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विशिष्ट तकनीक एवं सामग्रियों से तैयार होते हैं सर्वश्रेष्ठ और पारंपरिक फ़्रांसीसी व्यंजन

The best and traditional French cuisine is prepared using unique techniques and ingredients

Jaunpur District
26-07-2024 09:28 AM

विशिष्ट तकनीक एवं सामग्रियों से तैयार होते हैं सर्वश्रेष्ठ और पारंपरिक फ़्रांसीसी व्यंजन
अक्सर फ़्रांसीसी व्यंजनों को दुनिया के सबसे शानदार व्यंजन कहा जाता है | इसके कई कारण है, जिनमें से एक प्रमुख कारण यह है कि फ़्रांसीसी व्यंजन बनाने में कई उन्नत तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है जैसे फ़्लेमिंग, ब्रेज़िंग, और सॉटिंग आदि। तो आइए आज हम फ़्रांसीसी व्यंजनों, इनकी लोकप्रियता के कारणों और पाक जगत में इनके महत्व के बारे में जानते हैं। इसके अलावा, हम वैश्विक स्तर पर अत्यंत लोकप्रिय फ़्रांसीसी व्यंजनों, जैसे कि बगुएट, बौइलाबेस, क्रौईसौं और यहां की कुछ विश्व स्तर पर प्रसिद्ध वाइन के विषय में भी जानते हैं। साथ ही, भारत के कुछ ऐसे सर्वश्रेष्ठ रेस्तरां भी देखते हैं, जहां आप बेहतरीन फ़्रांसीसी व्यंजनों का आनंद ले सकते हैं। फ़्रांस को दुनिया की पाक राजधानी भी कहा जाता है जिसने वैश्विक खाद्य परिदृश्य पर एक अमिट छाप छोड़ी है। फ़्रांसीसी भोजन में कई प्रकार के व्यंजन शामिल हैं जिनका दुनिया भर के लोग आनंद लेते हैं। कई लोगों के लिए, फ़्रांस का पारंपरिक भोजन अद्भुत और दिव्य और अन्य सभी भोजन में सर्वश्रेष्ठ स्वाद वाला होता है। हालाँकि, जब लोग ऐसा मानते हैं कि फ़्रांसीसी भोजन सर्वश्रेष्ठ है, तो प्रश्न उठता है कि ऐसा क्या है जो फ़्रांसीसी भोजन को सर्वश्रेष्ठ बनाता है।
जब भोजन की बात आती है, तो कुछ चीजें विशिष्ट होती हैं जिन पर ध्यान दिया जाता है:
- स्वाद
- रचनात्मकता
- रंग
- गंध
हालाँकि दुनिया भर में विभिन्न भोजनों में ये चीज़ें शामिल होती हैं, लेकिन फ़्रांसीसी भोजन इन सभी से कहीं ऊपर जाता है। जब आप इसका स्वाद चखते हैं, तो यह आपकी सभी इंद्रियों को उत्तेजित करता है। फ़्रांसीसी भोजन पारंपरिक और आधुनिक भोजन के बीच एक ऐसा बेहतरीन मिश्रण प्रस्तुत करता है, जिसे हर उम्र के लोग आनंद ले सकते हैं।
फ़्रांसीसी भोजन को तकनीक और भावना का एक मिश्रण कहा जा सकता है। हालांकि, भोजन के लिए यह शब्द कुछ अजीब हो सकता है लेकिन फ़्रांस के भोजन को परिभाषित करने के लिए यह सबसे अच्छे शब्दों में से एक है। तकनीकी-भावनात्मक का अर्थ है कि जो भोजन पीढ़ियों से चला आ रहा है और वर्तमान में भी उपयोग किया जाता है। यह यहां के भोजन में बिल्कुल स्पष्ट है क्योंकि यहां के पारंपरिक व्यंजन आज भी किसी भी रेस्तरां के नए आधुनिक व्यंजनों के बीच सबसे ज़्यादा चमकते हैं। इसके साथ ही फ़्रांसीसी भोजन के सर्वश्रेष्ठ होने में एक सबसे महत्वपूर्ण तत्व इसे तैयार करने में उपयोग की जाने वाली विभिन्न प्रकार की तकनीक हैं। फ़्रांसीसी भोजन को तैयार करने के लिए फ्लेमिंग, ब्रेज़िंग, और सॉटिंग जैसी अद्भुत तकनीकों का उपयोग किया जाता है। इन तकनीकों से मांस, सब्ज़ियों और अन्य सामग्रियों में अविश्वसनीय बनावट और स्वाद जुड़ जाता है। फ़्रांसीसी व्यंजनों को बनाने में आमतौर पर कुछ समान सामग्रियों का, जैसे कि पनीर, बैगूएट, मक्खन, जड़ी-बूटियाँ और जैतून के तेल का उपयोग किया जाता है | लेकिन फिर भी आप देखेंगे कि सभी व्यंजनों का स्वाद अलग-अलग होता है। हालांकि, आप यह भी सोच सकते हैं कि इस प्रकार का वसा से भरपूर आहार अस्वास्थ्यकर हो सकता है, लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है। इसका उदाहरण इस प्रकार दिया जा सकता है कि फ़्रांसीसी लोगों में हृदय रोग की दर कम होती है, भले ही उनके अधिकांश भोजन में पनीर और मक्खन जैसी सामग्रियाँ भरपूर शामिल होती हैं। इसका एक कारण यह भी है कि इन सामग्रियों को स्थानीय और प्राकृतिक रूप से उत्पादित किया जाता है। डेयरी उत्पाद घास खाने वाली गायों द्वारा उत्पादित किए जाते हैं जिन्हें प्राकृतिक आहार दिया जाता है और खुले मैदानों में घूमने की अनुमति दी जाती है।
आइए, अब कुछ प्रसिद्ध प्रसिद्ध फ्रांसीसी व्यंजनों पर एक नजर डालते हैं:
बोउफ बौर्गुइग्नन (Boeuf Bourguignon): फ़्रांस के बरगंडी क्षेत्र की प्रसिद्ध रेड वाइन के नाम पर इस व्यंजन का नाम बोउफ बौर्गुइग्नन दिया गया है। इस व्यंजन को बनाने के लिए पहले सूखे पिनोट नॉयर और बहुत सारी ताजी सब्जियों के साथ स्वादिष्ट स्टू तैयार किया जाता है जिसमें बाद में गौमांस डाला जाता है।
बुइयाबेस (Bouillabaisse): लंबे नाम और सामग्री की लंबी सूची के साथ, बौइलाबाइस फ़्रांस की पाक कला का विश्व को एक उपहार है। यह एक प्रकार का सूप है, जो छह विशिष्ट मछलियों से बनाया जाता है।
टार्टे टैटिन (Tarte Tatin): पारंपरिक फ़्रांसीसी व्यंजनों की सूची इस व्यंजन के नाम के बिना अधूरी होगी। मक्खनयुक्त, खौलता टार्ट टैटिन, मूल रूप से एक उल्टा कारमेलाइज्ड सेब टार्ट है, जो अपने समृद्ध स्वाद और अद्वितीय इतिहास के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है।
एस्कर्गॉट (Escargot): यह स्वादिष्ट व्यंजन, जिसकी जड़ें रोमन साम्राज्य से चली आ रही हैं, हर किसी के लिए नहीं है। पारंपरिक रूप से इसे अजमोद और लहसुन मक्खन और घोंघे के साथ बनाया जाता है। घोंघों को या तो उनके खोल के अंदर गर्म परोसा जाता है या एक विशिष्ट व्यंजन में परोसा जाता है। अक्सर यह व्यंजन ब्रेड के साथ आता है ताकि इसका भरपूर, मक्खन जैसा स्वाद सोख लिया जा सके।
