अंतरिक्ष विज्ञान और तारों के नामकरण में प्राचीन भारतीय खगोलविदों का अहम् योगदान

शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक
26-12-2023 09:30 AM
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 अंतरिक्ष विज्ञान और तारों के नामकरण में प्राचीन भारतीय खगोलविदों का अहम् योगदान

पूरे मानव इतिहास में खगोल विज्ञान (Astronomy), इंसानों का सबसे अधिक पसंदीदा विषय रहा है। भारत में तो इसकी जड़ें काफी गहरी हैं। भारत में खगोल विज्ञान का सबसे पहला उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है, जिसे लगभग 2000 ईसा पूर्व में लिखा गया था। वैदिक आर्य, (सूर्य, तारों और धूमकेतु) जैसे खगोलीय पिंडों की पूजा किया करते थे। समय के साथ, खगोल विज्ञान, ज्योतिष के साथ भी जुड़ गया। ज्योतिष विज्ञान में सभी ग्रह मनुष्य की भविष्यवाणी करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उदाहरण के तौर पर शनि और मंगल जैसे ग्रहों को इंसानी भाग्य के प्रतिकूल माना जाता था। जन्मकुंडली बनाते समय, राहु और केतु (बुरी ताकतों के प्रतीक पौराणिक राक्षस) के साथ-साथ नवग्रहों (नौ ग्रहों) की स्थिति को भी ध्यान में रखा जाता था। प्राचीन काल में आर्यभट्ट और वराहमिहिर जैसे विद्वानों ने, भारतीय खगोल विज्ञान के विकास और विस्तार में महत्वपूर्ण योगदान दिया। प्राचीन भारतीय खगोलविदों ने इस क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की थी। उन्होंने समझा कि तारे भी सूर्य के समान ही हैं। उन्होंने सूर्य को सौर मंडल के केंद्र के रूप में मान्यता दी और यहां तक अनुमान लगा दिया कि पृथ्वी की परिधि 5000 योजन (एक योजन 7.2 किलोमीटर के बराबर) होती है। ये प्राचीन अनुमान आश्चर्यजनक रूप से आज की आधुनिक और वास्तविक मापों के बहुत करीब थे। खगोल विज्ञान का भारत में एक समृद्ध इतिहास रहा है। 'खगोल' शब्द नालंदा विश्वविद्यालय की एक प्राचीन खगोलीय वेधशाला से लिया गया है। प्रसिद्ध खगोलशास्त्री आर्यभट्ट ने 5वीं शताब्दी में यहीं पर अपना अध्ययन किया था। 476 ई. में जन्मे आर्यभट्ट ने खगोल विज्ञान में महत्वपूर्ण योगदान दिया। पोलिश खगोलशास्त्री कोपरनिकस (Copernicus) से भी एक हज़ार साल पहले, उन्होंने गुरुत्वाकर्षण के हेलियोसेंट्रिक सिद्धांत (Heliocentric Theory) का प्रस्ताव रख दिया था, जो बताता है कि सूर्य सौर मंडल के केंद्र में है। 13वीं शताब्दी में उनकी प्रमुख कृति “आर्यभट्टिय” का लैटिन में अनुवाद किया गया था। इसने यूरोपीय गणितज्ञों को त्रिभुजों के क्षेत्रफल, गोले के आयतन और वर्ग तथा घनमूलों की गणना के तरीकों से परिचित कराया। आर्यभट्ट ने 1500 साल पहले इन तथ्यों की खोज कर ली थी, जिससे वे खगोल विज्ञान में अग्रणी बन गये। हिंदू कैलेंडर, पंचांग की गणना के लिए उनकी पद्धतियां अत्यंत व्यावहारिक थीं। इससे प्राचीन भारतीय खगोलविदों को ग्रहणों की भविष्यवाणी करने और उनकी वास्तविक प्रकृति को समझने की अनुमति मिली। भले ही प्राचीन भारतीय खगोल विज्ञान की प्रगति दूरबीन की कमी के कारण सीमित थी। लेकिन कच्चे उपकरणों के साथ भी, भारतीय विद्वान खगोलीय गतिविधियों को माप सकते थे और लगभग पूर्ण सटीकता के साथ ग्रहण की भविष्यवाणी कर सकते थे। इन विद्वानों ने अलग-अलग ग्रहों और तारों की भी पहचान की और उस समय की प्रचलित भाषा “संस्कृत” में इन्हें सार्थक नाम दिए। नीचे 28 तारों के संस्कृत में और उनके समकक्ष अंग्रेजी नाम दिए गए हैं:

