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आपको शायद अजीब लगेगा लेकिन किसी देश या संस्कृति की संपन्नता को मापने का एक तरीका यह भी है, कि वह संस्कृति अपने मल-मूत्र जैसे अपशिष्टों का प्रबंधन कैसे करती है। आधुनिक दुनियां में भी कई ऐसे देश हैं, जहां के शहरों में भी आपको राह चलते मल की दुर्गंध आ ही जाएगी। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि आज से हजारों साल पहले इंसानों की अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली आज के कई देशों की तुलना में बेहतर थी। चलिए जानते हैं कैसे?
नवपाषाण काल (लगभग 8500 ईसा पूर्व) से पहले, इंसान भी दूसरे जानवरों की तरह ही रहते थे। इस दौरान वह प्रकृति द्वारा प्रदान की गई चीज़ों का उपयोग करते थे और अपने मल मूत्र जैसे अपशिष्ट को वापस पर्यावरण को ही लौटा देते थे। हमारे पूर्वज जल स्रोतों के पास रहते थे, और उनके द्वारा उपयोग की जाने वाले सभी वस्तुएं प्राकृतिक एवं नवीकरणीय थी।
हालांकि, खेती और व्यापार की शुरुआत के साथ ही परिस्थितियां भी बदलने लगी। हम भीड़भाड़ वाले शहरों में रहने लगे, जहाँ अनगिनत लोग एक साथ रहते थे, काम करते थे, वस्तुओं का व्यापार करते थे और शासन करते थे। लेकिन इस कारण शहरों में बहुत सारा कचरा भी निर्मित होने लगा।
हालांकि लगभग 4,000 ईसा पूर्व में बेबीलोन (Babylon) में इस कचरे को संभालने यानी मल-मूत्र, कचरा इकट्ठा करने के लिए पहला समाधान, (जमीन में एक साधारण छेद) दिखाई दिया था। बेबीलोन वासी, पहले से ही पानी को इधर-उधर ले जाना जानते थे। इसलिए उन्होंने अपने इस ज्ञान का उपयोग पानी और मिट्टी के पाइपों का उपयोग करके इन गड्ढों में अपशिष्ट धोने के लिए किया। इस प्रकार सीवेज प्रणाली (Sewage System) की शुरुआत हुई।
लगभग 4000 ईसा पूर्व, मेसोपोटामिया के लोग सीवेज निपटान और वर्षा जल संग्रह के लिए मिट्टी के पाइप का उपयोग करने वाले शुरुआती लोगों में से थे। इनमे से कुछ शुरुआती उदाहरण निप्पुर और एश्नुन्ना में बेल के मंदिर में पाए गए थे। 3200 ईसा पूर्व तक, उरुक शहर में शौचालयों के निर्माण के लिए ईंटों के प्रारंभिक उपयोग के प्रमाण मिलते हैं। इस तरह के मिट्टी के पाइपों को हट्टुसा में हित्तियों (Hittites) द्वारा भी अपनाया गया था, जिनमें ऐसे खंड थे जिन्हें आसानी से हटाया जा सकता था और रखरखाव के लिए प्रतिस्थापित किया जा सकता था।
लगभग 2350-1810 ईसा पूर्व, सिंधु घाटी सभ्यता में भी उन्नत सार्वजनिक जल प्रणालियों को पेश किया गया। विशेष रूप से, लोथल में उस समय के शासक के निवास में निजी स्नान क्षेत्र और शौचालय थे, जो एक सांप्रदायिक जल निकासी प्रणाली से जुड़े थे। शहर में अपशिष्ट जल प्रबंधन के लिए परिष्कृत ईंट सीवर और सोख गड्ढे भी थे, जो पानी की आपूर्ति के लिए दो मुख्य कुओं द्वारा पूरक थे।
भूमिगत नालियों और जलाशयों के सुव्यवस्थित नेटवर्क के साथ-साथ, शहरी केंद्रों में सार्वजनिक और निजी स्नानघर भी थे। मोहनजोदड़ो में, बहुमंजिला इमारतों में पानी के निपटान के लिए टेराकोटा पाइप (Terracotta Pipe) का उपयोग किया जाता था। मोहनजोदड़ो और धोलावीरा सहित सिंधु बस्तियां अपनी विस्तृत सीवेज प्रणालियों, जल निकासी चैनलों और वर्षा जल संचयन सुविधाओं के लिए जानी जाती थीं।
