लखनऊ - नवाबों का शहर












एप्पल ने, उचित रणनीतियों के साथ, एक वैश्विक तकनीकी दिग्गज के रूप में कैसे विकास किया ?
संचार एवं संचार यन्त्र
Communication and IT Gadgets
06-03-2025 09:31 AM
Lucknow-Hindi

बेशक ही, कुछ लखनऊ निवासी हमारे लेख अपने आईफ़ोन (iPhone), आईपैड (iPad) या मैकबुक (MacBook) पर पढ़ रहे होंगे। हम जानते ही हैं कि, एप्पल (Apple) एक अमेरिकी बहुराष्ट्रीय निगम है, जो अपने उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स, सॉफ़्टवेयर और अन्य सेवाओं के लिए जाना जाता है। आज एप्पल, 2024 के वित्तीय वर्ष में 391.04 बिलियन अमेरिकी डॉलर राजस्व के साथ, सबसे बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनी है। इस लेख में, इस कंपनी की उत्पत्ति के बारे में विस्तार से जानें। इसके अलावा, हम यह समझने की कोशिश करेंगे कि, एप्पल ने एक वैश्विक तकनीक दिग्गज के रूप में कैसे विकास किया। इसके बाद, हम एप्पल के लक्षित दर्शकों पर कुछ प्रकाश डालेंगे। हम इस कंपनी की मार्केटिंग रणनीति के बारे में भी जानेंगे। अंत में, हम एप्पल कंपनी के सबसे प्रतिष्ठित विपणन अभियानों में से, कुछ अभियानों का पता लगाएंगे।
एप्पल की उत्पत्ति को समझना:
स्टीव जॉब्स (Steve Jobs) को स्टीव वॉज़नियैक (Steve Wozniak) के साथ, इस उद्यम में अपनी शुरुआत मिली। इसके तहत वे पूरे देश में मुफ़्त कॉल करने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले, ब्लू बॉक्स फ़ोन फ़्रीकर्स (Phone Phreakers) का निर्माण करते थे। ये दोनों होमब्रिव कंप्यूटर क्लब (HomeBrew Computer Club) के सदस्य थे, जहां वे जल्द ही किट कंप्यूटर के साथ आकृष्ट हो गए और ब्लू बॉक्स को पीछे छोड़ गए। 1976 में एप्पल के संस्थापन के बाद, दोनों ने एप्पल वन (Apple I) नामक नया उत्पाद बेचा, जो पर्सनल कंप्यूटर के निर्माण के लिए, एक किट था। इसके साथ काम करने हेतु, ग्राहक को अपने मॉनिटर और कीबोर्ड को, इससे जोड़ने की आवश्यकता थी।
वॉज़नियैक निर्माण पर केंद्रित थे, जबकि, जॉब्स बिक्री को संभालने लगे। इस प्रकार दोनों ने एप्पल टू (Apple II) में निवेश करने के लिए, हॉबीस्ट बाज़ार (Hobbyist market) से पर्याप्त पैसा कमाया। एप्पल टू ने ही कंपनी को बनाया, जिसे 1977 में कंपनी में शामिल किया गया था। जॉब्स और वॉज़नियैक ने उद्यम पूंजी को आकर्षित करने के लिए, अपने नए उत्पाद में पर्याप्त रुचि पैदा की। इसका मतलब था कि, वे बड़ी स्पर्धा में थे, और इस प्रकार कंपनी बढ़ती रहती।
एप्पल कंपनी एक वैश्विक तकनीक दिग्गज कंपनी के रूप में कैसे विकसित हुई?
एप्पल 1984 में, मैकिनटोश कंप्यूटर (Macintosh computer) की रिलीज़ के साथ, घरेलू कंप्यूटर मार्केट में आ गया। मैकिनटोश ने इस उद्योग का पहला “ग्राफ़िकल यूज़र इंटरफ़ेस (graphical user interface)” प्रस्तुत किया, जिसने उपयोगकर्ताओं को कमांड प्रॉम्प्ट (Command prompt) पर कमांड टाइप करने के बजाय, कर्सर (Cursor) और छवियों के माध्यम से कंप्यूटर के साथ बातचीत करने की अनुमति दी।
1985 तक, जॉब्स और वॉज़नियैक दोनों ने कंपनी छोड़ दी थी। फिर 1980 और 1990 के दशक के दौरान एप्पल ने धीरे-धीरे, बाज़ार हिस्सेदारी खो दी। इसे एप्पल के प्रतियोगी – माइक्रोसॉफ़्ट (Microsoft) के विंडोज ऑपरेटिंग सिस्टम (Windows operating system) द्वारा परिभाषित किया गया था, जो कि एप्पल के मैकओएस (MacOS) उत्पाद पर मॉडल किया गया था।
स्टीव जॉब्स 1997 में, सी ई ओ (CEO) के रूप में एप्पल में लौट आए। फिर, कंपनी ने नए नवाचारों की एक श्रृंखला की ओर रुख किया। उन्होंने आईमैक (iMac) श्रृंखला के साथ, सौंदर्य डिज़ाइन पर फिर से ज़ोर दिया। इस उत्पाद की सफ़लता ने पूरे उद्योग को पारंपरिक “बेज बॉक्स (Beige boxes)” से परे लाया। लेकिन, इस कंपनी की सच्ची आधुनिक पहचान, आईट्यून्स (iTunes) और आईपॉड (iPod) की 2001 की रिलीज़ के साथ शुरू हुई, जो एक मीडिया-केंद्रित दृष्टिकोण है, और आज भी जारी है।
एप्पल ने 2007 में, अपने उत्पादों की आईपॉड श्रृंखला के पुनरावृत्त डिज़ाइन के आधार पर, आईफ़ोन को जारी किया। तब आईफ़ोन ने, ब्लैकबेरी (Blackberry) के प्रभुत्व वाले बाज़ार में प्रवेश किया। लेकिन, इसका टच-स्क्रीन डिज़ाइन, ब्लैकबेरी के मॉडल पर एक महत्वपूर्ण बात थी। 2000 के दशक में, एप्पल ने एक नई छवि स्थापित करने हेतु, अपने डिज़ाइन और विज्ञापन अभियानों पर जोर दिया।
2010 में, इस कंपनी ने फिर से, आईपैड के साथ एक नया स्थान परिभाषित किया। इस उपकरण ने यकीनन वैश्विक टैबलेट (Tablet) बाज़ार बनाया। आज तक, आईपैड, एप्पल के किसी भी अन्य उत्पाद की तुलना में, एक बड़ी बाज़ार हिस्सेदारी रखता है। साथ ही, 2018 में, एप्पल ऐसी पहली सार्वजनिक कंपनी बन गई, जिसकी कीमत 1 ट्रिलियन डॉलर थी। जबकि अब, कंपनी का मूल्य 3 ट्रिलियन डॉलर से भी अधिक है।
एप्पल के लक्षित दर्शक कौन है?
एप्पल के लक्षित दर्शकों में मध्यम-वर्ग और उच्च-वर्ग उपयोगकर्ता हैं, जो उन उत्पादों के लिए उच्च भुगतान कर सकते हैं, जो उन्हें एक अविश्वसनीय उपयोगकर्ता अनुभव प्रदान करते हैं। इसका मतलब यह है कि, इन उपयोगकर्ताओं के पास एक उच्च आय है, और वे एप्पल के उत्पादों के रूप में, उच्च-मूल्य वाले उत्पादों के लिए अधिक भुगतान करने को तैयार हैं।
एप्पल की विपणन रणनीति को समझना:
1.) अच्छे उपयोगकर्ता अनुभव पर ध्यान:
एप्पल की ब्रांडिंग रणनीति, अपने स्टाइलिश, सरल और सरस उत्पादों पर आधारित है। यह एक उपयोगकर्ता इंटरफ़ेस प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित करती है, जो उपयोग करने और सीखने के लिए बहुत सरल है। वे हल्के हैं, टिकाऊ हैं और संभालने व ढोने के लिए आसान हैं। यह न्यूनतम रूप और उपयोगकर्ता अनुभव, इसे अपने लक्षित दर्शकों के लिए एक आदर्श उत्पाद बनाता है।
2.) सुशील परंतु सरल विज्ञापन:
कहानी बताना, हर एप्पल विज्ञापन के साथ एक विपणन अभियान का अनिवार्य हिस्सा है। अक्सर ये विज्ञापन, न्यूनतम डिज़ाइन के साथ–साथ उच्च-गुणवत्ता वाली छवियों पर ध्यान केंद्रित करते हैं। वे, या तो संगीत या एक साधारण कहानी के साथ मिश्रित होते हैं। ये कंपनी, सचेत रूप से यह सुनिश्चित करती है कि, इसके विज्ञापनों और विपणन में बहुत अधिक शब्दजाल या भराव भाषा का उपयोग न हो।
3.) सही बाज़ारों को लक्षित करना:
एप्पल, एक वास्तविक तकनीकी जादूगर की तरह, अपने लक्षित दर्शकों को आकर्षित करने में माहिर है, जो अपनी आकांक्षा, पसंद और आवश्यक बिंदुओं को जानता है! इसका बाज़ार अनुसंधान हमेशा ही अपने उत्पादों, क्यूरेशन (Curation) और सुविधाओं में स्पष्ट होता है।
एप्पल के कुछ प्रतिष्ठित विपणन अभियान:
1.) “1984” सुपर बाउल विज्ञापन (1984 Super Bowl Commercial):
“1984” सुपर बाउल विज्ञापन, इतिहास के सबसे प्रसिद्ध विज्ञापनों में से एक है। इसने मैकिनटोश कंप्यूटर को एक नाटकीय, ऑरवेलियन कथा (Orwellian narrative) के साथ पेश किया। इसने एप्पल को अनुरूपता के खिलाफ़, एक क्रांतिकारी बल के रूप में प्रसिद्ध किया। इस विज्ञापन की सिनेमाई गुणवत्ता और निर्भीक संदेश, पारंपरिक उत्पाद-केंद्रित विज्ञापन से अलग हो गए, और इसने स्वतंत्रता और नवाचार के बारे में एक शक्तिशाली संदेश दिया। यह प्रभाव तत्काल और गहरा था।
2.) थिंक डिफ़रेंट अभियान (Think Different Campaign):
1997 में लॉन्च किया गया – “थिंक डिफ़रेंट” अभियान, एक चुनौतीपूर्ण अवधि के दौरान एप्पल के ब्रांड को पुनर्जीवित करने में महत्वपूर्ण था। इस अभियान ने अल्बर्ट आइंस्टीन, महात्मा गांधी, और मार्टिन लूथर किंग जूनियर (Martin Luther King Jr.) जैसे प्रतिष्ठित दूरदर्शी हस्तियों को दिखाया, जिन्होंने नवाचार और रचनात्मकता की भावना को मूर्त रूप दिया। अभियान की शक्तिशाली टैगलाइन – “अलग-अलग सोचें,” यथास्थिति को चुनौती देने और तकनीक की सीमाओं को आगे बढ़ाने के लिए, एप्पल के लोकाचार का पर्याय बन गया।
3.) आईपॉड सिल्हूट अभियान (iPod Silhouette Campaign):
2003 से 2005 तक चले इस अभियान में, एक आईपॉड पर संगीत सुनने की खुशी और स्वतंत्रता पर ज़ोर देने वाले लोगों के काले सिल्हूट के साथ जीवंत, रंगीन पृष्ठभूमि दिखाई गई। न्यूनतम दृश्य और आकर्षक संगीत ने, विज्ञापनों को तुरंत पहचानने योग्य और सांस्कृतिक रूप से प्रभावशाली बना दिया। इस अभियान ने आईपॉड को एक जीवनशैली गौण के रूप में प्रस्तुत किया, और डिजिटल संगीत की खपत को भी लोकप्रिय बनाया।
4.) शॉट ऑन आईफ़ोन (Shot on iPhone) अभियान:
“शॉट ऑन आईफ़ोन” अभियान ने आईफ़ोन की बेहतर कैमरा क्षमताओं को उजागर करने के लिए, उपयोगकर्ता-जनित सामग्री का लाभ उठाया। कंपनी ने उपयोगकर्ताओं को, उनके अपने आईफ़ोन के साथ ली गई अपनी सर्वश्रेष्ठ फ़ोटो प्रस्तुत करने के लिए प्रोत्साहित किया, जो तब बोर्ड, सोशल मीडिया और अन्य प्लेटफ़ॉर्मों पर विज्ञापनों में चित्रित किए गए थे। इस रणनीति ने न केवल आईफ़ोन की कैमरा गुणवत्ता को प्रदर्शित किया, बल्कि, ब्रांड के इर्द–गिर्द समुदाय और प्रामाणिकता की भावना भी बनाई।
5.) गेट अ मैक (Get a Mac) अभियान:
2006 से 2009 तक चले इस अभियान में, दो प्रसिद्ध अभिनेताओं को एक स्टैड-बैक मैक(Laid-back Mac) और एक स्टफ़ी पीसी(Stuffy PC) के रूप में दिखाया गया था। इस प्रकार, विज्ञापनों ने एक हल्के-फ़ुल्के और आकर्षक तरीके से मैक के फ़ायदों पर प्रकाश डाला। इस अभियान ने पीसी की तुलना में मैक के उपयोग, विश्वसनीयता और आधुनिकता को प्रभावी ढंग से संप्रेषित किया। इसने मैक को व्यापक दर्शकों के साथ प्रतिध्वनित किया, और एप्पल की अभिनव ब्रांड छवि को भी मज़बूत किया।
संदर्भ
मुख्य चित्र: विज़न प्रो (Vision Pro) नामक एप्पल द्वारा विकसित एक मिश्रित-वास्तविकता (mixed-reality) हेडसेट : Wikimedia
ठंडे रेगिस्तान होने के बावजूद, मनांग व मुस्तांग हैं नेपाल के सुंदर एवं सांस्कृतिक केंद्र
मरुस्थल
Desert
05-03-2025 09:46 AM
Lucknow-Hindi

लखनऊ के लोग, अपने से सुदूर स्थित ठंडे रेगिस्तान से लाभान्वित होते हैं। ठंडे रेगिस्तान (Cold Deserts), एक महत्वपूर्ण जल स्रोत के रूप में कार्य करते हैं, जो हिमनदों और बर्फ़ छादन में बड़ी मात्रा में ताज़े पानी का भंडारण करते हैं। इसके अतिरिक्त, वे विशेष पौधों और पशु जीवन के साथ अद्वितीय जैव विविधता प्रदान करते हैं, जो अनुसंधान और औषधीय उद्देश्यों के लिए मूल्यवान हो सकते हैं। कभी-कभी, वे विशेष खनिजों जैसे प्राकृतिक संसधनों के अद्वितीय स्रोत के रूप में भी काम करते हैं। ठंडे रेगिस्तानों के बारे में बात करते हुए, मनांग और मुस्तांग, नेपाल के ठंडे रेगिस्तानों के उदाहरण हैं। इसलिए आज, यह समझने की कोशिश करें कि, मनांग (Manag) और मुस्तांग (Mustang) को ठंडे रेगिस्तान क्यों कहा जाता है। इसके बाद, हम मुस्तांग में पाई गई वनस्पतियों और जीवों के बारे में बात करेंगे। हम उत्तरी मुस्तांग की संस्कृति पर भी कुछ प्रकाश डालेंगे। इसके अलावा, हम इस क्षेत्र के लोकप्रिय त्योहारों के बारे में पता लगाएंगे। अंत में, हम उत्तरी मुस्तांग में प्रमुख पर्यटन आकर्षणों पर कुछ प्रकाश डालेंगे।
मनांग और मुस्तांग को ‘ठंडे रेगिस्तान’ क्यों कहा जाता है ?
