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इंसान हजारों सालों से पृथ्वी के भीतर मौजूद, खनिजों को अपने दैनिक प्रयोगों के लिए निकालते आ रहे हैं। खनन ने हमारी आधुनिक दुनिया को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। खनन ने सदियों से हमारी इमारतों और बुनियादी ढांचे को बनाने वाली धातुओं से लेकर हमारे दैनिक जीवन में प्रयोग होने वाले उपकरणों के लिये खनिज प्रदान करके मानव सभ्यता को प्रगतिशील बनाए रखा है।
इंसानी सभ्यता के इतिहास में सबसे पहले इंसानों ने पत्थर के औजार बनाने के लिए सर्वोत्तम पत्थर खोजने हेतु खनन किया था। आपको जानकर हैरानी होगी कि शुरुआती पत्थर के उपकरण ( जो लगभग 2.6 मिलियन वर्ष पुराने हैं।) होमो सेपियन्स (Homo Sapiens) के अस्तित्व से भी पहले बनाए गए थे। लगभग 1.9 मिलियन वर्ष पहले, लोगों ने चट्टानों का उपयोग हथियार के रूप में करना शुरू कर दिया और जल्द ही काटने वाले उपकरण बनाने के लिए सर्वोत्तम पत्थरों की खोज शुरू कर दी।
मानव जनसंख्या के बढ़ने और होमो सेपियंस के विकास के साथ ही लोगों ने समुदाय बनाना शुरू कर दिया और खानाबदोश जीवन शैली छोड़कर ठहराव की जिंदगी अपना ली। प्रारंभिक जनजातियाँ उन क्षेत्रों में जाकर बस गईं, जहाँ उन्हें भोजन, पानी और आश्रय आसानी से मिल जाता था। इसके अलावा अन्य प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता ने भी लोगों के जीवन को प्रभावित करना शुरु कर दिया। खनन द्वारा प्राप्त सामग्रियों को संभवतः व्यापार की जाने वाली पहली वस्तुओं में से एक माना जाता है। किसी विशिष्ट खनिज के लिए सबसे पुरानी ज्ञात खदान, दक्षिण अफ्रीका में एक कोयला खदान को माना जाता है, जहां लगभग 40,000 से 20,000 साल पहले खनन कार्य किया गया था। हालांकि, लगभग 10,000 से 7,000 साल पहले तक भी खनन एक प्रमुख उद्योग नहीं बन पाया था। शुरुआती दिनों में, लोग केवल उन्हीं धातुओं का उपयोग कर सकते थे जो प्राकृतिक रूप से धात्विक अवस्था में पाई जाती थीं। इन धातुओं में तांबा सबसे आम था।
इसके बाद एक बड़ी सफलता तब मिली जब लोगों ने खनन की गई सामग्रियों को गर्म करना और पिघलाना शुरू कर दिया। यह मानव सभ्यता की उन्नति की दिशा में एक बड़ा कदम था। उदाहरण के लिए, गर्म किये गए मिट्टी के बर्तन सख्त हो गए और एक सीज़न से अधिक समय तक चल सकते थे। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि धातुओं को पिघलाकर उन्हें विभिन्न वस्तुओं का आकार देना संभव हो गया था।
लगभग 6,000 साल पहले, मिस्र और सुमेरियों ने अयस्क से सोना और चांदी गलाना शुरू किया, जिससे ये धातुएँ भी मूल्यवान और व्यापार योग्य बन गईं। टिन की खोज लगभग 5,500 वर्ष पहले हुई थी। जब इसे तांबे के साथ मिलाया गया, तो इससे कांस्य का निर्माण हुआ। यह एक मिश्र धातु थी जो टिन और तांबे दोनों से अधिक कठोर थी। अगले कुछ हज़ार वर्षों में, धातुकर्म और अन्य खनन सामग्रियों का उपयोग अधिक उन्नत हुआ। उदाहरण के लिए, लगभग 4,500 साल पहले मृत सागर (Dead Sea) क्षेत्र से मिस्र को “डामर”, का निर्यात किया गया था, जिसे संभवतः तेल व्यापार का पहला प्रतीक माना जाता है।