संस्कृत नाम आधुनिक उच्चारण
अश्विनी Β और Γ एरिएटिस (Β And Γ Arietis)
भरणी 35, 39, और 41 एरीटिस (35, 39, And 41 Aretis)
कृत्तिका प्लीएडेस (Pleiades)
रोहिणी एल्डेबारन (Aldebaran)
मृगशीर्ष Λ, Φ ओरियोनिस (Λ, Φ Orionis)
आर्द्र बेटेलगेस (Betelgeuse)
पुनर्वसु कैस्टर और पोलक्स (Castor And Pollux)
पुष्य Γ, Δ और Θ कैनक्री (Γ, Δ And Θ Cancri)
आश्लेषा Δ, Ε, Η, Ρ, और Σ हाइड्रा (Δ, Ε, Η, Ρ, And Σ Hydra)
माघ रेगुलस (Regulus)
पूर्व फाल्गुनी Δ और Θ लियोनिस (Δ And Θ Lyonis)
उत्तर फाल्गुनी डेनेबोला (Denebola)
हस्त Α, Β, Γ, Δ और Ε कोर्वी (Α, Β, Γ, Δ And Ε Corvi)
चित्रा स्पिका (Spica)
स्वाति आर्कटुरस (Arcturus)
विशाखा Α, Β, Γ और Ι लिब्रा (Α, Β, Γ And Ι Libra)
अनुराधा Β, Δ और Π स्कॉर्पियोनिस (Β, Δ And Π Scorpionis)
ज्येष्ठ Α, Σ, और Τ वृश्चिक (Α, Σ, And Τ Scorpio)
मूल Ε, Ζ, Η, Θ, Ι, Κ, Λ, Μ और Ν स्कॉर्पियोनिस (Ε, Ζ, Η, Θ, Ι, Κ, Λ, Μ And Ν Scorpionis)
पूर्व आषाढ़ Δ और Ε धनु (Δ And Ε Sagittarius)
उत्तर आषाढ़ Ζ और Σ धनु (Ζ And Σ Sagittarius)
श्रवण Α, Β और Γ एक्विला (Α, Β And Γ Aquila)
धनिष्ठ Α से Δ डेल्फ़िनी (Α To Δ Delphini)
शतभिषा Γ Aquarii
पूर्व भाद्रपद Α और Β पेगासी (Α And Β Pegasi)
उत्तरा भाद्रपद Γ पेगासी और Α एंड्रोमेडे (Γ Pegasi And Α Andromedae)
रेवती Ζ पिस्कियम (Ζ Piscium)
अभिजीत Α, Ε और Ζ लाइरे - वेगा (Α, Ε And Ζ Lyrae – Vega)
हालांकि आज अंग्रेजी में अधिकांश तारों के नाम रोमन, ग्रीक या अरबी भाषाओं से लिए गए हैं। उदाहरण के लिए, 'अल' से शुरू होने वाले तारों जैसे: अल्गोल (Algol), एल्डेबरन (Aldebaran), अल्टेयर (Altair) आदि नाम अरबी मूल के हैं। यदि किसी तारे का कोई उचित नाम नहीं है, तो उसकी पहचान उसके नक्षत्र के भीतर उसकी चमक और ग्रीक अक्षर से की जाती है। सबसे चमकीले तारे को ग्रीक वर्णमाला का पहला अक्षर 'अल्फा (Α)' मिलता है, दूसरे सबसे चमकीले तारे को 'बीटा (Β)' मिलता है, इत्यादि। लेकिन उल्लिखित सितारों के अलावा, राशि चक्र के बाहर कुछ चमकीले सितारों के नाम भारतीय भाषाओं में भी हैं। ध्रुव तारा सबसे प्रसिद्ध तारों में से एक है, जिसे 'ध्रुव' के नाम से जाना जाता है। 