अन्नपूर्णा और धौलागिरी पर्वत श्रृंखलाओं से पीछे की ओर, उच्च ऊंचाई वाले स्थान के कारण, मनांग और मुस्तांग में ठंडे और शुष्क प्रकार की जलवायु है। यह जलवायु, नेपाल में एक रेगिस्तान क्षेत्र बनाती है। मनांग, समुद्र तल से 3,500 से 5,000 मीटर ऊपर स्थित है और इसके मौसम में पूरे वर्ष एक ठंडी जलवायु है। भारी बर्फ़बारी के साथ, यहां सर्दीयां बहुत ठंडी होती है, और तापमान अक्सर हिमांक से कम होता है। वसंत ऋतु में, हालांकि बर्फ़ पिघल जाती है, और तापमान धीरे -धीरे एक आरामदायक स्तर तक गर्म हो जाता है।
मनांग में ग्रीष्मकाल ज़्यादातर सूखे होते हैं, क्योंकि आसपास के मानसून से होने वाली अधिकांश बारिश में पहाड़ बाधा डालते हैं। शरद ऋतु में, सौम्य तापमान वाले दिन और स्पष्ट आसमान के साथ शांत रातें होती हैं। यह समय ट्रैकिंग के लिए सही माना जाता है। अधिकांश ट्रैकर्स, विशेषतः सुबह के घंटों के दौरान कूच करते हैं, क्योंकि, दोपहर में उच्च ऊंचाई वाली हवाएं बहती हैं।
मुस्तांग में पाई जाने वाली वनस्पतियां:
धीमी ढलानों पर उगने वाली झाड़ियों में, जुनिपेरस स्क्वामाटा (Juniperus squamata) का वर्चस्व है। जबकि, तीव्र ढलानों पर कारागाना गेरार्डियाना (Caragana gerardiana), क्रिसोसफ़ेरेला ब्रेविस्पिना (Chrysosphaerella brevispina) एवं रोज़ा सेरिसिया (Rosa sericea) के साथ–साथ, एफ़ेड्रा (Ephedra) और लोनिकेरा (Lonicera) की विभिन्न प्रजातियों का वर्चस्व है। 5,000 मीटर से अधिक ऊंचाई पर पनपने वाली वनस्पति में, मुख्य रूप से रोडोडेंड्रोन एंथोपोगोन (Rhododendron anthopogon), पोटेंशिला बाईफ़्लोरा (Potentilla biflora) और सैक्सिफ़्रागा (Saxifraga) की विभिन्न प्रजातियां शामिल हैं। इसके अलावा, 5,800 मीटर से ऊपर बहुत कम या कोई भी वनस्पति नहीं पाई जाती है।
मुस्तांग, बहुत उच्च आर्थिक और नृवंशीय मूल्यों के औषधीय और सुगंधित पौधों में समृद्ध है। स्थानीय लोग भोजन, मसाले, फ़ाइबर, दवा, ईंधन, डाई, टैनिन, गम, राल, धार्मिक उद्देश्य, छत सामग्री, हस्तशिल्प, आदि के लिए कई पौधों का उपयोग करते हैं। यहां सबसे आम प्रकार की वनस्पतियां – औषधीय पौधे अर्थात जड़ी-बूटीयां (73%) हैं, जिसके बाद झाड़ियां, पेड़, और अवरोही पौधें या लताएं आती हैं।
मुस्तांग में वन्यजीव:
मुस्तांग में उपोष्णकटिबंधीय से लेकर, अल्पाइन क्षेत्रों (Alpine zones) तक दुर्लभ और लुप्तप्राय जीवों के महत्वपूर्ण आवास शामिल हैं। मुस्तांग का विविध भौगोलिक स्थान बड़ी संख्या में पशु और पक्षी प्रजातियों के लिए, एक घर प्रदान करता है। इसमें हिमप्रदेशीय तेंदुए, कस्तूरी हिरण और तिब्बती अरगली (Tibetan Argali), गोल्डन ईगल (Golden Eagle), हिमालयन ग्रिफ़न (Himalayan Griffon) और लैमरगेयर (Lammergeyer) शामिल हैं। मुस्तांग ज़िले के जंगलों और उच्च ऊंचाई वाले चरागाह, स्तनधारियों की 29 प्रजातियों का घर है, जिसमें लुप्तप्राय हिमप्रदेशीय तेंदुए और अत्यधिक मूल्यवान कस्तूरी हिरण, किआंग (Kiang) और तिब्बती गज़ेल (Tibetan gazelle) शामिल हैं। पक्षियों की 211 से अधिक प्रजातियां, जिनमें से 48% इस क्षेत्र के अभिजनन निवासी हैं, इस रेगिस्तान में निवास करते हैं। लगभग 30,000 डेमोइसेले क्रेन (Demoiselle Cranes) और 40 से अधिक पक्षी प्रजातियां, ठंडियों के प्रवास के दौरान कालिगंडकी घाटी पर उड़ती हैं।
मुस्तांग की संस्कृति, और वहां की लोकप्रिय गतिविधियां:
1.) स्थानीय जनजातियां:
तिब्बत की सीमा पर बसे होने के कारण, मुस्तांग ने तिब्बती लोगों को प्रभावित किया, और इसके कला तथा प्राचीन इतिहास को प्रभावित किया। उत्तरी मुस्तांग (Upper Mustang), ‘लोबा’ के रूप में जानी जाने वाली जातीय जनजाति से संबंधित है। अपनी जीवन शैली से लेकर भाषा तक, वे तिब्बतियों से मिलते जुलते हैं। उनकी संस्कृति और परंपराएं आठवीं शताब्दी से संबंधित हैं, जब बौद्ध धर्म यालुंग राजवंश के दौरान तिब्बत में पहुंचा था। तिब्बत से, धर्म और परंपराएं मुस्तांग में फ़ैल गईं। तिब्बती बोली से मुस्तांग के लोग खुद को लोबा या लोवा के रूप में पहचानते हैं। वे चार प्रमुख धार्मिक त्योहारों का जश्न मनाते हैं – गाइन, गेन्सु, गेलुंग और नायुने। ये उत्सव, पूरे उत्तरी मुस्तांग को आनंदित करते हैं।
2.) पवित्र दामोदर कुंड और मुक्तिनाथ मंदिर के तीर्थयात्रा स्थल:
दामोदर कुंड, 4890 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह पवित्र कुंड हिंदू तीर्थयात्रियों के बीच प्रसिद्ध है। कई लोगों का मानना है कि, इस पवित्र झील में स्नान करने से पिछले और वर्तमान जीवन के पापों को धोने में मदद मिलेगी। हिंदू लोगों का मानना है कि, किसी को अपने जीवनकाल में कम से कम एक बार दामोदर कुंड का दौरा करना चाहिए। आध्यात्मिक शांति के अलावा, आपको झील के शानदार दृश्य का भी आनंद मिलता है। साथ ही, आपको कुंड के आसपास, सलीग्राम (जीवाश्म पत्थर) भी मिलेगा।
एक तरफ़, 3800 मीटर ऊंचाई पर स्थित, मुक्तिनाथ मंदिर मुस्तांग का असली रत्न है। उत्तरी मुस्तांग पर जाने के दौरान आप इस स्थल को भूल नहीं सकते। यह दुनिया के उच्चतम मंदिरों में से एक है। हिंदू तीर्थयात्री इस स्थान को “मुक्ति क्षेत्र” मानते हैं। इसका मतलब है कि, आपको मुक्ति के लिए इस मंदिर का दौरा करना होगा। इसके महत्व के अलावा, इसकी सुंदरता मनोरम है। एक बार जब आप मुक्तिनाथ पहुंच जाते हैं, तो आपको इस जगह के आसपास खड़ी अन्नपूर्णा और धौलागिरी के सुंदर दृश्य भी दिखाई देते हैं।
3.) तिजी त्योहार, यार्टुंग त्योहार, और घुड़दौड़:
तिजी और यार्टुंग त्योहार, उत्तरी मुस्तांग के प्रसिद्ध त्योहार हैं। तिजी त्योहार इतना प्रसिद्ध है कि, आप तिजी ट्रैक का विकल्प भी चुन सकते हैं। तिजी महोत्सव मई महीने में होता है। यह एक तीन दिवसीय त्योहार है, जो एक आकर्षक मिथक पर केंद्रित है। इतिहास बताता है कि, मुस्तांग का क्षेत्र एक दानव के कारण परेशानी में था, जो बीमारियों को फ़ैलाता था। लेकिन डोरजे जोनो नामक एक नायक ने, इस दानव को हराया। इस प्रकार, यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। इसी तरह, यार्टुंग त्योहार, गर्मियों को वापस भेजने के लिए उत्सव मनाता है। इस समय, लोग तिब्बती प्रभावित बौद्ध धर्म के पारंपरिक मूल्यों का पालन करते हैं। आपको स्थानीय लोगों के साथ यार्टुंग त्योहार ट्रैक मनाने के लिए अगस्त पूर्णिमा पर वहां जाना होगा। एक भव्य उत्सव के साथ, स्थानीय लोग, घोड़े की दौड़ का आयोजन करते हैं। यह सबसे रोमांचक दौड़ होती है, जहां कई पुरुष और महिलाएं भाग लेते हैं।
उत्तरी मुस्तांग में प्रमुख पर्यटक आकर्षण:
1.) लो मंथांग (Lo Manthang):
लो मंथांग, किलेबंदी जैसी दीवारों वाले शहर है और उत्तरी मुस्तांग का सांस्कृतिक केंद्र है। यह प्राचीन शहर, प्राचीन शाही महल, मठों, और जटिल रूप से डिज़ाइन किए गए कीचड़-ईंटों वाले घरों का गढ़ है। इस शहर की संकीर्ण गलियों की खोज और मठवासी केंद्रों का दौरा करना, इस क्षेत्र की समृद्ध विरासत में एक झलक प्रदान करता है।
2.) गोम्पास और मठ (Gompas and Monasteries):
उत्तरी मुस्तांग बौद्ध मठों और गोम्पास से सुसज्जित है, जो मज़बूत तिब्बती बौद्ध प्रभाव को दर्शाते हैं। थूबचेन गोम्पा (Thubchen Gompa) और जम्पा लखांग (Jampa Lhakhang) यहां के महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल हैं, जो अति सुंदर भित्ति चित्र, मूर्तियों और प्राचीन शास्त्रों से सुशोभित हैं।
3.) प्राकृतिक संरचनाएं (Natural Formations):
उत्तरी मुस्तांग का परिदृश्य, प्राकृतिक अजूबों से सुशोभित है। यह अपक्षरीत चट्टानों, गुफ़ाओं और चट्टान निर्माण से मिलता-जुलता है। ज़ारंग की लाल चट्टानें और धकमार के वायु–अपक्षरीत चट्टानी स्तंभ, विशेष रूप से सुंदर हैं।
4.) ट्रेकिंग (Trekking Routes):
यह क्षेत्र, उत्कृष्ट ट्रैकिंग अवसर भी प्रदान करता है, जिसमें सुरम्य गांवों, प्राचीन व्यापार मार्गों और लुभावने पहाड़ी विस्तारों के माध्यम से, अग्रणी ट्रेक्स हैं। इसी कारण, उत्तरी मुस्तांग की ट्रेक लोकप्रिय है।
संदर्भ
मुख्य चित्र: नेपाल में मनांग गांव में स्थित अन्नपूर्णा- III (बाएं, 7555 मीटर) और गंगापूर्णा (7455 मीटर) नामक दो चोटियां (Wikimedia)
सी आर पी एफ़ की विभिन्न इकाइयां, निभाती हैं अनेक भूमिकाएं एवं ज़िम्मेदारियां
आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक
Modern State: 1947 to Now
04-03-2025 09:33 AM
Lucknow-Hindi

'केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल' (Central Reserve Police Force (CRPF)) भारत का सबसे बड़ा अर्धसैनिक संगठन है, जो आंतरिक सुरक्षा को संरक्षित करने और विद्रोह और आतंकवाद जैसे विभिन्न खतरों से जूझने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। सी आर पी एफ़, भारत सरकार गृह मंत्रालय मंत्रालय के तहत कार्य करता है। यह सात 'केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों' (Central Armed Police Forces (CAPF)) में सबसे बड़ी इकाई है। इसका गठन, 27 जुलाई 1939 को किया गया था। इसका आदर्श वाक्य "सेवा और वफ़ादारी" है, जो इसके कर्तव्यों में परिलक्षित होता है। सी आर पी एफ़ का मुख्य कार्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में कानून व्यवस्था बनाए रखना है। इसके साथ ही यह देशभर में आतंकवाद विरोधी अभियानों को भी प्रभावी ढंग से संभालता है। तो आइए, आज, भारत में सी आर पी एफ़ अधिकारियों की भूमिकाओं और जिम्मेदारियों को समझते हैं और इसकी कुछ विशेष इकाइयों के बारे में जानते हैं। इसके साथ ही, हम सी आर पी एफ़ अधिकारियों के वेतन और भत्ते के बारे में भी जानेंगे और देखेंगे कि कक्षा 12 वीं के बाद सी आर पी एफ़ में कैसे शामिल हो सकते हैं।
सीआरपीएफ़ की भूमिकाएं और जिम्मेदारियां:
सी आर पी एफ़ की प्राथमिक भूमिका, संविधान की सर्वोच्चता को कायम रखते हुए राष्ट्रीय अखंडता सुनिश्चित करना और सामाजिक सद्भाव और विकास को बढ़ावा देना और आंतरिक सुरक्षा और सार्वजनिक व्यवस्था को कुशलतापूर्वक बनाए रखने में सरकार की सहायता करना है।
- आंतरिक सुरक्षा: सी आर पी एफ़ आंतरिक सुरक्षा बनाए रखने और देश के विभिन्न हिस्सों में विभिन्न प्रकार के विद्रोह, आतंकवाद और वामपंथी उग्रवाद से निपटने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह कानून और व्यवस्था बहाल करने और आतंकवाद विरोधी अभियान चलाने में राज्य पुलिस बलों की सहायता करता है।
- दंगा नियंत्रण और भीड़ प्रबंधन: सी आर पी एफ़ दंगों को नियंत्रित करने, शांति बनाए रखने और विरोध प्रदर्शनों, सार्वजनिक व्यवस्था और सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करने वाली किसी भी स्थिति के दौरान अनियंत्रित भीड़ को प्रबंधित करने के लिए ज़िम्मेदार है।
- वी आई पी सुरक्षा: सी आर पी एफ़ कर्मी, महत्वपूर्ण गणमान्य व्यक्तियों, उच्च पदस्थ सरकारी अधिकारियों और वीआईपी व्यक्तियों को सुरक्षा प्रदान करते हैं।
- उग्रवाद विरोधी अभियान: ये बल, उग्रवाद से प्रभावित क्षेत्रों में उग्रवाद विरोधी अभियानों में भाग लेते हैं। वे आतंकवादियों को निष्क्रिय करने, तलाशी अभियान चलाने और संघर्ष क्षेत्रों में उपस्थिति बनाए रखने में स्थानीय पुलिस और अन्य सुरक्षा एजेंसियों की सहायता करते हैं।
- सीमा सुरक्षा: सीमा सुरक्षा को मजबूत करने, घुसपैठ को रोकने और तस्करी गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए सी आर पी एफ़ को सीमावर्ती क्षेत्रों में भी तैनात किया जाता है। वे भारत की सीमाओं की अखंडता सुनिश्चित करने के लिए अन्य सीमा सुरक्षा बलों के साथ मिलकर काम करते हैं।
- कानून और व्यवस्था बनाए रखना: सी आर पी एफ़ शांति बनाए रखने, सांप्रदायिक तनाव को रोकने और किसी भी अशांति या हिंसा को संबोधित करने में स्थानीय पुलिस की सहायता करते हैं।
- आपदा प्रबंधन: सी आर पी एफ़ भूकंप, बाढ़ और चक्रवात जैसी प्राकृतिक आपदाओं के दौरान बचाव और राहत कार्यों में भाग लेते हैं।
- चुनाव कर्तव्य: सी आर पी एफ़ विभिन्न क्षेत्रों में चुनाव कार्यों का सुरक्षित और शांतिपूर्ण संचालन भी सुनिश्चित करने का कार्य करते है। चुनाव प्रक्रिया के सुचारू संचालन को सुनिश्चित करने के लिए अक्सर चुनाव के दौरान इस बल को तैनात किया जाता है।
सी आर पी एफ़ की विशेष इकाइयाँ:
- महिला बटालियन: सी आर पी एफ़ 1986 में महिला बटालियन स्थापित करने वाला देश का पहला सीएपीएफ़ था। वर्तमान में इसमें 6 महिला बटालियन हैं। इन बटालियनों को देश और विदेश में तैनात किया जाता है। सी आर पी एफ़ ने 1987 में श्रीलंका में 'भारतीय शांति सेना' के साथ अपनी पहली महिला बटालियन तैनात की।
- कोबरा इकाई: 2008 में, देश में नक्सली या वामपंथी चरमपंथी चुनौती से निपटने के लिए, सी आर पी एफ़ ने एक विशेष बल, 'कमांडो बटालियन फॉर रेसोल्यूट एक्शन' (Commando Battalion for Resolute Action (CoBRA)) का गठन किया। यह इकाई, गुरिल्ला और जंगल युद्ध में विशेष रूप से प्रशिक्षित होती है। इसे छत्तीसगढ़, बिहार, ओडिशा, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, असम और मेघालय के वामपंथी उग्रवादी क्षेत्रों में तैनात किया जाता है।
- रैपिड एक्शन फ़ोर्स (Rapid Action Force (RAF)): यह एक त्वरित प्रतिक्रिया बल है, जिसे दंगों या सार्वजनिक गड़बड़ी वाले क्षेत्रों में तुरंत तैनात किया जा सकता है। इसकी स्थापना सी आर पी एफ़ द्वारा अक्टूबर 1992 में एक दंगा-विरोधी बल के रूप में की गई थी।
