समयसीमा 237
मानव व उनकी इन्द्रियाँ 948
मानव व उसके आविष्कार 725
भूगोल 236
जीव - जन्तु 275
Post Viewership from Post Date to 08- Feb-2024 (31st Day) | ||||
---|---|---|---|---|
City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Total | ||
2201 | 242 | 2443 |
प्लेट टेक्टोनिक्स (Plate tectonics) एक वैज्ञानिक सिद्धांत है, जो हमें बताती है कि पृथ्वी की भूमिगत गतिविधियों के परिणामस्वरूप, प्रमुख भू-आकृतियां कैसे बनती हैं। यह सिद्धांत, जो 1960 के दशक में प्रचलितहुआ है, ने पर्वत निर्माण की घटनाओं, ज्वालामुखी और भूकंप सहित कई घटनाओं की व्याख्या करके,आज पृथ्वी विज्ञान के परिदृश्य को बदल दिया है। प्लेट टेक्टोनिक्स में, पृथ्वी की सबसे बाहरी परत– स्थलमंडल, या लिथोस्फीयर(Lithosphere) बड़ी चट्टानी प्लेटों में विभाजित है। दरअसल, लिथोस्फीयर क्रस्ट(Crust) और ऊपरी मैंटल(Mantle) से बनी होती है। ये प्लेटें चट्टानों की आंशिक रूप से पिघली हुई, परत के ऊपर स्थित होती हैं जिसे एस्थेनोस्फीयर(Asthenosphere) कहा जाता है। एस्थेनोस्फीयर और लिथोस्फीयर के संवहन के कारण, महाद्वीपीय या टेक्टोनिक प्लेटें प्रति वर्ष 2 से 15 सेंटीमीटर की अलग-अलग दरों पर एक-दूसरे के सापेक्ष चलती हैं।
टेक्टोनिक प्लेटों की यह परस्पर क्रिया कई अलग-अलग भूवैज्ञानिक संरचनाओं जैसे एशिया में हिमालय पर्वत श्रृंखला, पूर्व अफ्रीकी रिफ्ट(East African Rift) औरसंयुक्त राज्य अमेरिका(United States of America) में सैन एंड्रियास फॉल्ट(San Andreas Fault) के निर्माण के लिए जिम्मेदार है।
जी हां, हमारी पृथ्वी निरंतर परिवर्तन की स्थिति में है। हमारे स्थलमंडल में 15 से 20 गतिशील टेक्टोनिक प्लेटें मौजूद हैं। इन प्लेटों को एक टूटे हुए खोल के टुकड़ों की तरह माना जा सकता है, जो पृथ्वी के आवरण की गर्म, पिघली हुई चट्टानों पर बसी हुईहैं, और एक दूसरे के साथ, मजबूत तरीके से स्थिर हुई हैं।
ऐसे में, सवाल उठता है कि, आखिरकार ये प्लेटें संचालन क्यों करती हैं?दरअसल, हमारे ग्रह के आंतरिक भाग में रेडियोधर्मी(Radioactive) प्रक्रियाओं से निकलने वाली गर्मी प्लेटों को कभी एक-दूसरे की ओर और कभी-कभी एक-दूसरे से दूर खिसकाने का कारण बनती है। इस गति को प्लेट गति या टेक्टोनिक शिफ्ट(Tectonic shift) कहा जाता है।
आज हमारा ग्रह 250 मिलियन वर्षों पहले की तुलना में, बहुत अलग दिखता है। उस समयपृथ्वी पर केवल एकमहाद्वीप, जिसे पैंजिया(Pangaea) कहा जाता था, और एक महासागर था, जिसे पैंथालासा(Panthalassa) कहा जाता था। परंतु, जैसे-जैसे कई सहस्राब्दियों तक पृथ्वी का आवरण गर्म और ठंडा होता गया, स्थलमंडल टूटने लगा, और प्लेट गति शुरू हो गई जो आज भी जारी है।
अंततः यह विशाल महाद्वीप भी टूट गया, जिससे, नई और हमेशा बदलती रहने वाली भूमि और महासागरों का निर्माण हुआ। क्या आपने कभी गौर किया है कि, दक्षिण अमेरिका(South America) का पूर्वी तट ऐसा दिखता है, जैसे कि, यह अफ्रीका(Africa) के पश्चिमी तट में अच्छी तरह से फिट होगा। ऐसा इसलिए है क्योंकि, टेक्टोनिक बदलाव से लाखों साल पहले ये दोनों महान महाद्वीप अलग हो गए थे। आप नीचे प्रस्तुत विश्व मानचित्र को देखकर, यह अनुमान लगा सकते हैं।
