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वर्तमान काल की पर्यावरणीय समस्याओं को देखते हुए, हमारे शहर लखनऊ को आज अधिक ‘पर्यावरण अनुकूलित’ बनाने की आवश्यकता है। दरअसल, पैट्रिक गेडेस(Patrick Geddes) नामक एक अंग्रेज नगर योजनाकार ने लखनऊ का पहला मास्टर प्लान बनाया था। हालांकि, ब्रिटिश राज द्वारा इस प्लान को केवल आंशिक रूप से लागू किया गया था। लेकिन, इसी प्लान के कारण, आज भी हमारे शहर में हरित स्थान मौजूद हैं। तो आइए, आज पैट्रिक गेडेस की पुस्तक “गेडेस इन इंडिया(Geddes in India)” के बारे में जानकर, उनके काम को फिर से खोजने और अपनाने की आवश्यकता के बारे में बात करते हैं। साथ ही, लेख में गेडेस के काम में रवींद्रनाथ टैगोर की गहरी रुचि पर भी ध्यान देते हैं।
पैट्रिक गेडेस (1854-1932) एक समय “मानवतावादी” शहरी विकास के प्रसिद्ध मसीहा और प्रभावशाली समाज सुधारक थे। जीवनीकारों ने उन्हें “व्यवहार में प्रतिभाशाली, साहसी और महत्वाकांक्षी, एक सटीक पर्यवेक्षक तथा मर्मज्ञ अंतर्दृष्टि वाले विद्वान” के रूप में वर्णित किया है।
समाजशास्त्र की शैक्षणिक शाखा एवं शहरी नियोजन के पेशे में, यूनाइटेड किंगडम(United Kingdom) में उन्हें प्रणेता माना जाता है। एक तरफ, गेडेस ने हमारे देश भारत में समाजशास्त्र और शहरी नियोजन विषयों की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और 1919 में मुंबई विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र विभाग की स्थापना भी की। भारत में अपने कई प्रवासों के दौरान, उन्होंने भारतीय शहरों के लिए लगभग 50 नगर नियोजन रिपोर्टें तैयार की, जिनमें उनके नवीनीकरण का प्रस्ताव था। इन रिपोर्टों को व्यापक रूप से ऐसे शास्त्र में महत्वपूर्ण योगदान माना जाता है।
गेडेस का मानना था कि, ‘सामाजिक प्रक्रियाएं’ और ‘स्थानिक रूप’ घनिष्ठ रूप से जुड़े हुए हैं। इसलिए, नागरिकों को अपने आवास के परिवर्तन में प्रतिनिधि बनने की आवश्यकता है। उन्होंने अपने लेखों, व्याख्यानों और दूरदर्शी प्रदर्शनियों के माध्यम से अपने विचारों को अथक रूप से प्रचारित किया, जिसका उद्देश्य जनता को शहरी मुद्दों से परिचित कराना था।
गेडेस की नगर नियोजन रिपोर्ट के बारे में एक उल्लेखनीय बात है। उन्होंने ब्रिटिश शहरों की समस्याओं को हल करने के लिए विकसित किए गए, नगर नियोजन सिद्धांतों और मानदंडों की दृष्टि के माध्यम से, भारतीय शहरों को देखने की औपनिवेशिक प्रथा का पालन करने के बजाय, स्थानीय सांस्कृतिक और पर्यावरणीय संदर्भ को समझकर भारतीय शहरीकरण की समस्याओं को संबोधित किया। हालांकि, शायद इसी वजह से, उनके विचारों को अमान्य ठहराया गया।