कोबाल्ट का उपयोग कांच को रंगने के लिए किया जाता था, और मिस्र के जहाज दक्षिण अफ्रीका से सोना आयात करते थे। सुमेरिया में लोग कानूनी मुद्रा के रूप में जौ की जगह धातु के सिक्के लेने लगे थे। जैसे-जैसे भूमध्य सागर के आसपास सभ्यताएँ विकसित हुईं, वैसे-वैसे खनन भी एक महत्वपूर्ण उद्योग बन गया।
पुरातत्वविद् राकेश तिवारी द्वारा मध्य गंगा घाटी में हाल ही में की गई खुदाई से पता चला है कि भारत में लोहे का प्रयोग करने की प्रथा संभवतः 1800 ईसा पूर्व में शुरू हुई होगी। मल्हार, दादूपुर, राजा नाला का टीला और लहुरादेवा सहित उत्तर प्रदेश के कई पुरातात्विक स्थलों में भी 1800 ईसा पूर्व से 1200 ईसा पूर्व के लौह उपकरणों की उपस्थिति देखी गई है। हालांकि 1979 में किये गए एक शोध के अनुसार, 13वीं शताब्दी ईसा पूर्व की शुरुआत तक, भारत में लोहे को गलाने का काम बड़े पैमाने पर किया जा रहा था। इससे पता चलता है कि इस तकनीक की शुरुआत संभवतः 16वीं शताब्दी ईसा पूर्व में हो सकती है।
कार्बन डेटिंग (Carbon Dating) से पता चलता है कि “लगभग 2000 साल पहले स्थापित "ज़ावर (Zawar)" दुनिया की सबसे पुरानी जस्ता खदान है।" ज़ावर की खदानें राजस्थान के उदयपुर जिले में स्थित हैं।
लगभग 3000 साल पहले राजपुरा-दरीबा में बड़े पैमाने पर शीशे का खनन हुआ था।
क्या आप जानते हैं कि शोधकर्ताओं के अनुसार जस्ता और सोने जैसे धातु तत्वों के सल्फाइड अयस्कों (Sulphide Ores) की बड़ी मात्रा में पाए जाने की संभावना समुद्री तल की तुलना में पहाड़ी क्षेत्रों में अधिक होती है? ऐसा इसलिए है, क्योंकि महाद्वीप से महाद्वीप टकराव (Continent to Continent Collision) के दौरान बनी पर्वत श्रृंखलाओं में बड़ी मात्रा में मैग्मा और अति-गर्म पानी होता है, जो घुले हुए खनिजों से भरपूर होता है, जो पहाड़ की परतों में क्रिस्टलीकृत हो जाता है।
हालांकि, खनन, पर्यावरण संबंधी चिंताएँ भी बढ़ा रहा है। उदाहरण के लिए, उत्तराखंड सरकार ने अस्कोट गांव में सल्फाइड अयस्क भंडार का पता लगाने के लिए एक कनाडाई खनन फर्म (Canadian Mining Firm) को लाइसेंस दिया है। पर्यावरणविदों और भू वैज्ञानिकों का तर्क है कि इससे केवल न्यूनतम लाभ के लिए पर्यावरण का भारी विनाश हो सकता है, क्योंकि प्रति टन अयस्कों के खनन से केवल कुछ ग्राम धातुएँ ही प्राप्त हो सकती हैं। उन्होंने यह भी चेतावनी दी है कि बड़ी मात्रा में पानी खदानों में घुस सकता है, जिससे क्षेत्र में भूस्खलन की संभावना बढ़ जाएगी। इन चिंताओं के बावजूद, कुछ लोगों का तर्क है कि क्षेत्र में बने बांधों की तुलना में खनन का प्रभाव नगण्य है। हालाँकि, आलोचकों का तर्क है कि खनन गतिविधियाँ मुख्य रूप से स्थानीय लोगों और पर्यावरण को बड़े पैमाने पर हानि पंहुचा सकती हैं।
संदर्भ
https://tinyurl.com/4xjwy5wx
https://tinyurl.com/4vy2shys
https://tinyurl.com/3db97pv3
https://tinyurl.com/yx42fu93
चित्र संदर्भ
1. खनन मजदूरों को संदर्भित करता एक चित्रण (picryl)
2. पत्थर के औजारों को संदर्भित करता एक चित्रण (Encyclopedia)
3. एक हीरे की खदान को दर्शाता एक चित्रण (garystockbridge617)
4. जमीन के भीतर खनन कर रहे मजदूरों को दर्शाता एक चित्रण (picryl)
5. पहाड़ों में खनन को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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