चॉकलेट सुफले (Chocolate soufflé): यह एक समृद्ध पारंपरिक फ़्रांसीसी मिठाई है जो 18वीं सदी से फ़्रांसीसी मेजों की शोभा होती थी।
व्यंजनों की एक विस्तृत एवं समृद्ध सूची के साथ-साथ, फ़्रांस अपनी वाइन के लिए दुनिया भर में जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि यदि आप फ़्रांस की वाइन के बारे में कुछ भी नहीं जानते हैं, तो कहीं और से भी वाइन पीना आंखों पर पट्टी बांधकर फिल्मों में जाने जैसा है। यहां कुछ प्रसिद्ध फ़्रांसीसी वाइन के नाम दिए गए हैं, जो दुनिया भर में अत्यंत लोकप्रिय हैं:
- ले न्यूबी (Le Newbie)
- एनवी लुई रोएडरर ब्रुट प्रीमियर (Nv Louis Roederer Brut Premier)
- पेशेंट कॉटैट एंसिएनेस विग्नेस सैंसेरे (Patient Cottat Anciennes Vignes Sancerre)
- डोमिन फ़ेवले मर्क्यूरी क्लोस डेस मायग्लैंड्स प्रीमियर क्रूज़ (Domaine Faiveley Mercurey Clos Des Myglands Premier Cruz)
- विंस औविग पौली-फ्यूसे सॉल्यूट्रे (Vins Auvigue Pouilly-Fuissé Solutré)
- शैटॉ ग्रेसैक (Château Greysac)
- ओगियर वैक्किएरास बोइसेराई (Ogier Vacqueyras Boiseraie) हमारे देश भारत में भी कुछ ऐसे प्रसिद्ध रेस्तरां हैं, जहां आप पारंपरिक फ़्रांसीसी व्यंजनों का स्वाद चख सकते हैं। ऐसे ही कुछ अत्यंत लोकप्रिय रेस्तरां निम्नलिखित हैं:
I. कैफे नॉयर, बैंगलोर (Cafe Noir, Bangalore): कैफ़े नॉयर की शुरुआत फ़्रांसीसी पेस्ट्री जैसे एक्लेयर्स, टार्ट्स, मैकरून आदि के साथ हुई थी। जल्द ही, रेस्तरां द्वारा अपने मेनू में भारतीय स्वाद को पूरा करने वाले शाकाहारी विकल्पों के साथ-साथ चिकन-आधारित व्यंजनों और पारंपरिक फ़्रांसीसी व्यंजनों को शामिल कर लिया गया। इस रेस्तरां की विशेष बात यह है कि यहां फ्रांसीसी व्यंजन यहां केमालिक थिएरी जैसेरैंड द्वारा तैयार किए जाते हैं।
II. ला प्लाज, गोवा (La Plage, Goa): यह रेस्तरां अपने कद्दूकस किए हुए और लहसुन-युक्त शोरबे में भिगोए हुए मक्खनयुक्त मसल्स के लिए प्रसिद्ध है जिन्हें ताज़ी पकी हुई ब्रेड के साथ परोसा जाता है।
III. ले बिस्त्रो डू पार्क, दिल्ली (Le Bistro Du Parc, Delhi): देश की राजधानी दिल्ली में यदि आप प्रामाणिक रूप से पारंपरिक फ़्रांसीसी भोजन की तलाश कर रहे हैं, तो ले बिस्त्रो डू पार्क एक उपयुक्त स्थान है, जहां व्यंजनों के लिए सभी सामग्रियां स्थानीय जैविक खेतों से प्राप्त की जाती हैं। यह रेस्तरां अपनी कैज़ुअल लाइव म्यूज़िक नाइट्स, अंतरंग माहौल और बढ़िया वाइन के लिए मशहूर है।
IV. ले कासे-क्रौटे, बैंगलोर (Le Casse-Croute, Bangalore): 3 सह-संस्थापकों द्वारा स्थापित, यह खाद्य ट्रक तेज़ी से लोगों का पसंदीदा बन रहा है। इस फूड ट्रक द्वारा एक दिन में 100 से अधिक सैंडविच बेचे जाते हैं।
नाज़ुक पेस्ट्री से लेकर स्वादिष्ट चीज़ और समृद्ध सॉस तक, फ़्रांस की पाक कला की छाप दुनिया भर के व्यंजनों पर दिखाई देती है।
फ़्रांसीसी व्यंजनों का प्रभाव विभिन्न व्यंजनों पर देखा जा सकता है, जो निम्न प्रकार है:
1. फ़्रेंच-वियतनामी व्यंजन: वियतनाम के फ़्रांसीसी उपनिवेशीकरण के दौरान, फ़्रांसीसी तकनीकों और वियतनामी सामग्रियों का एक सुंदर मिश्रण उभरा। इसके परिणामस्वरूप स्वाद का एक ऐसा रूप उभरा, जिसे वियतनामी- फ़्रांसीसी व्यंजन के रूप में जाना जाता है, जिसमें बान्ह एमआई और संघनित दूध के साथ प्रतिष्ठित वियतनामी कॉफी जैसे व्यंजन शामिल हैं, जो फ़्रांसीसी कैफे औ लेट से प्रभावित हैं।
2. फ़्रेंच -काजुन व्यंजन: फ़्रांस के स्वाद को काजुन (Cajun) व्यंजनों के साथ मिश्रित करके एक नया स्वाद उत्पन्न किया गया है। उपनिवेशवाद के दौरान, फ्रांस के साथ कनाडा के एकेडियन अप्रवासी, भी यहां अपने खाना पकाने की परंपराएँ लेकर आए, जिसके परिणामस्वरूप जम्बालया (jambalaya), गम्बो (gumbo), और बीगनेट्स (beignets)जैसे स्वादिष्ट व्यंजन सामने आए।
3. जादुई फ्रेंच पेस्ट्री: फ़्रांस उत्तम पेस्ट्री का पर्याय है जिसने दुनिया भर के लोगों के दिलों पर कब्ज़ा कर लिया है। फ़्रांस की पेस्ट्री का, चाहे पेरिस में आनंद लिया जाए या विदेश में किसी आरामदायक बेकरी में, फ़्रांस की महारत और कला की झलक दिखाता है।
4. मोरक्कन- फ़्रांसीसी व्यंजन: मोरक्कन (Moroccan) व्यंजन अफ़्रीकी, भूमध्यसागरीय और मध्य पूर्वी स्वादों का सामंजस्यपूर्ण मिश्रण है। फ़्रांस से इसका संबंध कूसकूस जैसे व्यंजनों में स्पष्ट है, जो फ़्रांसीसी निवासियों द्वारा पेश किया गया था।
5. "चीज़": दुनिया भर में फ्रेंच प्रभाव: फ़्रांस की चीज़ बनाने की क्षमता दुनिया भर में व्याप्त है और यहाँ पर कई किस्म की चीज़ तैयार की जाती हैं । फ़्रांस में निर्मित चीज़ आज दुनिया भर में अधिकांश व्यंजनों में एक मुख्य सामग्री के रूप में उपयोग किया जाने लगा है। फ़्रांस का पाककला प्रभाव प्रतिष्ठित बैगुएट्स और क्रौईसौं से कहीं आगे तक फैला हुआ है। फ़्यूज़न व्यंजन, पेस्ट्री जादू और डेयरी शिल्प कौशल के माध्यम से, फ़्रांसीसी परंपराओं ने दुनिया भर के रसोईघरों पर एक अमिट छाप छोड़ी है। स्वादों और तकनीकों के मिश्रण ने नए और रोमांचक व्यंजनों को जन्म दिया है, जो फ़्रांसीसी व्यंजनों की सार्वभौमिकता और समृद्धि को उजागर करते हैं।