- वीआईपी सुरक्षा: सी आर पी एफ़ में एक विशेष वी आई पी विंग भी होता है, जो केंद्रीय गृह मंत्रालय के आदेश के अनुसार व्यक्तियों को सुरक्षा प्रदान करता है। यह भारत सरकार के मंत्रियों, राज्यपालों, मुख्यमंत्रियों, राजनेताओं, सरकारी अधिकारियों, आध्यात्मिक नेताओं, बड़े व्यवसायियों और अन्य प्रमुख व्यक्तियों को सुरक्षा प्रदान करता है।
सीआरपीएफ़ अधिकारियों के वेतन और भत्ते:
प्रति माह वेतन: भारत में सी आर पी एफ़ कर्मियों का मासिक वेतन उनकी रैंक और स्थिति के आधार पर भिन्न होता है, जैसे प्रवेश स्तर के कांस्टेबल का प्रति माह वेतन लगभग ₹25,000 से ₹30,000 के बीच, वरिष्ठ पुलिस अधिकारी का लगभग ₹30,000 से ₹35,000 के बीच, जबकि सहायक उप-निरीक्षक का लगभग ₹35,000 से ₹40,000 के बीच, उप-निरीक्षक का लगभग ₹40,000 से ₹45,000 के बीच, और निरीक्षक का प्रति माह वेतन लगभग ₹45,000 से ₹50,000 के बीच होता है। सहायक कमांडेंट और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों का वेतन ₹56,000 और ₹61,000 के बीच हो सकता है, जबकि डिप्टी कमांडर का ₹67,000 और ₹72,000 के बीच और कमांडर अधिकारी का प्रति माह वेतन लगभग ₹78,000 और ₹83,000 के बीच हो सकता है और इन आंकड़ों में मूल वेतन, महंगाई भत्ता (डीए), हाउस रेंट अलाउंस (एचआरए) और अन्य भत्ते शामिल हैं।
वेतन के अलावा भत्ते: सी आर पी एफ़ कर्मियों को अतिरिक्त लाभ और सहायता के लिए वेतन ढांचे में विभिन्न भत्ते भी प्राप्त होते हैं, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं:
महंगाई भत्ता: मुद्रास्फ़ीति और जीवनयापन की लागत की भरपाई के लिए महंगाई भत्ते की गणना, मूल वेतन के प्रतिशत के रूप में की जाती है और उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के आधार पर इसे समय-समय पर संशोधित किया जाता है।
मकान किराया भत्ता: आवास की लागत को कवर करने के लिए कर्मचारियों को एच आर ए (House Rent Allowance (HRA)) प्रदान किया जाता है। एचआरए की राशि कर्मचारी के स्थान और उनके मूल वेतन के आधार पर भिन्न होती है।
यात्रा भत्ता: आधिकारिक व्यावसायिक यात्राओं पर किए गए यात्रा व्यय की प्रतिपूर्ति करने के लिए यात्रा भत्ता दिया जाता है और इसमें सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त यात्रा व्यय, आवास और भोजन का भुगतान शामिल है।
विशेष कर्तव्य भत्ते: चुनौतीपूर्ण इलाकों, सीमावर्ती क्षेत्रों और उग्रवाद या आतंकवाद से ग्रस्त क्षेत्रों में काम करने वाले कर्मियों को अतिरिक्त शुल्क के रूप में एस डी ए (Special Duty Allowance (SDA)) की पेशकश की जाती है।
अवकाश यात्रा भत्ता: कर्मचारियों को अधिकृत अवकाश अवधि के दौरान किए गए यात्रा खर्चों को कवर करने के लिए एल टी ए (Leave Travel Allowance (LTA)) दिया जाता है और यह कर्मचारियों को अपने परिवार के साथ छुट्टियों की यात्रा के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
कक्षा 12 के बाद सीआरपीएफ़ में शामिल होने के लिए भर्ती प्रक्रिया:
12वीं कक्षा पास करने के बाद सी आर पी एफ़ में असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर के पद पर भर्ती हो सकते हैं। भर्ती अधिसूचना समय-समय पर आधिकारिक वेबसाइट पर जारी की जाती है। सी आर पी एफ़ में एएसआई और हेड कांस्टेबल बनने के लिए 12वीं कक्षा पास का सर्टिफिकेट होना जरूरी है। उम्मीदवारों की आयु 18 से 25 वर्ष के बीच होनी चाहिए। शारीरिक मानदंडों की बात करें तो सामान्य वर्ग के पुरुष उम्मीदवारों की ऊंचाई कम से कम 165 सेंटीमीटर, जबकि महिलाओं की ऊंचाई कम से कम 155 सेंटीमीटर होनी चाहिए। वहीं आरक्षित वर्ग के उम्मीदवारों को नियमानुसार शारीरिक मानक और आयु सीमा में छूट मिलती है।
सीआरपीएफ़ भर्ती प्रक्रिया:
चरण 1 - सी आर पी एफ़ लिखित परीक्षा
चरण 2- शारीरिक मानक परीक्षण
चरण 3- शारीरिक दक्षता परीक्षा
चरण 4 - प्रमाणपत्रों की जाँच
चरण 5- चिकित्सा परीक्षण
शारीरिक मानक परीक्षण:
शारीरिक मानक परीक्षण को दो खंडों, ऊंचाई और छाती में विभाजित किया जाता है। सी आर पी एफ़ में भर्ती होने के लिए उम्मीदवारों को दोनों मानकों के लिए अर्हता प्राप्त करनी होती है। किसी एक में भी असफ़ल होने पर अभ्यर्थी को अयोग्य घोषित कर दिया जाता है।
ऊंचाई:
श्रेणी | पुरुष | महिला |
अनारक्षित उम्मीदवार | 170 सेंटीमीटर | 157 सेंटीमीटर |
अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति उम्मीदवार | 162.5 सेंटीमीटर | 150 सेंटीमीटर |
सिक्किम, नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, त्रिपुरा, मिजोरम, मेघालय, असम, हिमाचल प्रदेश और जम्मू और कश्मीर राज्यों से आने वाले उम्मीदवारों के लिए मानक: | 165 सेंटीमीटर
| 155 सेंटीमीटर
|
गढ़वाली, कुमाऊंनी, गोरका, डोगरा, मराठा श्रेणी के अंतर्गत आने वाले उम्मीदवारों के लिए मानक हैं: | 165 सेंटीमीटर
| 155 सेंटीमीटर
|
छाती:
श्रेणी | अविस्तारित | विस्तारित |
सामान्य | 80 सेंटीमीटर | 85 सेंटीमीटर |
अनुसूचित जनजाति | 76 सेंटीमीटर | 81 सेंटीमीटर |
गढ़वाली, कुमाऊंनी, गोरखा, डोगरा, मराठा, और सिक्किम, नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, त्रिपुरा, मिजोरम, मेघालय, असम, हिमाचल प्रदेश और जम्मू और कश्मीर राज्यों से संबंधित उम्मीदवारों के लिए मानक | 78 सेंटीमीटर
| 83 सेंटीमीटर
|
शारीरिक दक्षता परीक्षण:
परीक्षण | महिला | पुरुष |
लंबी छलांग | 3 अवसरों में 9 फ़ुट की लंबी छलांग | 3 अवसरों में 12 फ़ुट लंबी छलांग |
ऊंची छलांग | 3 अवसरों में 3 फ़ुट ऊंची छलांग | 3 अवसरों में 3 फ़ुट 9 इंच ऊंची छलांग |
दौड़-1 | 18 सेकंड के अंदर 100 मीटर | 16 सेकंड के अंदर 100 मीट |
दौड़-2 | 4 मिनट के अंदर 800 मीटर | 6.30 मिनट में 1.6 किलोमीटर |
सी आर पी एफ़ अधिकारी बनना उम्मीदवारों के लिए बहुत गर्व का क्षण होता है क्योंकि उन्हें मातृभूमि की सेवा करने का मौका मिलता है। हालाँकि, चयन प्रक्रिया आसान नहीं है क्योंकि उम्मीदवारों को कई राउंड के लिए अर्हता प्राप्त करनी होती है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/yc6dz3wz
मुख्य चित्र: जम्मू-कश्मीर के कठुआ ज़िले के बसोहली तहसील के बन्नी क्षेत्र में बच्चों के साथ भारतीय सी आर पी एफ़ के जवान (Wikimedia)
कैसे मानवीय भावनाओं एवं लोगों के कल्याण को प्रभावित करती है, किसी स्थान की वास्तुकला ?
वास्तुकला 1 वाह्य भवन
Architecture I - Exteriors-Buildings
03-03-2025 09:42 AM
Lucknow-Hindi

क्या आप जानते हैं कि किसी संरचना या भवन की वास्तुकला, हमारी भावनाओं, व्यवहार और समग्र कल्याण को प्रभावित कर सकती है। इस प्रकार सोच समझकर डिज़ाइन किए गए स्थान आराम, शांति और प्रेरणा की भावनाओं को प्रेरित करते हैं। खुले आंगन, प्राकृतिक प्रकाश व्यवस्था और जटिल डिज़ाइन परिवेश के साथ सद्भाव और संबंध की भावना पैदा करते हैं। हमारे लखनऊ का बड़ा इमामबाड़ा इसका एक आदर्श उदाहरण है, जो न केवल एक ऐतिहासिक चमत्कार है, बल्कि आगंतुकों को मनोवैज्ञानिक रूप से अपने भव्य, शांत जटिल अंतरंग से प्रभावित करता है। इस तरह के वास्तुकला चमत्कार हमें याद दिलाते हैं कि कैसे वास्तुकला मन को प्रभावित कर सकती है, तनाव को कम कर सकती है, और संस्कृति एवं इतिहास के प्रति एक गहरा संबंध बढ़ा सकती है। तो आइए, आज वास्तुकला के मस्तिष्क पर मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक प्रभाव के बारे में जानते हैं और समझते हैं कि वास्तुशिल्प भावनाओं को कैसे प्रभावित करती है। इसके साथ ही, हम यह समझने का प्रयास करेंगे कि डिज़ाइन तत्वों और मानव कल्याण के बीच क्या संबंध हो सकता है। अंत में, हम प्राकृतिक प्रकाश और वेंटिलेशन (Ventilation) के महत्व के बारे में जानते हुए, मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ाने, तनाव को कम करने और जीवन की समग्र गुणवत्ता में सुधार करने में इसकी भूमिका को समझेंगे।
वास्तुकला का मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक प्रभाव:
वास्तुकला का मनोवैज्ञानिक एवं भावनात्मक प्रभाव इस बात में निहित है कि किसी स्थान की वास्तुकला कितनी अच्छी तरह से 'अपनेपन की भावना' उत्पन्न करती है। वास्तुकला अपने आप में एक कला है, जो विज्ञान, डिज़ाइन (design), कला और इतिहास को एक सुंदर रचना के रूप में मिश्रित करती है। वास्तुकला को समझने के लिए, इसे अनुभव करने की आवश्यकता है और इस पर किसी विशेष राष्ट्र या क्षेत्र की संस्कृति और इतिहास का विशेष प्रभाव होता है। जब वास्तुकला, निवासियों के साथ भावनात्मक रूप से जुड़ जाती है, तो इसके संदेश और अर्थ को अधिक गहराई से महसूस किया जा सकता है, जिससे अधिक स्थायी प्रभाव उत्पन्न होता है।
मानवीय भावनाओं में वास्तुकला की भूमिका:
किसी इमारत के निर्माण में वास्तुकला का उपयोग करते समय मानवीय भावनाएं महत्वपूर्ण होती हैं, क्योंकि जब कोई इमारत भावनात्मक रूप से रहने वालों के साथ जुड़ती है, तो एक वास्तुकार अपने काम के माध्यम से जो संदेश प्रसारित करना चाहता है, वह अधिक गहराई से अनुभव होता है, जिसका एक स्थाई प्रभाव होता है। किसी इमारत के हर पहलू, जैसे सामग्री, संरचना और इमारत के डिज़ाइन का क्षेत्र के वातावरण पर सीधा प्रभाव पड़ता है। वास्तव में, एक सच्चा वास्तुकार व्यक्तियों को उनके भौतिक परिवेश और स्मृतियों से जोड़ने और उनमें भावनात्मक प्रतिक्रियाएँ उत्पन्न करने का कार्य करता है। उदाहरण के लिए, पुस्तकालयों को गंभीर स्थानों के रूप में देखा जाता है जो सम्मान और संयम की भावनाएं उत्पन्न करते हैं। जब कोई व्यक्ति किसी पुस्तकालय में जाता है, तो वह बाहरी दुनिया के शोर-शराबे वाले जीवन से अलग हो जाता है। ऐसा लगता है मानो पुस्तकालय ने उन्हें अपने आप में समाहित कर लिया है।
वास्तुकला का हमारे मन और कल्याण पर प्रभाव:
सुंदर वातावरण को देख हमारा मन सदैव भी प्रसन्न हो जाता है। इसी तरह, सुविधाजनक डिज़ाइन से हमें शारीरिक आराम महसूस होता है। प्राकृतिक स्थान, मन को शांति प्रदान करते हैं, और ज्ञानयुक्त वातावरण से तनाव कम होता है। वास्तव में, विचारपूर्वक डिज़ाइन किए गए स्थान जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाते हैं। इस संदर्भ में, वास्तुकला मानव अनुभव की मनोवैज्ञानिक गहराई में अपनी छाप छोड़ती है।
हमारे मन पर सामग्री और बनावट का प्रभाव:
निर्माण सामग्रियों की भी अपनी भाषा है। लकड़ी, अक्सर ग़र्मजोशी, अपनेपन और आराम से जुड़ी होती है और प्रकृति से संबंध की भावनाओं को विकसित करती है। इसके विपरीत, कंक्रीट (concrete) से आधुनिकता और सुंदरता, लेकिन कभी-कभी अवैयक्तिकता का अनुभव होता है। लेकिन बनावट से ये अनुभव और भी गहन हो जाते हैं। किसी स्थान का स्पर्श - चाहे वह ईंट की दीवार का खुरदरापन हो या एक आलीशान कालीन की कोमलता - संवेदी यादों और भावनाओं को प्रभावित करता है।
रंग और ध्वनिकी की शक्ति:
रंग, हमारे मानस से गहराई से जुड़े हैं। नीला रंग, शांति और पीला रंग, जीवंतता को दर्शाते हैं। भावनाओं के इस पैलेट को समझकर, वास्तुकार वांछित भावनाओं के साथ प्रतिध्वनित होने वाले वातावरण का निर्माण करते हैं। इसी तरह, हम जो सुनते हैं वह उतना ही प्रभावशाली होता है, जितना हम देखते हैं। वास्तुशिल्प डिज़ाइन में ध्वनिकी का महत्व सर्वोपरि है। सही ध्वनिकी वाला एक कमरा, हमें सुरक्षित और आरामदायक महसूस करा सकता है, जबकि खराब ध्वनि डिज़ाइन से तनाव का स्तर बढ़ सकता है।
मानसिक स्वास्थ्य में प्राकृतिक प्रकाश और वायु संचार की भूमिका एवं लाभ:
प्राकृतिक प्रकाश और वायु संचार, स्वस्थ घरेलू वातावरण के लिए अत्यंत आवश्यक तत्व हैं। इनसे कई लाभ प्रदान होते हैं, जो शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य दोनों पर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं। घर में स्वस्थ और सकारात्मक वातावरण बनाने के लिए सूर्य का प्राकृतिक प्रकाश और वायु संचार दोनों महत्वपूर्ण हैं। प्राकृतिक प्रकाश दिन के समय, मौसम की स्थिति और स्थान के आधार पर भिन्न हो सकता है। यह उत्पादकता, बेहतर नींद, शांत मन और यहां तक कि दिन के उजाले के दौरान, कृत्रिम प्रकाश की आवश्यकता को कम करके आपके बिजली के बिल को कम करने जैसे कई लाभ प्रदान करता है। प्राकृतिक प्रकाश के संपर्क में आने से विटामिन डी (Vitamin-D) के स्तर को बढ़ाने में भी मदद मिलती है, जो हड्डियों के स्वास्थ्य, प्रतिरक्षा प्रणाली के कार्य और समग्र कल्याण के लिए महत्वपूर्ण है।

प्रदूषक रहित अशुद्ध वायु को हटाकर, घर के अंदर वायु की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए वायु संचार भी उतना ही महत्वपूर्ण है, उचित वायु संचार से ऑक्सीजन की उचित मात्रा प्राप्त होती है, जिससे बीमारियां भी दूर होती हैं। इससे श्वसन समस्याओं और वायु गुणवत्ता से जुड़ी अन्य स्वास्थ्य समस्याओं को रोकने में मदद मिलती है। उचित वायु संचार नमी के स्तर को कम करते हुए दीवारों और छतों पर फ़फ़ूंद के विकास को रोकता है, जो अस्थमा (asthama) या एलर्जी (allergy) जैसी श्वसन समस्याओं का कारण बन सकता है।
वास्तव में, अपने घर के डिज़ाइन में प्राकृतिक प्रकाश स्रोतों जैसे बड़ी खिड़कियां या रोशनदान और उचित संवातन प्रणाली को शामिल करने से आपके कई लाभ मिल सकते हैं!
