भारत में खाद्य सुरक्षा क्यों आवश्यक है? एवं जानें इससे सम्बन्धित समस्याओं का समाधान

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भारत में खाद्य सुरक्षा क्यों आवश्यक है? एवं जानें इससे सम्बन्धित समस्याओं का समाधान

हमारे देश भारत में हर वर्ष, बड़ी मात्रा में अनाज की पैदावार होती है, जिससे पूरे देश का पेट भर सकता है। लेकिन दूसरी ओर, भारत के लगभग 24 करोड़ लोग को प्रतिदिन खाली पेट ही सोना पड़ता है। दुःखद पहलू यह है कि, दुनिया में पैदा होने वाला लगभग आधा खाना, हर साल इसके उपयोग के पहले ही सड़ जाता है। भारत में और हमारे शहर लखनऊ में भी, लाखों टन अनाज सड़ जाता है। तो आज, इस लेख के द्वारा इस खाद्य संकट को समझें और जानें कि कैसे भारत में प्रभावी खाद्य वितरण तंत्र का अभाव है। साथ ही यह भी देखिए कि, हम खाने की बर्बादी को कैसे रोक सकते हैं।
हमारा देश भारत उन देशों में से एक है, जहां उच्च कृषि उपज के बावजूद भुखमरी व्यापक रुप से फैली हुई है। कई सरकारी और निजी कल्याण पहलों के बावजूद, भ्रष्टाचार, पुरानी संरचनात्मक खामियां और वैश्विक घटनाओं का प्रभाव देश में भूखमरी से लड़ने के लक्ष्य में हमारी बाधा बन रहा है। भारत की बढ़ती प्रति व्यक्ति आय के बावजूद, आज भी देश के लाखों बच्चे और महिलाएं भूखमरी से पीड़ित हैं। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत की 16% आबादी कुपोषित है, जिसमें 53% प्रजनन-आयु वर्ग वाली महिलाएं हैं। और तो और, इन्हीं महिलाओं में खून की कमी भी हो रही है। 17.3% से अधिक बच्चे तीव्र कुपोषण से पीड़ित हैं। जबकि, 30.9% से अधिक बच्चे अविकसित हैं। इस कारण, उन्हें मलेरिया, निमोनिया, डायरिया आदि बीमारियां होती हैं, जो भारत में बाल मृत्यु का एक प्रमुख कारण हैं।
भारत जैसे देश में, जहां 65% आबादी ग्रामीण है, और 54.6% कार्यबल कृषि और इससे संबंधित गतिविधियों में शामिल है, गरीबी और भूखमरी काफ़ी हद तक कृषि पर भी निर्भर है। कम भूमि स्वामित्व, मानसून वर्षा पर इसकी निर्भरता, सीमित सिंचाई ढांचा, कम कृषि वित्तपोषण और न्यूनतम सरकारी पहल कृषि में गंभीर और पुरानी समस्याएं हैं। यह स्थिति चिंताजनक है, क्योंकि, इससे सभी के लिए स्वस्थ भोजन की उपलब्धता प्रभावित हो रही है।
प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से, भारत की भूखमरी की समस्या को बढ़ाने वाले अन्य कारणों में बेरोजगारी, सामाजिक और लैंगिक असमानताएं, सामाजिक क्षेत्र में कम निवेश, स्वास्थ्य और स्वच्छता के बारे में जागरूकता की कमी आदि शामिल हैं। जलवायु परिवर्तन और वैश्विक प्रभाव वाले युद्ध भी भारत की खाद्य सुरक्षा को प्रभावित करते हैं। यह गरीब लोगों को स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा आदि, गैर-खाद्य आवश्यक चीजों में बाजार की अस्थिरता के प्रति संवेदनशील बनाता है। इस वजह से, उनका खाद्य बजट कम हो जाता है, और देश में अकाल की स्थिति बिगड़ जाती है। दूसरी ओर, आजीविका की तलाश में अस्थायी मजदूरों का मौसमी प्रवास भी उन्हें अस्वच्छ स्थितियों के प्रति, संवेदनशील बनाता है। यह उनके स्वास्थ्य को, विशेषकर उनके साथ आने वाली महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। दरअसल ऐसी स्थिती में, मुख्य मुद्दा खाद्य उत्पादन की कमी नहीं है, बल्कि खराब खाद्य वितरण प्रणाली है, जो लाखों लोगों को भुखमरी की ओर ले जा रही है।