संदर्भ
https://tinyurl.com/ycyptr2a
https://tinyurl.com/4vmryfse
https://tinyurl.com/yzces9jv
https://tinyurl.com/4dn9567r
https://tinyurl.com/mr45ywwf

चित्र संदर्भ
1. बेसिल सैल्मन टेरिन नामक फ़्रांसीसी व्यंजन को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
2. क्रेफ़िश एस्कैबेचे नामक फ़्रांसीसी व्यंजन को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
3. खाना बनाते हुए फ्रेंच शेफ को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
4. बोउफ बौर्गुइग्नन को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. बुइयाबेस को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. टार्टे टैटिन को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
7. एस्कर्गॉट को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
8. चॉकलेट सुफले को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
9. विशिष्ट फ़्रेंच पेस्ट्री को दर्शाता चित्रण (wikimedia)

https://www.prarang.in/Jaunpur_District/24072610727





जौनपुर में जल की उपलब्धता वाले किसानों को लाभान्वित कर सकते हैं, जलीय पौधे

Aquatic plants can benefit farmers with water availability in Jaunpur

Jaunpur District
25-07-2024 09:38 AM

हालिया दिनों में उत्तर प्रदेश राज्य में, मछलीघर यानी एक्वेरियम (aquarium) एवं उनमे उगने वाले जलीय पौधों के प्रति आकर्षण बढ़ता हुआ नज़र आ रहा है। यहाँ तक कि हमारे अपने शहर जौनपुर के शिवको फैंसी फिश (Shivco Fancy Fish), बहोरी पॉन्ड (Bahori Pond) और शुभ फिश एक्वेरियम (Shubh Fish Aquarium) जैसे अन्य एक्वेरियम तथा जलीय पौधों के डीलरों के व्यापार में भी वृद्धि देखी गई है। लेकिन अगर आप भी अपने घर में एक्वेरियम या जलीय पौंधों को लाना चाहते हैं, तो आपको विविध प्रकार के जलीय पौधों तथा उनकी पारिस्थितिकी के बारे में बहुत अच्छे से जानकारी होनी चाहिए, ताकि आप अपनी आवश्यकता के अनुरूप सबसे अच्छा जलीय पौधा चुन सकें। इस लेख में, हम जलीय पौधों की दुनिया में गहराई से उतरेंगे, उनके प्रकारों और विशेषताओं का विस्तार से पता लगाएँगे। हम कुछ सबसे प्रसिद्ध फूल वाले जलीय पौधों पर भी करीब से नज़र डालेंगे। इसके अलावा, हम दुनिया भर में पाए जाने वाले कुछ सबसे अनोखे और प्रसिद्ध जलीय पौधों का पता लगाएँगे।
जैसा कि इनके नाम से ही स्पष्ट है, "जलीय पौधे, उन पौंधों को कहा जाता है, जो जलीय वातावरण में रहने के लिए अनुकूलित हो गए हैं।" ये पौधे पूरी तरह से पानी में डूबे हुए, तैरते हुए या आंशिक रूप से पानी में डूबे हुए हो सकते हैं।
जलीय पौधों को हम चार मुख्य प्रकारों में वर्गीकृत कर सकते हैं:
- जलमग्न पौधे।
- उभरते पौधे।
- तैरते पौधे।
- शैवाल।
आइए इनमें से प्रत्येक प्रकार के जलीय पौधों की अनूठी विशेषताओं के बारे में गहराई से जानें।
🌿 जलमग्न पौधे (Submerged Plants): इनके नाम से ही पता चल जाता है, “जलमग्न पौधे उन पौधों को कहा जाता है, जो तालाब या जल निकाय के तल पर जड़ें जमाते हैं।” ये पौधे उथले पानी में पनपते हैं, जहाँ सूरज की रोशनी आसानी से तालाब के तल तक पहुँच सकती है। ये पौधे तल से ऊपर की ओर उठते हुए, पानी की सतह से ऊपर निकलने का प्रयास करते हैं। जलमग्न पौधों के कुछ सामान्य उदाहरणों में हरा एलोडिया तथा भंगुर नायड शामिल हैं। ये पौधे पानी के भीतर पनपने वाले पारिस्थितिकी तंत्र को मूल्यवान आवास और खाद्य स्रोत प्रदान करते हैं।
🌿उभरते पौधे (Emergent Plants): उभरते पौधे, उन पौधों को कहा जाता है, जो तालाब के किनारे या उथले क्षेत्रों में पाए जा सकते हैं। इस तरह के पौधे पानी में और पानी के किनारे दोनों जगह उगते हैं। उभरते पौधों के दो सामान्य उदाहरणों में कैटेल (Cattail) और बर-रीड (Bur-Reed) हैं। ये पौधे प्राकृतिक जल शोधक के रूप में कार्य करते हैं, और तटों के कटाव को नियंत्रित करने के साथ-साथ तलछट को छानने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
🌿तैरते जलीय पौधे (Floating Aquatic Plants): तैरते जलीय पौधे उन पौधों को कहा जाता है, जो पानी की सतह पर तैरते हैं, और उनकी जड़ें नीचे लटकती हैं। इनमें से कई पौधे शांत पानी में बढ़ना पसंद करते हैं। छोटा डकवीड, तैरते जलीय पौधे एक बेहतरीन उदाहरण है, जो तालाब की सतह पर एक मोटे कालीन जैसा आवरण बना सकता है। यह जलपक्षियों के लिए भोजन का एक मूल्यवान स्रोत साबित होता है।
