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'नेशनल इंटरएजेंसी फायर सेंटर’ (National Interagency Fire Center) की एक रिपोर्ट के अनुसार, हाल के वर्षों में, जंगलों में आग लगने की घटनाएं वैश्विक समस्या बन गई हैं, क्योंकि केवल पिछले एक वर्ष में ही पश्चिमी अलास्का (Alaska) और कनाडा (Canada) जैसे देशों में जंगल की आग ने 9.8 मिलियन एकड़ भूमि को बर्बाद कर दिया। जंगल की आग से कई देशों में वन जीवन और संपत्ति का बेहद नुकसान हुआ है। इसके अलावा जंगल की आग का धुआं हर साल दुनिया भर में 2 लाख से ज्यादा लोगों की अकाल मृत्यु का कारण बनता है। हमारे देश भारत में भी जंगलों की विकराल आग की घटनाएं आए दिन सामने आती हैं जिसमे सैकड़ों किलोमीटर जंगल जलकर राख हो गए हैं। तो आइए आज समझते हैं कि जंगलों में आग कैसे लगती है, इसके लिए कौन जिम्मेदार है? और क्या हम पर्यावरण के लिए सबसे खतरनाक खतरों में से एक को नियंत्रित कर सकते हैं?
वनस्पतियों के फैलाव के कारण जंगलों में लगने वाली आग, अक्सर अनियंत्रित हो जाती है। हालांकि सदियों से जंगलों, घास के मैदानों, सवाना (Savanna) और अन्य पारिस्थितिक तंत्रों में आग लगती रही है लेकिन हाल के वर्षों में इस प्रकार की घटनाएं ज्यादा बढ़ गई हैं।
जंगल में भूमि की मिट्टी कार्बनिक पदार्थों से युक्त होने के कारण एक बार आग लगने के बाद यह बेहद तेजी से फैलती है। ज़मीनी आग लंबे समय तक, यहां तक कि, एक पूरे ऋतु तक भी सुलगती रह सकती है। दूसरी ओर, भूमि की ‘सतही आग’ मृत या सूखी वनस्पतियों को जला देती है। सूखी घास या गिरी हुई पत्तियां अक्सर सतह पर आग भड़काती हैं। जबकि, पेड़ों और झाड़ियों की पत्तियों और छतरियों में शीर्ष पर लगी आग अत्यंत भयंकर रूप धारण कर लेती है। अक्सर बिजली गिरने जैसीप्राकृतिक घटनाओं से जंगलों में आग लग जाती है या कभी कभी, यह मानव निर्मित चिंगारी से भी लग सकती है। हालांकि, अक्सर मौसम की स्थितियां ही यह निर्धारित करती हैं कि, वह आग कितनी बढ़ती है। हवा, उच्च तापमान और कम वर्षा के कारण पेड़, झाड़ियां, गिरी हुई पत्तियां और शाखाएं सूख सकती हैं, और आग लगने का कारण बन सकती हैं। साथ ही, किसी जगह की स्थलाकृति भी इसमें एक बड़ी भूमिका निभाती है। आग की लपटें नीचे की ओर जलने की तुलना में ऊपर की ओर तेजी से जलती हैं।
हमारे देश भारत में जंगलों में आग लगना एक आम घटना हो गई है, जो अक्सर गर्मियों के दौरान देखी जाती है। नवंबर 2020 से जून 2021 के बीच, ‘मॉडरेट रेजोल्यूशन इमेजिंग स्पेक्ट्रो-रेडियोमीटर’ (Moderate Resolution Imaging Spectro-radiometer (MODIS) सेंसर का उपयोग करके 52,785, तथा ‘सुओमी-नेशनल पोलर-ऑर्बिटिंग पार्टनरशिप – विजिबल इन्फ्रारेड इमेजिंग रेडियोमीटर सूट’ (Suomi-National Polar-orbiting Partnership – Visible Infrared Imaging Radiometer Suite (SNPP-VIIRS) का उपयोग करके 3,45,989 जंगल की आग का पता लगाया गया था।
हमारे देश भारत में कई प्रकार के वन पाए जाते हैं, जिनमें विशेष रूप से शुष्क पर्णपाती वनों में भीषण आग लगती है। जबकि, सदाबहार, अर्ध-सदाबहार और पर्वतीय समशीतोष्ण वनों में तुलनात्मक रूप से इसका जोखिम कम होता है। अनुमान है कि हमारे देश के 36% से अधिक वन क्षेत्र में अक्सर जंगल की आग लगने का खतरा रहता है। हर वर्ष देश के जंगलों के बड़े क्षेत्र, अलग-अलग सीमा और तीव्रता की आग से प्रभावित होते हैं। वन सूची रिकॉर्ड के आधार पर, भारत में 54.40% जंगल कभी-कभी आग के संपर्क में आते हैं, 7.49% जंगल मध्यम रूप से बार-बार लगने वाली आग के संपर्क में आते हैं, एवं 2.40% जंगलों में उच्च स्तर की आग लगती है ।हालांकि राहत की बात यह है कि शेष 35.71% जंगल आज तक किसी भी वास्तविक आग के संपर्क में नहीं आए हैं।
