जानें इस्लाम धर्म की मान्यताएं और भारत में इस्लाम के पवित्र दार्शनिक स्थल

विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)
22-01-2024 09:19 AM
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जानें इस्लाम धर्म की मान्यताएं और भारत में इस्लाम के पवित्र दार्शनिक स्थल

‘इस्लाम’ इस शब्द का अर्थ– ‘ईश्वर की इच्छा के प्रति समर्पण’ है, इसके साथ इस धर्म का अर्थ ‘शांति, दया, क्षमा और एक ईश्वर (जो सबसे ऊपर और शाश्वत है) में विश्वास’करना भी है। दूसरा सबसे बड़ा व्याप्त (prevalent)धर्म होने के नाते, इस्लाम एक ईश्वर और उसके कई दूतों (पैगंबरों) में विश्वास रखने के बारे में है, जो सर्वशक्तिमान के तत्वों को लोगों में प्रसारित करते हैं। इन तत्वों में ईश्वर द्वारा प्रदत्त सुंदर संसार का संपूर्ण सार समाहित है। अल्लाह ने मानव जाति को अपना जीवन कैसे जीना चाहिए, इसका भी उपदेश दिया है। इस प्रकार, वे दिव्य मानव आत्माएं जो निस्वार्थ रूप से इस्लामी धर्म में विश्वास करती हैं और उसका पालन करती हैं, मुसलमान कहलाती हैं।
इस्लाम धर्म में, हज, सऊदी अरब(Saudi Arabia) के पवित्र शहर मक्का(Mecca) की तीर्थयात्रा होती है। माना जाता है कि, प्रत्येक वयस्क मुसलमान व्यक्ति को अपने जीवनकाल में, कम से कम एक बार अवश्य हज करना चाहिए। बुनियादी मुस्लिम प्रथाओं और संस्थानों में से हज पांचवां है, जिन्हें इस्लाम के पांच स्तंभों के रूप में जाना जाता है। इस तीर्थयात्रा का अनुष्ठान धू अल-हिज्जाह(इस्लामी वर्ष का आखिरी महीना) के 7वें दिन शुरू होता है, और 12वें दिन समाप्त होता है। हज यात्रा करना उन सभी मुसलमानों के लिए अनिवार्य होती है, जो शारीरिक और आर्थिक रूप से तीर्थयात्रा करने में सक्षम होते हैं। लेकिन, यह भी केवल तभी उचित है, जब उनकी अनुपस्थिति से उनके परिवार पर कोई कठिनाई न हो। कोई व्यक्ति अपने किसी ‘प्रतिनिधि’ द्वारा भी हज कर सकता है। अर्थात, तीर्थयात्रा पर जाने वाले किसी रिश्तेदार या मित्र को वह उसके लिए, वहां “उपस्थित रहने” के लिए कह सकता है।
तीर्थयात्रा अनुष्ठानों का यह स्वरूप पैगंबर मुहम्मद द्वारा स्थापित किया गया था। लेकिन, आज तक इसमें विविधताएं पैदा हुई हैं, और कठोर औपचारिक यात्रा कार्यक्रम का तीर्थयात्रियों के समूह द्वारा सख्ती से पालन नहीं किया जाता है, जो अक्सर अपने उचित क्रम से बाहर विभिन्न मक्का स्थलों का दौरा करते हैं। इसके अलावा, हमारे देश में भी मुसलमानों के कई पवित्र स्थल मौजूद हैं। और, हमारे शहर जौनपुर के कुछ मुख्य मुस्लिम स्थान तो हमें ज्ञात ही हैं। भारत एक ऐसा राष्ट्र है, जो लगभग हर धर्म के जीवंत रंगों को अपनाता है। मुस्लिम तीर्थयात्रा का अनुभव करने के लिए, हमारा देश सबसे अच्छे देशों में से एक है। हालांकि, मक्का को मुसलमानों का मुख्य तीर्थ स्थल माना जाता है, भारत में भी कई पवित्र मुस्लिम स्थल हैं। आइए, जानते हैं। जम्मू और कश्मीर में दरगाह हजरतबल, अजमेर में अजमेर शरीफ (ख्वाजा मोइन-उद-दीन चिश्ती की दरगाह), दरगाह हज़रत निज़ामुद्दीन, दिल्ली और पिरान कलियर शरीफ, हरिद्वार तथा मुंबई में हाजी अली दरगाह भारत में सबसे लोकप्रिय मुस्लिम तीर्थस्थल हैं।
