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हमारे देश भारत में दुनिया में दूसरे स्थान पर सबसे बड़ी जनजातीय आबादी निवास करती है। देश में इन जनजातीय लोगों को आदिवासी के नाम से जाना जाता है। आदिवासी समुदाय अति प्राचीन काल से ही भारतीय समाज का एक अभिन्न अंग रहे हैं। देश में क्षेत्रीय भिन्नता के आधार पर कई जनजातीय समुदाय निवास करती हैं जिनकी भिन्न अद्वितीय जीवन शैली और रीति-रिवाजों के साथ समृद्ध परंपराएं, संस्कृतियां और विरासत हैं। हालांकि क्षेत्रीय भिन्नताओं के बावजूद, इन जनजातियों की कई सामान्य विशेषताएं भी हैं, जिनमें सापेक्ष भौगोलिक अलगाव में रहना और गैर-आदिवासी सामाजिक समूहों की तुलना में अपेक्षाकृत अधिक सजातीय और अधिक आत्मनिर्भर होना शामिल है। भारत की कुल जनसंख्या में लगभग सौ मिलियन आदिवासी लोग शामिल हैं, जिनमें से लगभग 80% आदिवासी लोग केवल पूर्वोत्तर एवं मध्य राज्यों में निवास करते हैं।
देश में सबसे अधिक आबादी वाला हमारा राज्य उत्तर प्रदेश कई आदिवासी समुदायों का घर भी है। राज्य की कुछ प्रमुख जनजातियाँ बैगा, अगरिया, भोक्सा, कोल आदि हैं और इनमें से कुछ जनजातियों को भारत सरकार द्वारा अनुसूचित जनजाति के रूप में मान्यता दी गई है।
आइए उत्तर प्रदेश की इन चारों मुख्य जनजातियों के विषय में विस्तार से जानते हैं:
बैगा जनजाति:
बैगा जनजाति मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में निवास करती है। बैगा जनजाति की कुछ उपजातियाँ भी हैं जैसे नाहर, बिझवार, नरोतिया, कध भैना, राय भैना, भरोटिया आदि। 1981 की जनगणना के अनुसार, बैगा जनजाति की जनसंख्या लगभग 2,48,949 थी। इस जनजाति के लोग अर्ध-खानाबदोश जीवन व्यतीत करते हैं। यह जनजाति शिकारियों और लकड़हारे के रूप में काम करती थी और वन उपज पर जीवित रहती थी। इसके अलावा इस जनजाति द्वारा शिफ्टिंग खेती की जाती थी अर्थात वे एक ही स्थान पर भूमि को बार बार न जोतकर दूसरे स्थान पर खेती करते थे। बैगाओं के जीवन में शरीर पर टैटू बनाना एक मुख्य परंपरा है। माना जाता है कि इस जनजाति के लोग द्रविड़ों के उत्तराधिकारी हैं। इस जनजाति की सबसे खास बात यह है कि महिलाएं अपने शरीर के लगभग सभी अलग-अलग हिस्सों पर अलग-अलग तरह के टैटू गुदवाती हैं। जो लोग टैटू बनाने वाले कलाकारों के रूप में काम करते हैं, उन्हें गोधरिन के रूप में जाना जाता है। अधिकांश बैगा बाहरी लोगों के साथ हिंदी में संवाद करते हैं और उनमें से कई अपने निवास स्थान के आधार पर मराठी या गोंडी भाषा जानते हैं।
भोक्सा जनजाति:
भोक्सा जनजाति के लोग मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में निवास करते हैं। इस जनजाति को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया गया है। ये लोग बुक्सा भाषा बोलते हैं। इन के द्वारा मूल रूप से हिंदू धर्म का पालन किया जाता है। ये आदिवासी देवी 'शाकुम्बरी देवी' की पूजा करते हैं। इस जनजाति के अधिकांश लोग व्यवसाय के रूप में खेती करते हैं जबकि कई लोग अपने द्वितीयक व्यवसाय के रूप में पर्वत गाइड के रूप में काम करते हैं। ये लोग कुछ विशिष्ट बस्तियों में रहते हैं जिसे वे अन्य जनजातीय समूहों के साथ साझा नहीं करते।
कोल जनजाति:
कोल उत्तर प्रदेश की सबसे बड़ी जनजाति है। यह जनजाति मुख्य रूप से इलाहाबाद, वाराणसी, बांदा और मिर्ज़ापुर जिलों में निवास करती है। ऐतिहासिक साक्ष्यो के अनुसार, यह समुदाय लगभग पांच शताब्दी पहले भारत के मध्य भागों से स्थानांतरित हुआ था। इस जनजाति को अनुसूचित जनजाति का दर्जा प्राप्त है। यह जनजाति मोनासी, रौतिया, थलुरिया, रोजाबोरिया, भील, बारावीरे और चेरो जैसे बहिर्विवाही कुलों में विभाजित है। ये लोग हिंदू धर्म के अनुयायी हैं और बुंदेलखंडी बोली में बोलते हैं। अधिकांश लोगों के पास अपनी स्वयं की जमीन नहीं है और वे आय के लिए जंगल पर निर्भर हैं। इनके द्वारा पत्तियां और जलाऊ लकड़ी एकत्र की जाती है और स्थानीय बाजारों में बेची जाती है।
