विविधताओं और गौरव गाथाओं से भरा है, भारतीय कुश्ती का इतिहास!

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29-12-2023 09:47 AM
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विविधताओं और गौरव गाथाओं से भरा है, भारतीय कुश्ती का इतिहास!

चाहे हम किसी भी परंपरा को कितना ही संभाल के रखें, समय के साथ उस परंपरा में थोड़े बहुत बदलाव तो आ ही जाते हैं। उदाहरण के तौर पर आप कुश्ती को ही ले लें, जो कि इतना प्राचीन खेल है कि इसका उल्लेख महान हिंदू महाकाव्य 'महाभारत' में भी मिलता है। कुश्ती या पहलवानी आमतौर पर भारत के बहुसंख्यक हिंदुओं के बीच ख़ूब लोकप्रिय है, लेकिन कई मुसलमान भी इसका अभ्यास करते हैं। भारत के सबसे प्रसिद्ध कुश्ती पहलवानों में से एक, ग्रेट गामा (Great Gamma) स्वयं एक मुस्लिम थे। कुश्ती प्रशिक्षण केंद्रों में भी छात्रों का मूल्यांकन, उनकी सामाजिक स्थिति या धर्म के बजाय उनके कौशल और अनुभव के आधार पर किया जाता है। हालांकि भारत में कुश्ती की लोकप्रियता 16वीं शताब्दी में मुग़लों के आगमन के बाद बढ़ी, लेकिन मुग़लों के आगमन से पहले भी यहाँ पर कुश्ती एक आम खेल हुआ करता था। उस समय कुश्ती की सबसे उल्लेखनीय शैली मल्ल-युद्ध हुआ करती थी। मल्ल युद्ध का इतिहास कम से कम 5वीं सहस्राब्दी ईसा पूर्व का बताया जाता है। मुग़ल और भारतीय शैलियों के संयोजन से कुश्ती के नए रूपों और नई शैलियों का निर्माण हुआ। चलिए कुश्ती के कुछ ऐसे ही भूले बिसरे या कुछ ख़ास क्षेत्रों तक सीमित शैलियों पर एक नज़र डालते हैं: 1: गंडो मकाल पाला (Gando Makal Pala Of Meghalaya): गंडो मकाल पाला, भारत के पूर्वोत्तर पहाड़ी क्षेत्र “मेघालय” में प्रचलित एक प्रकार की स्टैंड-अप कुश्ती (Stand-Up Wrestling) है। हर खेल की तरह कुश्ती की इस शैली का प्रमुख उद्देश्य अपने प्रतिद्वंद्वी को हराना होता है। इसके अंतर्गत अगर आपके प्रतिद्वंदी के पैरों के अलावा शरीर का कोई भी हिस्सा जमीन को छू जाए, तो आपकी जीत मान ली जाती है। इस शैली के पहलवान अपनी नियमित पोशाक में ही प्रतिस्पर्धा करते हैं। गंडो मकाल पाला मैच एक निश्चित पकड़ के साथ शुरू होते हैं, और यह पकड़ पूरे समय कायम रहती है। 2. मुकना (Mukna Of Manipur): पूर्वोत्तर राज्य नागालैंड के दक्षिण में स्थित मणिपुर को तांगखुल नागाओं और मेइती लोगों का घर माना जाता है, जो यहाँ के बहुसंख्यक समुदाय हैं। नागाओं औ
र मेइती के बीच हालिया तनाव के बावजूद, दोनों की पारंपरिक कुश्ती शैलियों में कई समानताएँ नज़र आती हैं। मैतेई की लोक कुश्ती शैली को “मुकना” कहा जाता है, जो 15वीं शताब्दी पुरानी मानी जाती है। सबसे महत्वपूर्ण मुकना प्रतियोगिता यहाँ के विशेष पर्व “लाई हरोबा उत्सव” के आखिरी दिन होती है। इस प्रतियोगिता के विजेता को एक वर्ष के लिए खेती से छूट दी जाती थी। मुकना मैच का उद्देश्य भी अपने प्रतिद्वंद्वी को उसके पैरों को छोड़कर उसके शरीर के किसी भी हिस्से से ज़मीन को छूने के लिए मजबूर करना होता है। मुकना पहलवान “निंगरी” नामक एक कपड़ा पहनते हैं , जिसे कमर के नीचे और कमर के चारों ओर लपेटा जाता है। खेल के दौरान पहलवानों को हर समय निंगरी बेल्ट पकड़नी पड़ती है और उन्हें प्रतिद्वंद्वी के शरीर के किसी भी हिस्से को पकड़ने की अनुमति नहीं होती है। 