क्या प्राचीन भारतीय ‘सिंधु लिपि’ से ही हुई है, ‘ब्राह्मी लिपि’ की उत्पत्ति?

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क्या प्राचीन भारतीय ‘सिंधु लिपि’ से ही हुई है, ‘ब्राह्मी लिपि’ की उत्पत्ति?

क्या आप जानते हैं कि, भारतीय उपमहाद्वीप पर सबसे पहली ज्ञात लेखन प्रणाली ‘सिंधु लिपि’ है। इसका निर्माण सिंधु घाटी सभ्यता के दौरान हुआ था। दूसरी ओर, हम प्राचीन लेखन प्रणाली के तौर पर ‘ब्राह्मी लिपि’ का भी नाम सुनते हैं। तो क्या ब्राह्मी और सिंधु लिपियों का एक दूसरे से कोई संबंध है? या फिर, क्या ‘सिंधु लिपि’ से ही ‘ब्राह्मी लिपि’ की उत्पत्ति हुई है? आइए, आज इस लेख के माध्यम से जानते हैं।
सिंधु लिपि, जिसे हड़प्पा लिपि के रूप में भी जाना जाता है, सिंधु घाटी सभ्यता द्वारा निर्मित कुछ लेखन प्रतीकों का एक संग्रह है। सिंधु लेखन के उदाहरण मुहरों और मुहर छापों, मिट्टी के बर्तनों, कांस्य उपकरणों, पत्थर से बनी चूड़ियों, हड्डियों, सीपियों, करछुल, हाथी के दांत और स्टीटाइट(Steatite), कांस्य या तांबे से बनी छोटी टिकियों पर पाए गए हैं। वर्गाकार स्टांप सीलें(Stamp seals) भी सिंधु लेखन साधनों का प्रमुख रूप हैं। वे आम तौर पर एक इंच वर्ग (2.54 सेंटीमीटर) के होते हैं, जो शीर्ष पर लिपि और केंद्र में एक पशु आकृति प्रदर्शित करते हैं। वे मुख्य रूप से स्टीटाइट से बने होते हैं। उनमें से कुछ सीलों में चिकनी कांच जैसी दिखने वाली सामग्री की एक परत शामिल होती है। लेकिन, चांदी, फ़ाइनेस(Faience) और कैल्साइट(Calcite) से बनी मुहरों के भी उदाहरण हमें देखने को मिलते हैं।
कुछ अनुमानों के अनुसार, तब कुछ मुहरों का उपयोग ताबीज या तावीज़ के रूप में किया गया होगा। लेकिन, पहचान के लिए एक चिन्ह के रूप में उनका व्यावहारिक कार्य भी था। चूंकि, प्राचीन काल में लेखन, आम तौर पर लेनदेन को रिकॉर्ड करने और नियंत्रित करने की कोशिश करने वाले अभिजात वर्ग से जुड़ा होता है, इसलिए यह भी माना जाता है कि, सिंधु लिपि का उपयोग एक प्रशासनिक उपकरण के रूप में किया जाता था। व्यापारियों के बीच व्यापार किए जाने वाले सामानों के गठ्ठो से जुड़े मिट्टी के टैग पर भी इस लिपि का उपयोग किए जाने के उदाहरण हैं। इनमें से कुछ मिट्टी के टैग सिंधु घाटी के बाहर, मेसोपोटामिया क्षेत्र(Mesopotamia region) में भी पाए गए हैं, जो इस बात का प्रमाण है कि, प्राचीन काल में कितनी व्यापक वस्तुओं की आवाजाही होती थी। सिंधु लिपि का उपयोग ‘कथा चित्रण’ के संदर्भ में भी किया गया था। इन छवियों में मिथकों या कहानियों से संबंधित दृश्य शामिल थे, जहां इस लिपि को सक्रिय मुद्रा में चित्रित मनुष्यों, जानवरों और/या काल्पनिक प्राणियों की छवियों के साथ जोड़ा गया था। यह अंतिम उपयोग धार्मिक और साहित्यिक उपयोग जैसा दिखता है, जो अन्य लेखन प्रणालियों में अच्छी तरह से प्रमाणित है।
