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आज अंबेडकर जयंती है, और आदरणीय बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर को मुख्य रूप से "भारतीय संविधान की रचना करने में उनके योगदान" के लिए जाना जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि हमारी भारतीय शिक्षा प्रणाली और मानवाधिकारों को आकार देने में भी उनकी अतुलनीय भूमिका रही है।
भारत में प्रतिवर्ष 14 अप्रैल के दिन को डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर के योगदान के सम्मान में अंबेडकर जयंती के रूप में मनाया जाता है। पूरे विश्व में उन्हें "भारतीय संविधान के जनक" के रूप में जाना जाता है। उन्होंने भारत के लोकतांत्रिक ढांचे को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। डॉ. अंबेडकर हाशिये पर पड़े यानी पिछड़े हुए तथा छुआछूत जैसे सामजिक भेदभावों का सामना कर रहे लोगों को शिक्षित करने, उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार करने और अछूतों के खिलाफ सामाजिक भेदभाव को समाप्त करने के लिए प्रतिबद्ध थे। आज उनके जन्मदिन को भारत में "समानता दिवस" के रूप में भी मनाया जाता है।
14 अप्रैल, 1891 में जन्मे डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर द्वारा हिंदू धर्म का त्याग करने के उनके फैसले ने दलित बौद्ध आंदोलन के लिए उत्प्रेरक का काम किया। 1947 से 1951 तक, डॉ. अंबेडकर ने भारत के संविधान की मसौदा समिति की अध्यक्षता की और जवाहरलाल नेहरू के उद्घाटन मंत्रिमंडल में कानून और न्याय मंत्री के पद पर काबिज़ रहे।
1918 में, वह मुंबई में सिडेनहैम कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड इकोनॉमिक्स (Sydenham College of Commerce and Economics in Mumbai) में राजनीतिक अर्थव्यवस्था के प्रोफेसर बन गए। 1925 तक, वह अखिल-यूरोपीय साइमन कमीशन (Pan-European Simon Commission) के साथ सहयोग करते हुए बॉम्बे प्रेसीडेंसी समिति (Bombay Presidency Committee) का भी हिस्सा रहे थे। इस दौरान, उन्होंने भारत के भविष्य के संविधान हेतु सिफारिशों का एक अलग सेट लिखा। 1927 में, उन्होंने अस्पृश्यता विरोधी अभियान शुरू किया, सार्वजनिक पेयजल तक पहुंच में सुधार के लिए सार्वजनिक प्रदर्शन और मार्च आयोजित किए और हिंदू मंदिरों में प्रवेश के अधिकार की वकालत की।
अक्टूबर 1947 में भारत को आज़ादी मिलने के बाद, नई कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार ने अंबेडकर को देश के पहले कानून मंत्री के रूप में काम करने के लिए आमंत्रित किया, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया। 29 अगस्त के दिन उन्होंने भारत के नए संविधान को तैयार करने के लिए ज़िम्मेदार संविधान मसौदा समिति के अध्यक्ष की भूमिका निभाई। अपने पूरे जीवन काल में, अंबेडकर ने वंचित सामाजिक वर्गों और महिलाओं के सामाजिक स्तर को ऊपर उठाते हुए, समानता का समर्थन किया। उनका "अधिकारों की समानता के प्रति" दृष्टिकोण कई संवैधानिक कानूनों में भी झलकता है। डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर के द्वारा किये गए ऐसे ही परिवर्तनीय कार्यों के सम्मान में उनके जन्मदिन को आज "अंबेडकर जयंती" के रूप में मनाया जाता है। 14 अप्रैल, 1928 को कार्यकर्ता जनार्दन सदाशिव राणापिसे ने पुणे में सार्वजनिक रूप से अंबेडकर का जन्मदिन मनाया।
लेख में आगे अंबेडकर जयंती की समयरेखा का संक्षिप्त विवरण दिया गया है:
1. 2015: अंबेडकर जयंती को पूरे भारत में आधिकारिक तौर पर छुट्टी के रूप में मान्यता दी गई।
2. 2015: गूगल ने अंबेडकर के 124वें जन्मदिन पर उनके सम्मान में डूडल प्रकाशित करके उन्हें सम्मानित किया।
3. 2016: संयुक्त राष्ट्र भी 14 अप्रैल के दिन को अंबेडकर जयंती के सम्मान में मनाता है।
4. 2020: पहली बार विश्व स्तर पर अंबेडकर जयंती ऑनलाइन मनाई गई।