संदर्भ
मुख्य चित्र: टीले वाली मस्जिद (प्रारंग चित्र संग्रह)
लखनऊ आइए, आज सैर करें, एलोरा गुफ़ाओं तथा यहाँ स्थित प्रसिद्ध कैलाश मंदिर की
द्रिश्य 3 कला व सौन्दर्य
Sight III - Art/ Beauty
02-03-2025 09:19 AM
Lucknow-Hindi

भारत के औरंगाबाद, महाराष्ट्र में स्थित एलोरा गुफ़ाएँ (Ellora Caves), यूनेस्को (UNESCO) के विश्व धरोहर स्थलों (World Heritage Sites) में से एक हैं। ये भारतीय शैलकर्तित वास्तुकला (Indian rock-cut architecture) का एक अद्भुत नमूना प्रदान करती हैं, जिसमें 600-1000 ईस्वी की अवधि की कलाकृतियाँ मौजूद हैं। इनमें कई ऐसी गुफ़ाएँ भी शामिल हैं, जो बौद्ध और जैन धर्म से संबंधित हैं। इस स्थल पर 100 से अधिक गुफ़ाएँ हैं, जो चरणंद्री पहाड़ियों (Charanandri Hills) में बेसाल्ट (Basalt) चट्टानों की खुदाई से प्राप्त हुई हैं। इनमें से 34 गुफ़ाओं में लोगों को जाने की अनुमति है। गुफ़ा 16 में दुनिया का सबसे बड़ा एकल अखंड चट्टान उत्खनन, ‘कैलाश मंदिर’ (Kailasa Temple) है। रथ के आकार का यह स्मारक, भगवान शिव को समर्पित है। पुरातत्वविदों का मानना है कि कैलाश मंदिर एक ही चट्टान से बना है। यह बौद्ध, हिंदू और जैन मंदिरों सहित स्थल पर मौजूद 34 गुफ़ा मंदिरों में सबसे बड़ा मंदिर भी है। इस मंदिर का आकार बहुत भव्य है। वास्तुकारों का मानना है कि इसे कई शासनकालों के दौरान बनाया गया होगा, जिस दौरान कई राजाओं ने इस पर शासन किया होगा। इसका मुख्य मंदिर चालुक्यों द्वारा बनवाए गए दिलचस्प विरुपाक्ष मंदिर जैसा ही है। यह ध्यान देने वाली बात है कि इस मंदिर के वास्तुकारों ने निर्माण की एक बहुत ही जटिल लेकिन शानदार विधि का इस्तेमाल किया था, जो चट्टान के ऊपर से शुरू होकर नीचे की ओर जाती है। इस मंदिर में एक शिवलिंग भी मौजूद है। तो आइए, आज कुछ चलचित्रों के साथ, हम इन गुफ़ाओं को विस्तार से देखें। हम उनके ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व के साथ-साथ, उनकी वास्तुकला की शैली के बारे में भी जानेंगे। इसके अलावा, हम इन गुफ़ाओं में पाए जाने वाले चित्रों और महत्वपूर्ण संरचनाओं पर एक नज़र डालेंगे। साथ ही हम, कैलाश मंदिर के कुछ चलचित्रों का भी आनंद लेंगे।
संदर्भ:
आइए जानें, ट्रकों ने भारत की अर्थव्यवस्था को कैसे गतिमान रखा है
नगरीकरण- शहर व शक्ति
Urbanization - Towns/Energy
01-03-2025 09:32 AM
Lucknow-Hindi

करोड़ों की जनसँख्या वाले हमारे देश भारत की आपूर्ति व्यवस्था, आज भी बहुत हद तक ट्रकों पर निर्भर करती है। देशभर में अधिकतर सामान सड़क परिवहन, खासतौर पर ट्रकों के ज़रिए, एक जगह से दूसरी जगह पर पहुंचाया जाता है। इस प्रकार, देश के कुल घरेलू माल की लगभग 70% मांग की आपूर्ति होती है। इसी कारण, भारत के विशाल क्षेत्र में माल परिवहन के लिए “ट्रक” सबसे अहम साधन बन गए हैं। भारत में दुनिया के सबसे बड़े सड़क नेटवर्क में से एक है, जिसकी लंबाई 60 लाख किलोमीटर से भी अधिक है। इस वजह से सड़क मार्ग से माल ढुलाई आसान और प्रभावी बन जाती है। इसलिए, आज के इस लेख में, हम भारत में सड़क परिवहन और माल ढुलाई की वर्तमान स्थिति को समझेंगे। इसके बाद हम जानेंगे कि ट्रक माल परिवहन में किस तरह की बड़ी भूमिका निभाते हैं। साथ ही हम, भारत में लॉजिस्टिक्स (Logistics) में इस्तेमाल होने वाले ट्रकों की विभिन्न श्रेणियों के बारे में भी जानकारी लेंगे। इसके अलावा, हम ट्रक माल उद्योग के सामने आने वाली प्रमुख चुनौतियों पर भी चर्चा करेंगे। अंत में, यह समझेंगे कि ट्रकों के ज़रिए भारत की आपूर्ति श्रृंखला को और बेहतर कैसे बनाया जा सकता है।
2023 में भारत का सड़क माल ढुलाई बाज़ार (road freight transport market), 12.13 ट्रिलियन रुपये का था। 2029 तक इसके 18.89 ट्रिलियन रुपये तक पहुंचने की उम्मीद है। इसका मतलब है कि यह बाज़ार हर साल लगभग 9.43% की दर से बढ़ रहा है। हालांकि, इस क्षेत्र को अपनी लागत कम करने की सख्त जरूरत है क्योंकि भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 14% हिस्सा रसद पर खर्च होता है।
भारत में कुल सड़क माल ढुलाई का 50% हिस्सा लंबी दूरी के परिवहन (400 किमी से अधिक) का है। इस सामान को मुख्य रूप से राष्ट्रीय राजमार्गों के माध्यम से ले जाया जाता है। इस क्षेत्र में ईंधन-कुशल वाहन और डिजिटल माल मिलान प्लेटफॉर्म अपनाए जा रहे हैं। इससे लागत कम हो रही है और परिवहन की दक्षता बढ़ रही है। शहरी और अंतर-शहर माल ढुलाई के लिए छोटी दूरी का परिवहन भी बहुत महत्वपूर्ण है। खासकर ई-कॉमर्स और एफ़ एम सी जी ( फ़ास्ट -मूविंग कंज़्यूमर गुड्स) जैसे उद्योगों में इसकी मांग अधिक है। शहरी और कम दूरी के परिवहन में इलेक्ट्रिक ट्रक और डिपो-आधारित चार्जिंग समाधान तेजी से अपनाए जा रहे हैं। इससे लागत कम हो रही है और परिवहन की दक्षता में सुधार हो रहा है। इसके अलावा भारत स्वच्छ ऊर्जा और प्रभावी रसद प्रणालियों पर जोर दे रहा है। इससे इस क्षेत्र में नए विकास के अवसर बन रहे हैं।
शून्य उत्सर्जन ट्रक (Zero Emission Trucks (ZET)) ट्रकों के उपयोग से ईंधन लागत में 46% तक की बचत संभव है। बेहतर वेयरहाउस तकनीक और मल्टीमॉडल लॉजिस्टिक्स पार्कों
से भी परिचालन क्षमता (Operational Efficiency) में सुधार होगा। इसके अलावा, सरकार और निजी क्षेत्र भी मिलकर माल ढुलाई गलियारों (Freight Corridors) पर चार्जिंग स्टेशनों का निर्माण कर रहे हैं।
फ़ेम II (FAME II) जैसी सरकारी योजनाएं, इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने में मदद कर रही हैं। इससे परिचालन लागत घटेगी और पर्यावरण मानकों में सुधार होगा। इस क्षेत्र में हो रहे बदलाव न केवल लागत में कमी लाएंगे, बल्कि भारत के सड़क माल ढुलाई बाज़ार में विदेशी निवेश के नए अवसर भी खोलेंगे।
आइए, अब भारत के सड़क माल उद्योग में ट्रकों की भूमिका को समझते हैं:
भारत में हर साल लगभग 4.6 बिलियन टन माल का परिवहन किया जाता है। इस परिवहन पर ₹9.5 लाख करोड़ की लागत आती है और इससे 2.2 ट्रिलियन टन-किलोमीटर की परिवहन मांग उत्पन्न होती है।
शहरीकरण, जनसंख्या वृद्धि, ई-कॉमर्स का विस्तार और आय स्तर में वृद्धि के कारण माल की मांग लगातार बढ़ रही है। इस बढ़ती मांग के कारण, 2050 तक, सड़क माल ढुलाई का स्तर 9.6 ट्रिलियन टन-किलोमीटर तक पहुंचने की संभावना है। भारत में माल ढुलाई का 70% हिस्सा सड़क परिवहन के माध्यम से किया जाता है। इसमें मुख्य रूप से ट्रक इस्तेमाल होते हैं। भारी और मध्यम-ड्यूटी ट्रक (क्रमशः एच डी टी (HDT) और एम डी टी (MDT)) सड़क परिवहन के अधिकांश हिस्से को पूरा करते हैं। जैसे-जैसे सड़क परिवहन की मांग बढ़ रही है, ट्रकों की संख्या भी तेजी से बढ़ने की उम्मीद है। 2023 में भारत में ट्रकों की संख्या 4.3 मिलियन थी। यह आंकड़ा 2050 तक 17 मिलियन तक पहुंच सकता है। इससे स्पष्ट है कि आने वाले वर्षों में ट्रकों की भूमिका और भी महत्वपूर्ण होने वाली है।
आइए, अब आपको भारत में ट्रकों के विभिन्न प्रकारों से परिचित कराते हैं :
1) हल्के वाणिज्यिक वाहन (Light Commercial Vehicles (LCVs)): छोटे माल की ढुलाई के लिए, हल्के वाणिज्यिक वाहन (Light Commercial Vehicles) का इस्तेमाल किया जाता है। ये वाहन, तेज़, फ़ुर्तीले और भीड़-भाड़ वाली सड़कों पर आसानी से चलने योग्य होते हैं। इनका उपयोग मुख्य रूप से उपनगरीय क्षेत्रों और शहरों में माल पहुंचाने के लिए किया जाता है। इन ट्रकों का सकल वाहन भार (Gross Vehicle Weight (GVW)), आमतौर पर 3.5 से 7 टन के बीच होता है। ये वाहन, यात्री परिवहन, अंतिम मील डिलीवरी ( क्लोज़िंग -माइल ट्रांसपोर्टेशन (closing-mile transportation)) और छोटे पैमाने पर लॉजिस्टिक्स के लिए आदर्श होते हैं।
2) मध्यम वाणिज्यिक वाहन (Medium Commercial Vehicles (MCVs)): मध्यम वाणिज्यिक वाहन, हल्के और भारी वाहनों के बीच की श्रेणी में आते हैं। इन ट्रकों का सकल वाहन भार 7.5 से 16 टन के बीच होता है, जिससे ये मध्यम भार को लंबी दूरी तक ले जाने में सक्षम होते हैं। इनका उपयोग आमतौर पर निर्माण कार्य, स्थानीय वितरण और शहरों के बीच माल परिवहन के लिए किया जाता है। इन ट्रकों का डिज़ाइन मज़बूत होता है, जिससे यह कई उद्योगों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये संतुलित भार क्षमता और अच्छी गतिशीलता के कारण काफी उपयोगी होते हैं।
3) भारी वाणिज्यिक वाहन (Heavy Commercial Vehicles (HCVs)): भारी वाणिज्यिक वाहन, सबसे बड़े ट्रकों में शामिल होते हैं। इन्हें भारी माल को लंबी दूरी तक ले जाने के लिए डिज़ाइन किया गया है। इनका सकल वाहन भार, 16 टन से 49 टन तक हो सकता है। इनका उपयोग, मुख्य रूप से लंबी दूरी की यात्रा, अंतरराज्यीय लॉजिस्टिक्स और बड़े पैमाने पर माल ढुलाई के लिए किया जाता है। इन ट्रकों में मज़बूत एक्सल, शक्तिशाली इंजन और आधुनिक सुरक्षा सुविधाएं होती हैं, जो इन्हें कुशल और सुरक्षित बनाते हैं।
4) अति-भारी वाणिज्यिक वाहन (Extra-Heavy Commercial Vehicles (EHCVs)): अति-भारी वाणिज्यिक वाहन, अत्यधिक भारी माल ढुलाई के लिए बनाए जाते हैं। इनका सकल वाहन भार 49 टन से अधिक होता है, जिससे ये खनन, निर्माण और भारी उद्योगों में उपयोगी साबित होते हैं। इन ट्रकों की संरचना बहुत मज़बूत होती है। इनमें मज़बूत चेसिस, शक्तिशाली इंजन और भारी भार सहने वाले एक्सल लगे होते हैं, जिससे ये कठिनतम परिस्थितियों में भी बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं।
5) रेफ़्रिजरेटेड ट्रक: रेफ़्रिजरेटेड ट्रक, जिन्हें रीफ़र ट्रक भी कहा जाता है, विशेष रूप से ठंडा माल ढोने के लिए बनाए जाते हैं। इनमें रेफ़्रिजरेशन सिस्टम लगा होता है, जिससे मालवाहक डिब्बे के अंदर नियत तापमान बनाए रखा जा सकता है। इन ट्रकों का उपयोग मुख्य रूप से फल, सब्ज़ियां, डेयरी उत्पाद और अन्य जल्दी खराब होने वाले सामान के परिवहन के लिए किया जाता है। लंबी दूरी और अंतर-शहर माल परिवहन के लिए इनकी खास जरूरत होती है।
हालांकि. लंबे समय से भारत में ट्रक फ़्रेट उद्योग को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इन समस्याओं के समाधान के बिना लॉजिस्टिक्स उद्योग की वृद्धि बाधित हो सकती है। आइए, अब एक नज़र भारत में ट्रक फ़्रेट उद्योग की सबसे बड़ी चुनौतियों पर भी डालते हैं:
1.) ईंधन की बढ़ती कीमतें: भारत में ट्रकिंग कंपनियों के कुल खर्च का लगभग 30% हिस्सा ईंधन पर खर्च होता है। जब ईंधन की कीमतें बढ़ती हैं, तो उनके परिचालन लागत भी बढ़ जाती है। इससे लाभ बनाए रखना कठिन हो जाता है। बढ़ती कीमतों के कारण बेड़े के मालिकों को परिवहन खर्च में बढ़ोतरी का सामना करना पड़ता है।
2.) पुरानी तकनीक: अप्रचलित तकनीक से कामकाज में रुकावट आती है और दक्षता कम हो जाती है। पुराने सिस्टम में कागज़ी कार्रवाई और चालक रिकॉर्ड की प्रभावशीलता घट जाती है। डेटा सुरक्षा की कमी के कारण चालक और ग्राहकों की जानकारी सुरक्षित नहीं रहती, जिससे कंपनियों पर भरोसा कम हो सकता है। इसके अलावा, पुरानी तकनीक के कारण ट्रकों की मरम्मत और रखरखाव का खर्च बढ़ता है, जिससे अनियोजित डाउनटाइम भी बढ़ जाता है।
3.) खराब सड़कें: भारत में ट्रक उद्योग को बुनियादी ढाँचे की कमी से बड़ी परेशानी होती है। राजमार्गों पर भीड़भाड़, उचित सड़क सुविधाओं की कमी और खराब सड़कें ट्रकों की दक्षता को प्रभावित करती हैं। इससे माल परिवहन में देरी होती है और परिचालन लागत भी बढ़ जाती है।
4.) वाहन रखरखाव की लागत: लॉजिस्टिक कंपनियाँ, लागत कम करने के लिए ट्रकों का अधिकतम उपयोग करती हैं। इससे चालक की सुविधा और वाहन के रखरखाव पर ध्यान कम हो जाता है। कई बार ट्रकों का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन सही समय पर उनकी मरम्मत और देखभाल नहीं की जाती, जिससे वाहन की कार्यक्षमता पर असर पड़ता है।
5.) ई वी के लिए बुनियादी ढाँचे की कमी: भारत में इलेक्ट्रिक ट्रकों के लिए चार्जिंग स्टेशनों की भी कमी है। हाईवे और प्रमुख मार्गों पर चार्जिंग की पर्याप्त व्यवस्था नहीं होने के कारण कंपनियाँ, बैटरी से चलने वाले ट्रकों को अपनाने में झिझक रही हैं। इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने के लिए तेज़ और धीमी दोनों चार्जिंग के लिए बेहतर बुनियादी ढाँचा और पिन-कोड स्तर तक कवरेज बढ़ाने की जरूरत है।
6.) ट्रक ड्राइवरों का स्वास्थ्य और कल्याण: लंबे समय तक ट्रक चलाने और अनियमित जीवनशैली के कारण, ट्रक ड्राइवर, कई स्वास्थ्य समस्याओं से जूझते हैं। अनियमित भोजन, पौष्टिक आहार की कमी और अपर्याप्त नींद के कारण वे शारीरिक और मानसिक समस्याओं का सामना करते हैं। ड्राइवरों का स्वास्थ्य बेहतर बनाने के लिए जागरूकता अभियान, आराम करने के लिए जगह और स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध कराई जानीं चाहिए।
आइए, अब यह भी जानते हैं कि भारत में ट्रक परिवहन आपूर्ति श्रृंखला को कैसे बेहतर बनाया जा सकता है ?
भारत में ट्रक परिवहन आपूर्ति श्रृंखला को अधिक कुशल और प्रभावी बनाने के लिए कई कदम उठाए जा सकते हैं। जैसे कि:
1. डिजिटल क्रांति से सुधार: डिजिटल तकनीकों के कारण, भारतीय ट्रक परिवहन क्षेत्र में बड़ा बदलाव देखा गया है। मोबाइल ऐप और डिजिटल प्लेटफ़ॉर्मों के माध्यम से ट्रक संचालन पहले से अधिक संगठित और कुशल हो गया है। इससे संचार बेहतर हुआ है, ट्रकों की रीयल-टाइम ट्रैकिंग संभव हुई है, और सही मार्ग योजना बनाने में मदद मिली है।
इसके अलावा, डिजिटल तकनीक से ट्रक मालिक और व्यापारियों के बीच समन्वय बढ़ा है। इससे ट्रकों का अधिकतम उपयोग संभव हुआ है और खाली ट्रकों की आवाजाही कम हुई है, जिससे परिचालन लागत घटी है और कार्बन उत्सर्जन में भी कमी आई है।
2. बेहतर कनेक्टिविटी और पहुंच: ट्रक परिवहन केवल माल ढुलाई तक सीमित नहीं है, बल्कि यह बाज़ारों को जोड़ने, व्यापार को बढ़ावा देने और आर्थिक विकास को मज़बूत करने में भी अहम भूमिका निभाता है। खासतौर पर यह ग्रामीण और दूरदराज के इलाकों की अर्थव्यवस्था को मुख्यधारा से जोड़ने में मदद करता है। कृषि क्षेत्र के लिए यह बहुत ज़रूरी है क्योंकि ट्रकों की मदद से किसान अपनी उपज को देशभर के बाजारों में आसानी से भेज सकते हैं। इससे उन्हें बेहतर दाम मिलते हैं और कटाई के बाद होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है।
3. नवाचार और स्थिरता की ओर बढ़ता कदम: जैसे-जैसे ट्रक परिवहन उद्योग आगे बढ़ रहा है, वैसे-वैसे नवाचार और पर्यावरण संरक्षण भी इसकी प्राथमिकता बन रहे हैं। इलेक्ट्रिक ट्रक और वैकल्पिक ईंधन वाले वाहनों का उपयोग बढ़ रहा है, जिससे ईंधन की लागत कम होगी और पर्यावरण को भी कम नुकसान पहुंचेगा। साथ ही, आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (AI) और मशीन लर्निंग (ML) जैसी आधुनिक तकनीकों का उपयोग भी लॉजिस्टिक्स क्षेत्र में तेजी से बढ़ रहा है। ये तकनीकें मांग का अनुमान लगाने, ट्रकों की सुरक्षा बढ़ाने और स्वचालित ट्रकों के उपयोग जैसी संभावनाओं को साकार करने में मदद कर रही हैं।
संदर्भ
https://tinyurl.com/2cytmy92
https://tinyurl.com/2y4pbhhh
https://tinyurl.com/28rwhy6y
https://tinyurl.com/2a7onbnq
मुख्य चित्र स्रोत : Wikimedia
आइए जानें, समुद्र की तलहटी से खनिज निकालने की प्रक्रिया और इससे संबंधित चुनौतियों को
वास्तुकला 2 कार्यालय व कार्यप्रणाली
Architecture II - Office/Work-Tools
28-02-2025 09:45 AM
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लखनऊ के कुछ लोग, ‘डीप सी माइनिंग’ (गहरे समुद्र में खनन) के बारे में सुन चुके होंगे। यह एक प्रक्रिया है जिसमें समुद्र की गहराइयों से निकलने वाले खनिजों को निकाला जाता है। इनमें निकल, कोबाल्ट, तांबा, जस्ता, मैंगनीज़, चांदी और सोना जैसे खनिज शामिल होते हैं। इस खनन के लिए खास मशीनों का इस्तेमाल किया जाता है, जो समुद्र की तलहटी से खनिज इकठ्ठा कर उन्हें जहाज़ तक पहुंचाती हैं।
आज हम डीप सी माइनिंग को विस्तार से समझेंगे। सबसे पहले, हम जानेंगे कि यह प्रक्रिया अभी दुनिया में किस स्तर पर चल रही है और इसे नियंत्रित करने के लिए कौन से नियम बनाए गए हैं। इसके बाद, हम समझेंगे कि समुद्र की तलहटी से इन खनिजों को निकालने की पूरी प्रक्रिया कैसे होती है और इसमें किस तरह के उपकरणों का इस्तेमाल किया जाता है।
फिर हम, इस खनन से होने वाले पर्यावरणीय और आर्थिक नुकसान पर चर्चा करेंगे। अंत में, हम उन पर्यावरण के अनुकूल विकल्पों के बारे में जानेंगे जो ऊर्जा के स्रोत को बदलने में मदद कर सकते हैं।
डीप सी माइनिंग क्यों की जाती है ?