इसी लिए, सभी लोगों, विशेषकर महिलाओं और बच्चों के पोषण स्तर में सुधार के लिए, केंद्र और राज्यों में योजनाओं की एक अंतहीन सूची मौजूद है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली ब्रिटिशों द्वारा द्वितीय विश्व युद्ध की मजबूरियों के तहत, कुछ शहरों में लोगों को राशन प्रदान करने के लिए शुरू की गई थी। और, हमारी सरकार आज भी इसका अनुगमन कर रही है।
एक तरफ, कुपोषण से निपटने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कुछ कदमों में , लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली, एकीकृत बाल विकास योजना, मध्याह्न भोजन योजना, अंत्योदय अन्न योजना और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 में शामिल हैं। परंतु, यह तथ्य कि, भारत वैश्विक भूख सूचकांक(Global Hunger Index) में बहुत निचले स्थान पर है, अपने आप में इस बात का प्रमाण है कि, इनमें से ज्यादातर योजनाएं बुरी तरह विफल या अप्रभावी रही हैं।
इसके साथ ही, भोजन की बर्बादी भी हमारे देश में एक बड़ी समस्या है। एक अनुमान के अनुसार, कुल उत्पादित भोजन का 40% गोदामों, रेस्तराँओं और सामुदायिक कार्यक्रमों के दौरान बर्बाद हो जाता है।
हाल ही में, देश की राजधानी दिल्ली में खाने-पीने की चीजों की बर्बादी को लेकर एक सर्वेक्षण किया गया था। इसमें पाया गया था कि, फल और सब्जी आपूर्ति करने वाले केवल एक ही दुकान से 18.7 किलोग्राम कचरा उत्पन्न होता है। सर्वेक्षण से यह भी पता चला कि, उस खाद्य आपूर्ति श्रृंखला के 400 दुकानों से लगभग 7.5 टन कचरा उत्पन्न होता है। अगर इस बर्बादी को रोक दिया जाए, तो रोजाना करीब 2 हजार लोगों का पेट भरा जा सकता हैं। खाने की बर्बादी को रोकने में पहला कदम अपनी थाली में कम खाना लेना है। आयुर्वेद में कहा गया है कि, व्यक्ति को जितनी भूख हो, उसे उससे 20 से 30% कम खाना चाहिए। एक स्वस्थ व्यक्ति को प्रतिदिन 1500 से 2500 कैलोरी(calories) की आवश्यकता होती है। अतः हमें, अपनी थाली में जितना आवश्यक है, उतना ही खाना लेना चाहिए।
यहां यह भी ध्यान देना चाहिए कि, हमारे देश में खाने की बर्बादी सिर्फ आम घरों या रेस्टोरेंट में ही नहीं होती। खाने-पीने की चीजों का भंडारण सही तरीके से न होने के कारण भी इसकी बर्बादी होती है। लेकिन फिर भी हम अपने खान-पान की आदतों में छोटे-छोटे बदलाव करके बड़ा बदलाव ला सकते हैं।
खाद्य पदार्थों की बर्बादी रोककर, हम देश में भुखमरी की समस्या को ख़त्म करने में योगदान दे सकते हैं। अतः आइए, एक निश्चय करते हैं कि, आज से हम, हमें मिलने वाले खाने के प्रति कृतज्ञ रहेंगे तथा उसकी बर्बादी नहीं करेंगे।

संदर्भ

https://tinyurl.com/5n6esxfe
https://tinyurl.com/kkjhez25
https://tinyurl.com/42evjrnm

चित्र संदर्भ

1. स्कूल में मध्याह्न भोजन करते बच्चों को संदर्भित करता एक चित्रण (pickpik)
2. भूखे बच्चे को दर्शाता एक चित्रण (pickpik)
3. एक भूखे किसान को संदर्भित करता एक चित्रण (needpix)
4. स्कूल में भोजन करते बच्चों को दर्शाता एक चित्रण (needpix)

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