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आधुनिक समय में महिलाएं हर तरह की नौकरियों में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही हैं। इसमें कॉर्पोरेट नौकरियां, आईटी नौकरियां, व्यवसाय, और यहां तक कि छोटे पैमाने की नौकरियां भी शामिल हैं। लेकिन, क्या आप जानते हैं, कि भारतीय श्रम कानून में कुछ ऐसे भी कानून हैं, जिन्हें विशेष रूप से महिलाओं के लिए ही बनाया गया है? आइए, आज इनमें से एक कानून "मातृत्व अधिनियम" के बारे में जानते हैं।
गर्भावस्था से मातृत्व तक का सफर प्रत्येक महिला के लिए बहुत ख़ास समय होता है। भारत में, गर्भवती माताओं को अपने बच्चे के जन्म से पहले, और बाद में सहायता, और बहुत सम्मान दिया जाता है। यह हमारी संस्कृति का हिस्सा है। इसलिए, गर्भवती महिलाओं के प्रति ऐसा ही समर्थन कार्यस्थल पर भी होना चाहिए।
यहीं पर, मातृत्व लाभ अधिनियम अपनी भूमिका में आता है। भारत सरकार द्वारा पारित यह कानून, माँ बनने वाली महिलाओं को अपने परिवार पर ध्यान केंद्रित करने के लिए काम से छुट्टी देता है। इस अवकाश को मातृत्व अवकाश के रूप में जाना जाता है।
‘मातृत्व अवकाश एक ऐसा समय होता है, जब गर्भवती हुई कामकाजी महिलाएं अपने बच्चे के जन्म से पहले, और/या उसके बाद में अपने काम से छुट्टी ले सकती हैं।’ 1961 का मातृत्व लाभ अधिनियम (The Maternity Benefit Act of 1961) भारत में मातृत्व अवकाश के नियम निर्धारित करता है। इस कानून के अनुसार, जो महिलाएं मातृत्व अवकाश की पात्र हैं, और मान्यता प्राप्त संगठनों तथा कारखानों में काम करती हैं, वे 6 महीने तक का मातृत्व अवकाश ले सकती हैं। इस छुट्टी को वह अपने बच्चे के जन्म से पहले या बाद में भी ले सकती हैं। इस छुट्टी के दौरान महिला को उसके नियोक्ता द्वारा उसका पूरा वेतन देना जरूरी है।
भारत में, नियोक्ता अपनी महिला कर्मचारियों को बुनियादी मातृत्व अवकाश नियमों के अलावा, लाभ के रूप में अतिरिक्त मातृत्व अवकाश भी दे सकते हैं। महिला कर्मचारियों के अधिकारों की रक्षा के लिए मातृत्व लाभ अधिनियम को कई बार अद्यतन यानी अपडेट भी किया गया है। इसमें सबसे हालिया अपडेट 2017 में किया गया था। अपडेट अधिनियम, कानूनी रूप से तीन महीने से कम उम्र के बच्चे को गोद लेने वाली महिलाओं, और कमीशनिंग माताओं (Commissioning Moms) को 12 सप्ताह का मातृत्व अवकाश देता है। एक कमीशनिंग माँ एक जैविक माँ होती है, जो भ्रूण बनाने के लिए अपने अंडे का उपयोग करती है, जिसे बाद में किसी अन्य महिला के गर्भ में रखा जाता है। 12 सप्ताह का मातृत्व अवकाश उस दिन से शुरू होता है, जिस दिन बच्चा, गोद लेने वाली या नियुक्त करने वाली मां को सौंपा जाता है।
अधिनियम में 2017 का अपडेट एक महिला को उसकी गर्भावस्था के दौरान घर से काम करने की भी अनुमति देता है, यदि उसका काम घर से किया जा सकता है। अपने मातृत्व अवकाश के बाद भी, महिला कंपनी और कर्मचारी दोनों द्वारा सहमत अवधि के दौरान घर से काम करना जारी रख सकती है।
2017 के अपडेट में 50 या अधिक कर्मचारियों वाले सभी व्यवसायों के लिए नजदीकी चाइल्डकैअर सेवाओं (Nearby Child Care Services) की भी आवश्यकता को जरूरी कर दिया गया है। नियोक्ता को, माँ को दिन में चार बार चाइल्डकैअर सुविधा में जाने की अनुमति देनी होगी, जिसमें उसके ब्रेक का समय भी शामिल है। मातृत्व लाभ अधिनियम 1961 उन सभी महिलाओं को कवर करता है ,जो कारखानों, खदानों, बागानों, और 10 या अधिक कर्मचारियों वाले संगठनों में काम करती हैं।
मातृत्व अवकाश किसे मिल सकता है?