🌿शैवाल (Algae): शैवाल, आमतौर पर तालाब मालिकों (मछली पालन या अन्य उद्येश्य) के लिए परेशानी का सबब बन जाते हैं। शैवाल, सूक्ष्म प्लवक के शैवाल से लेकर दृश्यमान, रेशेदार तंतुमय शैवाल तक कई अलग-अलग रूपों में पनप सकते हैं। इसके अतिरिक्त, प्लैंक्टोनिक शैवाल (Planktonic Algae) तालाब की खाद्य श्रृंखला में बहुत बड़ी भूमिका निभाते हैं, और मछलियों तथा अन्य जलीय जीवन को पोषण प्रदान करते हैं।
चलिए अब कुछ प्रमुख जलीय पौधों के बारे में जानते हैं, जो जलीय पारिस्थितिकी प्रणालियों के जटिल संतुलन और सुंदरता को कायम रखते हैं:
🍀 मस्कग्रास (Muskgrass): मस्कग्रास एक प्रकार का शैवाल होता है, जो पोषक तत्वों से भरपूर तालाबों में पनपता है। यह जलीय पौधा मछलियों के साथ-साथ विभिन्न जलीय जीवों के लिए भोजन स्रोत और आश्रय के रूप में कार्य करता है। इस पौधे से तेज़ लहसुन जैसी गंध आती है और इसका तना एककोशिकीय (unicellular) होता है, जिस कारण यह पानी के नीचे पनपते पारिस्थितिकी तंत्र में बहुत बड़ी भूमिका निभाता है।
🍀 कोरल रीफ़ (Coral Reef): कोरल रीफ़, पानी के भीतर पनपते रहे पारिस्थितिक तंत्र को कहा जाता है, जो मुख्य रूप से मृत और जीवित प्रवालों से मिलकर बना होता है। ग्रेट बैरियर रीफ़ (Great Barrier Reef) को दुनिया की सबसे बड़ी कोरल रीफ़ माना जाता है। दुर्भाग्य से, ज़रुरत से अधिक मछली पकड़ने, प्रदूषण और पानी के बढ़ते तापमान की वजह से कोरल रीफ़ खतरे में हैं। ये पारिस्थितिकी तंत्र हमारे महासागरों को स्वस्थ्य बनाए रखने में मूल्यवान साबित होते हैं, इसलिए हमें इनके संरक्षण हेतु ज़रूरी प्रयास करने की आवश्यकता है।
🍀 ग्रीन सी एनीमोन (Green Sea Anemone): ग्रीन सी एनीमोन, भूमि पर उगने वाले अनास्तासिया (Anastasia) नामक फूल से काफी मिलता-जुलता है। यह पानी के नीचे चट्टानी सतहों और प्रवाल भित्तियों से चिपक जाता है, जिससे इसका रंग चमकीला हरा दिखाई देता है। इस अनोखे समुद्री पौधे को आमतौर पर उष्णकटिबंधीय जल में देखा जाता है।
🍀 रेड सी व्हिप (Red Sea Whip): रेड सी व्हिप एक प्रकार का नरम मूंगा (Coral) होता है, जो पानी के भीतर झाड़ीदार समूहों में बढ़ता है और एक झाड़ीदार पौधे जैसा दिखता है। इसे "सॉफ्ट कोरल (Soft Coral)" भी कहा जाता है, क्योंकि यह कुछ अन्य कोरल की तरह कठोर और पथरीला नहीं होता है। रेड सी व्हिप भूमध्य रेखा के पास गर्म, उथले समुद्री पानी में पाए जाते हैं। मुख्य रूप से उथले उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जल में पाए जाने वाले ये कोरल कई तरह के चमकीले रंगों और आकृतियों में उगते हैं।
🍀सफ़ेद पंख वाला एनीमोन (White Plume Anemone): सफ़ेद पंख वाला एनीमोन ठंडे पानी में पनपता है और 3 फ़ीट तक लंबा हो सकता है। समुद्र में एनीमोन की 1,000 से ज़्यादा प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जिनमें से हर एक का रंग और आकार अलग-अलग होता है। इन समुद्री पौधों में जाल होते हैं जिनका उपयोग डंक मारने और शिकार को पकड़ने के लिए किया जाता है।
आपको जानकर हैरानी होगी कि भारत में, जलीय पौधे पारंपरिक स्थलीय फसलों की तुलना में अधिक उत्पादक साबित हुए हैं। मज़े की बात है की अत्यंत उत्पादक होने के बावजूद जलीय फसल को किसी जुताई, उर्वरक, बीज या देखभाल की आवश्यकता नहीं होती है।
1994-2019 की अवधि के दौरान झारखंड के कुछ हिस्सों में किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि इन पौधों का उपयोग बायोगैस (biogas), जैव-उर्वरक (bio-fertilizer), मछली के चारे और पौधों पर आधारित कई उद्योगों में भी किया जा सकता है। ये पौधे कई रसायनों का स्रोत भी हैं, जिनमें अपार औषधीय गुण हैं।
जलीय पौधों की कई प्रजातियों का उपयोग भोजन के रूप में किया जाता है,और इनमें से कई पौधे शहरी सब्ज़ी बाजारों में उनके महत्वपूर्ण खाद्य और औषधीय गुणों के लिए बेचे जाते हैं। जलीय पौधे तालाब के पारिस्थितिकी तंत्र का एक अभिन्न अंग होते हैं। एक आदर्श अनुपात तालाब में 20 से 30% कवरेज जलीय पौंधों का होना चाहिए। इससे तालाब के पारिस्थितिक तंत्र को मजबूती मिलेगी तथा पौधों और कछुओं सहित मेंढकों जैसे जलीय जीवन के बीच एक स्वस्थ संतुलन बना रहेगा। जलीय और अर्ध-जलीय पौधों के उपयोग से ग्रामीण आबादी के बीच आय सृजन में वृद्धि हो सकती है। एक उदाहरण के तौर पर इचोर्निया क्रैसिप्स (Eichhornia crassipes) से तैयार खाद जैविक खाद के रूप में कार्य कर सकती है। इस संदर्भ में रांची के लालगुटवा स्थित भारतीय वन उत्पादकता संस्थान की मृदा विज्ञान प्रयोगशाला में इचोर्निया क्रैसिप्स से तैयार खाद का विश्लेषण किया गया है ।