हर साल इन मुस्लिम तीर्थ स्थलों पर लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। सबसे अच्छी बात यह है कि, इन पवित्र स्थानों पर केवल मुस्लिम श्रद्धालु ही नहीं, बल्कि, विभिन्न धार्मिक पृष्ठभूमि के लोग भी आते हैं और अपना सिर झुकाते हैं। ये गंतव्य आगंतुकों (destination visitors) को वह शांति प्रदान करते हैं, जो हम हमेशा से चाहते है। इसके साथ ही, श्रद्धालुओं को इस्लाम के इतिहास से जुड़ने का भी मौका मिलता है, जो उनकी आत्मा को और अधिक प्रबुद्ध करता है। अजमेर शरीफ दरगाह सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की कब्र है। मुस्लिम लोग इसे दुनिया के सबसे पवित्र स्थानों में से एक मानते हैं। यदि आप इस दरगाह पर जाते हैं, तो आप निश्चित रूप से सूफी संतों द्वारा गाए गए विभिन्न गीतों के माध्यम से शक्तिपूर्ण महसूस करेंगे। दिलचस्प बात यह है कि, अजमेर शरीफ दरगाह का निर्माण मुगल साम्राज्य के दौरान शासक हुमायूं ने करवाया था।
ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती एक बेहद पवित्र संत थे, जिन्होंने गरीबों की मदद के लिए खुद को समर्पित कर दिया था। ऐसा करने के पीछे उनका विचार, जनता को निस्वार्थ सेवा के महत्व के बारे में शिक्षित करना था। ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की शिक्षाएं आज भी इतनी लोकप्रिय हैं कि, आगंतुक (visitor)सचमुच उनकी कब्र पर श्रद्धा अर्पित करने के लिए दरगाह पर आते हैं। मोइनुद्दीन चिश्ती एक फ़ारसी व्यक्ति थे, जो लाहौर के क्षेत्र में बस गए थे। लाहौर उस समय अस्वतंत्र भारत का एक हिस्सा था। कहानी के अनुसार माना जाता है कि, इस सूफी संत ने अभाग्यशाली लोगों के लिए प्रार्थना करने के उद्देश्य से, इस स्थान पर ध्यान लगाया था। ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के पवित्र अवशेषों से ही उनकी कब्र बनाई गई हैं। 13वीं शताब्दी की शुरुआत में, उन्होंने अंतिम सांस ली थी, और तब वह लगभग 114 वर्ष के थे। माना जाता है कि, उनके पास अपार आध्यात्मिक शक्तियां थीं। आज भी आपको ऐसी कहानियां मिल जाएंगी, जिनमें दावा किया जाता है कि, अजमेर शरीफ दरगाह में उनकी कब्र के सामने जो भी मन्नत मांगी जाएगी वह पूरी होगी।

संदर्भ

http://tinyurl.com/ta48bv2u
http://tinyurl.com/5n9a3xpw
http://tinyurl.com/muv2sk3m

चित्र संदर्भ
1. अजमेर शरीफ़ दरगाह, ख्वाजा गरीब नवाज़ राजस्थान को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. मक्का को संदर्भित करता एक चित्रण (Wallpaper Flare)
3. हाजी मक्का को संदर्भित करता एक चित्रण (needpix)
4. नजदीक से अजमेर शरीफ़ दरगाह को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती को संदर्भित करता एक चित्रण (citaty-slavnych)

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