'ध्रुव' शब्द संस्कृत से आया है और इसका अर्थ ‘स्थिर' होता है, जो उपयुक्त है क्योंकि आकाश में इस तारे की स्थिति अपरिवर्तित रहती है। हालाँकि ध्रुव तारा विशेष रूप से चमकीला नहीं है, लेकिन आकाश में अपनी अद्वितीय स्थिति के कारण यह महत्वपूर्ण हो जाता है। ऐसा प्रतीत होता है मानो अन्य सभी तारे इसके चारों ओर घूम रहे हों। ध्रुव तारे को 'पोलारिस (Polaris)' के नाम से भी जाना जाता है। यह न तो उगता है और न ही अस्त होता है, न ही यह आकाश में घूमता हुआ प्रतीत होता है।
लेख में आगे कालीनाथ मुखर्जी की पुस्तक "पॉपुलर हिंदू एस्ट्रोनॉमी" (Popular Hindu Astronomy) से वर्तमान तारों और नक्षत्र के नामों और हिंदी में उनके संबंधित नामों की एक सूची दी गई है:
क्रमांक आधुनिक तारा और तारामंडल का नाम भारतीय नाम
1 Fomalhaut मत्स्यमुख
2 Beta Pegasii पक्षिराजस्य
3 Altair वासुदेव
4 Vega नीलमणि
5 Beta Librii सौम्यकिलक
6 Arcturus निष्ट्या
7 Theta Virginis अपम वास
8 Delta Virginis आप
9 Epsilon Virginis शवरी
10 Alpha, Beta Canes Venatici ज्येष्ठा, कनिष्ठा कालकंज
11 Alphard कालिया
12 Epsilon Hydrae सुमित्रा
13 Regulus यमपुत्र
14 Beta Hydrae शेष
15 Zeta Hydrae वासुकी
16 Sirius लुब्धक/तिह्या/श्वान/कोष्ठ/शिव/विश्वामित्र/विशांग
17 Canopus मान/मांदर्य
18 Procyon सरमा
19 Gomeisa प्रत्युषा
20 Menkalinan उरा
21 Pleiades(20,19,16,17,23,27 Tauri) बहुला
22 M44(Beehive Cluster) तारास्तवक/मातृका मधुचक्र/रथ/मंथरा
23 Aledaaran रोहित/सुरभि
24 Elnath अग्नि
25 Zeta Tauri स्वाहा
26 Rho Doradus लोपामुद्रा
27 Rho Perseii रेणुका मुंडा
28 Algol मायावती
29 Belt Stars Of Orion ईशु त्रिकंड
30 The Sword Of Orion मयूर मुंडा

संदर्भ
Http://Tinyurl.Com/42nf4atx
Http://Tinyurl.Com/4xaaaryz
Http://Tinyurl.Com/Y26drte6
Http://Tinyurl.Com/Yfzwteps

चित्र संदर्भ

1. आर्यभट्ट को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. वराहमिहिर की बृहज्जातक पांडुलिपि को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. आसमान की ओर इंगित करते आर्यभट्ट को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. विविध आकाश गंगाओं को दर्शाता एक चित्रण (picryl)
5. पूर्वता के प्रभाव के कारण तारों के बीच दक्षिणी आकाशीय ध्रुव के मार्ग को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)

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