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ऐसा माना जाता है कि ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोग शहरी क्षेत्रों की तुलना में अधिक स्वस्थ एवं तंदुरुस्त होते हैं क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों के लोग संसाधित व जंक फूड खाने के बजाय स्वास्थ्य वर्धक भोजन को महत्त्व देते हैं। साथ ही निष्क्रियता के स्थान पर शारीरिक गतिविधियों में संलग्न रहते हैं। हालांकि अब यह महज एक धारणा मात्र रह गई है। हाल के अध्ययन में यह पाया गया है कि देश के ग्रामीण क्षेत्रों में भी मोटापे और मधुमेह की व्यापकता दर तीव्र गति से बढ़ रही है। आइए आज चर्चा करते हैं इसी विषय पर।
भारत की लगभग 70 प्रतिशत जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है। इसका अर्थ यह है कि किसी भी अध्ययन में ग्रामीण क्षेत्रों में मोटापे के प्रसार में यदि शहरी क्षेत्रों की तुलना में थोड़ी सी भी वृद्धि दर्ज की जाती है तो कुल जनसंख्या के संदर्भ में कहने को तो यह नाम मात्र की वृद्धि होगी, लेकिन यदि वास्तव में देखा जाए तो पूरे देश में मोटे व्यक्तियों की संख्या बहुत अधिक होगी। दक्षिण भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में किए गए एक अध्ययन में पिछले अध्ययनों में बताए गए आंकड़ों की तुलना में मोटापे की दर में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है, जिसका एक कारण आधुनिक समय में ग्रामीण क्षेत्रों में जीवनशैली में तेजी से आने वाला बदलाव हो सकता है।
भारत में अब तक किए गए कई अध्ययनों में महिलाओं में मोटापे की दर पुरुषों की तुलना में अधिक पाई गई है। भारत में 35-70 वर्ष की आयु की महिलाओं में चार शहरी और पांच ग्रामीण क्षेत्रों में किए गए एक अध्ययन में, शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में मोटापे की आयु-समायोजित व्यापकता क्रमशः 45.6 % और 22.5 % दर्ज की गई थी। वर्ष 2005-2006 के दौरान भारत के 28 राज्यों और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में 15-49 आयु वर्ग की सभी महिलाओं और 15-54 आयु वर्ग के सभी पुरुषों पर एक अध्ययन किया गया जिसमें भी भारत के सभी राज्यों में महिलाओं में मोटापे की दर पुरुषों की तुलना में अधिक देखी गई थी।
‘पंजाब कृषि विश्वविद्यालय’, लुधियाना और ‘मेमोरियल यूनिवर्सिटी ऑफ न्यूफाउंडलैंड’, सेंट जॉन्स, कनाडा (Memorial University of Newfoundland, St John’s, Canada) की एक संयुक्त टीम द्वारा भारत के पंजाब राज्य के शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में वयस्कों में चयापचय संबंधी विकारों की व्यापकता की जांच करने के लिए एक अध्ययन किया गया। इस अध्ययन में आम धारणा, कि ग्रामीण व्यक्ति शहरी व्यक्तियों की तुलना में अधिक स्वस्थ होते है, सामने आया कि शहरी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की तुलना में पंजाब में ग्रामीण आबादी का एक बड़ा हिस्सा मेटाबॉलिक सिंड्रोम (Metabolic Syndrome(MetS) से पीड़ित है।
मेटाबोलिक सिंड्रोम एक ऐसी स्थिति है जिसमें शरीर में एक साथ कई रोगों, जैसे हृदय रोग, हृदयाघात (Heartstroke) और टाइप 2 मधुमेह (Type 2 diabetes) का खतरा बढ़ जाता है। इस स्थिति में रक्तचाप में वृद्धि, उच्च रक्त मधुमेह (high blood sugar), कमर के आसपास चर्बी बढ़ना और असामान्य रूप से कोलेस्ट्रॉल (cholesterol) या ट्राइग्लिसराइड (triglyceride) स्तर का बढ़ना शामिल है। ग्रामीण व्यक्तियों में शहरी व्यक्तियों की तुलना में कमर की परिधि, कूल्हे की परिधि, कमर-कूल्हे का अनुपात और उपवास रक्त शर्करा के ऊंचे स्तर के साथ-साथ उच्च रक्तचाप था।
इस अध्ययन में पिछले अध्ययनों के विपरीत शहरी क्षेत्रों में, मेटाबॉलिक सिंड्रोम का प्रसार पुरुषों में 7% और महिलाओं में 10% था, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में, यह पुरुषों में 34% और महिलाओं में 26% की दर से उल्लेखनीय रूप से अधिक पाया गया।