संदर्भ
https://tinyurl.com/25ru9foa
https://tinyurl.com/29d9xssy
https://tinyurl.com/2bcx7b78
https://tinyurl.com/22dsxjce

चित्र संदर्भ
1. जल के भीतर से जलीय पौधों को दर्शाता चित्रण (PickPik)
2. एक सुंदर जलीय पुष्प को दर्शाता चित्रण (PickPik)
3. जलमग्न पौधों को संदर्भित करता एक चित्रण (Freerange Stock)
4. उभरते पौधों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. तैरते जलीय पौधों को संदर्भित करता एक चित्रण (PixaHive)
6. शैवाल को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
7. मस्कग्रास को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
8. कोरल रीफ़ को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
9. ग्रीन सी एनीमोन को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
10. रेड सी व्हिप को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
11. सफ़ेद पंख वाले एनीमोन को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
12. कमल के निकट सांप को दर्शाता चित्रण (PickPik)

https://www.prarang.in/Jaunpur_District/24072510731





कई मायनों में अहम भूमिका निभाते हैं, सुंदरबन जैसे मैंग्रोव वन

Mangrove forests like Sundarbans play an important role in many ways

Jaunpur District
24-07-2024 09:40 AM

जौनपुर, आपको यह सुनकर आश्चर्य होगा कि, मैंग्रोव वन हमें प्रतिकूल मौसम की स्थिति में तूफ़ानों से बचाते हैं। मैंग्रोव को नमक सहिष्णु पेड़ों और झाड़ियों के रूप में परिभाषित किया गया है, जो उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय समुद्र तट के अंतर्ज्वारीय क्षेत्रों में उगते हैं। मैंग्रोव उन स्थानों पर विलासितापूर्वक उगते हैं, जहां ताज़ा पानी समुद्री जल के साथ मिलता है, और कीचड़ के जमाव से तलछट बनी होती है। तो आज हम मैंग्रोव, उनके प्रकार और पारिस्थितिक महत्व के बारे में जानेंगे। अंत में, हम सुंदरबन मैंग्रोव वन और उनके सार्वभौमिक मूल्य के बारे में भी चर्चा करेंगे।
मैंग्रोव आर्द्रभूमियों को सामान्यतः भूभौतिकीय, भू-आकृति विज्ञान और जैविक कारकों के आधार पर, छह प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है। वे – नदी प्रधान, ज्वार प्रधान, लहर प्रधान, समग्र नदी एवं लहर प्रधान, डूबी हुई चट्टानी घाटी वाले मैंग्रोव और कार्बोनेट सेटिंग्स(Carbonate Settings) के मैंग्रोव हैं। पहले पांच प्रकार के मैंग्रोव आर्द्रभूमि को, क्षेत्रीय तलछट वाले तटों पर देखा जा सकता है। जबकि, अंतिम प्रकार समुद्री द्वीपों, प्रवाल भित्तियों और कार्बोनेट तटों का वासी होता है।
मैंग्रोव वनों का महत्व निम्नलिखित कारकों के आधार पर समझा जा सकता है
कार्बन डाइऑक्साइड निस्पंदन: मैंग्रोव की जड़ें पौधों को पानी के नीचे की तलछट में बांधे रखती हैं। इससे, ज्वारीय तरंगों से प्राप्त पोषक तत्व और कार्बनिक पदार्थ मिट्टी को समृद्ध करते हैं। इस कारण, मैंग्रोव को कार्बन जमा करने की क्षमता प्राप्त होती है। इस प्रकार, मैंग्रोव वन अन्य उष्णकटिबंधीय वनों की तुलना में, चार गुना अधिक कार्बन संग्रहीत करने में सक्षम हैं। इसीलिए, मैंग्रोव वनोन्मूलन से केवल वायुमंडल में बड़े पैमाने पर कार्बन का उत्सर्जन होगा।
जैव विविधता हॉटस्पॉट : मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र समुद्री जीवन (मछली, केकड़ा, शंख, समुद्री कछुए, आदि) से लेकर, पक्षियों की असंख्य प्रजातियों का घर है। ये निवास स्थान, कई स्थानीय वन्यजीवों के लिए घोंसला बनाने, प्रजनन और देखभाल करने का स्थान है। जैसे-जैसे अधिक से अधिक मैंग्रोव वन साफ़ होते जा रहे हैं, जीवजंतुओं के बहुमूल्य निवास स्थान नष्ट हो रहे हैं, और बंगाल टाइगर जैसी प्रजातियां विलुप्त होने के ख़तरे में हैं।
स्थानीय जल की गुणवत्ता में सुधार: मैंग्रोव की जड़ों और हरी-भरी वनस्पतियों का जाल प्रदूषकों का निस्पंदन करता है, और तलछट को बहने से रोकता है। इस प्रकार, यह जलमार्गों के प्रदूषण को कम करता है, और उनके आवासों और प्रजातियों की रक्षा करता है। स्थानीय समूह और जो लोग नदियों, झीलों या आस-पास के पानी के अन्य निकायों के पास रहते हैं, वे भी मैंग्रोव पेड़ों द्वारा, पानी की गुणवत्ता बनाए रखने के लाभ को उठाते हैं।
तटीय सुरक्षा प्रदान करना: मैंग्रोव वन, समुद्री और स्थलीय समुदायों के बीच एक भौतिक अंतर्रोधी के रूप में कार्य करते हैं। ये पेड़ गंभीर मौसम की घटनाओं से तटरेखाओं की रक्षा करते हैं, और साथ ही तटों के कटाव को धीमा करते हैं। ये वन उन समुदायों के लिए मूल्यवान सुरक्षा प्रदान करते हैं, जो तूफ़ानों से ग्रस्त हैं और जिन्हें समुद्र के स्तर में वृद्धि का खतरा होता है।
लोगों के लिए आवश्यक संसाधन प्रदान करना: मैंग्रोव वनों में विभिन्न प्रकार के संसाधन मौजूद होते हैं। इनमें चाय और पशुओं के चारे में इस्तेमाल होने वाली पत्तियों से लेकर, दवा के रूप में इस्तेमाल होने वाले पौधों के अर्क तक शामिल हैं। लाखों लोग अपने भोजन, आय और खुशहाली के लिए मैंग्रोव पर निर्भर हैं। विशेष रूप से, इन जंगलों का पानी स्थानीय मछुआरों के लिए आवश्यक मात्रा में मछलियां प्रदान करता है। एक अनुमान के मुताबिक, वैश्विक मछली उद्योग का 80%, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मैंग्रोव वनों पर निर्भर करता है।
सुंदरबन मैंग्रोव वन, दुनिया के सबसे बड़े मैंग्रोव वनों में से एक हैं। ये वन 140,000 हेक्टेयर के क्षेत्र में फैले हुए हैं । यह वन बंगाल की खाड़ी पर गंगा, ब्रह्मपुत्र और मेघना नदियों के डेल्टा पर स्थित है। यह स्थल ज्वारीय जलमार्गों, कीचड़ वाले मैदानों और नमक-सहिष्णु मैंग्रोव वनों के छोटे द्वीपों के एक जटिल क्षेत्रों से घिरा हुआ है। सुंदरबन अपने विस्तृत जीव-जंतुओं के लिए भी जाना जाता है, जिनमें 260 पक्षी प्रजातियां, बंगाल टाइगर और अन्य खतरनाक प्रजातियां जैसे भारतीय अजगर भी शामिल हैं।
सुंदरबन के दक्षिण में, तीन वन्यजीव अभयारण्य 1,39,700 हेक्टेयर के क्षेत्र में फैले हैं, और कई लुप्तप्राय प्रजातियों के लिए मुख्य प्रजनन क्षेत्र माने जाते हैं। बंगाल की खाड़ी के तटीय क्षेत्र में, एक विशिष्ट भौगोलिक स्थिति के भीतर, एक अद्वितीय जैव जलवायु क्षेत्र में स्थित, ये वन क्षेत्र पौराणिक और ऐतिहासिक घटनाओं की प्राचीन विरासत के गवाह भी हैं । शानदार प्राकृतिक सुंदरता और संसाधनों से भरपूर, सुंदरबन को ज़मीन और पानी दोनों पर, मैंग्रोव वनस्पतियों और जीवों की उच्च जैव विविधता के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त है।

संदर्भ
https://tinyurl.com/56z8nfyp
https://tinyurl.com/mr2dh24v
https://tinyurl.com/2h4msnbx

चित्र संदर्भ
1. सुंदरबन में विचरते बाघ को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
2. सूर्यास्त के समय मेंग्रोव को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. मेंग्रोव में एक सांप को संदर्भित करता एक चित्रण (Animalia Bio)
4. मेंग्रोव में जड़ो के जाल को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. मैंग्रोव तट को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. मैंग्रोव के निकट लोगों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
7. सुंदरबन में विचरते हिरणों को दर्शाता चित्रण (wikimedia)

https://www.prarang.in/Jaunpur_District/24072410735





फ़्रांस और इटली के परफ्यूम निर्माताओं से क्या सीख सकता है, जौनपुर का डूबता इत्र उद्योग!