डीप सी माइनिंग का मतलब, समुद्र की गहराइयों से खनिज निकालना है। यह खनन मुख्य रूप से पॉलीमेटैलिक नोड्यूल्स (कई धातुओं से बने छोटे पत्थर) के लिए किया जाता है, जो समुद्र की तलहटी पर 4 से 6 किलोमीटर (2.5–3.7 मील) की गहराई में पाए जाते हैं। ये नोड्यूल्स (nodules), खासतौर पर एबिसल प्लेन नामक क्षेत्र में मिलते हैं।
क्लैरियन-क्लिपरटन ज़ोन (Clarion-Clipperton Zone (CCZ)) में ही करीब 21 अरब मीट्रिक टन नोड्यूल्स मौजूद हैं, जिनमें तांबा, निकल और कोबाल्ट जैसे महत्त्वपूर्ण खनिज होते हैं। इन नोड्यूल्स का करीब 2.5% हिस्सा इन्हीं खनिजों से बना होता है। अनुमान लगाया गया है कि समुद्र की तलहटी में 120 मिलियन टन से अधिक कोबाल्ट मौजूद है, जो ज़मीन पर मिलने वाले भंडार से पांच गुना अधिक है।
डीप सी माइनिंग का मुख्य उद्देश्य, इन बहुमूल्य खनिजों को निकालकर औद्योगिक कामों में इस्तेमाल करना है, क्योंकि इलेक्ट्रॉनिक्स, बैटरियों और अन्य आधुनिक तकनीकों के लिए ये खनिज बहुत ज़रूरी होते हैं।
डीप सी माइनिंग की वर्तमान स्थिति और इसका संचालन
वर्तमान में डीप सी माइनिंग को लेकर वैश्विक स्तर पर कई विवाद और चर्चाएँ चल रही हैं। यह खनन, मुख्य रूप से अंतरराष्ट्रीय जलक्षेत्रों में किया जाता है, जहाँ किसी एक देश का अधिकार नहीं होता। इसकी निगरानी, संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि (United Nations Convention on the Law of the Sea (UNCLOS)) के तहत 1994 में गठित इंटरनेशनल सीबेड अथॉरिटी (International Seabed Authority (ISA)) द्वारा की जाती है।
आई एस ए अब तक 30 से अधिक अनुबंध जारी कर चुकी है, जिससे लगभग 1.5 मिलियन वर्ग किलोमीटर समुद्री क्षेत्र में अन्वेषण की अनुमति दी गई है। हालांकि, डीप सी माइनिंग को लेकर वैश्विक नियम और नीतियाँ अभी पूरी तरह से विकसित नहीं हुई हैं। 2021 से आई एस ए पर दबाव बढ़ रहा है कि वह इस खनन के लिए स्पष्ट दिशानिर्देश तैयार करे। 2023 में आई एस ए ने एक रोडमैप प्रकाशित किया, जिसमें 2025 तक इस पर ठोस नियम बनाने की योजना का उल्लेख किया गया है।
दूसरी ओर, कई देश और पर्यावरणविद इस खनन के पर्यावरणीय प्रभावों को लेकर चिंतित हैं। कुछ देश, जैसे कनाडा और न्यूज़ीलैंड, इस पर पूर्ण प्रतिबंध (moratorium) की मांग कर रहे हैं, जबकि कुछ, जैसे चिली और वनुआटु, इसे रोकने के लिए और शोध की आवश्यकता पर जोर दे रहे हैं। इसके अलावा, बड़ी कंपनियाँ और वित्तीय संस्थान भी इससे जुड़ी जोखिमों को देखते हुए सतर्क रुख अपना रही हैं।
इस अनिश्चितता के बीच, डीप सी माइनिंग के भविष्य को लेकर बहस जारी है, और यह तय करना बाकी है कि इसे वैश्विक स्तर पर कैसे नियंत्रित किया जाएगा।
डीप-सी माइनिंग के लिए कौन-कौन से उपकरण जरूरी हैं ?
1. उत्पादन सहायता पोत (Production Support Vessel)
उत्पादन सहायता पोत, जिसे पी एस वी (PSV) भी कहते हैं, गहरे समुद्र में धात्विक पत्थरों (पॉलीमेटेलिक नोड्यूल्स) को इकट्ठा करने, उठाने और संग्रहीत करने के लिए बनाया जाता है। यह आमतौर पर तेल और गैस उद्योग में इस्तेमाल होने वाले गहरे समुद्र के ड्रिलशिप से बदले हुए जहाज़ होते हैं।
पी एस वी वह प्लेटफ़ॉर्म होता है, जिससे समुद्र के नीचे काम करने वाला कलेक्टर (Subsea Collector) संचालित किया जाता है। इस कलेक्टर को एक विशेष प्रणाली (Launch and Recovery System - LARS) की मदद से समुद्र की गहराई में उतारा जाता है। इसके अलावा, पी एस वी में एक ड्रिलिंग मशीन होती है, जिससे समुद्र की गहराई से धात्विक पत्थर निकालने के लिए एक विशेष पाइपलाइन (Riser Air Lift System - RALS) बनाई जाती है।
इस पोत में डीज़ल इंजनों से चलने वाले जनरेटर लगे होते हैं, जो सभी उपकरणों को बिजली प्रदान करते हैं। इसमें एक डायनामिक पोज़िशनिंग सिस्टम (Dynamic Posiiton System) होता है, जिससे जहाज़ को एक जगह स्थिर रखा जा सकता है। जहाज़ में चालक दल के लिए रहने की सुविधा होती है, जिसमें एक बड़ा आवासीय क्षेत्र, नियंत्रण कक्ष (ब्रिज) और एक हेलिपैड भी शामिल होता है।
पी एस वी के महत्वपूर्ण मापदंड
• बिस्तर: 120-200
• लंबाई: 200-260 मीटर
• चौड़ाई: 40-45 मीटर
• वजन: 50,000-70,000 टन
• क्षमता: 30,000-100,000 टन
2. समुद्र के नीचे काम करने वाला कलेक्टर (Subsea Collector)
समुद्र में गहराई से धात्विक पत्थर (पॉलीमेटेलिक नोड्यूल्स) इकट्ठा करने के लिए एक विशेष मशीन होती है, जिसे “समुद्र के नीचे काम करने वाला कलेक्टर” या “खनन वाहन” (Harvester) कहा जाता है।
प्रत्येक पी एस वी के पास एक या अधिक कलेक्टर होते हैं। ये कलेक्टर, पी एस वी द्वारा संचालित और नियंत्रित किए जाते हैं। इन्हें एक मोटे केबल (Umbilical Cable) के ज़रिए बिजली, संचार और नियंत्रण दिया जाता है।
ये कलेक्टर, समुद्र की सतह से धीरे-धीरे समुद्र की गहराई में उतारे जाते हैं और अलग-अलग तकनीकों की मदद से समुद्र की तलहटी से धात्विक पत्थर इकट्ठा करते हैं। इनमें हाइड्रोलिक उपकरण, यांत्रिक सिस्टम, या रोबोटिक भुजाएँ लगी हो सकती हैं। ये उपकरण, समुद्र की सतह पर वापस आने के लिए आमतौर पर कैटरपिलर ट्रैक (Caterpillar Tracks) का इस्तेमाल करते हैं।
3. राइज़र एयर लिफ़्ट सिस्टम (Riser Air Lift System - RALS)
समुद्र की गहराई से पॉलीमेटेलिक नोड्यूल्स को सतह तक लाने के लिए अलग-अलग तरीके अपनाए जाते हैं। इनमें सबसे ज़्यादा इस्तेमाल होने वाली तकनीक राइज़र एयर लिफ़्ट सिस्टम होती है।
इस प्रणाली के ज़रिए, कलेक्टर द्वारा इकट्ठा किए गए पत्थर समुद्र की 4000-5000 मीटर गहराई से उठाकर पी एस वी तक लाए जाते हैं। पी एस वी से हवा को पाइपलाइन के माध्यम से समुद्र की गहराई में भेजा जाता है। यह हवा पानी और पॉलीमेटेलिक नोड्यूल्स के मिश्रण में मिलती है, जिससे पानी की घनत्व कम हो जाती है और पत्थर ऊपर की ओर बढ़ने लगते हैं।
यदि पर्याप्त हवा डाली जाए, तो इस प्रणाली के अंदर का दबाव समुद्र के बाहरी पानी के दबाव से कम हो जाता है, जिससे पानी नीचे से अंदर आता है और पत्थरों को ऊपर ले जाता है। जब पानी का प्रवाह इतना तेज़ हो जाता है कि पत्थर नीचे न गिर सकें, तब वे सीधे सतह तक पहुँच जाते हैं।
4. सतह पर अलगाव प्रणाली (Surface Separator Equipment)
जब पॉलीमेटेलिक नोड्यूल्स, सतह तक आ जाते हैं, तो उन्हें पानी और हवा से अलग किया जाता है। इसके लिए सेंट्रीफ़्यूगल सेपरेटर (Centrifugal Separators) और ड्रिलिंग शेकर्स (Drilling Shakers) नामक उपकरणों का उपयोग किया जाता है।
- सेंट्रीफ़्यूगल सेपरेटर
इसमें पानी और धात्विक पत्थरों को अलग करने के लिए गोलाकार गति (Centrifugal Force) का उपयोग किया जाता है। भारी पत्थर बाहरी किनारे पर चले जाते हैं, जबकि हल्का पानी बीच में रहता है।
- ड्रिलिंग शेकर्स
यह एक विशेष प्रकार का स्क्रीन होता है, जो कंपन (Vibration) करके पानी और पत्थरों को अलग करती है। पत्थर स्क्रीन के ऊपर रह जाते हैं और पानी नीचे गिर जाता है।
इसके बाद, धात्विक पत्थरों को पी एस वी के भंडारण हिस्से में भेज दिया जाता है और बचा हुआ पानी वापस समुद्र में लौटा दिया जाता है, ताकि पर्यावरण पर कम से कम प्रभाव पड़े।
गहरे समंदर में खनन के नकारात्मक पारिस्थितिक और आर्थिक प्रभाव
1.) समुद्री जीवों को सीधा नुकसान: भारी खनन मशीनों के सीधा संपर्क में आने से गहरे समुद्र में रहने वाले धीमी गति वाले जीव मर सकते हैं। इसके अलावा, ये मशीनें, समुद्र तल से गाद (कीचड़) उड़ाकर जीवों को ढक सकती हैं, जिससे वे सांस नहीं ले पाएंगे और मर सकते हैं। खनन से निकलने वाला गर्म अपशिष्ट पानी भी समुद्री जीवों के लिए ज़हरीला हो सकता है और उन्हें नुकसान पहुँचा सकता है।
2.) प्रजातियों और पर्यावरण का दीर्घकालिक नुकसान: खनन गतिविधियों से गहरे समुद्र के जीवों के खाने और प्रजनन में बाधा आ सकती है। समुद्र की गहराइयों में अंधेरा और शांति होती है, लेकिन खनन के दौरान, तेज़ रोशनी और शोर के कारण, यह संतुलन बिगड़ सकता है। खासतौर पर तेज़ आवाज़ व्हेल जैसे विशाल जीवों को नुकसान पहुँचा सकती है, जो पहले से ही जलवायु परिवर्तन और अन्य मानवीय गतिविधियों से प्रभावित हैं।
3.) मछली पकड़ने और खाद्य सुरक्षा पर प्रभाव: खनन जहाज़ों से निकलने वाला अपशिष्ट पानी समुद्र में दूर-दूर तक फैल सकता है, जिससे खुले समुद्र में रहने वाली मछलियाँ और अन्य जीव प्रभावित हो सकते हैं। इनमें ट्यूना मछली जैसी प्रजातियाँ भी शामिल हैं, जो कई छोटे द्वीप देशों की अर्थव्यवस्था के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं, जैसे कि किरिबाती, वानुआतु और मार्शल द्वीप।
4.) आर्थिक और सामाजिक खतरे: भले ही खनन समुद्र में किया जाएगा, लेकिन इसके लिए तटों पर विशेष सुविधाओं की ज़रूरत होगी, जहाँ निकाले गए पदार्थों को प्रोसेस या भेजा जा सके। इसके लिए ज़मीन अधिग्रहण और निर्माण कार्य करना होगा, जिससे तटीय इलाकों में रहने वाले लोगों और समुद्री जीवों पर बुरा असर पड़ेगा।
5.) जलवायु पर संभावित प्रभाव: महासागर दुनिया का सबसे बड़ा कार्बन सिंक (कार्बन अवशोषण क्षेत्र) है, जो लगभग 25% कार्बन डाइऑक्साइड (Carbon dioxide) को अवशोषित करता है। समुद्र में मौजूद सूक्ष्मजीव इस प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जिससे कार्बन गहरे समुद्र में जमा होता है और मीथेन जैसी हानिकारक गैसों का उत्सर्जन कम होता है। लेकिन गहरे समुद्र में खनन करने से जैव विविधता कम हो सकती है, जिससे महासागर के कार्बन चक्र पर बुरा असर पड़ेगा और वैश्विक तापमान को नियंत्रित करने की इसकी क्षमता घट सकती है।
ऊर्जा परिवर्तन के लिए गहरे समुद्र खनन के विकल्प:
1.) अब अधिक से अधिक शहरों में यह देखा जा रहा है कि कम निजी कारों का उपयोग, चाहे वह इलेक्ट्रिक हो या नहीं, से बहुत लाभ हो रहा है। सार्वजनिक परिवहन, चलना, साइकिल चलाना और साझा यात्रा करने से शहर अधिक किफ़ायती, स्वच्छ, सुरक्षित और स्वस्थ बनते हैं। इससे बैटरी धातुओं की मांग कम होगी।
2.) अब कार कंपनियाँ नई इलेक्ट्रिक वाहन बैटरी का उपयोग कर रही हैं, जिसमें कोबाल्ट और निकल नहीं होते – ये दोनों धातुएं गहरे समुद्र खनन द्वारा निकाली जाने वाली धातुएं हैं। वे छोटे, अधिक प्रभावी कारें भी बना सकती हैं जिनमें छोटी बैटरियाँ हों।
3.) बैटरी सामग्री की पुनर्प्राप्ति और पुनर्चक्रण को सुधारना (जैसा कि यूरोपीय संघ ने एक नए कानून में अनिवार्य किया है) का मतलब है कि नई खनन की आवश्यकता कम होगी।
संदर्भ
मुख्य चित्र: डीप सी माइनिंग (Deep Sea Mining) : Wikimedia
क्यों व कैसे होता है, पौधों का डी एन ए अनुक्रमण ?
डीएनए
By DNA
27-02-2025 09:45 AM
Lucknow-Hindi

लखनऊ के नागरिक जानते ही होंगे कि, डी एन ए(DNA), पौधों सहित सभी जीवों के शरीर के लिए निर्देश पुस्तिका है। डीएनए अनुक्रमण एक शक्तिशाली उपकरण है, जो वैज्ञानिकों को इन निर्देशों को पढ़ने और यह समझने में मदद करता है कि, पौधे कैसे बढ़ते हैं, अनुकूलन करते हैं और जीवित रहते हैं। पौधों के डी एन ए का अध्ययन करके, शोधकर्ता फ़सलों को बेहतर बनाने, उन्हें बीमारियों के प्रति अधिक प्रतिरोधी बनाने और लुप्त होने के खतरे में, पौधों की प्रजातियों की रक्षा करने के तरीके ढूंढ सकते हैं। लखनऊ जैसी जगहों पर, डीएनए अनुक्रमण कृषि में सुधार और स्थानीय पौधों के जीवन को संरक्षित करने, दोनों बातों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। आज हम चर्चा करेंगे कि, पौधों में कैसा डीएनए होता है और यह उनके लिए क्यों महत्वपूर्ण है। फिर, हम पौधों में डीएनए की संरचना को देखेंगे। उसके बाद, हम पौधों में डी एन ए अनुक्रमण तकनीक का पता लगाएंगे। अंत में, हम पादप डीएनए अनुक्रमण के विभिन्न उपयोगों के बारे में बात करेंगे।
क्या पादप कोशिकाओं में डीएनए होता है?