१. मातृत्व लाभ अधिनियम 1961 कहता है कि एक महिला के लिए अपनी अपेक्षित डिलीवरी तिथि से पहले 12 महीनों में कम से कम 80 दिनों तक अपने नियोक्ता के साथ काम करना जरूरी है। यदि वह इस समयावधि को पूरा करती है, तो वह मातृत्व अवकाश ले सकती है, जिसकी अनुमति कानून देता है। साथ ही वह उसके नियोक्ता द्वारा दी जाने वाली कोई भी अतिरिक्त छुट्टी या लाभ ले सकती है।
२. वे सभी महिलाएं जो गर्भवती हैं, बच्चे को गोद ले रही हैं, या जिनका गर्भपात हो चुका है, उन्हें भी भारत में मातृत्व अवकाश मिल सकता है, क्योंकि वे भारत में मां बनने के मानदंडों को पूरा करती हैं। सरोगेट माताएं, जो किसी और के लिए बच्चा पालती हैं, उन्हें गोद लेने वाले माता-पिता को बच्चा सौंपने के दिन से 26 सप्ताह तक का मातृत्व अवकाश मिल सकता है।
भारत में मातृत्व अवकाश सार्वजनिक, और निजी दोनों क्षेत्रों की महिला कर्मचारियों को मिलता है। उनके अधिकार मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 के तहत संरक्षित हैं। यह कानून उन सभी कार्यस्थलों को कवर करता है, जिनमें 10 या अधिक कर्मचारी हैं। साथ ही यह सुनिश्चित करता है, कि महिला कर्मचारियों को गर्भावस्था, प्रसव के दौरान, और उसके बाद मातृत्व अवकाश लेने पर भुगतान किया जाए।
हालाँकि, भारतीय मातृत्व लाभ अधिनियम उन महिलाओं पर लागू नहीं होता है, जो स्व-रोज़गार हैं, या 10 से कम कर्मचारियों वाली जगहों पर काम करती हैं।
मातृत्व लाभ अधिनियम 1961 कहता है, कि पहली, और दूसरी बार मां बनने वाली महिलाएं 6 महीने या 26 सप्ताह की छुट्टी ले सकती हैं। उसके बाद कोई भी बच्चा होने पर मां अपने मातृत्व अवकाश के लिए 3 महीने या 12 सप्ताह की छुट्टी ले सकती है, जहां उसके नियोक्ता को उसे पूरा वेतन देना होगा।
मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 भारत गणराज्य के बारहवें वर्ष में संसद द्वारा पारित किया गया था। इस कानून को भारत के राष्ट्रपति द्वारा 12 दिसंबर, 1961 को मंजूरी दी गई थी। इसे 13 दिसंबर, 1961 को एक आधिकारिक सरकारी प्रकाशन, भारत के राजपत्र में प्रकाशित किया गया था। यह पूरे भारत पर लागू होता है। यह कानून खदानों के लिए 1 नवंबर 1963 को लागू हुआ। पूरे उत्तर प्रदेश के लिए यह कानून 22 फरवरी 1974 के दिन लागू हुआ।
यह अधिनियम कारखानों, खदानों, बागानों जैसे विभिन्न प्रतिष्ठानों में काम करने वाली महिलाओं पर लागू होता है, और यहां तक कि उन स्थानों पर भी लागू होता है, जहां घुड़सवारी और कलाबाजी जैसे प्रदर्शन आयोजित किए जाते हैं। इस कानून के सभी या कुछ हिस्से अन्य प्रकार के प्रतिष्ठानों, जैसे औद्योगिक, वाणिज्यिक, कृषि आदि पर भी लागू होते हैं। लेकिन यह कानून किसी ऐसे कारखाने या अन्य प्रतिष्ठान पर लागू नहीं होता है, जो पहले से ही कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम, 1948 के अंतर्गत आता है।
मातृत्व अवकाश के नियम:
- नियोक्ता को मातृत्व अवकाश के दौरान महिला को पूरा वेतन देना होगा। यह वेतन उसके मातृत्व अवकाश से पहले के 3 महीनों के वास्तविक वेतन, या दैनिक वेतन पर आधारित है।
- नियोक्ताओं को किसी महिला को उसके प्रसव या गर्भपात के बाद 6 सप्ताह तक काम पर नहीं रखना चाहिए|
- गर्भवती कर्मचारियों को स्वच्छ शौचालय, आरामदायक काम करने और बैठने की व्यवस्था और सुरक्षित पेयजल तक पहुंच होनी चाहिए।
- नियोक्ताओं को अपेक्षित डिलीवरी तिथि से 10 सप्ताह पहले गर्भवती महिलाओं को कठिन कार्य, या लंबे समय तक काम नहीं करने देना चाहिए।
- यदि माताएँ मातृत्व अवकाश के बाद काम पर नहीं लौट सकतीं, तो नियोक्ता आपसी समझौते के माध्यम से उन्हें अतिरिक्त छुट्टियाँ दे सकते हैं।
- नियोक्ता आपसी समझौते के माध्यम से माताओं को घर से काम करने की अनुमति भी दे सकते हैं।
- एक गर्भवती महिला अपने नियोक्ता को लिखित सूचना देकर मातृत्व अवकाश के लिए आवेदन कर सकती है। उसे वह तारीख भी बतानी होगी, जिस दिन से वह काम से अनुपस्थित रहेगी।
यह अधिनियम महत्वपूर्ण है क्योंकि:
- यह अधिनियम महिलाओं को गर्भावस्था, प्रसव, सरोगेसी और गोद लेने के दौरान अपने स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित करने का समय देता है।
- यह अधिनियम काम पर लौटने के बाद स्तनपान जारी रखने और, शिशु देखभाल की योजना बनाने में उनकी सहायता करता है।
- यह अधिनियम गर्भावस्था, और प्रसव के दौरान जटिलताओं के जोखिम को कम करने में मदद करता है।
- यह अधिनियम महिलाओं की वित्तीय स्वतंत्रता सुनिश्चित करता है।
- यह अधिनियम गर्भवती महिलाओं के लिए आरामदायक बैठने की व्यवस्था, कम तनावपूर्ण जिम्मेदारियाँ और सुरक्षित पेयजल जैसी कार्यस्थल सुविधाओं को अनिवार्य करता है।
- मातृत्व अवकाश नई माताओं को शारीरिक रूप से ठीक होने का समय देता है।
- मातृत्व अवकाश नई माताओं को अपने नवजात शिशुओं के साथ बंधन में बंधने का समय देता है।
हालाँकि, इससे जुड़ी कुछ चुनौतियाँ भी हैं। जैसे:
- यह कार्य संतुलन पर दबाव डाल सकता है।
- मातृत्व अवकाश पर गई महिला के लिए अस्थायी प्रतिस्थापन ढूंढना मुश्किल हो सकता है।
- प्रतिस्थापन का प्रशिक्षण कर्मचारी की उत्पादकता को प्रभावित कर सकता है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/mshxpn4s
https://tinyurl.com/yc5rsj2n
https://tinyurl.com/bdd2v3uy
चित्र संदर्भ
1. जूते को पकड़े हुए एक भारतीय जोड़े को संदर्भित करता एक चित्रण (Freerange Stock)
2. ऑफिस का काम करती प्रेग्नेंट महिला को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. खुद को शीशे में देखती एक प्रेग्नेंट महिला को संदर्भित करता एक चित्रण (pixels)
4. योग करती एक प्रेग्नेंट महिला को संदर्भित करता एक चित्रण (Freerange Stock)
5. अपनी बेटी के साथ एक प्रेग्नेंट महिला को संदर्भित करता एक चित्रण (PickPik)
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