5. 2021: ब्रिटिश कोलंबिया सरकार ने 14 अप्रैल को डॉ.बी. आर. अंबेडकर समानता दिवस के रूप में मनाना शुरू किया।
भारत के हाशिये पर पड़े समुदायों के समर्थक रहे डॉ. बी.आर. अंबेडकर का मानना था कि सामाजिक बदलाव लाने के लिए "शिक्षा" ही एक सर्व शक्तिशाली उपकरण के रूप में काम कर सकती है। इसलिए उन्होंने उत्पीड़ितों की नैतिकता और क्षमताओं में सुधार लाने के भी बहुधा प्रयास किये थे।
उन्होंने स्वयंसेवी कार्यों और संगठनों के माध्यम से कई शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना की। अंबेडकर ने भारत की शिक्षा प्रणाली के आधुनिकीकरण की पुरजोर वकालत की और सभी के लिए, विशेषकर वंचितों के लिए सार्वभौमिक शिक्षा पर भारी जोर दिया।
शिक्षा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता की एक झलकी तब देखने को मिली जब उन्होंने जातिगत बाधाओं को खत्म करने के उद्देश्य से बॉम्बे और औरंगाबाद में पीपुल्स एजुकेशन सोसाइटी (People's Education Society) की स्थापना की। उनके अनुसार, "सामाजिक बदलाव लाना, प्रत्येक शैक्षणिक संस्थान की जिम्मेदारी होनी चाहिए।" डॉ अंबेडकर ने श्रमिकों और किसानों के अधिकारों की मजबूती के साथ वकालत की। 1930 के दशक के दौरान, उन्होंने इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी (Dependent Labor Party) की स्थापना की और महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र में किरायेदारों के हितों का सक्रिय रूप से समर्थन किया। इसमें दलित महार और जातीय हिंदू कुनबी दोनों शामिल थे।
1938 में विशेष रूप से, इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी ने मुंबई तक 20,000 किसानों का एक विशाल मार्च निकाला, जिसे इस क्षेत्र में स्वतंत्रता-पूर्व की सबसे बड़ी किसान लामबंदी (जुटाना) माना जाता है। उसी वर्ष, डॉ अंबेडकर ने मुंबई के कपड़ा श्रमिकों के बीच हड़ताल आयोजित करने के लिए कम्युनिस्टों का भी सहयोग किया। उनके विरोध करने का प्रमुख उद्देश्य ब्रिटिश सरकार द्वारा पेश किए गए प्रस्तावित श्रमिक हड़ताल-सीमित विधेयक का असमर्थन करना था। अंबेडकर ने बड़े साहसपूर्वक तरीके से इस विधेयक की निंदा की और कहा कि "हड़ताल का अधिकार, एकत्र होने की स्वतंत्रता के अधिकार का पर्याय है।" इसके अलावा, ब्रिटिश राज के दौरान, अंबेडकर ने अनुसूचित जाति (दलित वर्ग) की सुरक्षा और कल्याण के लिए सक्रिय रूप से वकालत की।
डॉ. अंबेडकर की दृष्टि ने लोगों से तार्किक सोच और वैज्ञानिक मानसिकता विकसित करने पर जोर दिया। उनकी विचारधारा पूर्व में बुद्ध की प्रथाओं और पश्चिम में जॉन डेवी के विचारों से प्रेरित नजर आती है। आज भी उनकी विरासत दलितों और अल्पसंख्यकों के लिए शैक्षिक उन्नति का स्तंभ बनी हुई है। डॉ. बी.आर.अंबेडकर ने पूरे भारत में दलित वर्गों की पीड़ा को एक क्रांतिकारी ताकत में बदल दिया। उनकी ही बदौलत आज़ादी से पहले उत्पीड़ित समुदायों के सदस्यों को आज, हम नए आत्मविश्वास और सम्मान के साथ शहरों और गांवों की सड़कों पर चलते हुए देख रहे हैं।
संदर्भ
https://tinyurl.com/3tmjvsv7
https://tinyurl.com/3zsb3dye
https://tinyurl.com/3bykt7ce
चित्र संदर्भ
1. बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर को किताब पढ़ते हुए संदर्भित करता एक चित्रण (picryl)
2. एक भारतीय मजदूर को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
3. बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. 30 अक्टूबर 1954 को नेशनल स्पोर्ट्स क्लब ऑफ इंडिया, नई दिल्ली और कोलंबिया यूनिवर्सिटी, यूएसए द्वारा आयोजित एक सेमिनार को संबोधित कर रहे बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर को दर्शाता एक चित्रण (picryl)
5. डॉ. भीमराव अंबेडकर के अभिभाषण को दर्शाता एक चित्रण (picryl)
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