सभी जीवित जीवों की तरह, पौधों की कोशिकाओं में भी डीएनए होता है। डी एन ए या डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड (Deoxyribonucleic acid), एक जटिल अणु है, जो सभी जीवित जीवों के लिए आनुवंशिक निर्देश पुस्तिका के रूप में कार्य करता है। इसमें वह कोड(Code) होता है, जो किसी जीव के भौतिक स्वरूप से लेकर, उसके जैविक कार्यों के गुणों को निर्धारित करता है।
डी एन ए, पादप कोशिका के नियंत्रण केंद्र – नाभिक के भीतर पाया जाता है। इसमें यह कसकर भरी हुई संरचनाओं में व्यवस्थित होता है, जिन्हें क्रोमोज़ोम (Chromosomes) कहा जाता है। ये गुणसूत्र एक–एक जोड़े में व्यवस्थित होते हैं, जिनमें से एक सेट मादा पौधे से और दूसरा नर पौधे से विरासत में मिला है।
पादप जीवविज्ञान में डीएनए का महत्व-
कृषि और जैव प्रौद्योगिकी में प्रगति के लिए, पौधों के डी एन ए की संरचना और कार्य को समझना महत्वपूर्ण है।
आनुवंशिक संशोधन: पौधों के डी एन ए में हेरफ़ेर करके, वैज्ञानिक बेहतर उपज, रोग प्रतिरोधक क्षमता और पोषण सामग्री वाली फ़सलें विकसित कर सकते हैं।
पौधों का प्रजनन: शोधकर्ता पौधों में लाभकारी लक्षणों की पहचान करने के लिए, डीएनए जानकारी का उपयोग कर सकते हैं और प्रजनन कार्यक्रमों के दौरान उन लक्षणों का चयन कर सकते हैं, जिससे स्वस्थ और अधिक उत्पादक फ़सलें प्राप्त हो सकती हैं।
पौधों में डी एन ए की संरचना-
डी एन ए, अणु की वास्तविक संरचना और प्रोटीन के लिए कोड करने का इनका तरीका, बैक्टीरिया से लेकर यीस्ट और पौधों एवं जानवरों तक एक समान है। पौधों, मनुष्यों और सभी जीवित जीवों में डीएनए अणु एक ही आकार के होते हैं – जैसे कि, एक मुड़ी हुई सीढ़ी, या एक डबल हेलिक्स(Double helix)। इस डबल हेलिक्स की रीढ़, शुगर(Sugar) और फ़ॉसफ़ेट(Phosphate) अणुओं से बनी होती है।
इस डबल हेलिक्स का प्रत्येक छड़ दो आधारों से बना होता है, जो एक–एक रीढ़ से निकले होते हैं और बीच में जुड़ जाते हैं। यह एक आधार जोड़ी है, जिनमें अक्षर – A, T, G और C आधार के नामों का प्रतिनिधित्व करते हैं। जब यह डबल हेलिक्स मुड़ जाता है, तो इससे डी एन ए अणु बनता है।
डी एन ए को सभी जीवों में समान तरीके से प्रोटीन बनाने के लिए मोड़ा जाता है, संग्रहित किया जाता है, कॉपी किया जाता है और ब्लूप्रिंट(Blueprint) के रूप में उपयोग किया जाता है। फिर भी, जीव भिन्न हैं। क्योंकि, ये अंतर A, T, G और C के क्रम और उन प्रोटीनों से आते हैं, जिनके लिए वे कोड करते हैं। इन प्रोटीनों के बनने का समय और स्थान, गुणसूत्रों और जीनों की संख्या, आदि भी भिन्न होती है।
पौधों में डीएनए अनुक्रमण प्रौद्योगिकी-
डी एन ए पृथक्रकरण-
पौधों के जीनोम(Genome) के अनुक्रमण के लिए, प्रारंभिक चरण, अनुक्रम के लिए डी एन ए का एक नमूना प्राप्त करना है। अनुक्रमण के लिए उपयुक्त गुणवत्ता का डीएनए नमूना प्राप्त करने की आसानी, प्रजातियों के बीच बहुत भिन्न होती है। पौधों में कई माध्यमिक मेटाबोलाइट्स(Metabolites), प्रोटीन और पॉलीसेकेराइड(Polysaccharides) होते हैं, जो डी एन ए निष्कर्षण में हस्तक्षेप कर सकते हैं और दूषित पदार्थों का स्रोत बन सकते हैं। ये अक्सर ही, डी एन ए निष्कर्षण की दक्षता को कम कर देते हैं। वर्तमान प्रौद्योगिकियों के लिए न्यूनतम मात्रा में डीएनए की आवश्यकता होती है और कुशल अनुक्रमण और बड़ी मात्रा में डेटा उत्पन्न करने की सुविधा के लिए डी एन ए, शुद्ध होना चाहिए। लंबे समय तक पढ़े जाने वाले अनुक्रमण के लिए आवश्यक डीएनए की मात्रा, कम पढ़े जाने वाले अनुक्रमण के लिए आवश्यक डी एन ए की मात्रा से अधिक रही है।
लंबे समय तक पढ़े जाने वाले अनुक्रम-
बड़ी संख्या में दोहराए जाने वाले अनुक्रमों के साथ, पादप जीनोम का संयोजन केवल संक्षिप्त पठन अनुक्रमों के साथ संभव नहीं है। इसलिए, ऐसी तकनीक जो बहुत लंबे अनुक्रमों को उत्पन्न करने की अनुमति देती है, जीनोम असेंबली(Genome assembly) को सरल बनाने में महत्वपूर्ण रही है। यह प्रौद्योगिकी पहली बार पेश किए जाने के बाद से, इन अनुक्रमों की लंबाई और उनकी सटीकता में काफ़ी सुधार हुआ है।
लघु पठन अनुक्रम-
भविष्य की अनुक्रमण प्रौद्योगिकियों के पहले सेट ने, छोटे डी एन ए अनुक्रमों की बड़ी मात्रा प्रदान की है। इन छोटे अनुक्रमों की सटीकता और डेटा की मात्रा में, नाटकीय रूप से वृद्धि हुई है। इन अनुक्रमों की लंबाई लगभग 30 बी पी(आधार जोड़) से शुरू हुई और तेज़ी से 100-150 बीपी तक बढ़ गई है। युग्मित-अंत अनुक्रमण ने, इस तकनीक को लगभग 400 बीपी के अनुक्रमों के उत्पादन की अनुमति देने के लिए विस्तारित किया है, लेकिन, अधिकांश एप्लिकेशन वर्तमान में लगभग 150 बीपी के अनुक्रम प्रदान करते हैं। इलुमिना अनुक्रमण प्लेटफ़ॉर्म(Illumina sequencing platform) लघु पठन अनुक्रमण के लिए उपयोग की जाने वाली, प्रमुख तकनीक है। यह तकनीक बहुत बड़ी संख्या में समानांतर प्रतिक्रियाओं में, संश्लेषण द्वारा अनुक्रमण करती है। डी की प्रतिलिपि बनाते समय, न्यूक्लियोटाइड(Nucleotides) के समावेश की निगरानी की जाती है। अन्य तकनीकों को नई प्रौद्योगिकियों द्वारा प्रतिस्थापित किया गया है, क्योंकि वे आम तौर पर, कम सटीकता या डेटा की पेशकश करते हैं। इसके परिणामस्वरूप, अपेक्षाकृत अधिक लागत आती है।
एक तरफ़, आयन टोरेंट अनुक्रमण(Ion Torrent sequencing) का उपयोग, बड़ी संख्या में छोटे अनुक्रमों के अनुक्रम के, तेज़ी से निर्धारण के लिए किया जाता है, जैसे कि – एम्प्लिकॉन अनुक्रमण(Amplicon sequencing) और 16 एस मेटागेनोमिक अनुक्रमण(Metagenomic sequencing)। पौधों में, इसका उपयोग, क्लोरोप्लास्ट अनुक्रमण(Chloroplast sequencing) के लिए किया गया है।
अंगक जीनोम अनुक्रमण(Organelle Genome Sequencing)-
पादप कोशिकाओं में आमतौर पर एक ही नाभिक और कई अंगक (organelle), संभवतः सैकड़ों माइटोकॉन्ड्रिया(Mitochondria) और हज़ारों क्लोरोप्लास्ट होते हैं। इन जीनोमों के बीच, जीन स्थानांतरण के कारण ऑर्गेनेल जीनोम का अनुक्रमण जटिल है। नाभिक जीनोम में, अक्सर अंगक जीनोम के बड़े और छोटे अनुक्रमों के कई सम्मिलन होते हैं। कई शुरुआती तरीकों को नाभिक जीनोम में डाली गई प्रतियों से, ऑर्गेनेल जीन अनुक्रमों को अलग करने के लिए, जटिलताओं का सामना करना पड़ा क्योंकि, वे पी सी आर प्रवर्धन(PCR amplification) या ऑर्गेनेल पृथक्करण पर निर्भर थे। नाभिक सम्मिलन, ऑर्गेनेल जीनोम के संस्करणों का प्रतिनिधित्व कर सकते हैं, जिन्हें अतीत में स्थानांतरित किया गया था, और जो सम्मिलन के बाद से अलग हो गए हैं।
पादप डी एन ए अनुक्रमण के अनुप्रयोग-
•मॉडल जीनोम-
प्रारंभिक प्रौद्योगिकियों का उपयोग करके, पौधों के जीनोम को अनुक्रमित करने की चुनौती ने, मॉडल जीनोम के अनुक्रमण पर ध्यान केंद्रित करना आवश्यक बना दिया। इसका उपयोग, संबंधित लेकिन अधिक जटिल, प्रजातियों का अध्ययन करने के लिए किया जा सकता है। अनुक्रमित जीनोम वाला पहला पौधा, अरेबिडोप्सिस थालियाना(Arabidopsis thaliana) था। इसे इसलिए चुना गया था क्योंकि, यह तेज़ी बढ़ता है और बहुत छोटे जीनोम वाला, एक छोटा पौधा है। इससे यह अनुसंधान उपयोग के लिए, एक आदर्श मॉडल पौधा बन जाता है। अनुक्रमित जीनोम वाला पहला फ़सल पौधा चावल (ओरिज़ा सैटिवा – Oryza sativa) था। इसे इसलिए चुना गया था क्योंकि, यह अपेक्षाकृत छोटे जीनोम वाला एक प्रमुख खाद्य फ़सल पौधा है। इसलिए, यह अनाज और घास जीनोम के लिए एक मॉडल बन गया।
इसी तरह, ब्रैचिपोडियम डिस्टैचियन(Brachypodium distachyon) को एक मॉडल घास जीनोम के रूप में अनुक्रमित किया गया था, जो विशेष रूप से गेहूं जीनोम के लिए प्रासंगिक है। जीनोम अनुक्रमण तकनीक में, हालिया प्रगति ने ऐसे मॉडल की आवश्यकता को काफ़ी कम कर दिया है क्योंकि, अब अधिकांश प्रजातियों को आसानी से अनुक्रमित करना संभव है।
•फ़सल पादप जीनोम-
फ़सल प्रजातियों के जीनोम का अनुक्रमण, पौधों के सुधार के लिए एक महत्वपूर्ण सक्षम उपकरण बन गया है। अधिकांश प्रमुख फ़सलों में अब संदर्भ जीनोम अनुक्रम होते हैं और जैसे-जैसे तकनीक अधिक शक्तिशाली होती जाती है, और लागत कम होती जाती है, कई अन्य छोटी फ़सलों के लिए भी जीनोम उत्पन्न किए जा रहे हैं। इसमें आम तौर पर, एक प्रजाति के लिए एक संदर्भ जीनोम अनुक्रम का उत्पादन और उस प्रजाति के भीतर विभिन्नताओं को परिभाषित करने के लिए, कई पौधों का पुन: अनुक्रमण शामिल है। वर्तमान प्रयास मानते हैं कि, एक एकल संदर्भ जीनोम, हमेशा पादप प्रजनकों की जरूरतों को पूरा नहीं कर सकता है। इसलिए, जीन पूल(Gene pool) के भीतर कई विविध जीनोमों में, भिन्नता को परखने वाले पैन-जीनोम को प्रजनन प्लेटफ़ॉर्मों के रूप में उत्पादित किया जा रहा है।
•अनुक्रमण संयंत्र जैव विविधता-
कई विविध पौधों के जीनोम को अब प्रमुख समूहों, विशेषकर फूलों वाले पौधों के बढ़ते कवरेज के साथ, अनुक्रमित किया गया है। पौधों के अनुक्रम का कवरेज अधिक है, और कई पौधों के परिवारों के जीनोम अब रिपोर्ट किए गए हैं। हालांकि, अधिकांश पादप समूहों के लिए, जीनस स्तर पर कवरेज अभी भी बहुत कम है। पादप जीनोम अनुक्रम प्राप्त करने के व्यवस्थित प्रयासों में, प्रत्येक पादप परिवार के एक सदस्य को अनुक्रमित करने के लिए, ऊपर से नीचे का दृष्टिकोण अपनाया जा सकता है। फिर, प्रत्येक जीनस और अंत में, प्रत्येक प्रजाति संसाधन के रूप में उपलब्ध हो जाएगी। अंततः, प्रत्येक प्रजाति के भीतर विविधता का पुन: अनुक्रमण मूल्यवान है।
•दुर्लभ और संकटग्रस्त प्रजातियों का अनुक्रमण-
अब, डी एन ए के मूल स्थान और अलग स्थान में, संरक्षण में सहायता के लिए एक उपकरण के रूप में, पौधों की दुर्लभ और खतरे वाली प्रजातियों को अनुक्रमित करने के लिए, लक्षित प्रयास किए जा रहे हैं। यह गंभीर रूप से लुप्तप्राय प्रजातियों के बीच अधिक जरूरी है, जिसके लिए जीनोम अनुक्रम ही, वह सब कुछ हो सकता है, जिसे हम बनाए रख सकते हैं। क्योंकि, कुछ प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर हैं। जैव विविधता को अनुक्रमित करने के प्रयास, अक्सर सर्वोच्च प्राथमिकता के रूप में दुर्लभ प्रजातियों पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
गंभीर रूप से लुप्तप्राय जंगली फ़सल – मैकाडामिया जानसेनी(Macadamia jansenii) का उपयोग, पौधों के जीनोम अनुक्रमण और संयोजन विधियों की तुलना करने के लिए किया गया है। इसने एक सामान्य नमूने का उपयोग करके, जीनोम असेंबली के लिए अनुक्रमण प्लेटफ़ॉर्मों और जैव सूचना विज्ञान उपकरणों की तुलना करने की अनुमति दी है। एक पौधे के लिए, गुणसूत्र-स्तरीय जीनोम अनुक्रम की पीढ़ी में – एक डी एन ए नमूना तैयार करना, उस डीएनए का अनुक्रमण व अनुक्रम की असेंबली शामिल है।
संदर्भ
मुख्य चित्र: पादप डी एन ए (pexels)
लखनऊ सहित देशभर में कैसे मनाया जाता है, महाशिवरात्रि का पावन पर्व ?
विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)
Thought I - Religion (Myths/ Rituals )
26-02-2025 09:39 AM
Lucknow-Hindi

करचरण कृतं वाक्कायजं कर्मजं वा।
श्रवणनयनजं वा मानसं वापराधम्॥
विहितमविहितं वा सर्वमेतत्क्षमस्व।
जय जय करुणाब्धे श्रीमहादेव शम्भो॥
भावार्थ: हाथों से, पैरों से, वाणी से, शरीर से, कर्म से, कानों से, आँखों से या मन से जो भी जाने-अनजाने में पाप हुआ हो, उन सभी को क्षमा करें, हे करुणा के सागर, महादेव शंभो!
पूरे भारत में महा शिवरात्रि को विविध धार्मिक अनुष्ठानों, सांस्कृतिक कार्यक्रमों और सामुदायिक समारोहोंके साथ, बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। क्षेत्रों के आधार पर इसे मनाने का तरीका अलग हो सकता है, लेकिन सभी स्थानों में भगवान शिव के प्रति श्रद्धाएक जैसी होती है। लखनऊ शहर में भी सैकड़ों भक्त इस अवसर पर अलग-अलग प्रकार के व्रत रखते हैं। कुछ लोग निर्जला व्रत रखते हैं, जिसमें वे बिना भोजन और पानी के रहते हैं। वहीं, कुछ फलाहार व्रत रखते हैं, जिसमें फल, सूखे मेवे और चाय का सेवन किया जाता है। यहाँ के मंदिरों में शिव-पार्वती विवाह, श्लोकों का पाठ और रुद्राभिषेक जैसे अनुष्ठान भी किए जाते हैं। आज के लेख में, हम यही जानने का प्रयास करेंगे कि लखनऊ और उत्तर प्रदेश के अन्य भागों में यह पर्व कैसे मनाया जाता है। इसके बाद, हम देखेंगे कि हिमाचल प्रदेश, आंध्र प्रदेश, असम, ओडिशा और भारत के अन्य राज्यों में महाशिवरात्रि किस तरह मनाई जाती है। अंत में, लखनऊ के कुछ प्रसिद्ध शिव मंदिरों की जानकारी देंगे, जहाँ भक्त महाशिवरात्रि के दिन दर्शन के लिए जा सकते हैं।
समूचे उत्तर प्रदेश में महाशिवरात्रि का पर्व, बड़ी ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इस अवसर पर लखनऊ, कानपुर, आगरा, अलीगढ़ और गोरखपुर जैसे शहरों के मंदिरों में भक्तों की लंबी-लंबी कतारें देखने को मिलती हैं। पुरुष और महिलाएँ, श्रद्धा से भगवान शिव के दर्शन के लिए आते हैं। वे मंदिरों में दूध, शहद और अन्य पूजन सामग्री अर्पित करते हैं। बाराबंकी के लोधेश्वर महादेव मंदिर, आगरा और लखनऊ के मनकामेश्वर मंदिर, वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर, कानपुर के आनंदेश्वर महादेव मंदिर और गोरखपुर के बाबा गोकर्णनाथ मंदिर में भी भारी भीड़ उमड़ती है।
लखनऊ में भी महाशिवरात्रि के अवसर पर बड़ी ही रौनक देखने को मिलती है। यहाँ के मंदिरों में शिव-पार्वती विवाह का आयोजन किया जाता है। द्वादश ज्योतिर्लिंग मंदिर में भक्त रुद्राभिषेक करते हैं। भगवान शिव की मूर्तियों को भगवान राम के रूप में सजाया जाता है। भक्त पगड़ी और पटका पहनकर श्रद्धा प्रकट करते हैं।
शाम को छप्पन भोग का आयोजन होता है और भव्य आरती की जाती है। अभिषेक के लिए गोमती और गंगा नदी के जल का उपयोग किया जाता है। महाकाल मंदिर को रंग-बिरंगी रोशनी से सजाया जाता है, जबकि बुद्धेश्वर महादेव मंदिर में कांवड़ यात्रियों का स्वागत किया जाता है। महाशिवरात्रि के अवसर पर, लखनऊ में कई प्राचीन और प्रसिद्ध शिव मंदिरों में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। ये मंदिर, धार्मिक आस्था के साथ ऐतिहासिक महत्व भी रखते हैं।
चलिए जानते हैं कि महाशिवरात्रि के दौरान, लखनऊ के प्रसिद्ध शिव मंदिरों की क्या स्थिति रहती है?