What can Jaunpur sinking perfume industry learn from the perfume makers of France and Italy

Jaunpur District
23-07-2024 09:26 AM

क्या आप जानते हैं कि अपने ऐतिहासिक महत्व एवं शानदार इमारतों के अलावा भी हमारे जौनपुर शहर को इत्र (perfume) के अपने समृद्ध बाजार के लिए भी जाना जाता है। शर्क़ी बादशाओं के शासनकाल के दौरान जौनपुर में इत्र को बहुत अधिक महत्व दिया जाता था। शर्की शासक, इत्र की राजधानी कहे जाने वाले कन्नौज से इत्र लाए थे। एक समय में हमारे जौनपुर में बेला चमेली और केवड़े की पैदावार प्रचुर मात्रा में हुआ करती थी। इसके अलावा इत्र बनाने हेतु गुलाब और खस खस की जड़ें गाज़ीपुर से लायी जाती थी। हालांकि कन्नौज के इत्र बाजार की गरिमा अभी भी कायम है, लेकिन जौनपुर में इत्र का बाजार अंतिम सांसें ले रहा है। आज बाजार में प्राकृतिक नहीं बल्कि कृत्रिम सुगंधें (artificial fragrances) उपलब्ध हो गई हैं, जिनकी खुशबु कुछ मिनट या कुछ घंटों में सिमट के रह जाती है। लेकिन जौनपुरी या कन्नौज के इत्र छिड़क लेने के बाद आप कई-कई हफ़्तों तक महके रहते थे। यही कारण था कि शर्क़ी और मुग़ल बादशाह, इत्र को बहुत पसंद करते थे।
जौनपुर के मशहूर इत्र का ज़िक्र विध्यापति की काव्य रचना में भी मिलता है। हालाँकि जौनपुर में इत्र की इक्की दुक्की दुकानें अभी भी दिखाई दे जाती हैं। जौनपुर में निर्मित इत्र बहुत अधिक महंगा भी है, इसलिए इसका जितना भी उत्पादन होता है, वह जौनपुर के बाज़ारों के बजाय मुंबई और विदेशों की बाज़ारों में अपनी सुगंध फैला रहा होता है।
आजकल, कई लोग विशेष अवसरों पर इत्र का उपयोग करते हैं। आधुनिक इत्र उद्योग की शुरुआत फ्रांस (France) में हुई थी। पहला आधुनिक इत्र 1889 में वहीँ पर बनाया गया था। आज भी फ्रांस बड़े पैमाने पर इत्र का उत्पादन करता है। 1800 के दशक के अंत में, बैरन हॉसमैन (Baron Haussmann) के स्वच्छता प्रयासों की बदौलत पेरिस में बड़ा बदलाव देखा गया। इस सफाई अभियान ने अपनी गंदगी के लिए बदनाम फ़्रांस के शहरों को स्वस्थ बनाया और नए सिंथेटिक उत्पादों (synthetic products) के साथ इत्र उद्योग के विकास में मदद की। प्राकृतिक सामग्री की प्रचुरता के कारण फ़्रांस इत्र उत्पादन का विश्व केंद्र बन गया। यहाँ की इत्र कंपनियाँ विश्व प्रसिद्ध हो गईं, जिन्होंने अमीर अंतरराष्ट्रीय ग्राहकों को आकर्षित किया।
"पेरिस" या "फ्रांस में निर्मित" इत्र, लोगों के बीच में उच्च गुणवत्ता और प्रामाणिकता के संकेत बन गए। पेरिस के गुरलेन परिवार (Guerlain family) ने इस विकास का समर्थन किया। 1889 में, उन्होंने फ्रांस में निर्मित पहला आधुनिक इत्र जिकी (Jicky) बनाया। ऐम गुरलेन (Aimé Guerlain) ने फ्रांसीसी इत्र उद्योग के राष्ट्रीय संघ को शुरू करने में मदद की।
फ्रेंच लोगों की इत्र बनाने की विशेषज्ञता की खबर यूरोप और संयुक्त राज्य अमेरिका (United States) तक फैल गई। जब शीर्ष फ्रांसीसी फैशन डिजाइनरों ने अपना पहला परफ्यूम लॉन्च किया, तो फ्रांसीसी सुगंधों का वर्णन करने के लिए "लक्जरी" और "लालित्य" शब्दों का और भी अधिक उपयोग किया गया। आज परफ्यूम पूरी दुनियां में लोकप्रिय हो गया है, लेकिन तब से फ्रांसीसी परफ्यूम ने अपनी प्रसिद्धि और प्रतिष्ठा बनाए रखी है। अधिकांश लोग मानते हैं कि इत्र की शुरुआत फ्रांस से हुई थी , लेकिन कई जानकार यह भी मानते हैं कि इत्र का ऐतिहासिक सफ़र इटली (Italy) से शुरू हुआ।
हालांकि समय के साथ बहुत कुछ बदल गया है, लेकिन कुछ चीजें अभी भी वैसी ही हैं। मध्य युग की तरह, आज भी दुनियां की बड़ी से बड़ी इत्र कंपनियां फ्रांस और इटली में ही स्थापित हैं। फ्रांस में भले ही कई प्रकार के इत्र बनते हों। लेकिन इटली को अपने इत्र में महंगे प्राकृतिक अवयवों का उपयोग करने, अपनी अद्वितीय बोतल डिज़ाइन रखने और कस्टम सुगंध बनाने के लिए जाना जाता है। चलिए अब कुछ शीर्ष इतालवी परफ्यूम उत्पादक कंपनियों के बारे में जानते हैं:
1. गुच्ची (Gucci): गुच्ची एक लग्जरी फैशन ब्रांड (luxury fashion brand) है, जो खासतौर पर महिलाओं के लिए बहुत लोकप्रिय इतालवी परफ्यूम बनाती है। उनके परफ्यूम में अक्सर गहरे, कामुक नोटों के साथ फूलों की खुशबू होती है।
2. डोल्से एंड गब्बाना (Dolce and Gabbana): डोल्से एंड गब्बाना को अपनी खूबसूरती से डिज़ाइन की गई बोतलों के साथ-साथ जीवंत सुगंध वाले इत्र के लिए जाना जाता है। इनके इत्र को खासतौर पर अपनी मनमोहक सुगंध और लंबे समय तक चलने के लिए जाना जाता है।
3. एक्वा डि पर्मा (Acqua di Parma): एक्वा डि पर्मा कंपनी परफ्यूम बनाने के लिए पारंपरिक तरीकों और इटली के उत्पादों का उपयोग करती है।
4. जियोर्जियो अरमानी (Giorgio Armani): जियोर्जियो अरमानी, डेट नाइट्स (date nights) और खास मौकों के लिए बेहतरीन इतालवी परफ्यूम बनाती है। इनके परफ्यूम आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए भी जाने जाते हैं।
5. बुल्गारी (Bvlgari): बुल्गारी अपने असाधारण परफ्यूम और खूबसूरत बोतलों के लिए जानी जाती है, जिसे मशहूर हस्तियां बहुत पसंद करती हैं।
6. रॉबर्टो कैवली (Roberto Cavalli): रॉबर्टो कैवली के परफ्यूम स्त्रियों के बीच खूब पसंद किये जाते हैं और सशक्त सुगंध के साथ आत्मविश्वास भी बढ़ाते हैं।
7. वैलेंटिनो (Valentino): वैलेंटिनो को कुछ बेहतरीन इतालवी परफ्यूम बनाने के लिए जाना जाता है। इनके परफ्यूम खूबसूरत, रत्न-जड़ित बोतलों में आते हैं।
8. प्रादा (Prada): प्रादा एक बहुत ही बहुमुखी इतालवी परफ्यूम ब्रांड है। ये कंपनी मज़ेदार, जीवंत खुशबू के साथ-साथ अधिक परिष्कृत, सुरुचिपूर्ण खुशबू भी बनाते हैं।
9. फ़र्मेनिच (Firmenich): फ़र्मेनिच दुनिया की सबसे बड़ी निजी स्वामित्व वाली परफ्यूम सुगंध और खाद्य स्वाद कंपनी है। इसकी स्थापना 1895 में जिनेवा, स्विटज़रलैंड (Geneva, Switzerland) में हुई थी। 125 वर्षों से इस कंपनी का प्रबंधन एक ही परिवार द्वारा किया जा रहा है। फ़र्मेनिच एक अग्रणी B2B कंपनी है। यह परफ्यूम सुगंध और खाद्य के फ्लेवर और सामग्री से जुड़े शोध, निर्माण, विनिर्माण तथा बिक्री में माहिर है। यह दुनिया के कई सबसे लोकप्रिय परफ्यूम और स्वाद डिज़ाइन करती है जिनका हर दिन चार बिलियन से अधिक उपभोक्ता आनंद लेते हैं।