प्राचीन रोमन काल के सीवरों का मुख्य काम वर्षा जल से छुटकारा पाना था। उन्हें मानव अपशिष्ट (जो आमतौर पर सड़कों पर फेंक दिया जाता था या खेती के लिए उपयोग किया जाता था) को निकालने के उद्देश्य से नहीं बनाया गया था। लेकिन इसके बावजूद रोमनों को अपनी सीवर प्रणाली पर गर्व था और वे कभी-कभी बड़ी सुरंगों का दौरा भी करते थे।
रोमन भूगोलवेत्ता प्लिनी द एल्डर (Pliny The Elder) ने अपनी पुस्तक "नेचुरल हिस्ट्री (Natural History)" में सीवरेज के बारे में लिखा। उन्होंने लिखा है कि "भले ही ऊपर की सड़कों पर भारी पत्थर घसीटे गए और इमारतें उन पर गिरीं, लेकिन सुरंगें नहीं गिरीं।" वे भूकंप से भी बच गए।
कई वर्षों बाद, लुईस ममफोर्ड (Lewis Mumford) ने अपनी पुस्तक "द सिटी इन हिस्ट्री (The City In History)" (1961) में लिखा कि वह इस बात से आश्चर्यचकित थे कि सीवर कितने समय तक अस्तित्व में रह सकते थे और वे कितने मूल्यवान थे।
हालांकि रोम ऐसी पहली संस्कृति नहीं थी, जिसने भूमिगत सीवरेज का निर्माण किया था। मिस्र वासियों ने इससे भी पहले से ही गुंबददार भूमिगत नालियों का उपयोग शुरू कर दिया था।
प्राचीन ग्रीस में, लोगों ने अपशिष्ट जल का उपयोग फसलों को खाद देने के लिए करना शुरू कर दिया क्योंकि वहां पर बड़ी नदियाँ नहीं थीं। उनका सीवेज सिस्टम कचरे को शहर के किनारे तक ले जाता, जहां से इसे पाइप के जरिए खेतों तक पहुंचाया जाता था। इस तरह से कृषि के लिए अपशिष्ट जल का उपयोग पहली बार किया गया।
हालांकि रोमन साम्राज्य के दौरान, स्वच्छता पर अधिक ध्यान दिया जाने लगा। रोमनों ने अपशिष्ट जल के प्रबंधन के लिए सीवेज सिस्टम का निर्माण किया और बैठे हुए शौचालयों की शुरुआत की। लेकिन इन प्रगतियों के बावजूद लोग अपने कचरे को सड़कों पर ही फैंक देते थे। किंतु 100 ईसा पूर्व में एक कानून बनाया गया, जिसमे सीवेज सिस्टम के लिए अनिवार्य घरेलू कनेक्शन देने की बात कही गई। रोमनों ने भूरे पानी (स्नान से) और सीवेज के बीच भी अंतर निर्धारित किया। सार्वजनिक शौचालयों को फ्लश करने के लिए गंदे पानी का पुन: उपयोग किया गया।
पुरातत्वविद् एंजेल मोरिलो (Angel Morillo) ने रोमन स्वच्छता प्रणाली की अनुकूलनशीलता और दीर्घायु पर प्रकाश डाला है, जिसमें कुछ सीवर 19 वीं शताब्दी तक भी चले थे।
मध्य युग में, रोमन स्वच्छता प्रगति को काफी हद तक भुला दिया गया था। पेरिस जैसे कुछ शहरों में कुछ रोमन सीवरों का प्रयोग अभी भी किया जाता था। लेकिन इसके बाद अधिकांश अपशिष्ट को नदी नालों में बहाया जाने लगा। सड़कों पर अपशिष्ट निपटान के कारण हैजा और प्लेग जैसी घातक महामारियाँ फैलने लगी, जिससे यूरोप की एक चौथाई मध्ययुगीन आबादी का सफाया हो गया। इस अवधि के दौरान, इबेरियन प्रायद्वीप के अरब शहरों ने स्वच्छता मानकों को बनाए रखा, वर्षा जल को महत्व दिया और इसे भूरे और अपशिष्ट जल से अलग किया। उन्होंने जीवन-निर्वाह उद्देश्यों के लिए वर्षा जल का उपयोग किया, गंदे पानी को घरों से दूर कर दिया और अपशिष्ट जल का अलग से प्रबंधन किया गया।