आइए, अब हमारे भारतीय प्लेट के बारे में बात करते हैं। इंडियन प्लेट(Indian Plate) या इंडिया प्लेट पूर्वी गोलार्ध में भूमध्य रेखा पर फैली एक छोटी टेक्टोनिक प्लेट है। यह मूल रूप से गोंडवाना(Gondwana continent) के प्राचीन महाद्वीप का एक हिस्सा थी। भारतीय प्लेट लगभग 100 मिलियन वर्ष पहले गोंडवाना के अन्य हिस्सों से अलग हो गई, और उत्तर की ओर बढ़ने लगी।इस प्रकार, द्वीपीय भारत इस प्लेट के साथ उत्तर की ओर बढ़ने लगा।
भारतीय प्लेट में, आधुनिक दक्षिण एशिया (भारतीय उपमहाद्वीप) और हिंद महासागर के नीचे मौजूद बेसिन(Ocean basin) का एक हिस्सा शामिल है, जिसमें दक्षिण चीन(China) और पश्चिमी इंडोनेशिया(Indonesia) के कुछ हिस्से शामिल हैं। साथ ही, यह प्लेट लद्दाख, कोहिस्तान(Kohistan) और बलूचिस्तान(Baluchistan) तक फैली हुई है, लेकिन इसमें इनके हिस्से शामिल नहीं है।
वर्तमान समय में, भारतीय प्लेट प्रति वर्ष पांचसेंटीमीटर (2.0 इंच) की गति से उत्तर-पूर्व की ओर बढ़ रही है। जबकि, यूरेशियन प्लेट(Eurasian plate) प्रति वर्षकेवल दो सेंटीमीटर (0.79 इंच) की गति से उत्तर की ओर बढ़ रही है। इससे यूरेशियन प्लेट विकृत हो रही है, और भारतीय प्लेट प्रति वर्ष चार मिलीमीटर (0.16 इंच) की दर से सिकुड़ रही है।
भारतीय प्लेट का पश्चिमी भाग अरब प्लेट(the Arabian Plate) के साथ एक परिवर्तित सीमा है, जिसे ओवेन फ्रैक्चर जोन(Owen Fracture Zone) कहा जाता है। अफ्रीकी प्लेट(African Plate) के साथ इसकी एक भिन्न सीमा है, जिसे सेंट्रल इंडियन रिज(Central Indian Ridge) कहा जाता है। इसके साथ ही, इस प्लेट का उत्तरी भाग यूरेशियन प्लेट(Eurasian Plate) के साथ एक अभिसरण सीमा है, जो हिमालय और हिंदू कुश पर्वत बनाती है।इसे मुख्य हिमालयन थ्रस्ट(Main Himalayan Thrust) कहा जाता है।
चूंकि, अब हम जानते हैं कि, पृथ्वी की सतह गतिशील है, प्रश्न उठता है कि, भविष्य में पृथ्वी का स्थलमंडल कैसा दिखेगा? यहां, हमने नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी(Northwestern University) के पृथ्वी और ग्रह विज्ञान विभाग के प्रोफेसर– क्रिस स्कॉटीज़(Chris Scotese) के अनुमानों का उपयोग किया है। इस वीडियो में हम देख सकते हैं कि,अगले 250 मिलियन वर्षों में पृथ्वी कैसी दिखेगी।
स्कॉटीज़ अध्ययन करते हैं कि, प्लेट टेक्टोनिक्स और अधिक गर्म होती जलवायु, भविष्य में पृथ्वी की उपस्थिति को कैसे बदल देगी, और उन्होंने अपने शोध के आधार पर कई एनिमेटेड मानचित्र बनाए हैं।
संदर्भ
http://tinyurl.com/4muprwpr
http://tinyurl.com/267hnr93
http://tinyurl.com/5588mm6x
http://tinyurl.com/5evdsnad
चित्र संदर्भ
1. पहाड़ों और भारतीय प्लेट के उत्तर की ओर खिसकाव
को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia, pxhere)
2. पृथ्वी की 16 प्रमुख टेक्टोनिक प्लेटों के मानचित्र को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. पैंथालासा को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. दक्षिण अमेरिका और अफ़्रीका के विभाजन को संदर्भित करता एक चित्रण (google)
5. लौरेशिया-गोंडवाना विभाजन को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.
B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.