संदर्भ
https://tinyurl.com/2cq3f4sx
https://tinyurl.com/2a95xh96
https://tinyurl.com/2dnsgmoq
https://tinyurl.com/27qt9449
https://tinyurl.com/26w7q89x

चित्र संदर्भ
1. खुले में इत्र बेचते हुए एक बुजुर्ग को दर्शाता चित्रण (flickr)
2. भारतीय इत्र विक्रेताओं की पेंटिंग को संदर्भित करता एक चित्रण (lookandlearn)
3. विंटेज एटमाइज़र इत्र की बोतल को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. फ्रैगोनार्ड में एक पुराने इत्र के प्रदर्शन को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. विभिन्न कंपनियों की इत्र की बोतलों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)

https://www.prarang.in/Jaunpur_District/24072310747





जबलपुर से प्राप्त शिलालेख बयां करते हैं, कलचुरी राजवंश का यशगान

The inscriptions obtained from Jabalpur tell the glory of the Kalchuri dynasty

Jaunpur District
22-07-2024 09:33 AM

यदि आप एकजुटता की शक्ति को समझना चाहते हैं, तो आपको 10वीं से 12वीं शताब्दी तक मध्य और पश्चिमी भारत के कुछ हिस्सों पर शासन करने वाले कलचुरी राजवंश के बारे में  ज़रूर जानना चाहिए। इन शासकों ने विभिन्न क्षेत्रों को एक राजवंश के तहत एकीकृत किया और ऐतिहासिक संदर्भ में नए-नए कीर्तिमान गढ़े। चलिए इस राजवंश की उपलब्धियों एवं शासकों के बारे में विस्तार से जानते हैं।
कलचुरी राजवंश राजाओं का एक समूह था, जिन्होंने 10वीं और 12वीं शताब्दी के बीच भारत के कुछ हिस्सों पर शासन किया था। 
कलचुरी राजवंश में दो राज्य शामिल हैं:
1. चेदि साम्राज्य, जिसने मध्य भारत पर शासन किया, जिसमें मध्य प्रदेश, राजस्थान, मालवा और महाराष्ट्र राज्य शामिल थे।
2. हैहय साम्राज्य जिसने दक्षिण भारत, कर्नाटक राज्य पर शासन किया।
"कलचुरी" नाम एक पुरानी भारतीय भाषा के दो शब्दों से आया है:
- "काली" का अर्थ है "लंबी मूंछें"
- "चुरी" का अर्थ है "तेज़ चाकू"
चेदि राजाओं को "दहलास के राजा" भी कहा जाता था। उनकी राजधानी त्रिपुरा थी, जो आधुनिक शहर जबलपुर से 6 किलोमीटर दूर स्थित थी।
सबसे महत्वपूर्ण कलचुरी राजाओं में से एक गंगेयदेव थे। उन्होंने अपने शासन के दौरान चेदि साम्राज्य को उत्तरी भारत में सबसे शक्तिशाली बनाने की कोशिश की।
कलचुरी राजवंश को भारत के इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है, जिसने 200 से अधिक वर्षों तक देश के बड़े क्षेत्रों पर शासन किया। उनके राजाओं ने अपने द्वारा शासित क्षेत्र पर एक स्थायी प्रभाव छोड़ा।
कलचुरियों का मुख्य क्षेत्र चेदि क्षेत्र था, जिसे दहला-मंडला के नाम से भी जाना जाता था। उनकी राजधानी त्रिपुरी थी, जिसे अब तेवर कहा जाता है और यह मध्य प्रदेश राज्य के जबलपुर शहर के पास है। जबलपुर के बारे में ऐसा माना जाता है कि इस शहर का नाम ऋषि जाबालि नामक एक पौराणिक विभूति के नाम पर पड़ा है। पुरातत्वविदों को शहर में प्राचीन सम्राट अशोक के समय के अवशेष भी मिले हैं। 9वीं और 10वीं शताब्दी के बीच जबलपुर प्रसिद्ध त्रिपुरी साम्राज्य की राजधानी हुआ करती थी। हालांकि 875 ई. में, कलचुरी राजवंश ने जबलपुर पर कब्ज़ा कर लिया और इसे अपनी राजधानी बना लिया। उन्होंने कई वर्षों तक शहर पर शासन किया। जबलपुर में एक पत्थर के बक्से में कुछ लिखावट वाली प्लेटें मिली हैं। खास तौर पर पहली प्लेट पर 10वीं और 17वीं पंक्तियों के बीच, कुछ अक्षर समय के साथ खराब हो गए हैं। लेकिन दूसरी प्लेट पर लिखावट अभी भी अच्छी स्थिति में है। ये प्लेटें अब नागपुर के केंद्रीय संग्रहालय में रखी गई हैं। इनमे की गई लिखावट नागरी अक्षरों में है और भाषा संस्कृत है। इन शिलालेखों का उद्देश्य भगवान शिव के लिए एक मंदिर (कीर्तिश्वर) के निर्माण से जुड़ी जानकारी को संरक्षित करना है। शिलालेख में उल्लिखित तिथि वर्ष 926 है, जो कलचुरी युग को संदर्भित करती है। यह शिलालेख हमें बताता है कि कीर्तिश्वर मंदिर कलचुरी युग के दौरान बनाया गया था।
कलचुरी राजवंश की उत्पत्ति पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है हालांकि एक सिद्धांत उन्हें महिष्मती के कलचुरियों से जोड़ता है। 10वीं शताब्दी तक, त्रिपुरी के कलचुरी बहुत शक्तिशाली हो गए थे। उन्होंने अपने पड़ोसियों, जैसे कि गुर्जर-प्रतिहार, चंदेल और परमारों पर हमला करके और उनकी ज़मीन पर कब्ज़ा करके अपनी शक्ति और साम्राज्य को कई गुना बढ़ा लिया था। उनके राष्ट्रकूटों और कल्याणी के चालुक्यों के साथ वैवाहिक संबंध भी थे।
1030 के दशक में, कलचुरी राजा गंगेयदेव, अपनी पूर्वी और उत्तरी सीमाओं पर कई लड़ाइयाँ जीतकर शक्तिशाली सम्राट बन गए।  उनके पुत्र लक्ष्मीकर्ण ने 1041 से 1073 ई. तक शासन किया। लक्ष्मीकर्ण युद्ध में  इतने सफल  रहे कि  उन्होनें "चक्रवर्ती" की उपाधि धारण कर ली।"  उन्होनें कुछ समय के लिए परमार और चंदेल साम्राज्यों के कुछ हिस्सों पर भी नियंत्रण किया। हालांकि लक्ष्मीकर्ण के बाद, कलचुरी राजवंश का पतन शुरू हो गया। उन्होंने अपने उत्तरी क्षेत्रों पर गहड़वाल नामक एक अन्य समूह के हाथों नियंत्रण खो दिया।
अंतिम ज्ञात कलचुरी शासक त्रैलोक्यमल्ला थे, जिन्होंने संभवतः 1212 ई. तक शासन किया, लेकिन कोई भी यह सटीक तौर पर नहीं कह सकता कि  उनका शासन कब समाप्त हुआ। 13वीं शताब्दी में, पुरानी कलचुरी भूमि परमारों, चंदेलों और अंततः दिल्ली सल्तनत के नियंत्रण में आ गई। 
कलचुरी राजवंश ने कई वर्षों तक मध्य भारत के कुछ हिस्सों पर शासन किया। उनके कुछ सबसे महत्वपूर्ण शासक थे:
कोक्कल-I
- वह पहले शक्तिशाली कलचुरी राजा थे।
- वह गुर्जर-प्रतिहार शासकों के साथ सहयोगी बन गए।
- उनका नाम रतनपुरा शिलालेख में उल्लेखित है।
- उनके एक बेटे ने रत्नपुरा कलचुरी शाखा की शुरुआत की |
 शंकरगण-III
- वह लगभग 970 ई. में राजा बने।
- वह अपने राज्य का विस्तार करना चाहते थे, जिसके लिए उन्होंने कई युद्ध लड़े।
- उन्होंने गुर्जर-प्रतिहार राजा विजयपाल को हराया, लेकिन वह खजुराहो के चंदेलों से हार गए और युद्ध में उनकी मृत्यु हो गई।
- उनके बाद, युवराज देव-II और कोक्कल-II राजा बने
 गंगेय-देव (1015-1041 ई.)
- शुरुआत में, वह परमार राजा भोज  के सेवक थे।
- बाद में वह पूर्व और उत्तर में युद्ध जीतने के बाद एक स्वतंत्र शासक बन गए।
- पूर्व में,   उन्होनें  उत्कल साम्राज्य पर हमला किया और उनके राजा शुभकार द्वितीय और दक्षिण कोसल के ययातिकोहराया।
- उत्तर में, उन्होंने सबसे पहले जेजाक-भुक्ति के चंदेलों को हराया, जो  ग़ज़नवी आक्रमणों से  कमज़ोर हो गए थे।
- बाद में उन्हें चंदेल राजा विजयपाल ने हराया |
 लक्ष्मी कर्ण (1041-1073 ई.)
-  उन्हें सबसे शक्तिशाली और लोकप्रिय कलचुरी शासक माना जाता है।
-  उन्होंने एक महान सैन्य नेता के रूप में अपने राज्य का विस्तार करने के लिए कई युद्ध जीते।
- अपनी विजयों के कारण उन्हें "हिंद का नेपोलियन" भी कहा जाता था।
- अपने सफल अभियानों के बाद उन्होंने चक्रवर्ती की उपाधि धारण की।
- पूर्व में, उन्होंने अंग और वंगा राज्यों (अब बंगाल) पर आक्रमण किया।
- उन्होंने पाल राजाओं द्वारा शासित गौड़ क्षेत्र पर भी हमला किया।