लेकिन पुनर्जागरण के दौरान कला और विज्ञान के क्षेत्र में वृद्धि देखी गई किंतु स्वच्छता के क्षेत्र में फिर से लापरवाही बढ़ने लगी। इस दौरान यूरोपीय शहर गंदे हो गए तथा खुले में शौच और गंदगी के ढेर भरे हुए थे। सीवर नदियों तक जाने वाली खाइयाँ मात्र बन कर रह गए थे। लंदन को भी इसी तरह की स्वच्छता चुनौतियों का सामना करना पड़ा। जल प्रबंधन में प्रगति के बावजूद, शहर साफ-सफाई और स्वच्छता से जूझ रहा है।
1830 तक, लंदन का स्वच्छता संकट एक गंभीर बिंदु पर पहुंच गया था। शहर में "ग्रेट स्टिंक (Great Stink) " और हैजा का प्रकोप फ़ैल गया, जिसने कई लोगों की जान ले ली। 1847 में, अंग्रेजी चिकित्सक जॉन स्नो (John Snow) ने निष्कर्ष निकाला कि हैजा दूषित पेयजल से फैलता है। उनके सिद्धांत को विश्वसनीयता तब मिली जब कुछ जल पंपों को बंद करने से प्रकोप रुक गया।
इसके बाद, लुई पाश्चर (Louis Pasteur) के शोध ने स्नो के दावे को सही साबित कर दिया, जिसमें हैजा और टाइफाइड बुखार (Typhoid Fever) जैसी बीमारियों के लिए जल जनित सूक्ष्मजीवों (Water-Borne Microorganisms) को जिम्मेदार पाया गया। इसके बाद विधायी सुधार किये गए, मल-मूत्र निर्माण को प्रतिबंधित किया गया और सुरक्षित सेप्टिक टैंकों (Septic Tanks) को बढ़ावा दिया गया। 1857 में, हैम्बर्ग (Hamburg ) की मुख्य सीवेज प्रणाली की रूपरेखा तैयार की गई, जो स्वच्छता प्रबंधन में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ।
हालाँकि, औद्योगिक क्रांति ने एक बार फिर से जल स्रोतों में रासायनिक प्रदूषण की मात्रा को बढ़ा दिया, जिससे मौजूदा मल संदूषण और अधिक बढ़ गया। जैविक अपशिष्ट उपचार में प्रगति के बावजूद, औद्योगिक अपशिष्टों ने भारी धातुओं और कीटनाशकों जैसे हानिकारक पदार्थों के साथ नदियों और महासागरों को प्रदूषित करना शुरू कर दिया। 1970 के दशक में जल प्रदूषण के खिलाफ एक वैश्विक आंदोलन देखा गया। लेकिन इसके बावजूद आज, विकासशील देशों में 90% अपशिष्ट जल अनुपचारित रहता है, जिससे सालाना पांच साल से कम उम्र के 1.8 मिलियन बच्चों की मौत हो जाती है। इस प्रकार स्वच्छ जल के लिए 10,000 वर्षों से चला आ रहा संघर्ष आज भी जारी है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/29j7hkz8
https://tinyurl.com/yuuh4adu
https://tinyurl.com/53w2sy39
चित्र संदर्भ
1. 'सिंधु घाटी के अपशिष्ट प्रबंधन आरेख कों संदर्भित करता एक चित्रण (
World History Encyclopedia)
2. मल त्यागते ज़ेबरा को संदर्भित करता एक चित्रण (wallpaperflare)
3. मेसोपोटामिया के स्थल अवशेषों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. एक जर्जर नाली को संदर्भित करता एक चित्रण (wallpaperflare)
5. रोमन शहर में सीवरों की संरचना को संदर्भित करता एक चित्रण (garystockbridge617)
6. एक पेरिसियन सीवर् को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
7. पुराने रोमन शौचालयों को संदर्भित करता एक चित्रण (needpix)
8. हैजा से पीड़ित लोगों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
9. समुद्र में प्रवाहित होते दूषित जल को संदर्भित करता एक चित्रण (rawpixel)
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