेनिनसुला / प्रायद्वीपीय रेलवे लाइन (Great Indian Peninsular Railway Line) को भुसावल तक बढ़ाया गया और फिर दो पटरियों में विभाजित किया गया। एक ट्रैक नागपुर और दूसरा जबलपुर की ओर जाता था, जो मुंबई और कोलकाता को जोड़ता था। 1878 में भीषण अकाल के कारण 150 किमी मीटर गेज रेलवे लाइन का निर्माण किया गया जो नागपुर को राजनांदगांव से जोड़ती है। बंगाल नागपुर रेलवे की स्थापना 1887 में नागपुर छत्तीसगढ़ लाइन को अपग्रेड करने और इसे बिलासपुर के माध्यम से आसनसोल तक विस्तारित करने के लिए की गई थी। इससे हावड़ा (कोलकाता) से मुंबई तक, इलाहाबाद के रास्ते जाती मौजूदा रेलवे लाइन की तुलना में एक छोटा मार्ग तैयार हो गया। 1888 में बंगाल नागपुर रेलवे ने ग्रेट इंडियन पेनिनसुला रेलवे से नागपुर छत्तीसगढ़ रेलवे को खरीद लिया और इसे ब्रॉड गेज में बदल दिया। बंगाल नागपुर रेलवे की मुख्य लाइन 1 फरवरी 1891 के दिन नागपुर से आसनसोल तक माल यातायात के लिए खोली गई थी। खड़गपुर को पश्चिम और दक्षिण से जोड़ने के बाद ही इसे 1900 में हावड़ा से जोड़ा गया था। 1925 में, बंगाल नागपुर रेलवे ने पाँच स्टीम रेलकार खरीदे, और 1936 तक कंपनी की संपत्ति में 802 लोकोमोटिव, 5 रेलकार, 692 कोच और 25,434 माल वैगन जुड़ चुके थे। 1944 में भारत सरकार ने बंगाल नागपुर रेलवे का प्रबंधन अपने हाथ में ले लिया। 1952 में पूर्वी रेलवे का गठन किया गया था, और 1955 में दक्षिण पूर्वी रेलवे, (जिसमें ज्यादातर बंगाल नागपुर रेलवे द्वारा संचालित लाइनें शामिल थीं) को पूर्वी रेलवे से अलग कर दिया गया था। 2003 में नए ज़ोन शुरू किए गए जिनमें ईस्ट कोस्ट रेलवे (East Coast Railway) और साउथ ईस्ट सेंट्रल रेलवे (South East Central Railway) शामिल थे। साउथ कोस्ट रेलवे को इन दो नए ज़ोनों के बीच विभाजित किया गया और विशाखापत्तनम में एक नया ज़ोन स्थापित किया गया। दो पटरियों या ट्रैक के बीच या ट्रेन के पहियों के बीच की दूरी को “रेल गेज” कहा जाता है।
रेलवे ट्रैक गेज के तीन मुख्य (मानक, संकीर्ण और चौड़ा) प्रकार के होते है: १. मानक गेज (Standard Gauge): इन तीनों प्रकार में मानक गेज सबसे आम होता है, जिसकी माप या चौड़ाई 1435 मिमी (या 4 फीट 8 1/2 इंच) होती है, और रेलवे प्रणालियों में उपयोग किए जाने वाले सबसे ऐतिहासिक मापों में से एक है। इसकी उत्पत्ति रोमन काल में हुई थी। वैश्विक स्तर पर मानक गेज रेलवे ट्रैक कुल 720,000 किलोमीटर तक फैले हुए हैं, और इस आधार पर यह दुनिया के रेलवे का 60% हिस्सा कवर करते हैं। हालाँकि शुरू से ही हर किसी ने 1435 मिमी चौड़ाई को नहीं अपनाया। इसाम्बर्ड ब्रुनेल (Isambard Brunel) द्वारा निर्मित ग्रेट वेस्टर्न रेलवे (The Great Western Railway) ने स्थिरता बढ़ाने और बड़े भाप इंजनों को समायोजित करने के लिए 2140 मिमी के व्यापक ट्रैक का उपयोग किया। उन्नीसवीं सदी के मध्य में, इन दोनों विशिष्टताओं के बीच ब्रिटेन में बहुत बहस हुई। हालाँकि अंततः विजय मानक गेज की हुई क्यों कि इसे मोड़ना आसान था और यह सस्ता भी था। २.नैरो गेज (Narrow Gauge): रेलवे ट्रैक जो मानक गेज (1435 मिमी) से संकीर्ण यानी पतले होते हैं, उन्हें नैरो गेज के रूप में जाना जाता है। उदाहरण के लिए केप गेज (Cape Gauge) एक प्रकार का नैरो गेज होता है, जो 1067 मिमी चौड़ा होता है। इसे केप गेज इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इसे 1873 में दक्षिण अफ्रीका के पूर्व केप प्रांत द्वारा अपनाया गया था। हालाँकि, इस गेज का उपयोग करने वाला पहला देश नॉर्वे था। केप गेज के अलावा, मीटर गेज (1000 मिमी) उच्च प्रसार वाला एकमात्र अन्य नैरो गेज है, जिसका उपयोग मुख्य रूप से दक्षिण पूर्व एशिया और ब्राजील में किया जाता है। मीटर गेज से संकरी रेलवे की वहन क्षमता काफी कम हो जाती है। ३. ब्रॉड गेज (Broad Gauge): रेलवे ट्रैक जो मानक गेज (1435 मिमी) से अधिक चौड़े होते हैं, उन्हें ब्रॉड गेज के रूप में जाना जाता है। रूसी गेज, इबेरियन गेज और भारतीय गेज तीन सामान्य प्रकार के ब्रॉड गेज हैं।