आइए, अब गेडेस के बारे में एक अन्य दिलचस्प कहानी पढ़ते हैं। वर्ष 1915 में, गेडेस शहर और नगर नियोजन प्रदर्शनी लेकर कलकत्ता गए थे। तब रवींद्रनाथ टैगोर इस प्रदर्शनी को देखने वहां गए और गेडेस से मिलें। वहां मिलने के बाद उनकी दोस्ती शुरू हुई, और बढ़ती गई। दरअसल, गेडेस पहले से ही, टैगोर की कविताओं से प्रभावित थे। साथ ही, उत्तरी कलकत्ता के जोरासांको में, टैगोर के संयुक्त परिवार वाले निवास के गरिमामय मेहराबदार घरों के लिए एवं टैगोर की कुलीन परंपरा के लिए गेडेस के मन में काफ़ी सराहना और सम्मान था। दूसरी ओर, टैगोर तथा गेडेस को भी गरीब लोगों की बस्तियों के प्रति सराहना थी। इसलिए, टैगोर और गेडेस ने अपनी रचनाओं के माध्यम से, सबसे गरीब इलाकों में सामुदायिक जीवन का सम्मान और नवीनीकरण करने का प्रयास किया। टैगोर स्वयं, हालांकि अपनी मेहराबदार शहरी निवास में घर पर रहते थे, उन्होंने शांतिनिकेतन में अपने लिए मिट्टी की दीवारों वाले तीन कमरे और फूस की छत वाली झोपड़ी बनाई। तथा, श्रीनिकेतन में एक फैले हुए बरगद की शाखाओं पर एक सुंदर लकड़ी की दीवार वाला, फूस का घर भी बनाया।
स्वतंत्र-पूर्व भारत की पृष्ठभूमि में, पैट्रिक गेडेस तेजी से हुए शहरीकरण से आकार लेने वाली एक कथा को उजागर करते है, जो योजनाकारों और नागरिकों के बीच समान रूप से गूंजने वाले सामाजिक और पर्यावरणीय मुद्दों पर प्रकाश डालती है। गेडेस ने इन समस्याओं का स्पष्ट रूप से अनुमान लगाया, क्योंकि, वह समकालीन नगर-नियोजन प्रथाओं, पर्यावरण या निवासियों के बारे में विचार किए बिना जबरदस्ती योजनाओं को नियोजित करने की कड़ी निंदा करते हैं।
गेडेस का सुझाव है कि, पर्यावरण और जीव, स्थान और लोग अविभाज्य हैं। चूंकि, किसी शहर की आवश्यक इकाई ‘घर’ है, इसलिए, “गेडेस इन इंडिया” पुस्तक, सुझाव देती है कि, हमें किसी भी आवास के निवासियों, पुरुष, महिला और बच्चों पर विचार करना चाहिए। यह व्यापक दृष्टिकोण शहरी गतिशीलता की समझ को समृद्ध करता है, और निवासियों की सूक्ष्म आवश्यकताओं को संबोधित करता है।
दूसरी तरफ, क्या आप जानते हैं कि, हमारे शहर लखनऊ में उन्होंने कुछ संरचनाओं के ‘पुराने शिल्प कौशल और सुंदरता’ की बड़ी सराहना की थी। उनके अनुसार, यह शहर के आवास रूपों के अनुकूल था। उन्होंने सुझाव दिया कि, स्थानीय कारीगरों को अपनी अनूठी विशेषज्ञता का अभ्यास करने की अनुमति दी जानी चाहिए। परंतु यह अफ़सोस की बात है कि, उनकी सलाह अनसुनी ही रह गई। उनके लिए ‘जीवन को समग्रता में देखना’ ही समाधान था। उन्होंने समझा था कि जीवन, प्रकृति और संस्कृति दोनों के उद्भव के लिए मौलिक प्रक्रिया है। प्रकृति और संस्कृति की मौलिक एकता के संदर्भ में, गेडेस ने तर्क दिया कि, ‘अर्थशास्त्र के जैविक सिद्धांतों का मुख्य उद्देश्य भोजन और आश्रय नहीं बल्कि, संस्कृति और शिक्षा थी’।
संदर्भ
https://tinyurl.com/4ce67n42
https://tinyurl.com/2637rz9h
https://tinyurl.com/4mt5d6n9
https://tinyurl.com/3n9dat5t
https://tinyurl.com/4hfnkpt4
चित्र संदर्भ
1. पैट्रिक गेडेस और विक्टोरिया गंज में एक अज्ञात फोटोग्राफर द्वारा ली गई मेहराबदार कार्यालय या गोदाम की तस्वीर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. 1886 में पैट्रिक गेडेस की तस्वीर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. पैट्रिक गेडेस द्वारा निर्मित एक शहर के रेखाचित्र को दर्शाता एक चित्रण (picryl)
4. गेडेस इन इंडिया नामक पुस्तक को संदर्भित करता एक चित्रण (AbeBooks)
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