अध्ययन में ग्रामीण पुरुषों (61%) और महिलाओं (69%) में सिस्टोलिक रक्तचाप (Systolic Blood Pressure (SBP) का स्तर मानक 85/130 mmHg स्तर से ऊपर पाया गया जबकि शहरी क्षेत्रों में यह, 43% पुरुषों और 31% महिलाओं में अनुमेय सीमा से ऊपर था। महिलाओं में पेट के मोटापे की व्यापकता शहरी क्षेत्रों (63%) की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों (75%) में उल्लेखनीय रूप से अधिक थी।
वर्तमान में हमारा देश भारत परिवर्तन की एक ऐसी स्थिति में है जहाँ अल्प पोषण एवं अतिपोषण दोनों सह अस्तित्व में हैं। देश के ग्रामीण एवं शहरी दोनों क्षेत्रों में, लोगों की जीवनशैली में बदलाव जैसे खानपान की आदतें, शारीरिक निष्क्रियता, तम्बाकू एवं शराब का बढ़ता सेवन आदि में तेजी से वृद्धि दर्ज की जा रही है। इस बदलती जीवन शैली का प्रतिकूल प्रभाव व्यक्तियों के शरीर पर मोटापे या अधिक वजन के रूप में स्पष्ट परिलक्षित होता है।
अधिक वजन/मोटापे के कारण:
जब किसी व्यक्ति के शरीर का वजन अधिक वसा एकत्र होने पर एक निश्चित स्तर से ऊपर चला जाता है, तो इससे कई स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं उत्पन्न हो सकती है। अतः यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि उन कारणों के विषय में प्रत्येक व्यक्ति को जानकारी होनी चाहिए जिनसे वजन बढ़ता है।
ऐसे ही कुछ कारण निम्न प्रकार हैं:
⦿ पारिवारिक इतिहास
⦿ पोषणयुक्त भोजन के स्थान पर नियमित रूप से संसाधित भोजन और जंक फूड का सेवन।
⦿ शारीरिक गतिविधि की कमी अथवा शारीरिक निष्क्रियता
⦿ अवसाद, चिंता, तनाव जैसे मनोवैज्ञानिक कारकों की उपस्थिति के कारण भोजन आवश्यकता से अधिक करना।
⦿ शरीर में हार्मोनल असंतुलन
⦿ शैशवावस्था, बचपन और किशोरावस्था के दौरान अधिक भोजन करने से भी वयस्कता के दौरान अधिक वजन/मोटापा होने का खतरा होता है।
अधिक वजन या मोटापे से जुड़े जोखिम:
अधिक वजन/मोटापे के परिणामस्वरूप निम्नलिखित स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं, जैसे:
⦾ हृदय रोग और मस्तिष्कवाहिकीय रोग (स्ट्रोक)
⦾ हानिकारक रक्त वसा का उच्च स्तर/हाइपरलिपिडेमिया (Hyperlipidemia)
⦾ उच्च रक्तचाप
⦾ मधुमेह
⦾ वात रोग (विशेष रूप से ऑस्टियोआर्थराइटिस (osteoarthritis)
⦾ नींद विकार
⦾ कैंसर - स्तन, गर्भाशय ग्रीवा, अंडाशय, यकृत, पित्ताशय, गुर्दे, बृहदान्त्र, मलाशय और प्रोस्टेट का कैंसर
⦾ फेफड़ों के विकार
⦾ पित्त पथरी का बनना
अब प्रश्न उठता है कि किसी व्यक्ति का वजन कम है या अधिक, या संतुलित है, इसका निर्धारण कैसे किया जाए? तो अब हम आपको शरीर द्रव्यमान सूचक तथा मानक कमर परिधि के विषय में बताते हैं जिनके माध्यम से संतुलित वजन का निर्धारण किया जाता है:
1. शरीर द्रव्यमान सूचक (Body Mass Index (BMI): शरीर द्रव्यमान सूचक के माध्यम से किसी व्यक्ति के शरीर में कुल वसा की मात्रा का अनुमान लगाया जा सकता है, जिसकी गणना किसी व्यक्ति के वजन (किलोग्राम) को उसकी ऊंचाई (मीटर वर्ग)(kg/m2) से विभाजित करके की जाती है। BMI की गणना निम्नलिखित सूत्र का उपयोग करके की जा सकती है:
BMI = वजन (किलोग्राम)/ऊंचाई (मीटर2)
इस विधि का उपयोग करके कम वजन वाले, सामान्य, अधिक वजन वाले और मोटे व्यक्तियों की पहचान की जा सकती है। अवलोकन संबंधी अध्ययनों के आधार पर यह प्रस्तावित किया गया है कि भारतीय वयस्कों में सामान्य BMI मान 18/22.9 (वजन किलोग्राम में)/ऊंचाई (मीटर2 में) के बीच होना चाहिए।
भारतीयों में BMI के तहत अधिक वजन या मोटापे का वर्गीकरण निम्न प्रकार किया गया है:
वजन स्थिति | बीएमआई स्तर |
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कम वजन | 18.0 किलोग्राम/मीटर2 से कम |
सामान्य | 18.0-22.9 किलोग्राम/मीटर2 |
अधिक वजन | 23.0-24.9 किलोग्राम/मीटर2 |
मोटापा | 25 किलोग्राम/मीटर2 से अधिक या उसके बराबर |
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