रूसी गेज: यह गेज, 1524 मिमी चौड़ा होता है, जिसे इंजीनियर पावेल मेलनिकोव (Pavel Melnikov) द्वारा विकसित किया गया था।
इबेरियन गेज: यह गेज 1688 मिमी चौड़ा होता है; इसका उपयोग स्पेन और पुर्तगाल में किया जाता है, दोनों देश इबेरियन प्रायद्वीप पर स्थित हैं। इसे फ्रांस से संभावित आक्रमणों को रोकने के लिए अपनाया गया था।
भारतीय गेज: यह गेज,1676 मिमी चौड़ा होता है; इसे एक अनोखे कारण से चुना गया था। ऐसा माना जाता है कि भारत ने तेज़ हवाओं से ट्रेन के डिब्बों को गिरने से बचाने के लिए चौड़ी रेल का विकल्प चुना । इस चौड़ाई को चुनने वाले निर्णयकर्ता ने बहुत दूरदर्शिता दिखाई। भारतीय ट्रेनों में भीड़भाड़ की स्थिति को देखते हुए, एक संकरी रेल व्यावहारिक नहीं होगी। कई वर्षों से इस बात पर बहस चल रही थी कि भारत में रेलवे गेजों का मानकीकरण किया जाए या नहीं। प्रारंभ में प्रगति धीमी और महंगी थी, इसलिए सभी लाइनों को ब्रॉड गेज में परिवर्तित करने के बजाय उन्होंने मौजूदा मीटर गेज लाइनों को अपग्रेड करने का निर्णय लिया। 1990 के दशक की शुरुआत में 1992 से 2004 तक महत्वपूर्ण प्रयासों के साथ मीटर गेज से ब्रॉड गेज में रूपांतरण शुरू हुआ। कुछ नैरो गेज लाइनें नष्ट कर दी गईं, लेकिन कुछ लाइनें आज भी बनी हुई हैं। दिलचस्प बात यह है कि, ग्वालियर लाइट रेलवे ने 2020 में बंद होने तक दुनिया के सबसे लंबे समय तक चलने वाले 2-फुट गेज रेलवे का खिताब अपने पास रखा। भारत की पहली इलेक्ट्रिक ट्रेन 3 फरवरी, 1925 के दिन बॉम्बे वीटी और कुर्ला हार्बर (Bombay VTand Kurla Harbour) के बीच चलनी शुरू हुई। यह पूर्व-जीआईपी रेलवे प्रणाली (Pre-GIP Railway System) का हिस्सा थी और इसमें 1500 वोल्ट डीसी इलेक्ट्रिक प्रणाली (DC Electric System) का उपयोग किया गया था। बाद में इस विद्युत प्रणाली को पूर्वोत्तर लाइन पर इगतपुरी और मध्य रेलवे की दक्षिणपूर्व लाइन पर पुणे तक विस्तारित किया गया।
5 जनवरी, 1928 को कोलाबा और बोरीविली के बीच पश्चिमी रेलवे के उपनगरीय खंड पर 1500 वोल्ट डीसी प्रणाली भी शुरू की गई थी। इसी तरह इसे 15 नवंबर, 1931 को दक्षिणी रेलवे के मद्रास बीच और तांबरम के बीच पेश किया गया था। इस प्रकार, भारत को आजादी मिलने से पहले ही 388 किमी रेलवे लाइनों को डीसी प्रणाली के साथ विद्युतीकृत कर दिया गया था। भारतीय रेलवे ने 1957 में विद्युतीकरण के मानक के रूप में 25 केवी एसी प्रणाली को अपनाने का निर्णय लिया।

संदर्भ
https://tinyurl.com/yc65vem4
https://tinyurl.com/wbznav47
https://tinyurl.com/2ws4ap68

चित्र संदर्भ
1. रेलवे पटरियों को संदर्भित करता एक चित्रण (Geograph, wikimedia)
2. ग्रेट इंडियन पेनिनसुला रेलवे के लोगो को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. मानक गेज को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. रूसी नैरो गेज भाप इंजन को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. ब्रॉड गेज को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. ट्रैक गेज की ग्राफिक सूची को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
7 . वादी बंदर वायाडक्ट में ग्रेट इंडियन पेनिनसुला इलेक्ट्रिक ट्रेन को दर्शाता चित्रण (wikimedia)

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