1. मनकामेश्वर मंदिर: अमीनाबाद क्षेत्र में स्थित मनकामेश्वर मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। यह मंदिर, गोमती नदी के तट पर बना हुआ है! इसे लखनऊ के सबसे पुराने मंदिरों में से एक माना जाता है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब भगवान राम ने माता सीता को वनवास के लिए छोड़ा था, तब लक्ष्मण इस पवित्र स्थल पर आए थे। इसके बाद, राजा नवधनु ने अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के कई वर्षों बाद इस मंदिर का निर्माण कराया। हालाँकि, 12वीं शताब्दी में यमन के आक्रमणकारियों ने इसे नष्ट कर दिया। लगभग 500 साल पहले नागा साधुओं ने मंदिर का पुनर्निर्माण किया।
2. चंद्रिका देवी मंदिर: गोमती नदी के तट पर स्थित चंद्रिका देवी मंदिर, आध्यात्मिक शांति और मन की शुद्धि के लिए एक महत्वपूर्ण स्थल माना जाता है। यह मंदिर, मुख्य रूप से देवी चंद्रिका को समर्पित है, जिन्हें देवी पार्वती का स्वरूप माना जाता है। हालांकि, यहाँ भगवान शिव का भी एक मंदिर है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, राजकुमार चंद्रकेतु, जो लक्ष्मण के पुत्र थे, ने इस मंदिर की स्थापना की थी।
3. नागेश्वर शिव मंदिर: अलीगंज क्षेत्र में स्थित नागेश्वर शिव मंदिर करीब 300 साल पुराना है। मान्यता है कि भगवान राम के पुत्र कुश ने इसे एक नाग कन्या के लिए बनवाया था। यह नाग कन्या भगवान शिव की परम भक्त थी और कुश उससे प्रेम करते थे। कहा जाता है कि शहर के खंडहर होने के बाद भी यह मंदिर अपनी जगह अडिग रहा।
4. बुद्धेश्वर महादेव मंदिर: मोहन रोड पर स्थित बुद्धेश्वर महादेव मंदिर, लखनऊ के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है। इसका निर्माण, राजा बख्शी ने करवाया था। कुछ किंवदंतियों के अनुसार, भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण ने वनवास के दौरान इस स्थान पर भगवान शिव की पूजा की थी। यहाँ सालभर, भक्तों का आना-जाना लगा रहता है, लेकिन महाशिवरात्रि के दिन श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है।
आइए अब जानते हैं कि भारत के विभिन्न राज्यों में महाशिवरात्रि का त्यौहार कैसे मनाया जाता है?
महाशिवरात्रि, भारत के विभिन्न राज्यों में भक्ति और उल्लास के साथ मनाई जाती है। इसे मनाने को लेकर हर राज्य की अपनी परंपराएं और रीति-रिवाज होते हैं। आइए जानें कि इस पावन पर्व को देश के अलग-अलग हिस्सों में कैसे मनाया जाता है।
1. हिमाचल प्रदेश: हिमाचल प्रदेश के मंडी में भूतनाथ मंदिर को महाशिवरात्रि उत्सव का प्रमुख केंद्र माना जाता है। यहाँ पर मनाया जाने वाला महाशिवरात्रि महोत्सव, देश के सबसे बड़े शिवरात्रि आयोजनों में से एक होता है। करीब 500 साल पहले मंडी के शाही परिवार ने इस परंपरा की शुरुआत की थी। आज यह उत्सव एक सप्ताह तक चलता है और इसे अंतरराष्ट्रीय मंडी शिवरात्रि मेले के रूप में मनाया जाता है। देश-विदेश से बड़ी संख्या में श्रद्धालु और पर्यटक इसमें भाग लेते हैं।
2. आंध्र प्रदेश: आंध्र प्रदेश में शिवरात्रि बड़े धूमधाम से मनाई जाती है।इस अवसर पर श्रद्धालु, श्रीकालहस्ती या श्री कालहस्तेश्वर मंदिर और श्रीशैलम के भरमराम्भा मलिकार्जुनस्वामी मंदिर में पूजा-अर्चना के लिए उमड़ते हैं।भक्त उपवास रखते हैं, शिव मंत्रों का जाप करते हैं और भगवान शिव की विशेष पूजा करते हैं।
3. असम: असम में गुवाहाटी के उमानंद मंदिर में, महाशिवरात्रि का एक विशेष महत्व माना जाता है। यह मंदिर, ब्रह्मपुत्र नदी के मयूर द्वीप पर स्थित है। शिवरात्रि के अवसर पर देशभर से हजारों भक्त यहां दर्शन के लिए आते हैं। असम में एक और प्रमुख स्थान शिवसागर है, जो पहले अहोम राजाओं की राजधानी थी। यहां भी महाशिवरात्रि, पूरे श्रद्धा और भव्यता के साथ मनाई जाती है।
4. ओडिशा: ओडिशा के पुरी में स्थित लोकनाथ मंदिर में शिवरात्रि उत्सव विशेष रूप से प्रसिद्ध है। एक प्राचीन मान्यता के अनुसार, भगवान रामचंद्र ने स्वयं इस मंदिर में शिवलिंग की स्थापना की थी। यह शिवलिंग, सालभर पानी के एक कुंड में डूबा रहता है और इसे केवल शिवरात्रि से पहले पंकोदर एकादशी के दिन देखा जा सकता है। इस पावन अवसर पर हजारों श्रद्धालु मंदिर में दर्शन के लिए उमड़ते हैं।
5. जम्मू और कश्मीर: कश्मीर में महाशिवरात्रि का पर्व, खासतौर पर कश्मीरी पंडित समुदाय के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन, वे भगवान शिव और माता पार्वती की पूरी रात पूजा करते हैं। सबसे बड़ा आयोजन, श्रीनगर के शंकराचार्य मंदिर में होता है, जो प्रसिद्ध डल झील के किनारे स्थित है। इस अवसर पर श्रद्धालु अमीरा कदल के गणपतयार और हनुमान मंदिर में भी विशेष पूजा-अर्चना करते हैं।
संदर्भ
https://tinyurl.com/2cyg4gjo
https://tinyurl.com/23vwzqjr
https://tinyurl.com/29vd8j93
मुख्य चित्र: महाशिवरात्रि पर सजा हुआ ओडिशा में स्थित लिंगराज मंदिर : Wikimedia
कुछ देशों के समान, प्रौद्योगिकी का उपयोग करके रोकी जा सकती हैं भयानक भगदड़ त्रासदियां
आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक
Modern State: 1947 to Now
25-02-2025 09:40 AM
Lucknow-Hindi

आपने अभी हाल ही में महाकुंभ, प्रयागराज में एवं दिल्ली रेलवे स्टेशन पर हुई भगदड़ की घटनाओं के बारे में अवश्य ही सुना होगा। ये कोई हैरानी की बात नहीं होगी कि, आपमें से कुछ लोग, अपने जीवन में कम से कम एक बार भगदड़ में फंसे हों या आपने इसे देखा हो। वास्तव में, भारत जैसे देश में, जहां जनसंख्या बहुत ज़्यादा है, अक्सर ऐसी घटनाएं सामने आती हैं। इन घटनाओं को रोकने के लिए मानवीय रणनीतियों के साथ-साथ, हाल के वर्षों में कई देशों ने प्रौद्योगिकी के उपयोग से ऐसे उपाय लागू किए हैं जिससे इन आपदाओं की आवृत्ति काफ़ी हद तक कम हो गई है। तो आइए, आज यह जानते हैं कि विश्व के कई देश ए आई प्रौद्योगिकियों और वास्तविक समय वीडियो निगरानी (real time video surveillance) का उपयोग करके कैसे अपने नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं। इसके साथ ही, हम दुनिया भर में अब तक हुई कुछ सबसे घातक भगदड़ के बारे में जानेंगे।
विकसित देश, भगदड़ को रोकने के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग कैसे करते हैं:
कई देशों में भीड़ को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने और भगदड़ को रोकने के लिए उन्नत तकनीकों और रणनीतियों को अपनाया गया है। जापान और चीन में रेलवे स्टेशनों पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (Artificial Intelligence (AI))-संचालित भीड़ विश्लेषण प्रणाली लागू की गई है। वास्तविक समय वीडियो निगरानी का उपयोग करके, ए आई प्रणाली, भीड़ की निगरानी एवं भविष्यवाणी करके, रेलवे अधिकारियों को अलर्ट भेजती है जिससे अधिकारी समय पर उचित निर्णय ले पाते हैं। टोक्यो स्टेशनों पर, ए आई-संचालित निगरानी उपकरण भीड़ की आवाजाही के पैटर्न का विश्लेषण करते हैं। हाई-स्पीड रेल नेटवर्क्स (High-speed rail networks) में ए आई-संचालित निगरानी प्रणाली (AI-powered monitoring systems) का उपयोग किया जाता है जो अधिकतम भीड़भाड़ वाले समय की भविष्यवाणी कर, तदनुसार संचालन को समायोजित करती है।
वहीं, यूरोपीय शहरों में, यात्री प्रवाह को विनियमित करने के लिए स्वचालित टिकटिंग और प्रवेश प्रतिबंध जैसी तकनीकों का उपयोग किया जाता है। लंदन के किंग्स क्रॉस स्टेशन (King’s Cross Station) पर, प्लेटफ़ॉर्म पर लोगों की संख्या सीमित करने के लिए टिकट-आधारित पहुंच नियंत्रण का उपयोग किया जाता है। फ्रैंकफर्ट सेंट्रल स्टेशन (Frankfurt Central Station) पर प्रवेश द्वार केवल उन्हीं लोगों के लिए खुलते हैं जिनके पास वैध टिकट होती है, जिससे भीड़ को रोकने में सहायता मिलती है।
दुबई मेट्रो में बोर्डिंग और डीबोर्डिंग प्रक्रियाओं को विनियमित करने के लिए स्वचालित भीड़ नियंत्रण बाधाओं का उपयोग किया जाता है। भीड़ की सुचारू आवाजाही सुनिश्चित करने के लिए, सिंगापुर एम आर टी (MRT) में वास्तुशिल्प नवाचार के माध्यम से एकाधिक निकास और व्यापक प्रतीक्षा क्षेत्र बनाए गए हैं।
पिछली त्रासदियों से सबक लेते हुए, दक्षिण कोरिया और फ्रांस जैसे कुछ देशों ने अपनी आपातकालीन तैयारियों को सुदृढ़ बनाया है। दक्षिण कोरिया में, 2022 में घटित हुई सियोल हेलोवीन आपदा के बाद, अधिकारियों ने वास्तविक समय आपातकालीन अभ्यास और निकासी प्रशिक्षण शुरू किया है। वहीं फ़्रांस में, पेरिस मेट्रो आपात स्थिति के दौरान प्रतिक्रिया में सुधार के लिए कर्मचारियों और यात्रियों के लिए नियमित निकासी अभ्यास आयोजित करता है।
भगदड़ अधिकतर धार्मिक स्थलों पर ही क्यों होती है:
- विशाल सभाएं: धार्मिक आयोजनों में अक्सर लाखों श्रद्धालु आकर्षित होते हैं, जो आयोजन स्थल की क्षमता से कहीं अधिक होते हैं।
- प्राचीन संरचनाएं: धार्मिक आयोजन अक्सर प्राचीन संरचनाओं में आयोजित होते हैं जो वर्तमान भीड़ को संभालने में सक्षम नहीं होते हैं। यहां के संकीर्ण रास्तों, सीमित निकास और स्थान के कारण बड़े पैमाने पर सभाओं के प्रबंधन में चुनौतियां सामने आती हैं।
- अन्य कारण: ऐसे आयोजनों में खराब भीड़ प्रबंधन, उचित सुरक्षा उपायों की कमी और अपर्याप्त आपातकालीन प्रोटोकॉल स्थिति को और खराब कर देते हैं।
विश्व की कुछ सबसे घातक भगदड़ें:
- हिल्सबोरो आपदा, (Hillsborough Disaster (1989)): 15 अप्रैल, 1989 को इंग्लैंड के शेफ़ील्ड (Sheffield) का हिल्सबोरो स्टेडियम, ब्रिटिश खेलों के इतिहास की सबसे घातक त्रासदियों में से एक का गवाह बना। लिवरपूल (Liverpool) और नॉटिंघम फ़ॉरेस्ट (Nottingham Forest) के बीच फ़ुटबॉल एसोसिएशन चैलेंज कप (FA Cup) के सेमीफ़ाइनल के दौरान, भीड़ नियंत्रण से बाहर हो गई और प्रशंसक बैरियरों को तोड़कर बाहर आ गए, जिसके परिणाम स्वरूप एक विनाशकारी भगदड़ हुई, जिसमें 96 लोगों की जान चली गई और 200 से अधिक लोग घायल हो गए। इस आपदा से भीड़ प्रबंधन में गंभीर खामियां उजागर हुईं और पूरे ब्रिटेन में स्टेडियम सुरक्षा नियमों में बड़े बदलाव हुए।
- अल-मुइसेम सुरंग त्रासदी (Al-Muaissem Tunnel Tragedy (1990)): जुलाई 1990 में, सऊदी अरब में हज यात्रा के दौरान, मक्का के पास अल-मुइसेम सुरंग में भगदड़ मच गई। संकरी सुरंग में भीड़ बहुत अधिक हो जाने के कारण 1,400 से अधिक तीर्थयात्रियों की कुचलकर मौत हो गई। ईद अल-अधा के दौरान हुई इस त्रासदी ने दुनिया को झकझोर कर रख दिया और धार्मिक अनुष्ठानों के दौरान भीड़भाड़ के खतरों को उजागर किया।
- जमरात ब्रिज आपदा (Jamarat Bridge Disaster (2004): 2004 में, जमरात ब्रिज़ पर, जहां तीर्थयात्री हज के हिस्से के रूप में शैतान को प्रतीकात्मक रूप से पत्थर मारते हैं, भगदड़ मच गई। इस दुखद घटना में 250 से अधिक लोगों की जान चली गई। आश्चर्य की बात यह है कि भगदड़ के इस भारी तनाव और गहन माहौल के बीच भी, कई तीर्थयात्री यथाशीघ्र अनुष्ठान पूरा करने की कोशिश कर रहे थे। इस घटना ने धार्मिक अनुष्ठानों के दौरान भारी भीड़ को प्रबंधित करने की कठिनाई को फिर से उजागर किया।
- मंधार देवी मंदिर तीर्थयात्रा (Mandhar Devi Temple Pilgrimage (2005)): जनवरी 2005 में, भारत के महाराष्ट्र में मंधार देवी मंदिर की तीर्थयात्रा के दौरान भगदड़ में 300 से अधिक लोग मारे गए। सड़क के किनारे की दुकानों में अचानक आग लग जाने के कारण, तीर्थयात्रियों को मंदिर की ओर जाने वाले पहले से भीड़ वाले संकीर्ण रास्ते पर धकेल दिया गया। इस घटना में भ्रम और दहशत के परिणामस्वरूप, 300 से अधिक मौतें हुईं।
- नैनादेवी मंदिर आपदा (Naina devi Temple Disaster (2008)): 3 अगस्त 2008 को भारत के हिमाचल प्रदेश में नैनादेवी मंदिर में भगदड़ मच गई। खराब मौसम और एक आश्रय स्थल के ढह जाने के कारण, मंदिर की ओर जाने वाले संकरे रास्ते पर तीर्थयात्री घबरा गए और फंस गए। इस अराजकता में कम से कम 140 लोग मारे गए।
- नोम पेन्ह जल महोत्सव (Phnom Penh Water Festival (2010)): 22 नवंबर, 2010 को कंबोडिया में, नोम पेन्ह में वार्षिक जल महोत्सव में टोनले सैप नदी पर बने पुल पर भगदड़ में 375 से अधिक लोगों की जान चली गई। यह त्रासदी, कंबोडियन इतिहास की सबसे बुरी त्रासदी में से एक है, और इसने पर्याप्त सुरक्षा उपायों के बिना बड़े पैमाने पर सार्वजनिक समारोहों के खतरों को उजागर किया।
- होउफ़ॉएट-बोइग्नी भगदड़ (Houphouët-Boigny stampede (2013): 1 जनवरी, 2013 को, जब नए साल की पूर्व संध्या की आतिशबाजी देखने के बाद दर्शकों की एक बड़ी भीड़ आबिदजान में पठारी प्रशासनिक जिले से बाहर निकली, तो भगदड़ में कम से कम 60 लोगों की मौत हो गई, जिनमें कई युवा शामिल थे।
- मीना भगदड़ (Mina Stampede (2015)): 24 सितंबर, 2015 को मक्का के पास मीना शिविर में हज यात्रा के दौरान एक और दुखद भगदड़ हुई। शैतान को पत्थर मारने की रस्म के दौरान, भीड़ के बेकाबू हो जाने से 2,300 से अधिक लोग मारे गये। हज यात्रा के इतिहास में यह सबसे घातक भगदड़ थी।
- सियोल भगदड़ (Seoul Stampede (2022)): 29-30 अक्टूबर, 2022 की रात को सियोल में भगदड़ में 159 लोग मारे गए और लगभग 150 घायल हो गए, जो दक्षिण कोरियाई राजधानी के एक ज़िले की तंग गलियों में हैलोवीन मनाने आए थे।
- कंजुरुहान स्टेडियम आपदा (Kanjuruhan Stadium disaster (2022)): 1 अक्टूबर, 2022 को, जावा द्वीप के पूर्व में स्थित मलंग में एक फ़ुटबॉल स्टेडियम में हुई भगदड़ में चालीस से अधिक बच्चों सहित 135 लोगों की मौत हो गई। इसमें पुलिस द्वारा समर्थकों को खदेड़ने के लिए आंसू गैस के गोले छोड़े जाने पर, लोग घबरा गए और इधर-उधर भागने लगे जिससे भगदड़ मच गई। 16 मार्च को, एक अदालत द्वारा एक पुलिस अधिकारी को 18 महीने जेल की सज़ा सुनाई गई लेकिन दो अन्य को बरी कर दिया गया। मैच आयोजक और उसके सुरक्षा प्रबंधक को भी दोषी ठहराया गया।
- सना भगदड़ (Sanaa crowd crush (2023)): 19-20 अप्रैल, 2023 की रात को राजधानी सना में एक चैरिटी कार्रवाई के दौरान ईरान समर्थित हौथी विद्रोहियों के हाथों कम से कम 85 लोग मारे गए और 322 से अधिक घायल हो गए। यह आपदा ईद-उल- फ़ित्र के एक एक स्कूल में हुई, जहां सैकड़ों लोग वित्तीय सहायता प्राप्त करने के लिए एकत्र हुए थे।
संदर्भ
मुख्य चित्र: प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ मेला : (wikimedia)
आइए जानें, इस्लामिक वित्तीय प्रणाली के फ़ायदों, नियमों और सीमाओं को
सिद्धान्त I-अवधारणा माप उपकरण (कागज/घड़ी)
Concept I - Measurement Tools (Paper/Watch)
24-02-2025 09:22 AM
Lucknow-Hindi

निःसंदेह, लखनऊ के कुछ लोग, इस्लामिक वित्तीय प्रणाली के बारे में जानते होंगे।यह प्रणाली, इस्लामी कानून, जिसे शरीयत कहा जाता है, के नियमों का पालन करती है।इसका मूल विचार यह है कि, पैसा केवल लेन-देन का एक माध्यम है, न कि कोई वस्तु जिससे खुद पैसा कमाया जा सके। इस्लामिक वित्त में ब्याज (जिसे ‘रिबा’ कहा जाता है) लेने या देने की सख़्त मनाही है।
आज, यह प्रणाली, दुनिया भर में फैली हुई है और इसका कुल मूल्य 3.96 ट्रिलियन डॉलर तक पहुँच चुका है। इस क्षेत्र में 1,650 से भी अधिक संस्थाएँ काम कर रही हैं। 2023 के स्टेट ऑफ़ ग्लोबल इस्लामिक इकोनॉमी रिपोर्ट (State of Global Islamic Economy Report) के अनुसार, 2026 तक इस्लामिक वित्तीय संपत्तियाँ 5.95 ट्रिलियन डॉलर तक बढ़ सकती हैं।
तो चलिए, आज हम, इस वित्तीय प्रणाली को और गहराई से समझते हैं। सबसे पहले, हम जानेंगे कि, इस्लामिक बैंक पैसे कैसे कमाते हैं। फिर, हम इस प्रणाली में इस्तेमाल होने वाले कुछ महत्वपूर्ण तरीकों पर नज़र डालेंगे। इसके बाद, हम उन गतिविधियों के बारे में चर्चा करेंगे जो इस्लामिक बैंकिंग में प्रतिबंधित होती हैं। आखिर में, हम जानेंगे कि, इस प्रणाली के सामने कौन-कौन सी बड़ी चुनौतियाँ हैं।
इस्लामिक वित्तीय प्रणाली क्या है ?
