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ढोला और मारू की कहानी, राजस्थान की एक लोकप्रिय लोक कथा है। इसका एक छत्तीसगढ़ी संस्करण भी है, जो राजस्थानी संस्करण से बिल्कुल ही अलग है। दोनों ही राज्यों में यह कहानी मौखिक परंपरा के माध्यम से पीढ़ियों से चली आ रही है। हालांकि आज यह गद्य, कविता और मिश्रित प्रारूपों सहित विभिन्न रूपों में उपलब्ध है।
चलिए पहले इसके राजस्थानी संस्करण का रसपान करते हैं:
1617 में जैन भिक्षु, “कुशल लाभ” द्वारा लिखी गई "ढोला मारू री चौपाई" नामक पुस्तक में उल्लेख किया गया है कि “ढोला और मारू की कहानी बहुत प्राचीन है, जिसमें कुछ पांडुलिपियां 1473 की भी हैं।” इस कहानी को राजपूत इतिहास का एक उत्कृष्ट उदाहरण माना जाता है और इसे राजस्थानी लोक रंगमंच में भी व्यापक रूप से प्रस्तुत किया जाता है। इस कहानी को कई भारतीय फिल्मों में भी रूपांतरित किया गया है।
कहानी के अनुसार: राजा पिंगल द्वारा शासित पूंगल नामक एक राज्य में मारू नामक एक सुंदर राजकुमारी रहती थी। उसके पिता ने अपने पड़ोसी राज्य नरवर के साथ संबंधों को मजबूत करने के लिए अपनी नवजात बेटी “मारू” और नरवर के राजा नल के पुत्र “ढोला” की बचपन में ही सगाई करा दी थी। धीरे-धीरे ढोला और मारू अपने-अपने राज्यों में बड़े हो जाते है। इसी बीच राजा नल का निधन हो जाता है। इधर ढोला भी पिता के जाने के दुःख और शासन की जिम्मेदारियों में घिरकर, अपने बचपन में मारू के साथ की गई विवाह प्रतिज्ञाओं को भूल जाता है। वहीं पूगल राज्य में, मारू को सब कुछ याद रहता है, और वह ढोला के प्रेम में अकेले ही तड़प रही होती है। हालांकि उसके पिता (राजा पिंगल) ढोला को कई संदेश भी भेजते हैं, लेकिन ढोला की “मालवणी” नामक एक और पत्नी होती है, जो इन संदेशों को ढोला तक नहीं पहुंचने देती।
हालांकि इसी बीच भाग्य ही मारू के हृदय की पुकार सुन लेता है। दरसल एक बार ढोला के राज्य में लोक गायकों का एक समूह आता है, जो गीतों के माध्यम से ढोला के प्रति मारू के अटूट प्रेम की खबर ढोला को देता है। इन विरह गीतों को सुनकर, ढोला का दिल भी मारू से मिलने के लिए तड़प उठता है, और वह तुरंत ही वर्षों से इंतजार में बैठी अपनी पत्नी से मिलने के लिए पूगल राज्य की ओर निकल पड़ता है।
हालाँकि उसकी पत्नी मालवणी, ढोला और मारू को किसी भी हाल में नहीं मिलने देना चाहती थी। इसलिए वह ढोला को वापस बुलाने की आशा में एक दूत के माध्यम से यह संदेश भिजवाती है कि “उसकी (मालवणी) की मृत्यु हो गई है।” लेकिन ढोला उसके धोखे को समझ जाता है, और यह खबर सुनने के बाद भी अपनी यात्रा जारी रखता है।
ढोला की यह यात्रा कई चुनौतियों से भरी होती थी। मार्ग में उसका सामना एक कुख्यात दस्यु नेता उमर सुमार से होता है। जो ढोला को यह झूठ बोलने की कोशिश करता है कि मारू की शादी किसी और से कर दी गई है। सुमार ऐसा इसलिए करता है, क्यों कि वह खुद भी मारू से प्रेम करता था। हालांकि ढोला उसकी बातों में भी नहीं आता और अंततः वह पूंगल राज्य में पहुँच जाता है, जहाँ उसका स्वागत पूरे हर्षोल्लास के साथ किया जाता है। इसके बाद ढोला और मारू फिर से एक हो जाते हैं और उनका प्यार पहले से भी अधिक मजबूत हो जाता है।
लेकिन यहां पर भी दुर्भाग्य उनका पीछा नहीं छोड़ता। नरवर वापस जाते समय रास्ते में ही मारू को एक रेगिस्तानी सांप डस लेता है और उसकी वहीं पर मृत्यु हो जाती है। इस दुःख से अभिभूत होकर ढोला, अपनी पत्नी की चिता पर चढ़कर राजपूत इतिहास में पहला 'पुरुष सती' बनने का फैसला करता है। लेकिन समय रहते एक योगी और योगिनी उसे बचा लेते हैं। कुछ दावों के अनुसार ये दोनों स्वयं भगवान शिव और माता पार्वती थे। वे दोनों ढोला से वादा करते हैं कि वे मारू को फिर से जीवित कर देंगे।
इसके बाद वे दोनों अपने संगीत वाद्य यंत्र बजाते हैं और मारू फिर से जीवित हो जाती है। लेकिन यह कहानी यहीं पर समाप्त नहीं होती है। कहानी में एक बार फिर से कहानी के पुराने खलनायक उमर सुमार की एंट्री होती है। वह इस भोले-भाले और नए नवेले जोड़े को एक शाम अपने यहां ठहरने के लिए आमंत्रित करता है। हालांकि, इसी बीच किस्मत से कुछ लोक गायक ढोला और मारू को उसके बुरे इरादों के बारे में चेतावनी दे देते हैं। चेतावनी सुनकर यह दंपति, उमर सुमार को पीछे छोड़कर, जल्दी से अपने ऊंट पर सवार होकर वहां से भाग जाते हैं। आखिरकार एक शुभ घड़ी में ढोला और मारू नरवर पहुंच ही जाते हैं, जहाँ वे दोनों, मालवणी के साथ खुशी-खुशी रहने लगती। आखिरकार यह राजस्थानी लोक कहानी यहीं पर समाप्त हो जाती है।