इन सभी शासकों  पर आक्रमण करके कलचुरी राजवंश ने कई वर्षों तक शासन किया।

संदर्भ 
https://tinyurl.com/25dpkkv6
https://tinyurl.com/2ddhzzpg
https://tinyurl.com/2bfcrxov
https://tinyurl.com/26jo7ny8

चित्र संदर्भ
1. कलचुरी राजवंश के सिक्कों एवं प्रभाव क्षेत्र को दर्शाते मानचित्र को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
2. कलचुरी सामंत राजा, कलहशिला के सिक्के को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. कलचुरी राजाओं में से एक, गंगेयदेव, के सिक्कों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. कलचुरी साम्राज्य के शाही प्रतीक को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. कलचुरी साम्राज्य के दौरान निमित 12वीं शताब्दी पातालेश्वर मंदिर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)

https://www.prarang.in/Jaunpur_District/24072210709





आइए देखें, वाराणसी के कुछ पुराने और दुर्लभ दृश्य

see some old and rare views of Varanasi

Jaunpur District
21-07-2024 08:49 AM

हमारे शहर  जौनपुर के नज़दीक स्थित वाराणसी, हमेशा से ही पर्यटकों को आकर्षित करता रहा है। वाराणसी को विश्व का सबसे प्राचीन शहर माना जाता हैजो शिव नगरी के नाम से भी विख्यात है। इस देव नगरी में निवास करना सभी के लिए सौभाग्य की बात मानी जाती है। इस शहर में घूमने के लिए देश-विदेश से हर साल लाखों पर्यटक आते हैं। हिंदुओं के सात पवित्र नगरों में से एक वाराणसी का पुराना नाम काशी हैजिसका वर्णन वेदों और पुराणों में भी किया गया है। गंगा किनारे बसा यह शहर  हज़ारों सालों से उत्तर भारत का धार्मिक व सांस्कृतिक केंद्र रहा है। 1956 ईस्वी के पहले तक इस शहर को बनारस के नाम से जाना जाता था,


 लेकिन बाद में इसका नाम बदल कर वाराणसी कर दिया गया। वाराणसी का अर्थ है, ‘दो नदियों वरूणा व असि के बीच स्थित’ शहर। इसके इतिहास की बात करेंतो यह प्राचीन समय में धार्मिक केंद्र के साथ-साथएक औद्योगिक केंद्र भी थाजो रेशमी वस्त्रइत्रहाथी दांत व मूर्तिकला के काम के लिए जाना जाता था। महात्मा बुद्ध के समय यह स्थान धार्मिकशैक्षिक व कलात्मक गतिविधियों का केंद्र भी रहा है। यहां देखने के लिए कई आकर्षण बिंदु हैंजिनमें काशी विश्वनाथ मंदिरदशाश्वमेध घाटसंकट मोचन हनुमान मंदिरअस्सी घाटऔरंगज़ेब द्वारा निर्मित आलमगीर मस्जिद की दो मीनारें आदि शामिल हैं। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि भारत की कुछ सबसे पुरानी वीडियो  रिकॉर्डिंग्स,  वाराणसी के घाटों की हैं। तो आइए आज हम कुछ चलचित्रों के  ज़रिए, 1899 से 1935 की अवधि के इन दृश्यों को    देखेंगे








संदर्भ:


https://tinyurl.com/uzmxnrw9


https://tinyurl.com/wybptrw9


https://tinyurl.com/5n8kh5n9


https://tinyurl.com/2zew594w


https://tinyurl.com/4r6sszes


https://tinyurl.com/2zzwfxak

https://www.prarang.in/Jaunpur_District/24072110742





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