‘ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद’ के 2021 के विश्लेषण के अनुसार, पिछले दो दशकों में, हमारे देश भारत में जंगल की आग की घटनाओं की आवृत्ति में 52% की वृद्धि हुई है। पिछले वर्ष भी, गोवा, कर्नाटक, ओडिशा और उत्तराखंड के गैर-आग-प्रवण जंगलों में भी आग लग गई थी।
पिछले वर्ष 2023 में, भारत में फरवरी माहसबसे गर्म रिकॉर्ड किया गया था, और केवल 7.2 मिलीमीटर बारिश दर्ज की गई थी, जो 120 से अधिक वर्षों में, इस महीने में छठी बार सबसे कम बारिश थी। इसके अलावा, सैटेलाइट की सहायता से यह भी पता चला कि भारत में 2022 की तुलना में, मार्च 2023 की शुरुआत में जंगल की आग में लगभग 115% की वृद्धि हुई है। अतः आने वाले वर्षों में तापमान बढ़ने के साथ, जंगल की आग में काफी वृद्धि होने की आशंका है।
दरअसल, जंगलों में लगने वाली आग के कई प्रतिकूल प्रभाव होते हैं। जीवित प्राणियों एवं पेड़ पौधों के साथ साथ जंगलों में प्राप्त होने वाले जैव भार जैसे कई अन्य बहुमूल्य वन संसाधन हर वर्ष जंगल की आग के कारण नष्ट हो जाते हैं। इससे, जंगलों से प्राप्त होने वाली वस्तुओं और सेवाओं के प्रवाह पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
इसके अलावा, जंगलों में लगने वाली आग से बेहद खतरनाक धुआं उत्पन्न होता है। आग के धुएं में मुख्य प्रदूषक– कण प्रदूषण होते हैं, जो हवा में निलंबित बहुत छोटे ठोस और तरल कणों का मिश्रण होते है। ये कण इतने छोटे होते हैं कि, ये हमारे फेफड़ों में गहराई तक प्रवेश कर जाते हैं। कण प्रदूषण अस्थमा के दौरे, दिल के दौरे और स्ट्रोक (Stroke) की तीव्रता बढ़ा सकते है। जो बच्चे जंगल की आग के दौरान फैलने वाली हवा में सांस लेते हैं, उन्हें खांसी, घरघराहट, ब्रोंकाइटिस (Bronchitis), सर्दी एवं अस्थमा जैसी बीमारियों के होने की संभावना अधिक होती है।
जंगल की आग के धुएं से एक और खतरा कार्बन मोनोऑक्साइड (Carbon monoxide) गैस है, जो आग के सुलगने के दौरान और आग के करीब होने पर सबसे आम होता है। इस गैस में सांस लेने से, शरीर के अंगों और ऊतकों तक ऑक्सीजन की आपूर्ति कम हो जाती है। साथ ही, इससे सिरदर्द, मतली, चक्कर आना आदि समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं या कभी कभी समय से पहले मौत भी हो सकती है। इसके अलावा, जंगल की आग से नाइट्रोजन ऑक्साइड (Nitrogen oxides) जैसे खतरनाक वायु के उत्सर्जन से पारिस्थितिकी के लिए खतरा उत्पन्न हो जाता है। हालांकि प्रौद्योगिकी की सहायता से, स्थानीय समुदायों को शामिल करके, प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों को बढ़ावा देकर और आपदा प्रबंधन योजनाओं से इस समस्या का हल निकाला जा सकता है। सैटेलाइट (Satellite) पर आधारित रिमोट सेंसिंग (Remote sensing) तकनीक और जीआईएस उपकरण (GIS tool) आग की आशंका वाले क्षेत्रों के लिए प्रारंभिक चेतावनी जारी करने; वास्तविक समय के आधार पर आग की निगरानी और जले हुए निशानों के आकलन के माध्यम से आग की बेहतर रोकथाम और प्रबंधन करने में प्रभावी रहे हैं।जंगल की आग से निपटने के प्रभावी उपायों को प्राथमिकता देकर, भारत अपनी जैव विविधता और पर्यावरण की रक्षा कर सकता है। साथ ही, इस प्रकार हम अपने महत्वाकांक्षी जलवायु परिवर्तन शमन और कार्बन पृथक्करण प्रयासों को बढ़ावा दे सकते हैं।
संदर्भ
http://tinyurl.com/mudc7nsv
http://tinyurl.com/bdeu99uf
http://tinyurl.com/yc2328r6
http://tinyurl.com/595ydtj3
चित्र संदर्भ
1. जंगल में लगी आग को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. धधकते जंगल को संदर्भित करता एक चित्रण (Rawpixel)
3. जंगल की आग को देखते व्यक्ति को संदर्भित करता एक चित्रण (StockVault)
4. आग लगने के बाद जल रहे जंगलों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. जंगल की आग पर क़ाबू पाने की कोशिश करते वनकर्मी को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
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