चूंकि, सिंधु लिपि को अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है, इसलिए, इसका उपयोग निश्चित रूप से ज्ञात नहीं है। और हम जो कुछ भी सोचते हैं, वह केवल पुरातात्विक साक्ष्यों पर आधारित है। इन प्रतीकों वाले अधिकांश शिलालेख बेहद छोटे हैं। इस कारण, यह तय करना मुश्किल हो जाता है कि, क्या ये प्रतीक किसी भाषा को रिकॉर्ड करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली, लिपि का गठन करते हैं या नहीं; या फिर, यहां तक कि, एक लेखन प्रणाली का प्रतीक है भी या नहीं। अनेक प्रयासों के बावजूद अभी तक इस ‘लिपि’ को समझा नहीं जा सका है, लेकिन, इसके प्रयास जारी हैं। दूसरी ओर, सिंधु लिपि को समझने में मदद करने के लिए, कोई ज्ञात द्विभाषी शिलालेख मौजूद नहीं है। और समय के साथ इस लिपि में कोई महत्वपूर्ण परिवर्तन भी नहीं दिखता है। इस लिपि की प्रकृति को लेकर भाषाविदों और भारतविदों के बीच गहरी असहमति है। भारतविदों का दावा है कि, सिंधु लिपि बिल्कुल भी भाषाई नहीं रही होगी। जबकि, कुछ भाषाविदों का कहना है कि, यह काफी हद तक भाषाई थी, और संभवतः द्रविड़ भाषा परिवार से संबंधित थी। एक तरफ, कई विद्वानों ने कहा है कि, ब्राह्मी और सिंधु दोनों लिपियों के बीच एक संबंध है। ब्राह्मी लिपि, सिंधु लिपि के बाद भारत में विकसित सबसे प्रारंभिक लेखन प्रणाली है। यह सबसे प्रभावशाली लेखन प्रणालियों में से एक है। सभी आधुनिक भारतीय लिपियां और दक्षिण पूर्व तथा पूर्वी एशिया में पाई जाने वाली सैकड़ों लिपियां ब्राह्मी से ली गई हैं। 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में, जॉर्ज बुहलर(Georg Bühler) ने इस विचार को आगे बढ़ाया था कि, ब्राह्मी सेमेटिक लिपि(Semitic script) से ली गई थी। जबकि, ब्राह्मण विद्वानों द्वारा इसे संस्कृत और प्राकृत के ध्‍वनिविज्ञान के अनुरूप अनुकूलित किया गया था। छठी शताब्दी ईसा पूर्व के दौरान, भारत सेमेटिक लेखन के संपर्क में आया था, जब फ़ारसी अचमेनिद साम्राज्य(Achaemenid Empire) ने सिंधु घाटी पर नियंत्रण कर लिया। जबकि, सिंधु लिपि बनी रही, तथा धीरे-धीरे रैखिक हो गई। और अंततः यह ब्राह्मी लिपि के रूप में विकसित हो गई। परंतु, कुछ विद्वान इस सिद्धांत में विश्वास नहीं करते हैं। उनके अनुसार, सिंधु लिपि लगभग 1500 ईसा पूर्व के बाद अस्तित्व में थी। जबकि, ब्राह्मी लिपि के सबसे पुराने निर्विवाद उदाहरण लगभग 300 ईसा पूर्व, राजा अशोक के समय के हैं।
ब्राह्मी लिपि की उत्पत्ति को और भी प्राचीन, अर्थात, पहली सहस्राब्दी ईसा पूर्व के मध्य में भारत-गंगा या लौह युग सभ्यता की शुरुआत तक माना जा सकता है। क्योंकि, अशोक ने ब्राह्मी लिपि का आविष्कार करने का दावा नहीं किया है, इसलिए इसकी संभावना अधिक है कि, ब्राह्मी लिपि उनसे पहले ज्ञात थी। इसका उपयोग कई बार, और शायद व्यापारियों द्वारा व्यावसायिक रूप से उपयोग किया जाता था। यह असंभव नहीं है, लेकिन फिर भी, ब्राह्मी लिपि की शुरुआत और सिंधु लिपि के पूर्ण पतन से पहले कम से कम 1,000 वर्षों का अंतर है।

संदर्भ
https://tinyurl.com/y7cn26x7
https://tinyurl.com/2ekpd53f
https://tinyurl.com/4z7w7fnn
https://tinyurl.com/2h7k5jxf

चित्र संदर्भ

1. 'सिंधु लिपि’ और ‘ब्राह्मी लिपि को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. सिंधु लिपि में लिखी गई गिनती को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. जानवरों के साथ सिंधु लिपि के पात्रों वाली तीन स्टांप सीलों को दर्शाता एक चित्रण (wikipedia)
4. ब्राह्मी लिपि को दर्शाता एक चित्रण (wikipedia)
5. तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व और पहली शताब्दी ईस्वी के बीच ब्राह्मी लिपि सुलेख को दर्शाता एक चित्रण (wikipedia)

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