इस्लामिक वित्त में सबसे महत्वपूर्ण नियम, सूद (ब्याज) की मनाही है। इसका मतलब यह है कि, इस प्रणाली में ऋणदाता और उधारकर्ता, ब्याज लेने या देने के लिए प्रतिबंधित होते हैं। शरीयत के अनुसार चलने वाले बैंक ब्याज आधारित ऋण नहीं देते।
इस्लामिक बैंक पैसा कैसे कमाते हैं ?
इस्लामिक बैंक आम बैंकों की तरह ग्राहकों को ब्याज पर पैसा उधार नहीं देते। इसके बजाय, वे जिस वस्तु की ज़रूरत होती है, उसे खुद खरीदते हैं—जैसे घर, कार या फ़्रिज —और फिर उसे ग्राहक को मासिक किस्तों में या किराए पर देते हैं। इस प्रक्रिया में बैंक एक निश्चित लाभ कमाते हैं, जो आमतौर पर बाज़ार मूल्य से अधिक होता है।
इस प्रणाली का मुख्य सिद्धांत जोखिम को साझा करना है। बैंक ग्राहक के साथ जोखिम उठाते हैं और उसी के आधार पर लाभ अर्जित करते हैं। ब्याज पर निर्भर रहने के बजाय, इस्लामिक बैंक अपने ग्राहकों के पैसे का उपयोग संपत्तियाँ (जैसे घर, व्यापार आदि) खरीदने में करते हैं और जब ग्राहक भुगतान पूरा कर देता है, तब उन्हें मुनाफ़ा होता है।

इस्लामिक बैंकिंग का महत्व
इस्लामिक बैंकिंग की नैतिकता आधारित प्रणाली, इसे खास बनाती है। जब कई ग्राहक, पारंपरिक वित्तीय प्रणाली पर भरोसा नहीं कर पाते, तब इस्लामिक बैंक अपनी पारदर्शिता और नियमों के कारण सफल होते हैं। इसके अलावा, शरीयत के अनुसार चलने वाले बैंक, आर्थिक संकट के समय भी अपनी मज़बूती साबित कर चुके हैं।
इस्लामिक कानून के अनुसार, “पैसे से पैसा कमाना गलत” माना जाता है। इसलिए, इस्लामिक बैंक अनावश्यक जोखिम वाले निवेशों से बचते हैं। वे सट्टेबाज़ी से दूर रहते हैं और आमतौर पर फ़्यूचर्स या ऑप्शंस (Futures and Options) जैसे डेरिवेटिव साधनों का उपयोग नहीं करते। इसके बजाय, वे वास्तविक संपत्तियों में निवेश करना पसंद करते हैं।
इसी कारण, 2008 के वित्तीय संकट के दौरान इस्लामिक बैंक पारंपरिक बैंकों की तुलना में अधिक सुरक्षित रहे। वे हानिकारक वित्तीय साधनों (toxic assets) में शामिल नहीं थे, जिससे उन्हें संकट का असर कम झेलना पड़ा।
इस्लामिक वित्त के प्रमुख तरीके
1. मुदारबाह (Mudarabah (साझेदारी)) – इसमें दो पक्ष होते हैं। एक व्यक्ति पैसा लगाता है (निवेशक) और दूसरा मेहनत करता है (प्रबंधक)। अगर व्यापार में मुनाफ़ा होता है, तो दोनों पहले से तय हिस्से के अनुसार इसे बांटते हैं। लेकिन अगर नुकसान होता है, तो सिर्फ निवेश करने वाला व्यक्ति नुकसान उठाता है, जबकि मेहनत करने वाले को उसकी मेहनत का कोई लाभ नहीं मिलता।
2. मुशरकाह (Musharakah (साझा व्यापार)) – इसमें दो या अधिक लोग मिलकर पैसा लगाते हैं और व्यापार करते हैं। जो भी मुनाफ़ा या नुकसान होता है, उसे पहले से तय अनुपात में बांटते हैं। अगर लाभ होता है, तो सभी को उनके हिस्से के अनुसार मिलता है और यदि नुकसान होता है, तो सभी को अपने-अपने निवेश के हिसाब से नुकसान उठाना पड़ता है।
3. मुराबहा (Murabaha (किस्तों में खरीद)) – यह एक खास तरह की खरीदारी प्रक्रिया है। इसमें बैंक पहले ग्राहक की ज़रुरत की चीज़ (जैसे घर, गाड़ी या कोई और सामान) खरीदता है। फिर इसे ग्राहक को एक निश्चित लाभ जोड़कर बेचता है। ग्राहक इस रकम को आसान किश्तों में चुका सकता है। इसमें ब्याज नहीं लिया जाता, बल्कि बैंक अपने सेवा शुल्क के रूप में एक निश्चित मुनाफ़ा कमाता है।
4. इजारह (Ijarah (किराए पर देना)) – इसमें बैंक या व्यक्ति अपनी संपत्ति (जैसे घर, गाड़ी, मशीनें) किसी दूसरे को एक तय समय के लिए किराए पर देता है। बदले में किराएदार एक निश्चित रकम चुकाता है। तय समय पूरा होने के बाद संपत्ति मालिक के पास ही रहती है, लेकिन कुछ मामलों में किराएदार को बाद में इसे खरीदने का विकल्प भी मिल सकता है।
इन वित्तीय साधनों के ज़रिए इस्लामिक बैंक बिना ब्याज के व्यापार को बढ़ावा देते हैं और आर्थिक गतिविधियों को शरीयत के नियमों के अनुसार संचालित करते हैं।
इस्लामिक बैंकिंग और वित्तीय प्रणाली में निषेध गतिविधियाँ
- निषिद्ध (ह़राम) गतिविधियों में निवेश – इसमें वे व्यवसाय शामिल हैं जो शराब, सुअर का मांस बेचने, या अफ़वाहों या पोर्नोग्राफ़ी जैसे मीडिया का उत्पादन करने से संबंधित होते हैं। इन गतिविधियों में निवेश करना इस्लामिक वित्त में मना है।
- देर से भुगतान पर अतिरिक्त शुल्क लगाना – मुराबहा या अन्य स्थिर भुगतान फ़ाइनैनसिंग लेन-देन में देर से भुगतान पर शुल्क नहीं लिया जा सकता। हालांकि, कुछ लोग मानते हैं कि यह शुल्क चैरिटी को दान किया जाए, तो स्वीकार्य हो सकता है, या यदि खरीदार ने जानबूझकर भुगतान करने से इनकार किया हो।
- मैसिर (सट्टेबाज़ी) – इसे आमतौर पर “सट्टा” के रूप में अनुवादित किया जाता है, लेकिन इस्लामिक वित्त में इसका मतलब “सट्टेबाज़ी” से है। ऐसे अनुबंधों में भाग लेना जिसमें एक वस्तु का स्वामित्व भविष्य में किसी अनिश्चित घटना पर निर्भर करता है, मैसिर है और यह इस्लामिक वित्त में निषिद्ध है।
- घरार (अस्पष्टता) – इसका अर्थ “अशुद्धता” या “अस्पष्टता” है। मैसिर और घरार पर पाबंदी लगाने से डेरिवेटिव, ऑप्शंस और फ़्यूचर्स जैसे वित्तीय उपकरण बाहर हो जाते हैं। इस्लामिक वित्त के समर्थक मानते हैं कि इनसे अत्यधिक जोखिम होता है और ये असमंजस और धोखाधड़ी को बढ़ावा दे सकते हैं, जैसा कि पारंपरिक बैंकिंग में डेरिवेटिव उपकरणों में देखा जाता है।
- ऐसी लेन-देन करना जिनमें “वास्तविक अंतिमता” न हो – सभी लेन-देन को एक वास्तविक आर्थिक लेन-देन से जुड़ा होना चाहिए। इसका मतलब है कि ऑप्शंस और अधिकांश अन्य डेरिवेटिव्स को सामान्यत: बाहर किया जाता है, क्योंकि वे एक वास्तविक और अंतिम अर्थव्यवस्था से जुड़े नहीं होते।
इस्लामिक वित्तीय प्रणाली के प्रमुख चुनौतीपूर्ण पहलू
- मानव संसाधनों की कमी: किसी भी उद्योग की सफलता और विकास में योग्य मानव संसाधन अहम भूमिका निभाते हैं। इस्लामिक कानूनों और समकालीन अर्थशास्त्र और वित्त में अच्छी तरह से प्रशिक्षित बैंकर्स और पेशेवरों की कमी है। हालांकि, कई विश्वविद्यालय और प्रशिक्षण संस्थान इस्लामिक वित्त में पाठ्यक्रम प्रदान कर रहे हैं, लेकिन इन पाठ्यक्रमों को चलाने के लिए कुशल मानव संसाधनों की कमी बनी हुई है। इसके अलावा, विशेषज्ञ स्तर पर भी मानव संसाधनों की भारी कमी है।
- शरीया मानकीकरण और समन्वय: इस्लामिक कानून में विभिन्न विचारों और शास्त्रों की व्याख्याओं के लिए स्थान है, जिसके कारण विभिन्न न्यायालयों में अलग-अलग प्रथाओं और नीतियों को अपनाया जाता है। इसका असर इस्लामिक वित्त उद्योग के विकास और अंतर्राष्ट्रीयकरण पर पड़ सकता है।
- सार्वजनिक जागरूकता की कमी: इस्लामिक वित्तीय उद्योग में निम्न स्तर की पैठ और आवश्यक संख्या की कमी है। इसका मुख्य कारण इस्लामिक वित्त के बारे में जन जागरूकता और जानकारी का अभाव है। इस्लामिक बैंकों, नियामकों और सरकारों को इस्लामिक वित्त के विकास को बढ़ावा देने के लिए जन जागरूकता कार्यक्रम चलाने चाहिए और उद्योग के लिए आवश्यक संख्या बनानी चाहिए।
- वित्तीय पहुंच की कमी: मुस्लिम देशों में अन्य देशों के मुकाबले वित्तीय समावेशन का स्तर कम है। इसे एक बेहतर व्यापार मॉडल बनाकर, बैंकिंग क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा बढ़ाने, उपभोक्ता सुरक्षा, बेहतर क्रेडिट जानकारी और शिक्षा में सुधार करके हल किया जा सकता है।
- कर नीति: किसी भी उद्योग के विकास में नियामक/कर सुधारों का महत्वपूर्ण योगदान होता है। इस्लामिक और पारंपरिक बैंकों के बीच समान स्थिति सुनिश्चित करने के लिए कई कर मुद्दों को हल करने की आवश्यकता है। इनमें आयकर, बिक्री कर (जैसे मूल्य वर्धित कर), विशिष्ट लेन-देन कर और द्विपक्षीय कर संधियों के तहत इस्लामिक वित्त की स्थिति शामिल है। अंतर्राष्ट्रीय मानक, सरकारों और न्यायक्षेत्रों द्वारा कर सुधार को प्रोत्साहित करने में मदद कर सकते हैं।
संदर्भ
मुख्य चित्र: जिबूती की राजधानी जिबूती शहर (Djibouti City) में सबा इस्लामिक बैंक की एक शाखा: Wikimedia
लखनऊ, आइए देखें, हज से संबंधित कुछ पुराने और दुर्लभ दृश्य
द्रिश्य 1 लेंस/तस्वीर उतारना
Sight I - Lenses/ Photography
23-02-2025 09:20 AM
Lucknow-Hindi

हमारे प्रिय लखनऊवासियों, आपको यह जानकर कोई आश्चर्य नहीं होगा कि लखनऊ के कई नागरिकों ने अपने जीवन में कम से कम एक बार हज (Hajj) किया होगा। हज, मक्का, सऊदी अरब (Mecca, Saudi Arabia) की एक वार्षिक इस्लामी तीर्थयात्रा है, जो उन मुसलमानों के लिए अनिवार्य है जो इसे वहन कर सकते हैं। इसमें तवाफ़, सई और अराफ़ात के मैदान में इबादत करने जैसी रस्में शामिल हैं। ये सभी रस्में, विश्वास, एकता और भक्ति का प्रतीक हैं। हज के दौरान यात्री उन लाखों मुस्लिम लोगों के जुलूस में शामिल होते हैं, जो हज की यात्रा के लिए मक्का जाते हैं। साथ ही साथ, अपनी यात्रा के दौरान, वे कई इस्लामिक अनुष्ठान भी करते हैं। इसमें प्रत्येक पुरुष, एक सफ़ेद कपड़ा (इहराम) धारण करता है, जो सिला हुआ नहीं होता है। फिर हज यात्री, काबा के चारों ओर सात बार वामावर्त परिक्रमा करते हैं। वे काबा की कोने की दीवार पर लगे अल हजर अल अस्वद (al-Ḥajar al-Aswad) नामक एक काले पत्थर को चूमते हैं तथा सफ़ा (Safaa) और मरवा (Marwah) की पहाड़ियों के बीच सात बार आगे-पीछे तेज़ गति से चलते हैं। इसके बाद, वे ज़मज़म के कुएं से पानी पीते हैं। हज यात्री, अराफ़ात पर्वत के मैदानों में पूरी रात जागते हैं और मुज़दलीफ़ा (Muzdalifah) के मैदान में एक रात बिताते हैं। वे तीन खंभों पर पत्थर फेंककर शैतान को प्रतीकात्मक रूप से पत्थर मारते हैं। मवेशियों की बलि देने के बाद, पुरुषों को या तो अपने सिर मुंडवाने या बाल कटवाने होते हैं और महिलाओं को अपने बालों के सिरे कटवाने होते हैं। इसके बाद, चार दिवसीय वैश्विक त्यौहार ईद-अल-अज़हा (Eid al-Adha) का जश्न मनाया जाता है। तो आइए, आज कुछ चलचित्रों की मदद से हम हज और इससे संबंधित महत्वपूर्ण स्थानों और इसके दौरान किए जाने वाले अनुष्ठानों के बारे में विस्तार से जानने की कोशिश करें। हम हज यात्रा से सम्बंधित कुछ पुराने चलचित्रों, जो कि 1928, 1956 और 1970 के हैं, पर भी एक नज़र डालेंगे। इसके अलावा, हम 1940 के दशक के दौरान, मदीना के तीर्थ स्थलों जैसे अल मस्ज़िद नवबी (Al Masjid an Nabawi) के कुछ ऐतिहासिक दृश्य भी देखेंगे। इसके अलावा, हम यह भी जानेंगे कि लगभग 100 साल पहले, मदीना शहर, कैसा हुआ करता था।
संदर्भ:
संस्कृति 1985
प्रकृति 677