ढोला मारू का एक छत्तीसगढ़ी संस्करण भी है, जो राजस्थानी संस्करण से बिल्कुल अलग है। इस संस्करण की कहानी के अनुसार नरौलगढ़ में नल नामक राजा राज्य करते थे। राजा का एक पुत्र था, जिसका नाम “ढोला” है, और उसकी पत्नी “मारु” है। ये दोनों अपने विवाह के पूर्व महादेव और माता पार्वती की तपस्या करते हैं, जिसके बाद महादेव इनसे प्रसन्न होकर इन्हें वरदान देते हैं कि उन दोनों का विवाह होगा और वे अपने दिन सुख से बिताएंगे। राजा नल अपने पुत्र राजकुमार ढोला को राज्य सौंप देते हैं। हालांकि वह उसे एक चेतावनी देते हुए यह भी कहते हैं कि पड़ोस के पिंगला देश में मत जाना क्योंकि वहां रेवा मालिन (हरेवा), अपनी बहन परेवा के साथ रहती है।
लेकिन इसके बावजूद भी राजकुमार ढोला चारों दिशाओं में घूमते -घूमते पिंगला राज्य की ओर प्रस्थान कर देता है। घूमते -घूमते मार्ग में उसे सात बहने मिलती हैं, जो धान कूट चुकी होती हैं। वह कविता के स्वरूप में उससे पूछता है: धान कूटने वाली तुमने धान कूट लिया क्या? तुम लोगों ने मूसल में फूल बांध रखा है। हे धान कूटने वालों , मालिन का मार्ग कौन सा है।
अहो मैं अलबेला राजकुमार ढोला हूँ। मुझे रेवा मालिन की बखरी का पता दो वह किधर है ? वे सातों बहनें राजकुमार की सुंदरता पर मोहित हो जाती हैं और उसके सत्कार में उसे बैठने के लिए खाट और पीने के लिए चोंगी-माखुर देती हैं। इसके बाद वह सातों, अपनी एक बहन का नाम रेवा बताती हैं। पर राजकुमार ढोला को उनकी बातों पर विश्वास नहीं होता और वह आगे बढ़ चलता है। चलते-चलते वह कहता है: अलीगली पार करूँगा ,साथ बड़ा बाजार पार करूँगा ,बुनकरों की हवेलियाँ पार करूँगा और उसमें निर्मित झरोखों में देखूंगा कि रेवा मालिन वहां तो नही है।
इसके बाद चलते -चलते राजकुमार एक गाँव में पहुचंता है, जहां बच्चे खेल रहे थे। राजकुमार बच्चों से कहता है: हे ,बच्चों आप कमरे में खेलो खेल पर मेरी एक बात सुनो। मैं तुम्हे चिउड़ा और गुड़ दूंगा बदले में तुम मुझे मालिन की डगर बता दो।
यहां पर बच्चे लालच में आकर राजकुमार को पिंगला राज्य का मार्ग बता देते हैं। आखिरकार राजकुमार पिंगला पहुच जाता है। रेवा और परेवा भी वहीँ बगीचे के मध्य में बने एक सात मंजिला महल में रहती हैं। इन दोनों की सुंदरता वाकई में देखते ही बनती थी। इसके बाद राजकुमार सात मंजिला महल का पहला ,दूसरा ,तीसरा ,चौथा ,पांचवां ,छठवां और सातवां दरवाजा खोलते और बोलते हुए चलता है: मैं अल्हड़ ढोला राजकुमार हूँ।
सभी सात दरवाजों को खोलने के बाद वह भीतर आँगन में तुलसी का चौरा देख कर वहीं बैठ जाता है। तभी वहां पर दोनों बहनें रेवा और परेवा आ जाती हैं। उन्हें देखकर राजकुमार ढोला बोलता है: रेवा और परेवा दोनों बहने देखने लायक ही हो , और मैं ढोला राजकुमार आया हूँ तुम्हे तौलने। मैं राजकुमार ढोला तुम्हारे बखरी मैं आया और तुम्हें पहचान गया।
राजकुमार को देख कर रेवा मालिन कहती है - हे राजा आप कहाँ जा रहे हैं और कहाँ से आये हैं ,कृपया बखान करें। इसके बाद राजकुमार ढोला कहता है:- यहीं तुम्हारे बखरी में ,तुम्हारे पास ही आया हूँ।
कहानी आगे जारी रहती है.......................................
संदर्भ
https://tinyurl.com/2uw9k52h
https://tinyurl.com/4a7yrvee
https://tinyurl.com/2uw9k52h
https://tinyurl.com/56re2pk7
https://tinyurl.com/4mkt2cah
चित्र संदर्भ
1. ढोला-मारू की प्रेम कहानी को संदर्भित करता एक चित्रण (Rawpixel)
2. ढोला मारू री चौपाई लेखन को दर्शाता एक चित्रण (prarang)
3. प्रेमी को याद कर रही महिला को दर्शाता एक चित्रण (PICRYL)
4. ऊँट पर सवार राजा और रानी को दर्शाता एक चित्रण (vam.ac.uk/)
5. घोड़े पर सवार राजा को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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