3. इनबुआन (Inbuan Of Mizoram): पूर्वोत्तर राज्य मिज़ोरम के मुख्य निवासियों को मिज़ो कहा जाता है, और मिज़ो लोगों की पारंपरिक कुश्ती शैली को “इनबुआन” कहा जाता है। माना जाता है कि कुश्ती की इस शैली की शुरुआत 18वीं शताब्दी में हुई थी। मुकना की तरह ही इनबुआन भी एक प्रकार की “बेल्ट कुश्ती (Belt Wrestling)” होती है, लेकिन इसके नियम तुलनात्मक रूप से बहुत सख्त होते हैं। इनबुआन मैच में, तीन राउंड (Round) होते हैं। प्रत्येक राउंड केवल 30 या 60 सेकंड तक चलता है। एक राउंड जीतने के लिए, आपको अपने प्रतिद्वंद्वी को अपने घुटनों को बहुत अधिक झुकाए बिना या रिंग से बाहर निकले बिना ज़मीन से ऊपर उठाना पड़ता है। तीनों राउंड में जो भी पहलवान सबसे अच्छा प्रदर्शन करता है, वह मुकाबला जीत जाता है। इनबुआन मैच की शुरुआत में पहलवान एक-दूसरे की बेल्ट पकड़ लेते हैं और पूरे समय एक ही पकड़ बनाए रखते हैं। उन्हें बेल्ट के अलावा कुछ भी छीनने की अनुमति नहीं होती है। हालाँकि राउंड छोटे होने के बावजूद इनबुआन शारीरिक रूप से कठिन खेल साबित होता है। ये मैच आमतौर पर घास या रेत पर खेले जाते हैं, और इनमें महिलाओं को भाग लेने की अनुमति नहीं होती है। 4. गट्टा गुश्ती (Gatta Gusthi Of Kerala): गट्टा गुश्ती, हमारे देश के दक्षिणी राज्य केरल की एक पारंपरिक कुश्ती शैली है। हालाँकि गट्टा गुश्ती की उत्पत्ति के बारे में स्पष्ट रूप से कुछ भी पता नहीं है, लेकिन माना जाता है कि इसे कोचीन और त्रावणकोर साम्राज्यों के समय में लोकप्रियता मिली थी। ऐसा माना जाता है कि “गुश्ती शैली संभवतः विदेशी मुगल कुश्ती परंपराओं और पहले से मौजूद देशी शैली के मिश्रण से विकसित हुई होगी।” गट्टा गुश्ती 1940 और 60 के दशक के बीच केरल में एक लोकप्रिय शग़ल हुआ करती थी। हालांकि, आधुनिक फ्रीस्टाइल कुश्ती (Modern Freestyle Wrestling) की शुरुआत के साथ ही, इसकी लोकप्रियता में भी कमी आने लगी। गट्टा गुश्ती का लक्ष्य भी फ्रीस्टाइल कुश्ती के समान ही होता है। जीतने के लिए, आपको अपने प्रतिद्वंद्वी को पीठ के बल जमीन पर गिराना होता है या अंकों से जीतना पड़ता है। गट्टा गुश्ती खेलते समय पहलवान नंगे पैर, और केवल लंगोट पहनते हैं, । कुश्ती की इस रोमांचक शैली के आयोजन पारंपरिक रूप से समुद्र तट पर किए जाते हैं, जिसमें मैच 30 मिनट तक चलते हैं। यदि स्कोर बराबर होता है, तो दोनों प्रतिभागियों के सहमत होने पर मैच को और आगे बढ़ाया जा सकता है। हाल के वर्षों में, स्थानीय फिल्मों में इसके चित्रण और फोगाट बहनों की सफलताओं के कारण, गट्टा गुश्ती केरल में महिलाओं के बीच भी लोकप्रियता हासिल कर रही है।
5. किरिप कुश्ती (Kirib Of Nicobar): बंगाल की खाड़ी के दक्षिण में स्थित निकोबार द्वीप समूह में किरिप नामक एक अनोखी और पारंपरिक कुश्ती खेली जाती है। किरिप कुश्ती के एक मैच में 3 या 5 राउंड होते हैं, और इसका लक्ष्य एक राउंड जीतने के लिए अपने प्रतिद्वंद्वी को उनकी पीठ के बल गिराना होता है। प्रत्येक राउंड से पहले, पहलवान एक ओवर-अंडर क्लिंच (Over-Under Clinch) में बंध जाते हैं और पूरे राउंड में इस पकड़ को बनाए रखते हैं। भारत में कुश्ती के विविध रूपों को प्रसिद्धि दिलाने में “पहलवानों” का बहुत अहम योगदान रहा है। इनमें से कुछ पहलवान ऐसे भी हैं, जो अपने संघर्षों के बलबूते पूरी दुनियाँ के लिए एक प्रेरणा बन गये। आपको जानकर हैरानी होगी कि “भारतीय कुश्ती के गौरवपूर्ण इतिहास में एक पहलवान ऐसा भी था, जो सुन या बोल नहीं सकता था, फिर भी वह नियमित कुश्ती मैच, या "दंगल" में प्रतिस्पर्धा करता