अगरिया जनजाति:
अगरिया जनजाति एक अनुसूचित जनजाति है, जो मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में निवास करती है। ब्रिटिश शासन के वर्षों के दौरान, मिर्ज़ापुर और उसके आसपास रहने वाले अगरिया जनजाति के लोग लोहे के खनन में शामिल थे। इस जनजाति के लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषाएँ हिंदी, अगरिया भाषा और छत्तीसगढ़ी हैं। हालाँकि इस जनजाति के लोग खुद को हिंदू कहते हैं, लेकिन वे किसी भी हिंदू देवी-देवता की पूजा नहीं करते, जो अन्य हिंदू करते हैं।
‘भारत ग्रामीण आजीविका फाउंडेशन’ (Bharat Rural Livelihood Foundation (BRLF) द्वारा अखिल भारतीय स्तर और विशेष रूप से मध्य भारत में आदिवासी समुदायों की स्थिति पर केंद्रित जनजातीय विकास रिपोर्ट 2022, के अनुसार भारत के आदिवासी समुदाय देश की आबादी का 8.6 प्रतिशत हैं। लेकिन आजादी के 75 साल बाद भी वे देश के विकास पिरामिड में सबसे निचले पायदान पर हैं।
रिपोर्ट में बताया गया है कि स्वच्छता, शिक्षा, पोषण, और यहाँ तक कि पीने के स्वच्छ पानी तक पहुँच के मामले में आजादी के 70 से भी अधिक साल बाद भी आदिवासी सबसे ज्यादा वंचित हैं। इससे आदिवासियों के सामने आने वाली चुनौतियों पर ध्यान केंद्रित करना महत्वपूर्ण हो जाता है। ऐसे कई आदिवासी समुदाय हैं जो अलगाव और चुप्पी पसंद करते हैं, जिसके कारण वे अपने आप बाहरी दुनिया तक नहीं पहुंच पाते हैं। इसके अलावा अधिकांश आदिवासी समुदाय जलोढ़ मैदानों और उपजाऊ नदी घाटियों से दूर देश के सबसे कठोर पारिस्थितिक क्षेत्रों जैसे पहाड़ियों, जंगलों और शुष्क क्षेत्रों में निवास करते हैं। इन क्षेत्रों में स्थलीय आकृति के आधार पर कई प्रकार की परेशानियां एवं कठिनाइयां होती है। यही एक कारण है कि कई सरकारी कल्याणकारी योजनाएं और नीतियां इन क्षेत्रों में आगे नहीं बढ़ पाती हैं। 257 अनुसूचित जनजाति जिलों में से 230 (90 प्रतिशत) जिले जिनमें भारत की जनजातीय आबादी का 80% हिस्सा निवास करता है, जंगली, पहाड़ी या सूखे हैं। 1980 में वन संरक्षण अधिनियम के लागू होने के बाद, पर्यावरण संरक्षण और स्थानीय आदिवासी समुदायों की जरूरतों के बीच टकराव देखा गया, जिससे इन लोगों और जंगलों के बीच एक दूरी आ गई। हालांकि 1988 की राष्ट्रीय वन नीति में पहली बार स्थानीय लोगों की घरेलू आवश्यकताओं को स्पष्ट रूप से मान्यता दी गई थी। नीति में उनके पारंपरिक अधिकारों की सुरक्षा और वनों की सुरक्षा में आदिवासियों को निकटता से शामिल करने पर जोर दिया गया। लेकिन जन-उन्मुख परिप्रेक्ष्य की दिशा में आंदोलन जमीनी हकीकत से मेल नहीं खाता है। अतः देश के नीति निर्माताओं और नेताओं को आदिवासियों की कठिनाइयों को समझने और उनके कल्याण की दिशा में काम करने की जरूरत है।
संदर्भ
https://shorturl.at/hnoZ2
https://shorturl.at/abcnp
https://shorturl.at/kwGX8
चित्र संदर्भ
1. बैगा जनजाति की महिलाओं को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. एक जनजातीय नृत्य को दर्शाता एक चित्रण (StageBuzz)
3. बैगा जनजाति की महिलाओं को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. भोक्सा जनजाति के विवाह को संदर्भित करता एक चित्रण (youtube)
5. कोल जनजाति के नृत्य को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
6. मध्य प्रदेश की अगरिया जनजाति द्वारा बरगा-डिंडोरी से गढ़ा लौह शिल्प! को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
7. जनजातीय समुदाय के लोगों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
8. एक आदिवासी लड़की को दर्शाता एक चित्रण (Wallpaper Flare)
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