था।” इस पहलवान ने बड़े-बड़े टूर्नामेंट भी जीते हैं। देश का गौरव और करोड़ों लोगों की प्रेरणा रहे इस पहलवान को "गूंगा पहलवान" के नाम से जाना जाता था। उनके नाम का अनुवाद "मूक पहलवान" होता है। उनका वास्तविक नाम वीरेंद्र सिंह यादव “Virendra Singh Yadav” था और उन्होंने अपने इस नाम ("गूंगा पहलवान") को पूरी तरह से अपना लिया। इस नाम ने उनके अंतरराष्ट्रीय करियर को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उत्तर भारतीय दंगलों में चैंपियन बनने से लेकर, अपनी विकलांगता के कारण राष्ट्रीय टीम से बाहर किए जाने तक, उनका करियर काफ़ी संघर्षपूर्ण रहा है। हालांकि आज वह 1990 के बाद पद्मश्री से सम्मानित होने वाले पहले बधिर खिलाड़ी और यह सम्मान पाने वाले पहले पहलवान माने जाते हैं।
उनका नाम गणतंत्र दिवस 2021 की सूची में भी लिया गया। इस सम्मान ने एक खिलाड़ी के रूप में उनकी उपलब्धियों को मान्यता दी। इसके अलावा उनकी उपलब्धियों में डेफलंपिक्स (Deaflympics) में चार प्रदर्शनों में तीन स्वर्ण और एक कांस्य पदक शामिल है। वीरेंद्र ने अपने कुश्ती करियर की शुरुआत मिट्टी के दंगल से की, जिसमें वे हर रविवार को सभी पहलवानों के खिलाफ प्रतिस्पर्धा करते थे। लगभग 15 साल की उम्र में, उन्होंने दिल्ली में 'नौ शेर' खिताब जीत लिया था। यह खिताब नौ हफ्तों में लगातार नौ मुकाबले जीतने वाले पहलवानों को दिया जाता है।
सुनने या बोलने की क्षमता के बिना पैदा हुए वीरेंद्र को उनके पिता अजीत सिंह और चाचा सुरेंद्र सिंह, दोनों पहलवानों ने इस खेल से परिचित कराया। उन्होंने उन्हें हरियाणा के सासरोली स्थित अपने गांव में खेल की मूल बातें सिखाईं। महज़ 10 साल की उम्र में उनके चाचा उन्हें दिल्ली के एक कुश्ती स्कूल में ले गए। वहां के पहलवानों से प्रेरित होकर और परिवार के मज़बूत समर्थन से, उन्होंने अपने कौशल को निखारा और जल्द ही सक्षम पहलवानों के खिलाफ उत्तर भारत में पारंपरिक दंगल जीतना शुरू कर दिया। वीरेंद्र ने राष्ट्रीय स्तर पर भी उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। 2001 में, 16 साल की उम्र में, उन्होंने सक्षम एथलीटों के साथ प्रतिस्पर्धा करते हुए 76 किलोग्राम वर्ग में राष्ट्रीय कैडेट चैंपियनशिप (National Cadet Championship) जीती। 2005 में, वीरेंद्र ने मेलबर्न (Melbourne, Australia) में अपने पहले डेफ ओलंपिक में ही स्वर्ण पदक जीत लिया था। अपनी शारीरिक और वित्तीय समस्याओं के बावजूद उनका जीवन आज भारत के करोड़ों लोगों के लिए प्रेरणा बन गया है।

संदर्भ
http://tinyurl.com/yc2ey9xa
http://tinyurl.com/5469n5nm
http://tinyurl.com/yeywbpep

चित्र संदर्भ
1. गूंगा पहलवान उर्फ़ वीरेंद्र सिंह यादव को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. ग्रेट गामा को संदर्भित करता एक चित्रण (PICRYL)
3. गंडो मकाल पाला को संदर्भित करता एक चित्रण (youtube)
4. मुकना को संदर्भित करता एक चित्रण (wallpaperflare)
5. इनबुआन को संदर्भित करता एक चित्रण (youtube)
6. गट्टा गुश्ती को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
7. अर्जुन पुरुस्कार लेते वीरेंद्र सिंह यादव को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
8. 2013 के स्वर्ण पदक के बाद भारतीय ध्वज के साथ वीरेंद्र सिंह यादव को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)

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